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कावड़ मेले का दूसरा चरण प्रारंभ, अब शुरू होगा डाक कांवड़ों का दौर

19/07/25
in उत्तराखंड, देहरादून
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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
पंचक खत्म होने पर श्रावण मास कांवड़ मेले का दूसरा पड़ाव शुक्रवार से शुरू हो गया। डाक कांवड़ के वाहनों का रैला हरिद्वार में जुटने लगा। हरकी पैड़ी के गंगा घाटों पर शिवभक्त ही शिवभक्त नजर आ रहे हैं।हर तरफ बोल बम, बम-बम के जयकारे गूंज रहे हैं। पूर्व घोषित यातायात प्लान के तहत जिले में भारी वाहनों का आगमन प्रतिबंधित करते हुए पुलिस ने उन्हें सीमाओं पर ही रोक दिया है। अगले चार दिन पुलिस प्रशासन के लिए अग्नि-परीक्षा से कम नहीं हैं। श्रावण मास कांवड़ मेला 11 जुलाई से शुरू हुआ। मेला शुरू होते ही तीसरे दिन पंचक लगने से कांवड़ यात्रियों की संख्या कम रही। हालांकि, इसके बावजूद अभी तक करीब दो करोड़ श्रद्धालु हरिद्वार से कांवड़ लेकर रवाना हो चुके हैं। शुक्रवार को पंचक खत्म होने पर कांवड़ मेले का दूसरा चरण शुरू हो गया और धर्मनगरी में भगवा रंग में रंगने लगी। हरकी पैड़ी के गंगा घाट श्रद्धालुओं से लबालब भरे हुए हैं। गुरुवार रात से ही डाक कांवड़ के वाहनों की संख्या कई गुना बढ़ने लगी। दोपहिया वाहनों पर सवार करीब पांच लाख श्रद्धालु शाम तक हरिद्वार पहुच गए। डाक कांवड़ के बड़े वाहन भी डेढ़ लाख से अधिक संख्या में हरिद्वार पहुंचे हैं। अगले चार दिनों में दुपहिया और चौपहिया वाहनों में डाक कांवड़ के रूप में लगभग तीन करोड़ श्रद्धालुओं के हरिद्वार पहुंचने का अनुमान है। इसलिए यातायात प्लान का दूसरा चरण लागू करते हुए भारी वाहन जिले में प्रतिबंधित कर दिए गए हैं। विश्वविख्यात श्रावण मास के कांवड़ मेले का दूसरा चरण प्रारंभ हो गया है। पंचक समाप्त होने के बाद नगर में कांवड़ियों का सैलाब उमड़ पड़ा है। नगर की ओर आने वाली सभी सड़क शिव भक्तों से अटी पड़ी है और वातावरण में चारों ओर बम-बम, भोले के स्वर गूंज रहे हैं। पुलिस प्रशासन के अनुसार, अभी तक लगभग डेढ़ करोड़ कांवरिया जल लेकर रवाना हो चुके हैं, जबकि अगले तीन-चार दिनों में यह आंकड़ा चार करोड़ पार कर जाने की संभावना है। अगले दो दिनों के बाद डाक कांवड़ों का दौर शुरू हो जाएगा और 24 घंटे 12 घंटे की समय सीमा के साथ सीटी बजाते कांवरिया सड़कों पर दौड़ते नजर आएंगे।इनके साथ-साथ मोटरसाइकिल वाले कांवड़ियों का भी दौर शुरू हो जाएगा। इस भारी भीड़ को संभालना पुलिस प्रशासन के लिए हमेशा से एक बहुत बड़ी चुनौती रहा है। इतिहास गवाह है कि इस दौरान कांवरिया अक्सर उग्र होकर उत्पात करने पर उतारू हो जाते हैं और तोड़फोड़ तथा आगजनी जैसी घटनाएं करने लगते हैं।बीते कुछ वर्षों में इन प्रकार की घटनाओं में लगातार वृद्धि होती आई है। इस बार पुलिस प्रशासन के सामने इन घटनाओं को रोकना एक बहुत बड़ी चुनौती है। हालांकि पुलिस तथा जिला प्रशासन लगातार दिन-रात अथक परिश्रम कर व्यवस्थाएं सुचारू बनाने में जुटा हुआ है। जिलाधिकारी तथा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जीरो ग्राउंड पर उतरकर दिन-रात सभी व्यवस्थाओं की स्वयं मॉनिटरिंग कर रहे हैं और पुलिस कर्मियों के साथ-साथ कांवड़ियों से भी लगातार संवाद कर व्यवस्थाएं बनाने में लगे हुए हैं। दोनों अधिकारी जहां रोजाना ब्रीफिंग कर पुलिस कर्मियों से व अधिकारियों से फीडबैक ले रहे हैं वहीं कर्तव्य निष्ठा से ड्यूटी करने वाले पुलिस कर्मियों को पुरस्कृत कर उनका हौसला भी बढ़ा रहे हैं। जिला प्रशासन अब अगले चार दिनों के लिए व्यवस्थाएं सुचारू बनाने के लिए आवश्यक रणनीति बनाने में जुटा हुए है। कांवड़ उठाने के बाद रुकना वर्जित होता है। व्रती पूरे रास्ते दौड़ते या तेज चलते हैं, ये विश्राम नहीं करते। यात्रा के दौरान मल-मूत्र विसर्जन तक की अनुमति नहीं होती, हालांकि आधुनिक समय में कुछ ढील दी गई है। डाक कांवड़ में समय सीमा तय होती है, तय समय में तय शिवालय में जलाभिषेक करना होता है। इस यात्रा में टीम वर्क महत्वपूर्ण होता है, एक भक्त दौड़ता है, दूसरा रिलीवर वाहन में विश्राम करता है और बारी-बारी से कांवड़ लेकर चलता है। पहले डाक कांवड़ सिर्फ पैदल ही होती थी, परंतु अब इसके साथ वाहन चलते हैं, जिनमें एक टीम का सदस्य कांवड़ लेकर दौड़ता है और अन्य विश्राम करते हैं। जैसे ही एक थकता है, दूसरा दौड़ शुरू करता है। इस प्रणाली से पूरे रास्ते में कांवड़ को जमीन पर रखे बिना यात्रा पूरी होतीहै।कई बार कांवड़िये हरिद्वार से 50-60 किलोमीटर की दूरी 8-10 घंटे में पूरी करते हैं। यही कारण है कि डाक कांवड़ के दौरान हरिद्वार, ऋषिकेश, नीलकंठ जैसे शहरों में यातायात जाम, शोरगुल और व्यवस्थागत चुनौतियां बढ़ जाती हैं। कांवड़ यात्रा का समापन महाशिवरात्रि के दिन होता है, जब सभी कांवड़िये अपने-अपने गंगाजल को पास के शिवालयों में चढ़ाते हैं। यह सिर्फ धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि शुद्ध आस्था, अनुशासन और सामूहिकता का अद्वितीय प्रदर्शन है। हिंदू धर्म की मान्यता अनुसार, कांवड़ यात्रा की शुरुआत का उल्लेख त्रेता युग से जुड़ा है। मान्यता है कि सबसे पहले लंकेश्वर रावण ने कैलाश पर्वत से गंगाजल लाकर शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। इसके बाद भगवान श्रीराम ने भी यह यात्रा की थी। यही परंपरा कालांतर में आम श्रद्धालुओं के लिए एक नियमित धार्मिक यात्रा में परिवर्तित हो गई। कुछ कांवड़ियों द्वारा हंगामा, तोड़फोड़ व मारपीट किए जाने के सवाल जिस तरह से भगवान शिव ने लोगों के कल्याण के लिए स्वयं विषपान किया था, शिव भक्तों को भी उनसे जनकल्याण की प्रेरणा लेनी चाहिए। कांवड़ यात्रा को सुगम और सुरक्षित बनाने के लिए प्रशासन और पुलिस द्वारा लगातार किए जा रहे प्रयासों का जिक्र करते हुए उन्होंने कांवड़ियों से अपील की कि अगर किसी को कुछ कठिनाई भी होती है तो वह भगवान शिव का ध्यान करते हुए दूसरों के लिए कठिनाई न पैदा करें। हरिद्वार में कुछ कांवड़ियों के उपद्रव से न सिर्फ पुलिस-प्रशासन, बल्कि स्थानीय लोग और व्यापारी भी परेशान हो चुके हैं. कुछ कांवड़ियों की हरकतों से परेशान होकर बीते दिनों हरिद्वार के व्यापारियों से पुलिस के साथ बैठक की थी और हंगामा करने वाले कांवड़ियों पर लगाम लगाने की मांग उठाई थी. उत्तराखंड सरकार या फिर यूपी, दोनों ही सरकारों ने कांवड़ियों के लिए तमाम व्यवस्थाएं की हैं. कांवड़ियों का स्वागत भी जोरदार तरीके से किया जा रहा है. अलग से कांवड़ यात्रा के लिए अब बजट का प्रावधान भी रखा गया है. फिर भी कुछ कांवड़िए उत्तराखंड आकर इस तरह की हरकतें करते हैं तो पुलिस-प्रशासन को सख्त होना पड़ेगा.*लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*

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