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हिंदी विश्वविद्यालय में 18 पाठ्यक्रम की सभी सीटें खाली

09/10/25
in उत्तराखंड, देहरादून
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https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/11/Video-60-sec-UKRajat-jayanti.mp4

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
देश का इकलौता हिंदी विश्वविद्यालय हिंदी के पाठ्यक्रमों में ही स्टूडेंट की कमी से जूझ रहा है. हालत यह है कि अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय के एमए हिंदी पाठ्यक्रम में केवल 4 छात्रों ने प्रवेश लिया है. वहीं 18 पाठ्यक्रम तो ऐसे हैं, जिनमें एक भी प्रवेश नहीं हुआ. जबकि बीते 14 साल से संचालित हो रहे इस विश्वविद्यालय के संचालन में सरकार हर साल करोड़ों रुपये खर्च कर रही है. हाल में ही 5 करोड़ रुपये से विश्वविद्यालय की नई बिल्डिंग का निर्माण भी किया गया. इसके बावजूद विवि प्रबंधन स्टूडेंट को बुलाने में नाकाम रहा. शैक्षणिक वर्ष 2012-13 में अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय का पहला सत्र शुरू हुआ था. उस समय यहां करीब 60 विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया था. तब राज्य सरकार की योजना इसे ज्ञान-विज्ञान की समस्त शाखाओं के शिक्षण-प्रशिक्षण, प्रकाश-विस्तार तथा राष्ट्रीय लोक व्यवहार को हिंदी भाषा में संभव तथा सम्पन्न बनाकर विश्व का पहला ऐसा विश्वविद्यालय बनाने की थी. जहां कला, समाज विज्ञान, वाणिज्य, मानविकी, विज्ञान, चिकित्सा, अभियांत्रिकी, विधि, शिक्षा एवं अन्य आधुनिक दृष्टिकोण के पाठ्यक्रमों का संचालन हिंदी भाषा के माध्यम से करना था. अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय में नए शैक्षणिक सत्र में कुल 174 सीटों पर प्रवेश हुआ है. इनमें पीजी के 27 कोर्स में 63 और यूजी के 11 पाठ्यक्रमों में 99 स्टूडेंट ने प्रवेश लिया है. वहीं 13 सर्टिफिकेट व डिप्लोमा कोर्सेस में केवल 12 एडमिशन हुए हैं. सबसे खास बात यह है कि यह मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश का पहला ऐसा विश्वविद्यालय है, जहां सभी कोर्सेस का संचालन हिंदी भाषा में ही किया जाता है. इसके बावजूद यहां हिंदी के पाठ्यक्रमों में ही प्रवेश लेने वाले बच्चों की कमी है. इस सत्र में केवल 4 बच्चों ने प्रवेश लिया है. वहीं 11 पाठ्यक्रम ऐसे हैं, जहां केवल एक-एक स्टूडेंट ने एडमिशन लिया है. यूनिवर्सिटी में कम हो रहे प्रवेश को लेकर हिंदी विश्वविद्यालय के कुलगुरु देव का कहना है “इस मामले में समीक्षा की जा रही है. आगामी सत्र से विश्वविद्यालय में कुछ नए रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रम शुरू किए जाएंगे. जिससे स्टूडेंट की संख्या बढ़ाई जा सके. इसके साथ ही इंजीनियरिंग का कोर्स भी हिंदी में शुरू करने की तैयारी है. विश्वविद्यालय में इंफ्रास्टक्चर समेत अन्य सुविधाओं की कमी है, इसके लिए शासन से बजट मांगा गया है. हिंदी विश्वविद्यालय में स्टूडेंट की संख्या बढ़ाने के लिए अन्य विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है.” अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय की शुरुआत को 14 साल बीत चुके हैं. शैक्षणिक वर्ष 2025-26 में 68 कोर्सेस में एडमिशन प्रक्रिया शुरू की गई थी. इसके बाद 18 पाठ्यक्रमों में एक भी स्टूडेंट ने प्रवेश नहीं लिया. वर्तमान में इस विश्वविद्यालय में करीब 500 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं. वहीं साल 2012-13 से अब तक करीब 4,973 स्टूडेंट प्रवेश ले चुके हैं. शुरुआत में विश्वविद्यालय प्रबंधन का उद्देश्य विज्ञान, साहित्य, वाणिज्य, कला, कानून समेत अन्य संकायों में हिंदी भाषाा में शोध आधारित पाठ्यक्रम शुरू करना था. लेकिन इन 14 सालों में यहां पीएचडी भी शुरू नहीं हो सकी. हालांकि राज्य सरकार से हर साल 3.5 करोड़ रुपये की ग्रांट दी जा रही है. जिससे स्टाफ के वेतन व अन्य खर्चे निकल रहे हैं. बता दें कि साल 2023 में 13 नियमित शिक्षकों की भर्ती हुई है, जिनका वेतन करीब एक लाख रुपये तक है. इनके साथ ही 22 अतिथि विद्वान पदस्थ हैं, जिन्हें प्रत्येक को करीब 33 हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय का भुगतान किया जाता है. अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना 2011 में हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी, लेकिन हिंदी में ही विद्यार्थियों की संख्या कम है। सत्र 2025-26 में एमए हिंदी पाठ्यक्रम में सिर्फ चार विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया है। वहीं, पीजी के नौ, यूजी के दो और सर्टिफिकेट व डिप्लोमा के सात पाठ्यक्रम में शून्य प्रवेश हुए हैं। हालांकि, विवि में सुविधाओं के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च हुए हैं। शिक्षकों के वेतन पर भी लाखों रुपये खर्च हो रहे हैं।जिन पीजी पाठ्यक्रम में शून्य प्रवेश हुए उनमें एमए अर्थशास्त्र, एमए (इतिहास), एमए (भूगोल), एमएससी (गणित), एमएससी (पर्यावरण), एमकॉम, एमबीए, गाइडेंस एवं काउंसलिंग में एक भी विद्यार्क्षी ने प्रवेश नहीं लिया है। जबकि यूजी पाठ्यक्रम में बीए (योग) और बीएससी (आधारभूत विज्ञान), सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स में पंचकर्म, योग एवं  प्राकृतिक चिकित्सा, मत्स्य एवं मात्स्यिकी, नाट्य शास्त्र एवं रंगमंच, लोक संगीत, डीसीए और पीजीडीसीए में किसी भी विद्यार्थी ने एडमिशन नहीं लिया है।राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत हम आने वाले सत्र से नए रोजगारोन्मुखी कोर्स शुरू करने जा रहे हैं। विशेष रूप से इंजीनियरिंग को हिंदी माध्यम में शुरू करने की योजना है। इसके अलावा अधूरे छात्रावास और बस सुविधा को पूरा करने के लिए शासन को पत्र लिखकर अतिरिक्त बजट मांगा गया है। हमें उम्मीद है कि इससे विद्यार्थियों की संख्या बढ़ेगी।”छात्रों का कहना, कोर्स हैं पर करियर नहींविश्वविद्यालय में पढ़ने वाले कुछ विद्यार्थियों का कहना है कि यहां बुनियादी सुविधाएं तो हैं, लेकिन करियर गाइडेंस और रोजगार की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की जाती।एमए हिंदी की एक छात्रा ने कहा, “हिंदी में पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन यहां क्लासेस नियमित नहीं होतीं। सेमिनार, वर्कशॉप और करियर काउंसलिंग का अभाव है। ऐसे में विद्यार्थी खुद ही आगे बढ़ने का रास्ता ढूंढते हैं।”विश्वविद्यालय प्रशासन ने बताया कि प्रवेश प्रक्रिया में देशभर के विद्यार्थियों को शामिल करने के लिए ऑनलाइन आवेदन व्यवस्था की गई थी, लेकिन परिणाम निराशाजनक रहे।उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, और छत्तीसगढ़ जैसे हिंदीभाषी राज्यों से भी विद्यार्थी नहीं आए।इससे यह सवाल उठता है कि क्या विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा घट रही है, या फिर विद्यार्थियों में हिंदी माध्यम की उच्च शिक्षा के प्रति विश्वास कम हो रहा है? *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*

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