• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड में पहाड़ी क्षेत्रों में कोल्ड स्टोर व छोटी मंडियां खोली जाएं

05/07/25
in उत्तराखंड, देहरादून
Reading Time: 1min read
0
SHARES
10
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड राज्य के पहाड़ी जनपदों में कृषि और बागवानी से जुड़े काश्तकारों की अलग ही परेशानी हैं। उन्नत किस्म के बीज और उत्तम क्वालिटी की दवा न मिलने से यहां काश्तकार परेशान हैं। लेकिन, इससे बड़ी परेशानी गांव से निकटवर्ती मंडी और बाजार तक तैयार फसल पहुंचाने की है। इसके अलावा पहाड़ में अधिकांश काश्तकार छोटी जोत वाले हैं। इसी कारण सामूहिक खेती और चकबंदी की वकालत भी काश्तकार लंबे समय से करते आ रहे हैं। राज्य बनने के बाद से पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों के लिए पहाड़ में मंडी नहीं बन पाई। कुमाऊं के पांच पर्वतीय जिलों में बड़ी मात्रा में फल, सब्जियों का उत्पादन होता है।पहाड़ में मंडी न होने से किसान फसल ढोकर हल्द्वानी, दिल्ली मंडी में बेचने जाते हैं। यहां बिचौलिए किसानों से कम दाम में फसल खरीदते हैं। ऐसे में कई बार किसानों की लागत तक नहीं निकल पाती है। राज्य बनने के बाद पांचवीं बार पंचायत चुनाव होने जा रहे हैं। इसके बावजूद किसानों के लिए मंडी बनाने का मुद्दा कहीं नजर नहीं आता है। कुमाऊं में ज्यादातर किसान पर्वतीय क्षेत्रों के ग्रामीण इलाके से हैं।कुमाऊं के पांच पर्वतीय जिलों में सेब, नाशपाती, खुमानी, आडू, पुलम, अखरोट, आम, लीची के साथ सब्जियों का भी उत्पादन होता है। इसमें सबसे अधिक फलों का उत्पादन होता है। आंकड़ों के अनुसार कुमाऊं में 48695.96 हेक्टेयर भूमि में फलों का उत्पादन किया जाता है जिससे करीब 444,569.89 मीट्रिक टन फलों का उत्पादन होता है। कभी प्राकृतिक सुंदरता, स्वस्थ्य वातावरण भरे-पुरे जंगल और पहाड़ी खेती के लिए देश विदेश में विख्यात उत्तराखंड धीरे-धीरे अपनी पहचान खो रहा है। विकास की अंधी दौड़ ने लोगों की सोच और रहन सहन का तरीका बदल दिया है। इसका सीधा प्रभाव क्षेत्र की संरचना में नज़र आ रहा है। अब यहां जंगलों और प्राकृतिक रूप से निर्मित मकानों की जगह कंक्रीट के घर ने ले ली है। बड़े बड़े पांच सितारा होटल बनाने और अधिक से अधिक पैसा कमाने की लालच ने लोगों को खेती किसानी से दूर कर दिया है। परिणामस्वरूप राज्य में खेती के लिए भूमि सिकुड़ती जा रही है। वर्तमान समय में सभी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन का असर किसी न किसी रूप में देखने को मिल रहा है. चाहे वह बढ़ता तापमान हो, उत्पादन की मात्रा में गिरावट की बात हो, जल स्तर में गिरावट हो या फिर ग्लेशियरों के पिघलने इत्यादि सभी जगह देखने को मिल रहे हैं. जलवायु में होने वाले बदलावों ने सबसे अधिक कृषक वर्ग को प्रभावित किया है. चाहे वह मैदानी क्षेत्र के हो या फिर पर्वतीय क्षेत्र के किसान. मैदानी क्षेत्र में फिर भी आजीविका के कई विकल्प मौजूद हैं. यदि कृषि में नुकसान हो रहा हो तो अन्य कार्य के माध्यम से आय की जा सकती है, लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान का खामियाजा हर हाल में कृषकों को ही उठाना पड़ रहा है क्योंकि पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों के पास आय के दूसरे श्रोत नहीं हैं. वहीं प्राकृतिक कहर और जंगली जानवरों के नुकसान ने कृषकों को खेती से विमुक्त होने के लिए विवश कर दिया है. अब किसान या तो पलायन के लिए मजबूर हो गए हैं या फिर मामूली तनख्वाह पर कहीं काम कर रहे हैं. सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की बात करती है लेकिन भीमताल, रामगढ़, ओखलकांडा, धारी और बेतालघाट के पर्वतीय क्षेत्रों में अब तक मंडी की स्थापना न होने से काश्तकार अपनी फसलों व फलों को बिचौलियों के माध्यम से हल्द्वानी मंडी में औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर हैं।कृषि मंत्री धारी या ओखलकांडा के मध्य मंडी खोलने की घोषणा काफी पहले कर चुके हैं लेकिन उद्यान विभाग को अब तक भूमि नहीं मिली है। अफसोस है कि मंडी खुलने का सपना धरातल पर नहीं उतर सका है। काफल तो उत्तराखंड का राजकीय फल ही है, जो मीठा, खट्टा और रसीला होता है. और उसमें एंटी-ऑक्सीडेंट और अनेक विटामिन भी होते हैं । देवभूमि के पहाड़ों पर तिमला, मेलू, अमेज, दाडि़म, करौंदा, तूंग, जंगली आंवला, खुबानी, हिसर, किनगोड़ जैसे अनेक अन्य जंगली फल भी पाए जाते हैं, जो इंसानी सेहत के लिए बेहद मुफीद होते हैं। मगर यह क्या ? चंबा, टिहरी और काना ताल के बाजारों में कहीं भी कोई स्थानीय फल ढूंढे से भी नहीं मिला । वहां के बाजार भी उन्हीं आमों, लीची, आड़ू और सेब से भरे पड़े थे जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश अथवा दिल्ली की आजाद पुर सब्जी मंडी से वहां पहुंचे थे । बेशक सवाल छोटा सा था मगर मैं उसमें अटक गया कि पहाड़ का फल जब पहाड़ पर ही नहीं मिलता तो बाकी देश के बाशिंदे उनका सेवन कैसे करेंगे ? ऐसे में इन नायाब फलों के निर्यात की बात तो सोची भी कैसे जा सकती है ?स्थानीय लोगों से जब इस विषय में बात की तो पता चला कि सेब, माल्टा, आड़ू और खुबानी जैसे पारंपरिक फलों को छोड़ कर अन्य स्थानीय फलों की वहां खेती ही नहीं की जाती और प्राकृतिक रूप से जो फल जितना भी उपलब्ध होता है, उसे ही स्थानीय लोग इस्तेमाल कर लेते हैं। इन बेहतरीन फलों को बाज़ार तक पहुंचाने के लिए आज तक कोई प्रयास न तो सरकार ने किया है और न ही काश्तकारों ने । ले देकर बुरांश के फूल का रस जरूर बोतलों में बंद कर पर्यटकों को बेचा जाने लगा है मगर बुरांश का फल तो अभी भी बाजार तक नहीं पहुंचा । जबकि यह फल भी स्वादिष्ट होने के साथ साथ अनेक बीमारियों के इलाज में भी उपयोगी होता है। दुनिया जानती है कि उत्तराखंड के अधिकांश फल जैविक रूप से उगाए जाते हैं और इन फलों के पेड़ मिट्टी के कटाव को रोकने और जैव-विविधता को बनाए रखने में भी मदद करते हैं । काफल, हिसालू, और बेड़ू जैसे फल तो स्थानीन संस्कृति, लोकगीतों और लोककथाओं का भी महत्वपूर्ण हिस्सा हैं ।पहाड़ से लौट कर पड़ताल की तो पता चला कि साल 2016 से अब तक उत्तराखंड में फलों के लिए आरक्षित भूमि में 54 फीसदी की कमी आई है और इसी के चलते फलों का उत्पादन भी 60 फीसदी घट गया है। वर्ष 2016 में 4551 मीट्रिक टन फलों का यहां से निर्यात होता था जो अब घटते घटते मात्र 1192 मीट्रिक टन ही रह गया है। हैरानी की बात नहीं है कि उत्तम क्वालिटी के फलों का उत्पादन करने के बावजूद राज्य से अब मात्र 4 करोड़ 68 लाख का ही निर्यात होता है ? इन फलों में भी केवल वही फल हैं जो हमें आमतौर पर अपने गली मोहल्ले में भी मिल जाते हैं। केवल पहाड़ पर ही मिलने वाले फल सिरे से गायब हैं जाहिर है कि राज्य सरकार का इस ओर कतई ध्यान नहीं है और यही कारण है कि किसान फलों की बागवानी को लेकर उदासीन हो रहे हैं। कई बार घोषणा के बावजूद राज्य में काश्तकारों को ओला वृष्टि जैसी आपदाओं से निपटने को सब्सिडी नहीं दी जा रही और किसानों को मंडियों से जोड़ने को कोई महत्वपूर्ण पहल भी अब तक नहीं की गई । ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि इतने महत्वपूर्ण विषय पर भी राज्य सरकार का ध्यान नहीं है तो फिर उसका ध्यान कहां है .! *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*

ShareSendTweet
Previous Post

श्रद्धालुओं की सुरक्षा है हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता : सेनानायक

Next Post

संदिग्ध परिस्थितियों में बालिका मृत मिलने पर परिजनों ने कोतवाली में काटा हंगामा

Related Posts

उत्तराखंड

भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड के अध्यक्ष ने किया गलोगी जल विद्युत परियोजना का भ्रमण

July 6, 2025
196
उत्तराखंड

छोटे से गांव पुरान के ललित मोहन जोशी बने चार्टर्ड अकाउंटेंट

July 6, 2025
12
उत्तराखंड

राज्य आंदोलनकारियों कें 10% क्षैतिज आरक्षण मामले पर उच्च न्यायालय मेँ प्रदेश सरकार की अच्छी पैरवी

July 6, 2025
143
उत्तराखंड

जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे नरेंद्र मेहरा

July 6, 2025
9
उत्तराखंड

जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे नरेंद्र मेहरा

July 6, 2025
3
उत्तराखंड

सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी विमला गुंज्याल को गुंजी गांव की निर्विरोध ग्राम प्रधान

July 6, 2025
7

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    0 shares
    Share 0 Tweet 0

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड के अध्यक्ष ने किया गलोगी जल विद्युत परियोजना का भ्रमण

July 6, 2025

छोटे से गांव पुरान के ललित मोहन जोशी बने चार्टर्ड अकाउंटेंट

July 6, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.