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आस्था और भक्ति से भरी कांवड़ यात्रा

25/06/25
in उत्तराखंड, देहरादून
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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
श्रावण मास शुरू होते ही हरिद्वार से एक बड़ी संख्या में कावड़ यात्रा की शुरुआत हो जाती है. गौमुख, गंगोत्री ग्लेशियर का मुख है, जो गंगा नदी का उद्गम स्थल माना जाता है. यह स्थान उत्तरकाशी जिले में स्थित है. यहां से भी कई शिव भक्त कांवड़ यात्रा की शुरुआत करते हैं और पवित्र गंगा जल लेकर वापस अपने स्थान पर लौटते हैं. हरिद्वार कावड़ यात्रा का प्रमुख केंद्र है जहां हर साल अलग-अलग राज्यों से आने वाले शिव भक्त अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए गंगा जल भरकर अपने-अपने गंतव्य को रवाना होते हैं. कांवड़ियों की यह संख्या हर साल बढ़ती जा रही है जिसमें प्रशासन द्वारा कांवड़ यात्रा को सकुशल संपन्न कराने की तैयारियां पहले ही पूरी कर ली जाती है. साल 2025 में जुलाई के दूसरे सप्ताह से कावड़ यात्रा का आगाज हो जाएगा और देश भर से श्रद्धालु हरिद्वार पहुंचकर पवित्र कावड़ उठाएंगेउत्तराखंड में 11 जुलाई से कांवड़ यात्रा शुरू होने जा रही है. जिसकी तैयारी में शासन प्रशासन जुटा हुआ है. वर्तमान समय में कांवड़ यात्रा पर आने वाले कावड़ियों के लिए पेयजल, शौचालय, कांवड़ पटरी को दुरुस्त करने समेत अन्य व्यवस्थाएं मुकम्मल की जा रही हैं. डीजे की अनुमति और कांवड़ की ऊंचाई को लेकर कई राज्यों के उच्च अधिकारियों की बैठक होगी.गढ़वाल आयुक्त ने कहा कांवड़ यात्रा प्रदेश की महत्वपूर्ण यात्राओं में से एक है. कोरोना काल के बाद से ही साल दर साल कांवड़ यात्रा में आने वाले कावड़ियों की संख्या बढ़ती जा रही है. कांवड़ यात्रा में आने वाले कावड़ियों की संख्या 4.5 करोड़ तक पहुंच रही है. ऐसे में आगामी कांवड़ यात्रा को लेकर शासन प्रशासन की ओर से तैयारी को अंतिम रूप दिया जा रहा है. हाल ही में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में भी कांवड़ यात्रा की तैयारी को लेकर बैठक की गई. जिसमें संबंधित विभागीय अधिकारियों के साथ तैयारी को लेकर विस्तृत चर्चा की गई. बैठक के दौरान सभी विभागीय अधिकारियों को तय समय पर कामों को पूरा करने के दिशा निर्देश दिए गए.कांवड़ यात्रा में सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज से पुलिस मुख्यालय की ओर से पर्याप्त व्यवस्थाएं की जा रही हैं. साथ ही भारत सरकार से सीपीएमएफ (केंद्रीय अर्धसैनिक बलों) की 20 कंपनियां मांगी गई हैं. वर्तमान समय में मानसून की वजह से चार धाम यात्रा में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या घटने लगी है. लिहाजा, धीरे-धीरे चारधाम यात्रा मार्गों पर लगाई गई जिलों की पुलिस और पीएसी की ड्यूटी, चार धाम यात्रा मार्गों से हटाकर कांवड़ यात्रा में लगाई जाएगी.कांवड़ यात्रा में राज्य से लगते हुए करीब 5 राज्यों से कांवड़िए आते हैं. उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का नभ नेत्र ड्रोन इस साल कांवड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार में तैनात रहेगा। ड्रोन के जरिए हरिद्वार के भीड़भाड़ वाले स्थलों, सड़कों, घाटों तथा पुलों की निगरानी की जाएगी। राज्य तथा जिला आपातकालीन परिचालन केंद्र से नभ नेत्र ड्रोन के विजुअल्स की निरंतर मॉनिटरिंग की जाएगी। यूएसडीएमए स्थिति कंट्रोल रूम में कांवड़ यात्रा की तैयारियों के संबंध में आयोजित बैठक के दौरान उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने यह निर्देश दिए। कांवड़ यात्रा के सुगम एवं सफल संचालन के लिए विभिन्न विभागों के मध्य आपसी समन्वय बहुत जरूरी है। उन्होंने सभी विभागों में सिंगल प्वाइंट आफ कांटेक्ट हेतु एक जिम्मेदार अधिकारी को नामित करने तथा उनकी सूची एसईओसी और डीईओसी के साथ साझा करने के निर्देश दिए। बता दें कि कांवड़ यात्रा के लिए जिला आपातकालीन परिचालन केंद्र को मास्टर कंट्रोल रूम बनाया जाएगा और यहीं से यात्रा की संपूर्ण निगरानी की जाएगी। कांवड़ यात्रा पर आने वाले कांवड़ियों के मोबाइल फोन में सचेत एप डाउन लोड कराया जाएगा। उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी क्रियान्वयन डीआईजी राजकुमार नेगी ने कहा कि सचेत एप कांवड़ियों को मानसून अवधि में मौसम संबंधी सूचनाएं तथा अलर्ट प्रदान करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है। उन्होंने एंट्री प्वाइंट्स में सचेत एप डाउन लोड करने संबंधी होर्डिंग तथा बार कोड लगाए जाने के निर्देश दिए। टोल फ्री नंबर 112, 1070, 1077 के बारे में भी कांवड़ियों को अवगत कराया जाएगा ताकि वे किसी आपात स्थिति में इन नंबरों में फोन कर मदद मांग सकें। गंगा घाटों में कांवड़ियों की सुरक्षा के लिए भी विशेष प्रबंध किए जा रहे हैं। बैठक के दौरान सुरक्षा बलों के अधिकारियों ने बताया कि एसडीआरएफ, एनडीआरफ, जल पुलिस के अलावा 60 आपदा मित्र भी गंगा घाटों में तैनात रहेंगे। कांगड़ा घाट में सुरक्षा के खास इंतजाम किए जाएंगे। एनडीआरएफ की एक टीम कांवड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार में तैनात रहेगी और आवश्यकता पड़ने पर देहरादून से अतिरिक्त टीमों को रवाना किया जाएगा। कांवड़ यात्रा के दौरान आपदा प्रबंधन के दृष्टिकोण से संभावित आकस्मिकताओं जैसे, भगदड़, नदी में डूबना, भंडारा स्थल, अस्थायी कैंपों में अग्निकांड, बारिश, बाढ़ और जलभराव, संक्रामक बीमारियों का प्रसार, जाम की समस्या, दुर्घटनाएं आदि को नियंत्रित करने हेतु तैयारी रखने तथा किसी भी आकस्मिकता की स्थिति में तुरंत राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र से संपर्क स्थापित करने के निर्देश दिए। कांवड़ यात्रियों की वन्य जीवों से सुरक्षा के लिए भी विशेष इंतजाम करने के निर्देश दिए गए। वन विभाग को ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों को चिन्हित करने तथा वहां सुरक्षा के समुचित प्रबंध करने के हेतु निर्देशित किया गया। साथ ही अधिक ऊंचाई वाली कांवड़ को बिजली की तारों से खतरा न हो, इसके लिए भी समुचित प्रबंध करने के निर्देश विद्युत विभाग को दिए गए।11 जुलाई से प्रारंभ हो रही कांवड़ यात्रा को लेकर उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने भी अपनी तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं। उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रशासन की अध्यक्षता में कांवड़ यात्रा को लेकर बैठक हुई। उन्होंने बताया कि आईआरएस की अधिसूचना जारी कर दी गई है। कांवड़ यात्रा के दौरान संभावित आपदाओं एवं आकस्मिकताओं का प्रभावी तरीके से सामना करने में आईआरएस उपयोगी साबित हो सकता है। उन्होंने कांवड़ यात्रा से संबंधित जनपदों के अधिकारियों से आईआरएस प्रणाली को अपनाने तथा इसके तहत ही यात्रा को लेकर आपदा प्रबंधन के दृष्टिकोण से योजना का निर्माण करने को कहा।जिसमें हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश शामिल है. ऐसे में इन राज्यों के उच्च अधिकारियों के साथ को इंटर स्टेट मीटिंग की जाएगी. जिसमें कांवड़ यात्रा के दौरान डीजे बजाने का मामला, कांवड़ की ऊंचाई को लेकर निर्णय लिया जाएगा. कांवड़ यात्रा को लेकर एक एसओपी बनाए जाने का निर्णय लिया गया है. गंगा घाटों में कांवड़ियों की सुरक्षा के लिए भी विशेष प्रबंध किए जा रहे हैं। बैठक के दौरान सुरक्षा बलों के अधिकारियों ने बताया कि एसडीआरएफ, एनडीआरफ, जल पुलिस के अलावा 60 आपदा मित्र भी गंगा घाटों में तैनात रहेंगे। कांगड़ा घाट में सुरक्षा के खासइंतजाम का निर्णय लिया गया है. कांवड़ यात्रा का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव की आराधना कर उनको प्रसन्न करना है. श्रावण मास को शिव का महीना माना जाता है और इस दौरान शिवभक्त बड़े उत्साह से कांवड़ यात्रा में शामिल होते हैं. हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख और वाराणसी जैसे स्थानों से गंगाजल भरकर वे इसे अपने नजदीकी शिव मंदिरों में अर्पित करते हैं. यह यात्रा भगवान शिव के प्रति भक्ति और समर्पण का प्रतीक है. कांवड़ यात्रा सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी जरूरी है. यह लोगों को एकजुट करता है और सामाजिक बंधनों को मजबूत बनाता है. यात्रा के दौरान भक्त एक-दूसरे की सहायता करते हैं, जिससे सामाजिक सहयोग और सामूहिकता की भावना बढ़ती है. इसके अलावा यह यात्रा भारतीय संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण में भी सहायक है, क्योंकि यह युवा पीढ़ी को हमारी प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ती है. कांवड़ यात्रा भक्तों को आध्यात्मिक रूप से बेहतर बनाती है. यह यात्रा आत्मशुद्धि और आत्मा की उन्नति का मार्ग प्रदान करती है. कांवड़ मेले में बाधक बनने वालों (नशे में लिप्त, उत्पात मचाने वालों, हिंसक प्रवृति को बढ़ावा देने वालों) पर सख्ती की जाए तथा मेला के दौरान बड़े डीजे साउंड पर प्रतिबंध। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में में कार्यरत हैं।*

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