डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
ख़ुबानी एक गुठलीदार फल है, वनस्पति.विज्ञान के नज़रिए से ख़ुबानी, आलू बुख़ारा और आड़ू तीनों एक ही प्रूनस नाम के वनस्पति परिवार के फल हैं। विश्व में सबसे ज़्यादा ख़ुबानी तुर्की में उगाई जाती है, जहाँ २००५ में ३९०,००० टन ख़ुबानी पैदा की गई। मध्य.पूर्व तुर्की में स्थित मलत्या क्षेत्र ख़ुबानियों के लिए मशहूर है और तुर्की की लगभग आधी पैदावार यहीं से आती है। तुर्की के बाद ईरान का स्थान है, जहाँ २००५ में २८५,००० टन ख़ुबानी उगाई गई। ख़ुबानी एक ठन्डे प्रदेश का पौधा है और अधिक गर्मी में या तो मर जाता है या फल पैदा नहीं करता। भारत में ख़ुबानियाँ उत्तर के पहाड़ी इलाकों में पैदा की जाती है, जैसे कि कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर भारत और पाकिस्तान में यह बहुत ही महत्वपूर्ण फल समझा जाता है और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह भारत में पिछले ५,००० साल से उगाया जा रहा है।
ख़ुबानियों में कई प्रकार के विटामिन और फाइबर होते हैं। खुबानी या एप्रीकॉट एक बीज युक्त फल है खुबानी खाने के फायदे बहुत अधिक हैं। इस छोटे से फल में कई प्रकार के विटामिन और पोषक तत्व मौजूद होते हैं खुबानी फाइबर का अच्छा स्रोत है खुबानी खाने से इसके फायदे त्वचा, आंखों, ह्रदय को अच्छा बनाने डायबिटीज और कैंसर जैसी बीमारियों में लाभदायक होता है। 3000 साल पहले से इसकी खेती भारत में की जा रही है। भारत के पहाड़ी क्षेत्र जैसे कि कश्मीर, हिमाचल प्रदेश आदि में यह उगाया जाता है। खुबानी का छिलका मुलायम होता है। खुबानी में विटामिन ए, विटामिन बी, विटामिन सी, और विटामिन ई पाए जाते हैं। विटामिन के साथ.साथ इसमें पोटेशियम मैग्नीशियम कॉपर फॉस्फोरस जैसे खनिज पदार्थ में पाए जाते हैं। आकार में छोटा दिखने वाला यह फल न सिर्फ आपकी जीभ का स्वाद बदलता है, बल्कि कैंसर और मधुमेह जैसी घातक बीमारियों से भी आपकी रक्षा करता है।
भवाली नैनीताल शहर में इन दिनों पहाड़ से आ रहे फलों को सैलानी और स्थानीय लोग खूब खरीद रहे हैं। भवाली के बाजार में काफल, खुबानी, आड़ू आदि पहाड़ी फलों को दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मुंबई, यूपी के पर्यटकों के अलावा स्थानीय लोग भी खरीदते हैं। रामगढ़, मुक्तेश्वर, नथुवाखान, हरतपा, निगलाट से फल उत्पादक और ग्रामीण भवाली की मंडियों और बाजारों में काफल, आड़ू पुलम, खुबानी बेचने आते हैं। प्रेम फ्रूट मार्ट भवाली के धीरज भाकुनी ने बताया कि अल्मोड़ा, रानीखेत, नैनीताल, रामगढ़ और भीमताल को जाने वाले सैलानी भवाली से फलों को खरीद कर ले जा रहे हैं। फलों की ब्रिकी से फल उत्पादकों और दुकानदारों को लाभ पहुंच रहा है। खुबानी, पुलम . 100-120 रुपये किलो खुबानी के फलों से अच्छी किस्म की मदिरा और नेक्टर तैयार किये जाते हैं। इसके बीज से तेल भी तैयार किया जाता है। इससे जैम भी बहुत अच्छा तैयार होता है। गिरी यदि मीठी हो तो बादाम की तरह प्रयोग में लाया जाता है। खुबानी, यह एक रसदार, सुगंधित फल हैं, जिसे कच्चा या कई प्रकार के व्यंजनों में प्रयोग करके खाया जा सकता हैं। इस फल को दैनिक जीवन में इसलिए भी शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि यह स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का काम करता हैं। खुबानी विटामिन.ए, सी, पोटैशियम और मैंगजीन जैसे खनिज और डाइटरी फाइबर से समृद्ध होती हैं। अधिकांश शारीरिक बीमारियां पेट के बिगड़ने से ही शुरू होती हैं।
तालिका खुबानी के ताजे एवं सूखे फलों का पोषकमान प्रति 100 ग्राम खाने योग्य फल में
तत्व प्रति 100 ग्राम खाने योग्यफल मे ताजे फल सूखे फल
शक्ति इनर्जी 53 कैलोरी 306 कैलोरी
प्रोटीन 1.0 ग्राम 1.6 ग्राम
वसा 0.3 ग्राम 1.7 ग्राम
कैल्शियम 20 मि.ग्रा. 110 मि.ग्रा.
लौह 2.2 मि.ग्रा. 4.6 मि.ग्रा.
थाइमीन 0.04 मि.ग्रा. 0.22 मि.ग्रा.
राइवोफ्लेवनि 0.13 मि.ग्रा. .
नियासिन 0.6 मि.ग्रा. 2.3 मि.ग्रा.
विटामिन.सी 6 मि.ग्रा. 2 मि.ग्रा.
विटामिन.ए 22 मि.ग्रा. 60 मि.ग्रा.
खुबानी के फलों से वाइन और नेक्टर तैयार किये जाते हैं। इसके बीज से तेल भी तैयार किया जाता है। इससे जैम भी बहुत अच्छा तैयार होता है। गिरी यदि मीठी हो तो बादाम की तरह प्रयोग में लाया जाता है। भारतीय किस्म चुली के बीज से तेल निकालकर दवाई के रूप में प्रयोग किया जाता है। मूलवृन्त के लिए खुबानी या आडू के बीजू पौधे प्रयोग में लाये जाते है।
हल्की मिट्टी में आडू का मूलवृन्त अच्छा होता है। भारी दोमट मिट्टी में खुबानी के बीजू पेड़ मूलबृन्त के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। भारी व चिकनी मिट्टी में माइरोवेलान प्लम के मूलवृन्त का प्रयोग करते है। ग्राफ्टिंग के एक साल बाद पेड़ खेत में लगाने योग्य हो जाते हैं।भारत में खुबानी के अर्न्तगत क्षेत्रफल के विषय में ठीक आकंडे प्राप्त नहीं हैं। उत्तराखण्ड में लगभग 7183 हैक्टर में खुबानी की बागवानी की जाती है। खुबानी मुख्यतः जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखण्ड में उगाई जाती है। उत्तराखण्ड के 10 जिलों में की जाती है। प्राकृतिक जैव.संसाधनों व पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण मानव जाति को सतत विकास की राह प्रदर्शित करता है। ये संसाधन, अनुसंधान हेतु आवश्यक व महत्त्वपूर्ण आगत के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। अतः विकास की अंध.आंधी से पूर्व इनका संरक्षण करना चाहिए। दोहन खेती करने के बाद ही किया जा सकता है। ताकि इस बहुमूल्य सम्पदा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिकी का जरिया बनाया जा सके। करी पत्ता का उत्तराखंड में न तो इसका उत्पादन किया जाता है और न ही खेती की जाती है। उत्तराखंड में इसका इस्तेमाल न तो दवा के तौर पर भी किया जाता है। ऐसी को यदि बागवानी रोजगार से जोड़े तो अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती है