डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
देवभूमि की तेजी से बदलती जनसांख्यिकी स्थानीय स्तर के साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी चिंता का बड़ा विषय है। सरकार मुद्दे पर गंभीर है। पहाड़ में घुसपैठ रोकने को मुख्यमंत्री ने कड़ी कानूनी प्रविधान किए हैं। लेकिन प्रदेश में बहारियों को अवैध रूप से बसाने वाले गिरोह के तार सरकारी विभागों और उपक्रमों से भी जुड़े हुए हैं।बनभूलपुरा में फर्जी दस्तावेजाें से स्थायी निवास प्रमाण पत्र बनवाने वाले गैंग को पुराने बिल बिजली देने में ऊर्जा निगम के अस्थायी कर्मी की मिली भगत होने से इस बात की आशंकाएं बढ़ गई हैं। निगम के रिकार्ड से 15 वर्ष पुराने बिल निकाल कर बेचने की बात सामने आने के अधिकारी भी हैरान हैं। वहीं, इससे अन्य सरकारी संस्थानों को लेकर भी सवाल खड़े हो गए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि स्थायी निवास प्रमाण पत्र बनाने के लिए बिजली बिल के साथ ही पानी का बिल भी 15 वर्ष से राज्य में निवासरत होने के प्रमाण के रूप में लगाया जाता है। ऐसे में क्या पानी के पुराने बिलों का भी तो प्रयोग फर्जीवाड़े के इस खेल में तो नहीं किया गया? यह सवाल भी खड़े हो गए हैं।इससे शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों को मिलने वाली छात्रवृत्ति, शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत निजी स्कूलों में मिलने वाले प्रवेश के साथ ही सरकारी नौकरियों में मिलने वाले राज्य कोटे के आरक्षण सहित अन्य योजनाओं में इसी तरह के फर्जी प्रमाण पत्रों से फायदा तो नहीं लिया जा रहा है यह भी प्रश्न खड़े होते हैं। यदि सरकार ने मामले को गंभीरता लेकर गहन जांच नहीं कराई तो बदलती जनसांख्यिकी को नियंत्रित करने के अभियान में सफलता नहीं मिल पाएगी। पहाड़ में घुसपैठ कराने वाली स्लीपर सेल इसी तरह से काम करती रहेगी। सीएम ने कहा किसी भी धर्म की आड़ में हुए अतिक्रमण को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा. जिलाधिकारी की अध्यक्षता में टास्क फोर्स गठित की गई है. इसके साथ ही सीएम ने कहा कि अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि जिन जगहों पर डेमोग्राफिक चेंज हुए हैं, उस पर भी सख्ती से काम करें. इसकी रिपोर्ट लेकर पुलिस प्रशासन की ओर से वेरिफिकेशन ड्राइव चलाए, ताकि जो भी लोग बाहर से आकर बसे हैं उनका वेरिफिकेशन हो सके. इसके अलावा अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि अन्य राज्यों से जो लोग जमीन यहां खरीदेंगे तो उससे पहले उनका वेरिफिकेशन होना चाहिए. इस मामले में कुछ सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत की बात भी सामने आ रही है। पुलिस को शक है कि इस फर्जीवाड़े में तहसील के कर्मचारी भी शामिल हो सकते हैं, जिनकी मदद से इन दस्तावेजों को वैधता दिलाने की कोशिश की जाती थी। पुलिस का कहना है कि इन फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर कई लोग हल्द्वानी में अवैध रूप से बसने की तैयारी कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में बाहरी लोगों और संदिग्ध गतिविधियों पर सतत निगरानी रखी जाए। अवैध अतिक्रमण पर नियमित कार्रवाई करें। आधार कार्ड, वोटर आईडी, बिजली-पानी कनेक्शन जैसी सुविधाएं अपात्र लोगों को प्रदान करने वाले कर्मचारियों को तत्काल निलंबित कर बर्खास्त की कार्रवाई भी शुरू की जाए। यह भी सवाल उठाया कि आखिर पिछले कई वर्षों में यह स्थिति कैसे बनी. उन्होंने कहा कि जब से राज्य में बीजेपी की सरकार सत्ता में है तब से स्थायी निवास के नियमों में ढील कैसे दी गई और किसकी अनुमति से ऐसा हुआ. यह सवाल सरकार को जनता के सामने स्पष्ट करना चाहिए. गोदियाल ने आरोप लगाया कि सरकार अब इस जिम्मेदारी से बचने के लिए अधिकारियों को दोषी ठहरा रही है, जबकि पूरी प्रक्रिया में राजनीतिक नेतृत्व और संगठन की भी समान भूमिका रही है अगर अधिकारी गलत पाए जाते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन साथ ही सरकार को भी अपनी जिम्मेदारी से पलायन नहीं करना चाहिए. गोदियाल ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए कहा कि “यह राज्यवासियों के अधिकारों पर सीधा हमला है और आने वाले समय में जनता इसका जवाब देगी. कांग्रेस का कहना है कि बीते दो वर्षों से वह लगातार चेतावनी देती आ रही थी कि नियमों में ढील देकर बाहरी लोगों को लाभ पहुंचाया जा रहा है. अब जब मामला उजागर हो चुका है तो कांग्रेस ने सरकार से पारदर्शी जांच की मांग की है और कहा है कि जनता इस मुद्दे पर सरकार को जवाबदेह बनाएगी. का काम भी कर रही है यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती माना जा रहा है. उत्तराखंड फर्जी आधार कार्ड के जरिए अवैध नागरिक में रह रहे थे और सरकारी योजनाओं का दुरुपयोग कर रहे थे.. अधिकांश लोग बाहरी राज्य के अलग-अलग शहरों से जुड़े थे। जांच के दौरान सामने आए तथ्यों के आधार पर ही पुलिस अब आगे बढ़ रही है। उत्तराखंड सरकार ने ‘अपणि’ सरकार’ पोर्टल की लांचिंग इसलिए की थी। ताकि इस राज्य के लोगों को स्थायी निवास प्रमाणपत्र, आय प्रमाण पत्र, चरित्र प्रमाण पत्र समेत अन्य कामों के लिए भटकने न पड़े लेकिन मो. फैजान ने जनसुविधा के लिए शुरू की इस ई-सर्विस का इस्तेमाल फर्जीवाड़े के लिए किया। फर्जी तरीके से पहले बाहरी लोगों के आधार कार्ड बनवाए जाते थे। इसके बाद स्थायी व अन्य प्रमाणपत्र के लिए पोर्टल पर आवेदन होता था। चौंकाने वाली बात यह है कि फैजान के पास अर्जीनवीस लाइसेंस न होने के बावजूद वह वर्षों से तहसील में घुस काम कर रहा था। वहीं, पुलिस का कहना है कि फैजान के मददगार सिस्टम के अंदर भी है। जिनके दम पर ही वह बाहरी लोगों के प्रमाणपत्र तैयार करने का ठेका लेता था। जिससे अच्छी-खासी कमाई भी होती थी। पुलिस जांच धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। सूत्रों की माने तो अभी कुछ और चेहरे भी बेनकाब होंगे। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*










