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खून में कोलेस्टरोल की मात्रा कम करता है हींग

24/10/19
in उत्तराखंड, हेल्थ
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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
सम्पूर्ण विश्वभर में हींग की लगभग 170 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से लगभग 60 प्रजातियां केवल एशिया में जैसे ईराक, तुर्की, भारत, अफगानिस्तान व ईरान तथा इसके अलावा यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में भी पायी जाती हैं। पौधे से निकलने वाले दूधिया द्रव्य को ही हींग के रूप में एकत्रित किया जाता है। हींग के पौधे का उत्पादन भारत में कश्मीर तथा उच्च हिमालयी क्षेत्रों जैसे कि हिमाचल तथा उत्तराखण्ड में होता है। हींग सामान्यतः 2,200 मीटर समुद्र तल से, की ऊँचाई तक पाया जाता है। उत्तराखण्ड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में लोगों द्वारा हींग की सीमित खेती कर स्थानीय बाजारों तथा शहरों तक पहुंचाया जाता है। न्उइमसपतिमं कुल का पौधा थ्मतनसं ंेंविमजपकं को ही हींग के नाम से जाना जाता है।
देश के विभिन्न राज्यों में ही हींग को अनेकों भाषाओ में अलग.अलग नाम से जाना जाता है जैसे कि हिन्दी में हींग, कन्नड़ में हींगू, तेलगू में इंगुवा, तमिल में पेरू.गयान, मल्यालम में कयाम, अंग्रेजी में डेविल्स डंग आदि। विभिन्न शोध पत्रों में प्रकाशित हींग पर हुये शोध के अनुसार हींग में 40-64 प्रतिशत रेसिन जिसमें कि फेरूलिक एसिड, फेरूलसिनेइक एसिड, अम्बेल लाईफेरोन, एसारेसिनोटिनोलस, फर्नेफेरोलस ए, बी, सी आदि, 25 प्रतिशत गम जिसमें ग्लूकोस गेलेक्टोस, 1 एरोबिनोस, रेम्नोस तथा ग्लूकाउरोनिक एसिड तथा 3.17 प्रतिशत वोलेटाइल ऑयल जिसमें डाईसल्फाईड्स मुख्य रूप से तथा 2 ब्यूटाइल प्रोपेनाइल डाइसल्फाइड आदि पाये जाते हैं। इसके अलावा हींग प्राकृतिक पोषक तत्वों से भरपूर है, इसमें कैल्शियम 690 मि0ग्रा0, फास्फोरस 50 मि0ग्रा0, आयरन 39.40 मि0ग्रा0, मैग्निशयम 80 मि0ग्रा0, मैगनीज 1.12 मि0ग्रा0, कॉपर 0.43 मि0ग्रा0 तथा जिंक 0.83 मि0ग्रा0 प्रति 100 ग्राम में पाये जाते हैं। वर्ष 2014 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार हींग से दो प्रकार के इसेन्सियल ऑयल निकाले जाते हैं। एक ईरानी जो कि एंटी फंगल तथा दूसरा पठानी जिसको अच्छा एंटी बैक्टीरियल बताया गया है। एक अन्य शोध में हींग में उपस्थित फेरूल्सिनेइक एसिड को ब्लड में ग्लूकोस लेवल करने हेतु उपयोगी पाया गया जिस वजह से हींग का सेवन मधुमेह में किया जा सकता है।
इसके अलावा अनेकों शोध पत्रों में हींग को एंटीस्पास्मोडिक, न्यूरोप्रोटेक्टिव, मैमोरीइनहान्सर, गेस्टिक प्रोटेक्टिव, अस्थमेटिक, डाइजेस्टिव तथा ब्लड में कोलेस्टेरोल की मात्रा कम करने हेतु पाया जाता है। वर्ष 2016 में जर्नल ऑफ ट्रेडिशनल एण्ड कॉम्पलिमेंट्री मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध पत्र में हींग पर लगभग सभी शोधों को संकलित कर हींग को न्यूरोप्रोटेक्टिव, मैमोरी इंहान्सर, डाईजेस्टिव एन्जाइम, एंटीऑक्सीडेंट, एंटी स्पास्मोडिक, हाइपोटेन्सिव, हिपेटोप्रोटेक्टिव, एंटीमाईक्रोवियल, एंटीकैंसर तथाप एंटीओबेसिटी एक्टिव बताया गया है।
सम्पूर्ण विश्व में भारत में ही हींग की सबसे ज्याद मांग है तथा विश्वभर को हींग का बाजार अफगानिस्तान तथा ईरान द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। हींग की मांग मसालों के साथ.साथ आयुर्वेदिक औषधीय बाजार में भी है। हींग को अन्य रूप से ऑयल के रूप में भी विभिन्न ऑयल उद्योग द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। कच्चे हींग को मसालों के अलावा विभिन्न हेल्थकेयर पदार्थों में उपयोग किया जाता है। बाजार में हींग गोली तथा हींग पेड़ा आदि व्यवसायिक रूप में उपलब्ध है जिनका भारतीय बाजारों में मूल्य लगभग 55 से 60 रूपये प्रति 100 ग्राम तक है। इसके अलावा हींग को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय बाजारों में विभिन्न नामों से अच्छी कीमत पर बेचा जाता है। भारत देश विश्वभर में मसालों के लिये विषेश रूप से जाना जाता है तथा देश के अन्दर मसालों का एक बहुत बड़ा बाजार है। अतः प्रदेश में हींग की खेती को एक अलग स्थान देकर आर्थिकी का एक विकल्प बनाया जा सकता है। साथ ही हींग के विभिन्न औषधीय गुणों को देखते हुये प्रदेश में होने वाली हींग की खेती का वृहद वैज्ञानिक विश्लेषण करने की आवश्यक्ता है। देश भर में हींग की खेती शुरू करने वाला हिमाचल पहला राज्य बन गया है। हींग की खेती हिमाचल के साथ उत्तराखंड और जम्मू.कश्मीर में भी की जा सकेगी। हींग का व्यावसायिक उत्पादन किया जाता है तो इससे किसानों की आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो सकेगी। हींग 11 हजार से 35 हजार रुपये प्रति किलो बिकती है। हिमाचल के लाहौल.स्पीति में हींग की खेती की शुरुआत हो गई है। इसके अलावा प्रदेश के किन्नौरए चंबा और सिरमौर जिले में भी हींग की खेती की व्यापक संभावनाएं हैं। राज्य के कृषि मंत्री रामलाल मारकंडा ने लाहौल.स्पीति में हींग के खेती का शुभारंभ किया। उन्होंने क्षेत्र के किसानों को हींग के पौधे उपलब्ध करवाए। भारतीय मसालों में हींग का अहम स्थान है। इसका स्वाद हर व्यंजन में मिलता है। भारत दुनिया के कुल हींग उत्पादन का 40 प्रतिशत अपने घरेलू उपयोग में लाता है। हींग ईरानए तुर्किस्तान और अफगानिस्तान के अलावा कजाकिस्तान से मंगवाई जाती है।
हींग का सेवन सांस की बीमारियों, खासकर कुकुर.खाँसी, दमा तथा ब्रोंकाइटिस में लाभकारी पाया गया है। औरतों में बांझपन, अनचाहा गर्भपात तथा कष्टप्रद माहवारी में भी हींग का सेवन श्रेयस्कर है। मर्दो में नपुंसकता में यह प्रभावशाली है। पेट में ज्यादा गैस एवं बदहजमी में हींग पुराने समय से एक औषधि के रूप में इस्तेमाल होता आया है। राष्ट्रीय पोषाहार संस्थान नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन हैदराबाद से प्राप्त सूचनाओं के अनुसार रोजाना भोजन में इस्तेमाल किए जाने वाले मसाले न केवल रोगों से रक्षा करने में सहायक हैं, बल्कि स्वास्थ्य पर भी अच्छा प्रभाव डालते हैं। प्रयोग में लाए जाने वाले अधिकतर मसालों के कारण कैंसर होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं। अनेक मसाले हानिकर जीवाणुओं व कवकों फंगस पर आक्रमण करते हैं जबकि अन्य रूधिर में शर्करा के स्तर में कमी लाते हैं, पाचन में बड़ी सहायक भूमिका अदा करते हैं तथा साथ ही कोलेस्ट्राल को भी कम करते हैं।
भारतीय सब्जियों व अन्य खाद्य पदार्थों में प्रयुक्त की जाने वाली हल्दी में कैंसर को रोकने की शक्ति है। प्राणियों पर किए गए अध्ययनों में पाया गया कि हल्दी म्यूटाजन नामक रसायनों के बनने में बाधा डालती है। ये म्यूटाजन रसायन कैंसर के लिए उत्तरदायी होते हैं। अनेक मसालों में प्रतिऑक्सीकारक गुण होते हैं जो इन म्यूटाजन नामक घातक रसायनों के विरूद्ध कार्य करते है
देश भर में हींग की खेती शुरू करने वाला हिमाचल पहला राज्य बन गया है। हींग की खेती हिमाचल के साथ उत्तराखंड और जम्मू.कश्मीर में भी की जा सकेगी। हींग का व्यावसायिक उत्पादन किया जाता है तो इससे किसानों की आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो सकेगी। हींग 11 हजार से 35 हजार रुपये प्रति किलो बिकती है। हिमाचल के लाहौल.स्पीति में हींग की खेती की शुरुआत हो गई है। इसके अलावा प्रदेश के किन्नौर, चंबा और सिरमौर जिले में भी हींग की खेती की व्यापक संभावनाएं हैं। ऐसी वनस्पतियों को उत्तराखण्ड में यदि रोजगार से जोड़े तो शायद इसमें मेहनत भी कम हो सकती है क्योंकि यह स्वतः ही पैदा हो जाने वाली जंगली वनस्पति है। इस प्रकार एक बहुपयोगी एवं आर्थिक रूप से समृद्धि देने की जोकि उत्तराखण्ड में पारम्परिक एवं अन्य फसलों के साथ सुगमता से लगाया जा सकता है जिससे एक रोजगार परक जरिया बनने के साथ साथ इसके औषधीय गुणों को संरक्षण से पर्यावण को भी सुरक्षित रखा जा सकता है।

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