डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
पर्वतीय क्षेत्रों में भू.जल के स्रोत भूगर्भ स्थिति के अनुसार बहते हैं। कहीं ये मौसमी होते हैं तो कहीं लगातार बहने वाले होते हैं। झील या ताल ऐसे ही स्रोतों में से एक है। ये भूमि से घिरे विशाल जलाशय होते हैं। उत्तराखंड अपनी झीलों या तालों के लिए प्रसिद्ध है। यहां कदम.कदम पर ताल मिलते हैं, जो अपने सौंदर्य से हमें प्रभावित करते हैं। लेकिन हर ताल का अपना एक इतिहास है और उसके साथ न जाने कितनी किंवदंतियां और किस्से जुड़े हैं। यहां शायद ही कोई इलाका हो जहां कोई झील अपने खास परिचय के साथ मौजूद न हो।
उत्तराखंड को देव भूमि भी कहा जाता है। उत्तराखंड प्राकृतिक सौंदर्य के साथ.साथ देव भूमि होने कारण पाप मुक्ति का भी बोध कराता है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ की झीलों में स्नान करने से इंसान पाप से मुक्ति पा जाता है। नैनीताल जनपद अपने नैसर्गिक सौंदर्य और झीलों के कारण देश.दुनिया में प्रसिद्ध है। यहां घूमने के लिए हर वर्ष पर्यटक बड़ी तादात में पहुंचते हैं। हालांकि नैनीताल और भीमताल के अलावा जो झीले हैं, वे अधिक प्रचारित.प्रसारित न होने के कारण वहां पहुंचने वाले पर्यटकों की तादात काफी सीमित होती है। नैनीताल जिला अपने नैसर्गिक सौंदर्य और झीलों के कारण देश.दुनिया में प्रसिद्ध है। यहां घूमने के लिए हर वर्ष पर्यटक बड़ी तादात में पहुंचते हैं। नौकुचियाताल नौ कोने वाली झील के किनारे में स्थित कमल ताल नाम के अनुरूप ही अपने वहां खिलने वाले कमल के नाम से प्रसिद्ध है। गर्मियों में पूरी झील कमल से भरी रहती है जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। नौकुचियाताल को सनद सरोवर के नाम से भी की थी और प्रभु का ध्यान जाना जाता है। मान्यता है कि ब्रह्मा जी के सनक, सनातन, सनंदन, सनत कुमार चार पुत्रों ने यहां तपस्या लगाया था। वहीं दूसरी धार्मिक मान्यता के अनुसार स्कंद पुराण में कमल ताल और नौकुचियाताल का उल्लेख मिलता है। नौ कोने में नौ ऋषियों के द्वारा तपस्या करने का उल्लेख है तो वहीं मान्यता है कि इस झील के नौ कोनों को कोई भी एक साथ नहीं देख सकता है।
कमल ताल के बारे में मान्यता है कि इसका जल हरिद्वार में हर की पैड़ी के समान है। इसके जल में स्नान करके लोग अपने कर्मों का प्रायश्चित करते हैं। जिन लोंगों पर गौ हत्या का पाप लगा होता है वह भी यहां स्नान करके गौ हत्या के पाप से मुक्त होने की मान्यता है। कमल ताल के किनारे छोटा सा मंदिर है जिसमें शादी, यज्ञोपवीत संस्कार आदि सभी धार्मिक आयोजन करने के लिये लोग दूर दूर से आते हैं। कमल ताल का पानी आस पास के क्षेत्रों में सिंचाई के लिये भी प्रयोग होता है। कभी कमलताल में खिले कमल को देखने के लिए पर्यटकों का हुजूम उमड़ पड़ता था, वहीं अब हजारों की संख्या में पर्यटकों के वाहन यहां से गुजरने के बावजूद कमलताल वीरान रहता है। रखरखाव के अभाव में कमलताल झील अब वीरान हो गई है।
कमल ताल से लगे नौकुचिया ताल में तीन साल पहले पानी भरने के कारण यहां से ग्रास काॅर्प कमल ताल पहुंच गई और उसने धीरे धीरे कमल पौधों को नुकसान पहुंचाया। ग्रास कार्प अपने वजन से तीन गुना अधिक ग्रास को खाती है। इसी प्रवृत्ति के कारण उसने कमल ताल के अधिकांश कमल के पौधों को नीचे से काट दिया है। कमल ताल में खिले कमल का धार्मिक महत्व भी बहुत है। पिछले दशक में नौकुचियाताल झील में काई इत्यादि जलीय पौधों को खाने के लिए ग्राम कॉर्प मछलियां डाली गईं। इनकी वजह से कमल ताल में कमल के पौधों पर बुरा प्रभाव पड़ा। संभवतया वे पानी के साथ यहां पहुंचकर कमल के पौधों को नुकसान पहुंचाती हो। इस समस्या के समाधान के लिए नाले में जाली लगाई गई, जो कि अब टूट चुकी है। इस कारण ही पिछले करीब तीन वर्षों से कमल ताल में कमल के फूलों का खिलना लगातार कम हो रहा है। और इस वर्ष तो कमल के फूल खिले ही नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष जब प्रकृति कोरोना व लॉक डाउन के दौर में आत्म परिष्कार कर रही हैए और प्रकृति कई मायनों में अपने पुराने स्वरूप में लौट रही हैए फिर भी इस वर्ष कमल ताल में कमल नहीं खिल पाये हैं। यह पहला मौका है जब दशकों बाद कमल ताल में कमल नहीं खिले हैं। क्षेत्रीय लोगों के अनुसार करीब एक किमी व्यास का कमल ताल पौराणिक तालाब है पर्यटन अधिकारी ने 2019.20 की योजना में बजट स्वीकृत होने पर झील पर कार्य करने का आश्वासन दिया था। लेकिन अब तक कोई कार्य नहीं हुआ। इस पर उन्होंने पुनः मुख्यमंत्री के समाधान पोर्टेल में इस बारे में शिकायत दर्ज कराई है। इस बारे में जिला पर्यटन अधिकारी ने कहा कि अवस्थापना संबंधी कार्य उनके स्तर पर नहीं होते हैं। कभी कमलताल में खिले कमल को देखने के लिए पर्यटकों का हुजूम उमड़ पड़ता था, वहीं अब हजारों की संख्या में पर्यटकों के वाहन यहां से गुजरने के बावजूद कमलताल वीरान रहता है। रखरखाव के अभाव में कमलताल झील अब वीरान हो गई है कमलताल के अस्तित्व में एक बार खतरा मंडराने लगा है।
उपेक्षा का शिकार हुए कमल ताल के किनारे हरिद्वार की भांति और उसी की मान्यता के समान हर की पैड़ी नाम का धार्मिक स्थल है। गौ हत्या का प्रायश्चित इसी धार्मिक स्थल में किया जाता है। कमल ताल में खिलने वाले कमल की तुलना मानसरोवर में खिलने वाले कमल के समान है। ग्रामीणों के मुताबिक पिछले दो साल से क्षेत्र में सफाई को लेकर बनाई गई समिति द्वारा झील की सफाई आदि की व्यवस्था की जाती रही है। लेकिन इसमें सीमित दायरे में ही झील की सफाई हो पाती है। कमलताल की व्यापक स्तर पर सफाई की जरूरत है। समिति के संयोजक ने सिचाई विभाग और नलकूप खंड हल्द्वानी को झील की वर्तमान स्थिति के लिये उत्तरदायी ठहराया है। ग्रामीणों ने बताया झील के पानी का प्रयोग खेती के लिए भी होता था। झील प्रदूषित होने के कारण खेती के लिए भी इसका पानी नुकसानदेह हो गया है। सरकारी विभाग की उदासीनता के चलते यह झील अस्तित्व खतरे में है।












