डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
किसी भी समाज और राष्ट्र का भविष्य उसके बच्चों पर निर्भर करता है और बच्चों का भविष्य उनकी स्कूली शिक्षा पर टिका होता है। वर्ष 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य में निर्वाचन नियमावली की तैयारी एवं मतदाता सूची पुनरीक्षण कार्य प्रारंभ हो गया है। इस कार्य में करीब दस हजार से अधिक शिक्षकों को ड्यूटी के लिए चुना गया है।इतनी बड़ी संख्या में शिक्षकों को मतदाता सूची पुनरीक्षण कार्य में लगाने से स्कूल शिक्षा व्यवस्था पटरी से उतर सकती है। पहले ही राज्य में कक्षा एक से 12वीं तक में शिक्षक से लेकर प्रधानाचार्य तक के 12318 पद रिक्त चल रहे हैं।शिक्षकों का मानना है कि चुनावी प्रक्रिया जितनी आवश्यक है, उतनी ही आवश्यक प्राथमिक शिक्षा भी है। यदि शिक्षक लगातार प्रशासनिक और निर्वाचन ड्यूटी में लगे रहेंगे तो कक्षा में बच्चों को शिक्षा देने वाला ही कोई नहीं रहेगा।ऐसे में समय रहते राज्य सरकार और निर्वाचन आयोग को संतुलित और व्यावहारिक नीति अपनानी होगी, जिससे लोकतंत्र और शिक्षा दोनों के हित सुरक्षित रह सकें। निर्वाचन आयोग की ओर से बूथ लेवल आफिसर (बीएलओ), निर्वाचन रजिस्ट्रेशन अधिकारी (ईआरओ), सहायक निर्वाचन रजिस्ट्रेशन अधिकारी (एईआरओ) और सुपरवाइजरों के रूप में शिक्षकों की तैनाती ने स्कूलों में पढ़ाई को संकट में डाल दिया है।शिक्षक अब डेढ़ साल से भी अधिक समय के लिए विद्यालयों से ज्यादा समय बाहर रहेंगे, जिससे छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो सकती है। राज्य की शिक्षा व्यवस्था पहले से ही रिक्त पदों के चलते जूझ रही है। बेसिक शिक्षकों के 2109 पद रिक्त हैं, हेडमास्टर के 496 पद खाली हैं।उच्च प्राथमिक विद्यालयों में प्रधानाध्यापक एवं सहायक अध्यापक के 733 पद रिक्त हैं। इंटर कालेजों में एलटी ग्रेड शिक्षकों के 3055 पद, प्रवक्ता के 4745 पद एवं प्रधानाचार्य के 1180 पद खाली हैं। 2501 प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं, जिन्हें मात्र एक शिक्षक है।ऐसे में दस हजार से अधिक शिक्षकों को बीएलओ जैसे कार्यों में लगा देना, शिक्षा की गुणवत्ता और छात्रों के भविष्य दोनों के लिए ठीक नहीं है। उधर, माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने कहा कि यह प्रशासनिक स्तर की प्रक्रिया है और आवश्यक भी है। शिक्षा व्यवस्था प्रभावित न हो इसका भी ध्यान रखा जाएगा।राजकीय शिक्षक संघ के प्रांत महामंत्री ने कहा कि पूर्व घोषित शासनादेश की अनदेखी है। उसमें शिक्षकों को केवल मतदान, मतगणना और जनगणना कार्य के अलावा अन्य गतिविधियों में शामिल नहीं करने का निर्णय हुआ था। भविष्य के लिए तैयार स्कूलों’ की यह पहल केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक व्यापक सोच और दीर्घकालीन रणनीति है। अब सवाल केवल स्कूलों को सजाने-संवारने का नहीं, बल्कि उनमें सीखने का वातावरण विकसित करने का है।सरकार, उद्योग और समाज — जब ये तीनों मिलकर एक बच्चे के भविष्य के लिए काम करते हैं, तब बदलाव की शुरुआत होती है। अब यह उत्तराखंड की जिम्मेदारी है कि वह इस कार्य को सिर्फ कागज़ों में नहीं, ज़मीन पर उतरे, बच्चों की आंखों में सपनों के साथ। यह हमें एक लाख टके के सवाल पर लाता है हम इसे कैसे हासिल करें?। विगत वर्ष चुनाव से पूर्व शिक्षकों की ड्यूटी लगाए जाने से शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है। इसको देखते हुए हाई कोर्ट ने सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को आकस्मिक सेवाओं, चुनाव आदि को छोड़कर अन्य किसी कार्यो में ड्यूटी न लगाए जाने के आदेश दिए। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*