डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते हर साल आपदा जैसे हालात बनते रहते हैं.
खासकर पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन होने की वजह से आम जनमानस को काफी दिक्कतों का सामना करना
पड़ता है. कई बार भूस्खलन की वजह से न सिर्फ आवागमन ठप हो जाता है, बल्कि जानमाल का भी काफी
नुकसान होता है. मानसून सीजन के दौरान प्रदेश के खासकर पर्वतीय क्षेत्रों की स्थिति बेहद गंभीर हो जाती
है. उत्तराखंड चारधाम यात्रा शुरू होने जा रही है. हर साल यात्रा के दौरान यात्रा मार्गों पर भूस्खलन की
घटनाएं होती हैं. जिसके चलते यात्रियों को कई घंटे तक सड़कों से मलबा हटाने का इंतजार करना पड़ता है.
जब आवागमन शुरू होता है, तो उस दौरान जाम भी एक बड़ी चुनौती बन जाता है. राज्य आपातकालीन
परिचालन केंद्र से मिली जानकारी के अनुसार, साल 1988 से साल 2024 के बीच प्रदेश में 14,200 से
अधिक भूस्खलन की घटनाएं हुई हैं. इसके चलते काफी अधिक जान माल का नुकसान भी हुआ. उत्तराखंड
में साल 2018 में 496 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी. इसी तरह, साल 2019 में 291 बार भूस्खलन आया.
साल 2020 में 973 भूस्खलन की घटनाएं हुईं. साल 2021 में 354 भूस्खलन के मामले सामने आए. साल
2022 में 245 बार भूस्खलन हुआ. साल 2023 में 1323 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी. इसी तरह साल
2024 में 1813 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी. हालांकि, भूस्खलन को रोकने के लिए संबंधित विभागों की
ओर से काम तो किया जा रहा है, सचिव, पीडब्ल्यूडी के अनुसार लेकिन भूस्खलन पर एकदम से लगाम
लगाना संभव नहीं है. जो लैंडस्लाइड प्रोन क्षेत्र हैं, वहां पर सड़कों से मलबा हटाने के लिए मशीनें लगाई
जाती हैं, ताकि सड़कें समय पर खोली जा सकें. लेकिन इसकी सटीक जानकारी नहीं रहती है कि किस जगह
पर लैंडस्लाइड होगा. ऐसे में जब किसी नई जगह पर भूस्खलन होता है, तो सड़कों पर ज्यादा काम नहीं
कर पाते हैं. किसी लैंडस्लाइड जोन में जहां भूस्खलन आता रहता है, वहां पहले ही मशीनें तैयार रहती हैं.
नेशनल हाइवे में करीब 100 स्थान ऐसे हैं, जहां पर पिछले साल से लैंडस्लाइड ट्रीटमेंट का काम चल रहा
है. इस लैंडस्लाइड ट्रीटमेंट में दो से तीन साल का वक्त लगता है. आपदा प्रबंधन सचिव ने कहा कि कुछ
भूस्खलन जोन का ट्रीटमेंट कर लिया गया है. वहीं अगले कुछ महीने के भीतर कुछ और भूस्खलन संभावित
क्षेत्रों का ट्रीटमेंट कर दिया जाएगा. इसके अलावा जिन भूस्खलन संभावित क्षेत्र के ट्रीटमेंट में 2- 3 साल से
अधिक का समय लग रहा है, उनके लिए अधिक बजट की भी जरूरत होगी. ऐसे में बजट स्वीकृति के लिए
आपदा विभाग की ओर से डीपीआर तैयार की जा रही है. ऐसे में आपदा विभाग का प्रयास है कि इस चार
धाम यात्रा के दौरान सड़कों को सुचारू रखा जाए. साथी जो लॉन्ग टर्म प्रोजेक्ट्स हैं, उनके लिए योजना
बनाकर बजट की व्यवस्था की जाएगी. उत्तराखंड में चारधाम यात्रा के लिए सबसे लंबा राष्ट्रीय राजमार्ग
ऋषिकेश से बदरीनाथ तक है. इस नेशनल हाईवे की लंबाई करीब 285 किलोमीटर है. इस राष्ट्रीय
राजमार्ग पर कुल 54 लैंडस्लाइड जोन हैं. इसमें से ऋषिकेश से श्रीनगर के बीच 17 लैंडस्लाइड जोन
चिन्हित किए गए हैं. रुद्रप्रयाग से जोशीमठ के बीच 32 लैंडस्लाइड जोन चिन्हित किए गए हैं. जोशीमठ से
बदरीनाथ के बीच 5 लैंडस्लाइड जोन चिन्हित किए गए हैं. नैनीताल जिले में 120 भूस्खलन जोन चिन्हित
हैं. इसमें 90 क्रॉनिक जोन भी शामिल हैं. बागेश्वर जिले में सुमगढ़, कुंवारी, मल्लादेश, सेरी, बड़ेत समेत 18
क्षेत्र भूस्खलन के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं. चंपावत जिले में टनकपुर-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर
15 संवेदनशील भूस्खलन जोन हैं. पिथौरागढ़ जिले के पिथौरागढ़-तवाघाट रूट पर करीब 17 भूस्खलन
क्षेत्र चिन्हित हैं. अल्मोड़ा जिले में तीन चिन्हित भूस्खलन जोन हैं. इनमें रानीखेत-रामनगर मोटर मार्ग पर
टोटाम, अल्मोड़ा-धौलछीना मोटर मार्ग पर कसाड़ बैंड और अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर
मकड़ाऊ शामिल हैं. धरासू में यमुनोत्री हाईवे पर भूस्खलन जोन के ट्रीटमेंट कार्य 15 अप्रैल तक पूरा हो
जाएगा। कार्यदायी संस्था का दावा है कि इसका कार्य पूर्ण कर चारधाम यात्रा में यात्रियों को आवागमन में
सुविधा होगी। इसके ट्रीटमेंट से धरासू में यमुनोत्री के साथ गंगोत्री हाईवे पर आवागमन के लिए बड़ी राहत
होगी। *लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*