—————- प्रकाश कपरुवाण।
ज्योतिर्मठ, 24नवंबर।
उत्तराखंड का संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र गुलदार व भालूओं के आतंक से डरा सहमा है, हर वर्ष दर्जनों लोग वन्य जीवों का शिकार हो रहे हैं, घायलों की संख्या तो सैकड़ों मे पहुँच गई है, लेकिन राज्य गठन के 25 वर्षों मे भी वन्य जीवों के खतरों से निपटने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बन सकी है, वन्य जीवों के इतने हमलों के बाद तो सरकारों को चाहिए के किसी अवसर की प्रतीक्षा किए बिना आपदा प्रबंधन की तर्ज पर वन्य जीवों की आपदा से पहाड़वासियों को बचाने के लिए कदम उठाए जाएं।
इस वर्ष पहली बार असंख्य भालूओं को देख सभी लोग हैरान परेशान हैं, अंधेरा होते ही लोग घरों मे दुबकने को विवश हो रहे हैं,ऐसे मे पहली प्राथमिकता लोगों को वन्य जीवों के आतंक से उबारने की होनी चाहिए इसके लिए सरकार को कठोर निर्णय लेने होंगें।
पूर्व वर्षों मे तो स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी, व सड़क के कारण के साथ ही जंगली जानवरों द्वारा खेती को नुकसान भी पलायन का कारण रहा है, लेकिन अब तो वन्य जीवों से स्वयं को बचाने के लिए ही लोगों को पलायन के लिए विवश होना पड़ेगा।
जंगली सूअर व लंगूर खेती को नष्ट कर रहे हैं, भालू नगदी फसल, पशुधन के नुकसान के साथ ग्रामीणों को भी मौत के घाट उतार रहा है और गुलदार घर आँगन मे दस्तक देकर मासूमों को ही निवाला बना रहा है।
इतना सबकुछ होने के बाद सरकारी तंत्र आखिर इसे गंभीर संकट क्यों नहीं मान रहा है ?, जिस प्रकार किसी आपदा मे सारे विभाग झोंक दिए जाते हैं क्या वन्य जीवों का बढ़ता आतंक किसी आपदा से कम है?, लेकिन यह सब वन विभाग पर छोड़ दिया जाता है, सीमित वन कर्मी आखिर करे भी तो क्या, एक जगह से भालू के पहुँचने की सूचना पर वहाँ पटाखे फोड़ने पहुँचते हैं तभी दूसरी व तीसरी जगहों से भालूओं के आंतक की सूचना आ जाती है।
अब समय आ गया है कि वन्य जीवों के आतंक को आपदा मानते हुए विभिन्न विभागों की त्वरित रिसपॉन्स टीम गठित की जाय, गाँव मोहल्लों के आस पास झाड़ी कटान व सफाई अभियान चलाया जाय, संभावित खतरों वाले स्थानों मे पर्याप्त विद्युत व्यवस्था हो और विद्युत कटौती की स्थिति मे सोलर लाइट की व्यवस्था हो।
अगर समय रहते यह सब नहीं हुआ तो आए दिन गाँव गाँव से वन्य जीवों के हमलों से मौतों व घायलों की सूचनाएँ मिलती रहेगी, वन विभाग मुवावजा देकर इतिश्री करता रहेगा और पहाड़ के वासिन्दे राज्य गठन के 25वर्षों के बाद भी वन्य जीवों के हमलों से निजात दिलाने की दिशा मे कोई नीति न बनने के कारण स्वयं को ठगा महसूस करते रहेंगे।
सरकार को यह भी देखना होगा कि वन्य जीवों के हमलों मे घायल के उपचार के लिए जो मुवावजा राशि अनुमन्य है क्या भालू व गुलदार के हमलों मे बुरी तरह नोच लिए गए घायल का उस मुवावजा राशि से इलाज संभव है..?।
अब देखना होगा कि सरकार वन्य जीवों के आंतक को आपदा की तर्ज पर गंभीरता से लेने मे कितना समय लगाएगी इस पर वन्य जीवों की दहशत के साए मे जी रहे डरे सहमे पहाड़ वासियों की निगाहेँ टिकी रहेंगी।











