डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
वैज्ञानिक नामः मेंथा अरवैन्सिस अंग्रेजी. मिन्ट, जापानीज मिन्ट दीना मेंथा वंश से संबंधित एक बारहमासी, खुशबूदार जड़ी है। इसकी विभिन्न प्रजातियां यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया मे पाइ जाती हैं, साथ ही इसकी कई संकर किस्में भी उपलब्ध हैं। उपयोगी भागः पत्तियाँ उद्भव एवं भौगोलिक वितरण पुदीने को गर्मी और बरसात की संजीवनी बूटी कहा गया है, स्वाद, सौन्दर्य और सुगंध का ऐसा संगम बहुत कम पौधों में दखने को मिलता है। पुदीना मेंथा वंश से संबंधित एक बारहमासी, खुशबूदार जड़ी है। इसकी विभिन्न प्रजातियाँ यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया मे पाई जाती हैं, साथ ही इसकी कई संकर किस्में भी उपलब्ध हैं।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि मेंथा का उद्भव भूमध्यसागरीय बेसिन में हुआ तथा वहॉ से ये प्राकृतिक तथा अन्य तरीकों से संसार के अन्य हिस्सों में फैला, जापानी पोदीना, ब्राजील, पैरागुए, चीन, अर्जेन्टिना, जापान, थाईलैंड, अंगोला तथा भारतवर्ष में उगाया जा रहा है। भारतवर्ष में मुख्यतः तराई के क्षेत्रों ;नैनीताल, बदायूँ, बिलासपुर, रामपुर, मुरादाबाद तथा बरेली तथा गंगा यमुना दोआब बाराबंकी तथा लखनऊ तथा पंजाब के कुछ क्षेत्रों लुधियाना तथा जलंधर में उत्तरी.पश्चिमी भारत के क्षेत्रों में इसकी खेती की जा रही है। उपयोग मेन्थोल का उपयोग बड़ी मात्रा में दवाईयों, सौंदर्य प्रसाधनों, कालफेक्शनरी, पेय पदार्थो, सिगरेट, पान मसाला आदि में खुशबू हेतु किया जाता है। इसके अलावा इसका तेल यूकेलिप्टस के तेल के साथ कई रोगों में काम आता है। ये कभी.कभी गैस दूर करने के लिए, दर्द निवारण हेतु, तथा गठिया आदि में भी उपयोग किया जाता है। जापानी मिन्ट, मैन्थोल का प्राथमिक स्रोत है। ताजी पत्ती में 0.4.0.6ः तेल होता है। तेल का मुख्य घटक मेन्थोल 65.75ः मेन्थोन 7.10 तथा मेन्थाइल एसीटेट 12.15 तथा टरपीन पिपीन, लिकोनीन तथा कम्फीन है। तेल का मेन्थोल प्रतिशत, वातावरण के प्रकार पर भी निर्भर करता है।
सामान्यतः यह गर्म क्षेत्रों में अधिक होता है। पुदीने में कुछ ऐसे एंजाइम होते हैं, जो कैंसर से बचा सकते हैं। इसकी विभिन्न प्रजातियाँ यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया मे पाई जाती हैं। भारत, इंडोनेशिया और पश्चिमी अफ्रीका में बड़े पैमाने पर पुदीने का उत्पादन किया जाता है। पिपरमिंट और पुदीना एक ही जाति के होने पर भी अलग अलग प्रजातियों के पौधे हैं। पुदीने को स्पियर मिंट के वानस्पतिक नाम से जाना जाता है। मेन्थोल का उपयोग बड़ी मात्रा में दवाईयों, सौदर्य प्रसाधनों, कालफेक्शनरी, पेय पदार्थो, सिगरेट, पान मसाला आदि में सुगंध के लिये किया जाता है। इसके अलावा इसका उड़नशील तेल पेट की शिकायतों में प्रयोग की जाने वाली दवाइयों, सिरदर्द, गठिया इत्यादि के मल्हमों तथा खाँसी की गोलियों, इनहेलरों तथा मुखशोधकों में काम आता है।
यूकेलिप्टस के तेल के साथ मिलाकर भी यह कई रोगों में काम आता है। अमृतधारा नामक बहुउपयोगी आयुर्वेदिक औषधि में भी सतपुदीने का प्रयोग किया जाता है। विशेष रूप से गर्मियों में फैलने वाली पुदीने की पत्तियाँ औषधीय और सौंदर्योपयोगी गुणों से भरपूर है। इसे भोजन में रायता, चटनी तथा अन्य विविध रूपों में उपयोग में लाया जाता है। संस्कृत में पुदीने को पूतिहा कहा गया है, अर्थात् दुर्गंध का नाश करनेवाला। इस गुण के कारण पुदीना चूइंगम, टूथपेस्ट आदि वस्तुओं में तो प्रयोग किया ही जाता हैए चाट के जलजीरे का प्रमुख तत्त्व भी वही होता है। गन्ने के रस के साथ पुदीने का रस मिलाकर पीने को स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। सलाद में इसकी पत्तियाँ डालकर खाने में भी यह स्वादिष्ट और पाचक होता है। कुछ नहाने के साबुनों, शरीर पर लगाने वाली सुगंधों और हवाशोधकों एअर फ्रेशनर में भी इसका प्रयोग किया जाता है। औषधीय गुण स्वदेशी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में पुदीने के ढेरों गुणों का बखान किया गया है।
यूनानी चिकित्सा पद्धति हिकमत में पुदीने का विशिष्ट प्रयोग अर्क पुदीना काफ़ी लोकप्रिय है। हकीमों का मानना है कि पुदीना सूचन को नष्ट करता है तथा आमाशय को शक्ति देता है। यह पसीना लाता है तथा हिचकी को बंद करता है। जलोदर व पीलिया में भी इसका प्रयोग लाभदायक होता है। आयुर्वेद के अनुसार पुदीने की पत्तियाँ कच्ची खाने से शरीर की सफाई होती है व ठंडक मिलती है। यह पाचन में सहायता करता है। अनियमित मासिकघर्म की शिकार महिला के शारीरिक चक्र में प्रभावकारी ढंग से संतुलन कायम करता है। यह भूख खोलने का काम करता है। पुदीने की चाय या पुदीने का अर्क यकृत के लिए अच्छा होता है और शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में बहुत ही उपयोगी है। मेंथॉल ऑइल पुदीने का ही अर्क है और दांतो से संबंधित समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है। जहरीले जंतुओं के काटने पर देश के स्थान पर पुदीने का रस लगा देने से विष का शमन होता है तथा पुदीने की सुगंध से बेहोशी दूर हो जाती है। अंजीर के साथ पुदीना खाने से फेफड़ों में जमा बलगम निकल जाता है। मेंथा का इस्तेमाल दवाएं, सौंदर्य उत्पाद, टूथपेस्ट के साथ ही कंफेक्शनरी उत्पादों में सबसे ज्यादा होता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा मेंथा ऑयल उत्पादक और निर्यातक है। मेंथा ऑयल की सबसे ज्यादा पैदावार यूपी में होती है। देश में होने वाले कुल मेंथा ऑयल के उत्पादन में यूपी की हिस्सेदारी करीब 80 फीसदी है। पश्चिमी यूपी के जिले संभल, रामपुर, चंदौसी मेंथा का उत्पादन करने वाले बड़े क्षेत्र हैं, जबकि लखनऊ के पास बाराबंकी जिला भी मेंथा ऑयल का प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है। इंडस्ट्री के अनुमान के मुताबिक, इस साल मेंथा ऑयल का उत्पादन 25.30 फीसदी ज्यादा रहने का अनुमान है। इस साल उत्पादन 40,000.45,000 टन के आसपास रह सकता है। पिछले सत्र में मेंथा ऑयल का उत्पादन 32,500-35000 टन के आसपास था। उत्तराखंड राज्य को अपनी उत्तराखंड राज्य के 20वें वर्षगांठ स्थापना दिवस के मनाने जा रहा है लेकिन राज्य आंदोलनकारियों का सपना आज भी अधूरा हैण् राज्य आंदोलनकारियों का मानना है कि जिस मकसद को लेकर उत्तराखंड का गठन किया गया था, वो आज भी पूरा नहीं हो पाया है। पहाड़ों से युवा लगातार पलायन कर रहे हैं। कहीं न कहीं इस पलायन के लिए पहाड़ के नेता जिम्मेदार हैं, क्योंकि राजनेता ही पलायन कर मैदान पहुंच रहे हैं। प्रदेश सरकार राज्य के 20वें स्थापना दिवस के मौके पर सप्ताह भर कार्यक्रम का आयोजन कर रही है। ये कार्यक्रम मुख्य रूप से सैनिकों, महिलाओं, युवाओं पर केंद्रित हैं पर किसान के लिए गंभीर नहीं है। पहले राज्य बना लेकिन पर्वतीय जनजीवन की खुशहाली के लिए कुछ भी ठोस दिशा नीति 18 साल तय की गई है।
लेखक का शोघ वर्ष 2010-2013 के सम्मेलन में सगंध पौधा केंद्र सेलाकुई देहरादून गया हुआ हैं।












