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Uttarakhand Samachar

अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा सूचकांक में भारत 53 में से 40वें स्थान पर

26/04/21
in उत्तराखंड, दुनिया
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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
26 अप्रैल को विश्व बौद्धिक संपदा दिवस मनाया जाता है। किसी व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा सृजित कोई रचना, संगीत, साहित्यिक कृति, कला, खोज, नाम अथवा डिजाइन आदि उस व्यक्ति अथवा संस्था की बौद्धिक संपदा कहलाती है। व्यक्ति अथवा संस्था को अपनी इन कृतियों पर प्राप्त अधिकार को बौद्धिक संपदा अधिकार कहा जाता है। बौद्धिक संपदा अधिकार, मानसिक रचनाएं, कलात्मक और वाणिज्यिक, दोनों के संदर्भ में विशेष अधिकारों के समूह हैं। प्रथम अधिकार कॉपीराइट क़ानूनों से आवृत हैं, जो रचनात्मक कार्यों, जैसे पुस्तकें, फ़िल्में, संगीत, पेंटिंग, छाया.चित्र और सॉफ्टवेयर को संरक्षण प्रदान करता है और कॉपीराइट अधिकार.धारक को एक निश्चित अवधि के लिए पुनरुत्पादन पर या उसके रूपांतरण पर नियंत्रण का विशेष अधिकार देता है।. दूसरी श्रेणी, सामूहिक रूप से औद्योगिक संपत्ति के रूप में जानी जाती है। क्योंकि इनका उपयोग विशिष्ट रूप से औद्योगिक या वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए किया जाता है।

पेटेंट एक नए, उपयोगी और अस्पष्टआविष्कार के लिए दिया जा सकता है और पेटेंट धारक को दूसरों को आविष्कारक द्वारा बिना लाइसेंस दिए एक निश्चित अवधि के लिए आविष्कार के अभ्यास से रोकने का अधिकार प्रदान करता है। बहु पक्षीय व्यापार और वाणिज्य बढ़ाने के आज के वैश्विक परिदृश्य में किसी भी देश के लिए रचनाकारों और आविष्कारकों को सांविधिक अधिकार प्रदान करके अपनी बौद्धिक सम्पत्ति की सुरक्षा करना आवश्यक हो गया है और इससे उन्हें विश्व के बाजार में अपने प्रयासों का उचित वाणिज्यिक मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलती है। नवीन और सृजनात्मक क्षमता को विश्व व्यापार संगठन की बौद्धिक सम्पत्ति प्रणाली के तहत सुरक्षित रखा जाता है। इस तथ्य को मानते हुए, भारत ने विश्व व्यापार संगठन का एक संस्थापक सदस्य होने के नाते व्यापार संबंधी बौद्धिक सम्पत्ति अधिकारों टीआरआईपीएस से संबंधित करार का अनुसमर्थन किया है। इस करार के अनुसार भारत सहित सभी सदस्य देश परस्पर वार्ता से निर्धारित किए गए प्रतिमानों और मानकों का पालन अनुबंधित समय सीमा के अंतर्गत करेंगे। तदनुसार, भारत ने एक बौद्धिक सम्पत्ति अधिकार प्रणाली स्थापित की है, जो विश्व व्यापार संगठन के अनुरूप है और सभी स्तरों पर चाहे वह सांविधिक, प्रशासनिक अथवा न्यायिक हो, भली भांति स्थापित है।

सरकार ने बौद्धिक सम्पत्ति के भारी महत्व को देखते हुए देश में इसके प्रशासन को कारगर बनाने के लिए व्यपक उपाय किए हैं।
बौद्धिक संपदा अधिकार व्यक्ति या संस्था को अपनी रचना, आविष्कार पर एक निश्चित अवधि के लिए विशेषाधिकार प्रदान करते हैं। इन विशेषाधिकारों का विधि द्वारा संरक्षण पेटेंट, कॉपीराइट अथवा ट्रेडमार्क आदि के रूप में किया जाता है। इससे सर्जक खोज तथा नवाचार के लिए उत्साहित और उद्यत रहते हैं और वित्तीय एवं वाणिज्यिक लाभ प्राप्त करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार सूचकांक अमेरिकी वाणिज्यिक संगठन यूएस चैम्बर ऑफ कॉमर्स द्वारा वर्ष 2007 में स्थापित ग्लोबल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी सेंटर द्वारा वर्ष 2013 से प्रति वर्ष जारी किया है। इसका उद्देश्य अमेरिका और अन्य प्रमुख देशों में बौद्धिक संपदा अधिकारों का संरक्षण तथा इसके मानदंडों का बचाव और संवर्धन करना है।

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में, औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग के अधीन महानियंत्रण, पेटेण्ट, डिजाइन और ट्रेड मार्क सीजीपीडीटीएम के कार्यालय का गठन किया गया है। यह पेटेण्ट, डिजाइन, ट्रेडमार्क और भौगोलिक निदर्शन से संबंधित सभी मामलों को प्रकाशित करता है। इसके अलावा, स्वत्वाधिकारों कॉपीराइट्स और इससे संबंधित अधिकारों के पंजीकरण सहित सभी प्रकार की सुविधाएं मुहैया कराने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के शिक्षा विभाग में एक कॉपीराइट कार्यालय की स्थापना की गई है। जहां तक एकीकृत परिपथों, ले आउट डिजाइन तैयार करने से संबंधित मुद्दों का संबंध है, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय का इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग एक नोडल संगठन है। जबकि कृषि मंत्रालय पौध की सुरक्षा, किस्मों की सुरक्षा और कृषक अधिकार प्राधिकारी पौध की किस्मों से संबंधित सभी उपायों और नीतियों को प्रशासित करता है। यद्पि कई सदियों से बौद्धिक संपदा का संचालन करने वाले बहुत से क़ानूनी सिद्धांत विकसित हुए हैं, तथापि उन्नीसवीं सदी के बाद ही बौद्धिक संपदा शब्द प्रचलन में आया और यह कहा जाता है कि बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में इसने अमेरिका में आम स्थान पाया।

प्रशासनिक ढांचे को मजबूत बनाने के लिए कई प्रकार के वैधानिक उपाय किए गए हैं। इनमें ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 वस्तुओं का भौगोलिक निदर्शन पंजीकरण एवं सुरक्षा अधिनियम, 1999 डिजाइन अधिनियम, 2000 पेटेण्ट अधिनियम, 1970 और इसमें वर्ष 2002 और 2005 में किए गए संशोधन, भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 और इसका संशोधन कॉपीराइट संशोधन अधिनियम, 1999 अर्द्धचालक एकीकृत परिपथ ले आउट डिजाइन अधिनियम, 2000 तथा पौधों की किस्मों और कृषक अधिकारों का संरक्षण अधिनियम 2001 बौद्धिक संपदा अधिकार अस्थाई एकाधिकार हैं, जो राज्य द्वारा अभिव्यक्ति और विचारों के उपयोग के संबंध में लागू किये जाते हैं।

बौद्धिक संपदा अधिकार आम तौर पर ग़ैर प्रतिद्वंद्वी वस्तुओं तक ही सीमित होते हैं, अर्थात् वे वस्तुएं, जिनका एक साथ बहुत से लोगों द्वारा आनंद उठाया जा सकता है या प्रयोग किया जा सकता है, एक व्यक्ति द्वारा प्रयोग, दूसरे को उसके प्रयोग से वंचित नहीं करता है। इसकी तुलना प्रतिद्वंद्वी वस्तुओं से की जा सकती है, जैसे कि कपड़े, जो एक समय में केवल एक ही व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल किये जा सकते हैं।

उदाहरण के तौर पर, गणित के एक फ़ार्मूले को एक साथ कई लोग प्रयोग कर सकते हैं। बौद्धिक संपदा शब्द पर कुछ आपत्तियां इस तर्क पर आधारित है कि संपदा केवल यथार्थतः प्रतिद्वंद्वी वस्तुओं पर ही लागू हो सकती है या कि कोई भी इस तरह की संपदा का स्वामित्व नहीं रख सकतां। चूंकि एक ग़ैर प्रतिद्वंद्वी वस्तु का उपयोग उदाहरण के लिए नक़ल बहुत से लोग एक ही समय में कर सकते हैं, न्यूनतम सीमांत लागत के साथ उत्पादित इसलिए उत्पादकों को इस प्रकार के कार्यों को स्थापित करने के लिए पैसे के अलावा प्रोत्साहन की जरूरत हो सकती है। इसके विपरीत, एकाधिकार में अकुशलता भी है। अतः बौद्धिक संपदा अधिकारों की स्थापना एक लेन.देन को दर्शाती है, जो ग़ैर प्रतिद्वंद्वी वस्तुओं के निर्माण में उनके उत्पादन को बढ़ावा देकर एकाधिकार शक्ति की समस्याओं के साथ, समाज के हित को संतुलित करता है। चूंकि लेन.देन और प्रासंगिक लाभ और समाज के लिए उसकी लागत बहुत से कारकों पर निर्भर करेगी, जो हर समाज और उत्पाद के लिए विशिष्ट है। वह इष्टतम समयावधि जिसके दौरान अस्थायी एकाधिकार अधिकार बने रहने चाहिए, अस्पष्ट है। हाल ही में जारी की गई अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा सूचकांक के नवीनतम वार्षिक संस्करण में भारत 53 वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में 40 वें स्थान पर है। यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ग्लोबल इनोवेशन पॉलिसी सेंटर सूचकांक 53 वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में बौद्धिक संपदा अधिकारों का मूल्यांकन करता है, जो पेटेंट और कॉपीराइट नीतियों से लेकर आईपी परिसंपत्तियों के व्यावसायीकरण और अंतरराष्ट्रीय संधियों के अनुसमर्थन तक है।

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