डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड की शीतकालीन यात्रा का उद्घाटन करने वाले हैं, जो कि एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है। इस यात्रा के तहत, उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय क्षेत्र के चारधामों में से एक गंगोत्री मंदिर के पास स्थित मुखबा गांव को शीतकालीन प्रवास स्थल के रूप में स्थापित किया जाएगा। मुखबा गांव को मां गंगा का शीतकालीन निवास स्थल माना जाता है, जहां हर साल सर्दियों में विशेष धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। यह एक अद्भुत परंपरा है, जो भारतीय संस्कृति और विश्वासों की गहरी जड़ें दर्शाती है।गंगोत्री मंदिर, जो कि मां गंगा के पूजन का प्रमुख स्थल है, सर्दियों के दौरान बर्फ से ढ़क जाता है और इसलिए वहां पूजा के कार्य भी सीमित हो जाते हैं। पारंपरिक रूप से, सर्दी के मौसम में गंगोत्री मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और मां गंगा की डोली को मुखबा गांव ले जाया जाता है। इस डोली को खास श्रद्धा और भक्ति के साथ लाया जाता है, और वहां के स्थानीय लोग मां गंगा की पूजा अर्चना करते हैं। मुखबा गांव को इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है क्योंकि इस गांव को मां गंगा के प्रतीक के रूप में माना जाता है, जहां उनकी शीतकालीन यात्रा होती है। देश के पहले प्रधानमंत्री हैं, जो भारत-तिब्बत सीमा से जुड़े उत्तराखंड के चमोली और पिथौरागढ़ सीमावर्ती जिलों के बाद अब उत्तरकाशी के मुखबा और हर्षिल पहुंच रहे हैं। प्रधानमंत्री के नाम एक और रिकॉर्ड दर्ज होगा। वो देश के पहले प्रधानमंत्री हैं, जो गंगा के शीतकालीन पूजा स्थल पहुंचेंगे। पिछले दो सालों में चमोली जनपद के पहले गांव माणा, पिथौरागढ़ जनपद के सीमावर्ती गांव गुंजी के बाद अब उत्तरकाशी जिले के अंतिम आबादी गांव मुखबा और हर्षिल पहुंच रहे हैं। उनके दौरे से सीमावर्ती गांवों के विकास के साथ ही ग्रामीणों की सालों पुरानी मांगों के पूरा होने की उम्मीद भी जगी है। वर्ष 1962 में भारत चीन युद्ध से पहले यहां के ग्रामीणों का तिब्बत से सीधा व्यापारिक संबंध था। इसके अलावा चमोली जनपद की नीति माणा, उत्तरकाशी जिले के कोपांग, जादूंग और पिथौरागढ़ जिले के गुंजी गांवों से तिब्बत और मानसरोवर यात्रा की जाती थी। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद पिछले छह दशकों से अधिक समय से व्यापार और कैलाश मानसरोवर यात्रा बंद है। हालांकि वर्ष 1976 में कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू की गई, लेकिन फिर कोविडकाल और बाद में चीन से संबंधों में तल्खी के बाद यह यात्रा बंद है। पिछले दिनों केंद्रीय विदेश मंत्री की चीन के विदेश मंत्री से कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू करने को लेकर हुई वार्ता से उम्मीद के पंख लगे हैं। भारत तिब्बत सीमा से सटे उत्तराखंड के सीमावर्ती गांव हैं माणा, कोपांग और गुंजी। पहले इन सभी सीमावर्ती गांवों को देश का अंतिम गांव कहा जाता था, लेकिन अब ये देश के पहले गांव के रूप में पहचाने जाते हैं। केंद्र सरकार की वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत इन सीमांत गांवों का चयन किया गया है। ये सीमा से जुड़े गांव धार्मिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक एवं पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। मुखबा गांव में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है। इस परंपरा के दौरान, गांववासियों द्वारा मां गंगा की विशेष पूजा की जाती है, जो न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि स्थानीय समुदाय की एकता और सहयोग को भी दर्शाता है। यह अनुष्ठान न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बनता है।प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इस यात्रा के उद्घाटन से न केवल उत्तराखंड की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि यह राज्य के पर्यटन उद्योग को भी नया जीवन प्रदान करेगा। शीतकालीन यात्रा का उद्घाटन इस बात को दर्शाता है कि भारत में धार्मिक पर्यटन और सांस्कृतिक संरक्षण के प्रति सरकार की गहरी रुचि है। इसके माध्यम से पर्यटकों को न केवल आध्यात्मिक अनुभव मिलेगा, बल्कि वे उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को भी करीब से महसूस कर सकेंगे। हर्षिल-मुखवा के मनोरम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण क्षेत्र में आगमन से शीतकालीन यात्रा को पंख लगेंगे। पूरे विश्व में इस यात्रा का प्रचार-प्रसार होगा। जिससे हमारे राज्य में बड़ी संख्या में श्रद्धालु व पर्यटकों का आगमन होना तय है। यह अवसर हमारे राज्य की समृद्धि में बहुत बड़ा योगदान साबित होने वाला है। प्रधानमंत्री के इस दौरे से आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को बल मिलेगा। प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान राज्य उत्पादों की एक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया है जिसमें सभी पर्वतीय जिलों के प्रमुख घरेलू उत्पादों के स्टाल लगाये जाएंगे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि उत्तराखंड आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के आगमन से चारधाम यात्रा को नई दिशा मिलेगी।प्रधानमंत्री पहली बार मुखवा आ रहे हैं उनके इस दौरे को लेकर क्षेत्र वासियो में अत्यंत ही उत्साह है। जहां एक ओर मां गंगोत्री के मंदिर को फूलों से सजाया गया है वहीं लोक कलाकार भी अपनी विभिन्न प्रस्तुतियों से पारंपरिक वेशभूषा में उनका स्वागत करेंगे। प्रधानमंत्री यहां पहुंचने पर सबसे पहले मां गंगा की पूजा अर्चना करेंगे तथा इसके पश्चात वह उत्पाद प्रदर्शनी का अवलोकन भी करेंगे। इसके बाद वह हर्षिल में आयोजित होने वाली जनसभा को संबोधित करेंगे जिसे लेकर हर्षिल के 8-10 गांवों के लोग उन्हें सुनने पहुंचेंगे। मुखबा में पारंपरिक परिधान चपकन पहनकर मां गंगा की पूजा-अर्चना कर सकते हैं। मां गंगा के शीतकालीन प्रवास स्थल मुखबा में तीर्थ पुरोहित इसी परिधान में पूजा करते हैं। गंगोत्री मंदिर समिति के सचिव सुरेश सेमवाल के अनुसार, मंदिर समिति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ये परिधान भेंट करेगी। चपकन कोट की तरह दिखने वाला बेहद गर्म परिधान होता है। इसे मुखबा गांव के सम्मान का प्रतीक माना जाता है। दूसरी ओर प्रधानमंत्री को हर्षिल कार्यक्रम के दौरान वहां का पारंपरिक परिधान मिरजाई भेंट करने की तैयारी है। सीमांत जिले उत्तरकाशी के रासौं नृत्य की अपनी खास पहचान है. मांगलिक और अन्य त्यौहार के अवसर पर महिलाएं और पुरुष सामूहिक रूप से पारंपरिक गीत गाते हुए यह नृत्य करते हैं. तीर्थ पुरोहित व लोक गायक के अनुसार, पीएम मोदी के स्वागत में रासौं नृत्य किया जाएगा. इसके लिए ग्रामीण लगातार तैयारी कर रहे हैं वहीं, उत्तरकाशी के रासौं नृत्य की अपनी खास पहचान हैं। तीर्थ पुरोहित व लोक गायक रजनीकांत सेमवाल के अनुसार, इसके लिए ग्रामीण लगातार तैयारी कर रहे हैं। राज्य की समृद्धि में बहुत बड़ा योगदान साबित होने वाला है।! ।लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।