डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
कंटकारी एक अत्यंत परिप्रसरी क्षुप हैं जो भारवतर्ष में प्रायः सर्वत्र रास्तों के किनारे तथा परती भूमि में पाया जाता है। लोक में इसके लिए भटकटैया, कटेरी, रेंगनी अथवा रिंगिणी। संस्कृत साहित्य में कंटकारी, निदग्धिका, क्षुद्रा तथा व्याघ्री आदि और वैज्ञानिक पद्धति में, सोलेनेसी कुल के अंतर्गत, सोलेनम ज़ैंथोकार्पम नाम दिए गए हैं। इसका लगभग र्स्वागकंटकमय होने के कारण यह दुःस्पर्श होता है। काँटों से युक्त होते हैं। पत्तियाँ प्रायः पक्षवत्, खंडित और पत्रखंड पुनः खंडित या दंतुर दाँतीदार होते हैं। पुष्प जामुनी वर्ण के, फल गोल, व्यास में आधा से एक इंच के, श्वेत रेखांकित, हरे, पकने पर पीले और कभी.कभी श्वेत भी होते हैं। यह लक्ष्मणा नामक संप्रति अनिश्चित वनौषधि का स्थानापन्न माना गया है।
आयुर्वेदीय चिकित्सा में कटेरी के मूल, फल तथा पंचाग का व्यवहार होता है। प्रसिद्ध औषधिगण दशमूल और उसमें भी लंघु पंचमूल का यह एक अंग है। स्वेदजनक ज्वरघ्न, कफ-वात-नाशक तथा शोथहर आदि गुणों के कारण आयुर्वेदिक चिकित्सा के कासश्वास, प्रतिश्याय तथा ज्वरादि में विभिन्न रूपों में इसका प्रचुर उपयोग किया जाता है। बीजों में वेदना स्थापन का गुण होने से दंतशूल तथा अर्श की शोथयुक्त वेदना में इनका धुआँ दिया जाता है।
भटकटैया या कंटकारी का फैलने वाला, बहुवर्षायु क्षुप है। इसके पत्ते लम्बे काँटो से युक्त हरे होते है। पुष्प नीले रंग के होते है, फल क्च्चे हरित वर्ण के और पकने पर पीले रंग के हो जाते है। बीज छोटे और चिकने होते हैं। यह पश्चिमोत्तर भारत मे शुष्कप्राय स्थानों पर होता है। यह एक औषधीय पादप है। भटकटैया के कुछ भाग जैसे, फल विषैले होते हैं। कटेरी का पौधा एक ऐसी जड़ी बूटी है, जो कई बीमारियों के लिए रामबाण साबित होती है। इसे कंटकारी या भटकटैया के नाम से भी जाना जाता है। इस जंगली पौधे का इस्तेमाल औषधीय गुणों की वजह से इसका उपयोग अस्थमा, अपच, बवासीर, कान की सूजन और पेशाब की जलन जैसी बीमारियों में किया जाता है। इसी के साथ इसका उपयोग बुखार, गर्भधारण, गर्भपात, पथरी, सिरदर्द, मस्तक पीड़ा, नेत्र रोग, नेत्रजाला, दंतपीड़ा, गंजापन, खांसी, दमा, जुकाम, पेट दर्द, पेशाब की रुकावट, पेशाब की जलन, दाद आदि में किया जाता है।
दरअसल इसकी तासीर गर्म होती है, तेज होने के कारण यह कफ, वात आदि को खत्म करने वाली होती है। पित्त विकार को दूर करती है, पाचक होती है। इसी के साथ ये खून को साफ करता है। स्वाद में कटु, तिक्त, गुण में हलकी, तीक्ष्ण, प्रकृति में गर्म, विपाक में कटु, कफ निस्सारक, पाचक, अग्निवर्द्धक, वातशामक होती है। यह दमा, खांसी, ज्वर, कृमि, दांत दर्द, सिर दर्द, मूत्राशय की पथरी नपुंसकता, नकसीर, मिर्गी, उच्च रक्तचाप में गुणकारी है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार भटकटैया दूसरे दर्जे की गर्म और खुश्क होती है। यह पित्त विकार, कफ, खांसी, दमा, पेट दर्द, मंदाग्नि, पेट के अफारे में गुणकारी है। भटकटैया की रासायनिक संरचना में सोले कार्पिडिन एल्केलाइड पोटेशियम नाइट्रेट और पोटेशियम क्लोराइड अल्प मात्रा में पाए जाते हैं। इसका काढ़ा सुजाक में लाभप्रद होता है। कंटकारी के गुण में पोटेशियम नाइट्रेट, फैटी एसिड, डायोसजेनिन, सिटोस्टेकरॉल, इसोक्लो रोजेनिक एसिड, न्यूशरोसेनोजेनिक एसिड, क्रोनोजेनिक एसिड, कैफीक एसिड आदि अच्छी मात्रा में होते हैं।
कंटकारी या भटकटैया के नाम से भी जाना जाता है। कटेरी एक प्रकार की खरपतवार है जिसे शायद ही कोई न जानता हो। यह हो सकता है कि सभी लोग इसे कटेरी के नाम से ना जानते होंए क्योंहकि अलग.अलग जगहों पर इसे कई नामों से जाना जाता है। कटेरी खरपतवार होने के बाद भी अपने औषधीय गुणों के लिए बहुत ही लोकप्रिय है।पोषक तत्वोंम की उच्चह मात्रा होने के कारण भटकटैया हमारे स्वा स्य्त संबंधी समस्याेओं को प्रभावी रूप से दूर कर सकती है। भटकटैया के औषधीय गुण इस प्रकार हैं। एंटी.अस्थमैटिक इस गुण के कारण कटेरी के फायदे अस्थमा के लक्षणों को कम करने में सहायक होते हैं। हाइपोग्लागइसेमिक हाइपोग्लाूइसेमिक होने के कारण यह शरीर में ब्लणड शुगर को कम करने में सहायक होता है।हेपेटोप्रोटेक्टिव गुण होने के कारण यह लिवर की रक्षा भी करता है।
एंटी.इंफ्लामेटरी यह गुण होने के कारण भटकटैया सूजन संबंधी समस्याटओं को प्रभावी रूप से दूर करता है। इस पौधे से टीबी की दवाइयां, जुकाम, पेट की जलन, पेट के रोग, आंखों के दर्द दूर किया जाता है वही बुखार में रामबाण है। सांस रोग, दमा आदि में महत्वपूर्ण है। मासिक धर्म, अधिक नींद आना, नाक के रोग, पुराना घाव, मिर्गी, त्वचा के रोग, बच्चों के रोग, मूत्र रोगों को दूर करने के काम आता है। कंटेली नपुंसकता को दूर करने, कान के कीड़े, जिगर के रोग, पथरी आदि में विशेष लाभकारी है। इसलिए यह पौधा ग्रामीण क्षेत्रों में उपहार माना जाता है। कंटेली का काढ़ा पीने से खांसी, जोड़ों के दर्द दूर हो जाते हैं। इस पौधे में प्रोटीन, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस आदि तत्व पाए जाते हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। दमा रोग में महत्वपूर्ण है। इसको गुणों को देखते हुए इसे महत्वपूर्ण जड़ीबूटियों एवं अमूल्य जड़ी बूटी नाम से जाना जाता है।यह पौधा दशमूल नामक औषधि में काम में लाया जाता है। यह पसीना लाने वाला, ज्वर हारने वाला, कफ, वात नाशक तथा विभिन्न शारीरिक परेशानियों को दूर करने वाला होता है। उत्तराखंड के पहाड़ों में आपने बहुत देखा होगा इस पौधे को हम लोग इस रूप से देखते हैं कि यह किसी काम का पौधा नहीं है। लेकिन सच तो यह है इस पौधे से वैज्ञानिक भी हैरान हैं तथा आयुर्वेद की दवा में इस पौधे का बहुत उपयोग है। इस पौधे में ऐसे कई सारे गुण मौजूद होते हैं जो शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है उत्तराखंड सरकार ने भी राज्यभर में लौटे राज्य के मजदूरों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने की मुहिम में जुट चुकी है। इसका मकसद उत्तराखंड के उद्यमशील युवाओं और कोरोना की वजह से राज्य में लौटे प्रवासी कामगारों को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करना है। पर अभी भी काश्तकारों के मन में डर है कि जब तक हमें बाजार उपलब्ध नहीं होता तब तक हम ये काम शुरू भी कर लें तो कोई लाभ हमें दिखाई नहीं देता। अगर सब ठीक.ठाक रहा तो इस योजना के तहत उत्तराखंड को हर्बल राज्य की पहचान की संभावना है।