शंकर सिंह भाटिया
हिमाचल प्रदेश में अवैध मसजिदों को लेकर हिमाचल प्रदेश के मूल निवासियों के एक आंदोलन ने पूरे देश को जगा दिया है। जमीनों पर कब्जा कर अवैध मसजिद खड़ी करने वाले खुद घुटनों पर आ गए हैं, शिमला में पांच मंजिला अवैध मसजिद खड़ा करने वालों को अब भाईचारा याद आ रहा है और वे खुद अवैध अतिक्रमण को तोड़ने का प्रस्ताव लेकर नगर निगम के पास पहुंचे हैं, जबकि मंड़ी में अवैध मसजिद बनाने वाले उसे खुद तोड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। क्या हिमाचल प्रदेश के मूल निवासियों के इस अहिंसक एकजुट आंदोलन से उत्तराखंड के लोग, यहां के मूल निवासी सबक सीख पाएंगे?
भारत सरकार के 2011 के जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार देश में सबसे अधिक मुसलिम आबादी की घुसपैठ के मामले में असम नंबर एक पर है, दूसरे स्थान पर एक छोटा सा हिमालयी राज्य उत्तराखंड है। यदि हिमाचल प्रदेश की बात करें तो मुसलिम आबादी की घुसपैठ के मामले में हिमालयी क्षेत्रों में सबसे अधिक सुरक्षित और कम घुसपैठ वाले राज्य के रूप में जाना जाता है। इसके बावजूद हिमाचल प्रदेश में अचानक जो विस्फोट हुआ है, वह चौकाने वाला और कान खड़े कर देने वाला है।
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के संजौली क्षेत्र में एक आवासीय क्षेत्र में एक आवासीय भवन कब मसजिद में तब्दील हो गया और जम्मू-कश्मीर, यूपी, उत्तराखंड से लेकर न जाने कहां-कहां से तमाम दूसरे क्षेत्रों से हजारों की संख्या में जुमे की नमाज के लिए लोग वहां पहुंचने लगे, किसी को कानों-कान खबर तक नहीं हुई। इस डेमोग्राफिक बदलाव से संजौली क्षेत्र के निवासी बहुत असहज हो रहे थे, लेकिन वे सीधे तौर पर इसका विरोध नहीं कर पा रहे थे। 30 अगस्त 2024 को बाहर से आए पांच छह लोगों ने, जिसमें दो नाबालिग भी शामिल थे ने एक स्थानीय व्यक्ति की पिटाई कर दी और कथित मसजिद में घुसकर पुलिस से बचने की कोशिश की, तो स्थानीय लोगों का गुस्सा फूटकर बाहर निकल आ गया। पुसिल के लाठीचार्ज ने इस गुस्से में आग में घी डालने का काम किया। इस आंदोलन का प्रभाव यह हुआ कि मंडी में बनी अवैध मसजिद को बनाने वाले ही खुद तोड़ने में जुट गए। संजौली मसजिद बनाने वाले अवैध निर्माण को तोड़ने के लिए खुद ही प्रस्ताव लेकर नगर निगम और आयुक्त के पास पहंुच गए। यह मूल निवासियों के एकजुट आंदोलन की वजह से हो पाया, भाईचारे की बात तो सिर्फ नाक बचाने की कोशिश है।
हालांकि हिंदूवादी संगठनों के आंदोलन की आड़ में इस पूरे आंदोलन का राजनीतिककरण हो चुका है। भाजपा ने इस पूरे आंदोलन को हाईजैक कर लिया है। यह पूरी तरह से अब एक राजनीतिक आंदोलन बन गया है। इसके बावजूद स्थानीय लोगों की पीड़ा को उजागर करने वाला यह एक ऐसा आंदोलन बन गया है, जिसमें स्थानीय लोगों की आवाज भी शामिल है। लेकिन इस आंदोलन के निहितार्थ ने सबसे अधिक उहापोह की स्थिति में हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार को पहुंचा दिया है। उस पर कांग्रेस हाई कमान का दबाव है कि मुसलिम इस आंदोलन में बैकफुट पर आते हुए नहीं दिखाई देने चाहिए, लेकिन हिमाचल की जनता ने सीधा संदेश दे दिया है कि इस तरह के अवैध निर्माण और धार्मिक दबाव को वहां की जनता स्वीकार नहीं करेगी।
इस मामले में उत्तराखंड सबसे अधिक संवेदनशील राज्य रहा है, जो रोहिंग्या और मुसलिम घुसपैठ के लिए सबसे मुफीद जगह साबित हुआ है। पिछली बार भाजपा की धामी सरकार ने जिस तरह जंगलों में अवैध कब्जों के लिए बनाए गए अवैध मसजिद और मजारों को ध्वस्त किया गया था, उससे पूरे देश का फोकस उत्तराखंड पर आ गया था। इसके बावजूद जिस तरह पहाड़ी क्षेत्रों में भी मुसलिमों को बसाकर पहाड़ों की पूरी डेमोग्राफी बदलने के प्रयास निरंतर हो रहे हैं, उसे रोकने के लिए कोई कारगर प्रयास होते नहीं दिखाई दे रहे हैं, ऐसे मामलों में सरकारें तो चुप हैं, स्थानीय निवासी भी जग नहीं रहे हैं। जब उत्तराखंड कश्मीर बन जाएगा तब यहां के मूल निवासी जागेंगे?