डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
लोक गायिकी के शीर्ष पर विराजित सुप्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने पहला गीत ‘सैरा बसग्याल बोण मा, रुड़ी कुटण मा, ह्यूंद पिसी बितैना, मेरा सदनी इनी दिन रैना’ को अपनी मां समुद्रा देवी के संघर्ष को देखकर रचा था। मां का संघर्ष बयां करते नेगी के शब्द कह रहे हैं, बरसात जंगलों में, गर्मियां कूटने में, सर्दियां पीसने में बिताई, मेरे हमेशा ऐसे ही दिन रहे। इस गीत को नेगी ने उस वक्त रचा, जब पिता मोतियाबिंद का आपरेशन कराने देहरादून के अस्पताल में भर्ती थे और मां पौड़ी के गांव में। उत्तराखंड लोक समाज का नरेन्द्र सिंह नेगी सर्वोच्च संस्कृति सम्मान इस वर्ष हिमाचल निवासी प्रख्यात साहित्यकार व संस्कृति एक्टिविस्ट एस आर हरनोट को दिया जाएगा। उत्तराखण्ड लोक समाज के बैनर तले विभिन्न संगठन मिलकर प्रसिद्ध लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी के जन्मदिन पर नरेन्द्र सिंह नेगी संस्कृति सम्मान प्रदान करते हैं। नेगी जी के जन्मदिन 12 अगस्त 2025 को यह सम्मान दिया जाना था परंतु धराली प्राकृतिक आपदा की वजह से अब यह सम्मान सितम्बर माह में प्रदान किया जाएगा। यह जानकारी पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड लोक समाज के आयोजन समिति के प्रतिनिधि गणेश खुगशाल गणी द्वारा आज मीडिया को दी गई है उत्तराखंड लोक समाज का नरेन्द्र सिंह नेगी सर्वोच्च संस्कृति सम्मान इस वर्ष हिमाचल निवासी प्रख्यात साहित्यकार व संस्कृति एक्टिविस्ट एस आर हरनोट को दिया जाएगा। उत्तराखण्ड लोक समाज के बैनर तले विभिन्न संगठन मिलकर प्रसिद्ध लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी के जन्मदिन पर नरेन्द्र सिंह नेगी संस्कृति सम्मान प्रदान करते हैं। नेगी जी के जन्मदिन 12 अगस्त 2025 को यह सम्मान दिया जाना था परंतु धराली प्राकृतिक आपदा की वजह से अब यह सम्मान सितम्बर माह में प्रदान किया जाएगा। यह जानकारी पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड लोक समाज के आयोजन समिति के प्रतिनिधि द्वारा आज मीडिया को दी गई है। । उन्होंने बताया कि नरेन्द्र सिंह नेगी संस्कृति सम्मान हिमालयी राज्यों में भाषा,साहित्य,संस्कृति और सामाजिक सरोकारों के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्तित्व को प्रदान किया जाता है। पहला सम्मान वर्ष 2024 में उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी को यह सम्मान प्रदान किया गया था। इस सम्मान में प्रशस्ति और दो लाख इक्यावन हजार रुपए की धनराशि प्रदान की जाती है। इस वर्ष का नरेन्द्र सिंह नेगी सर्वोच्च संस्कृति सम्मान हिमाचल के वरिष्ठ साहित्यकार संत राम हरनोट को उनके द्वारा साहित्य, संस्कृति, पर्यावरण के क्षेत्र में किए जा रहे बहुआयामी योगदान के दृष्टिगत प्रदान किया जाएगा। हिमाचल के निवासी हरनोट वरिष्ठ साहित्यकार हैं जो अपने साहित्य कर्म के लिए अंतरराष्ट्रीय और अनेक राष्ट्रीय प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित हैं। एस आर हरनोट जी की बीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। तीन आलोचना पुस्तकें विभिन्न प्रकाशनों से उनके कृतित्व पर प्रकाशित हो चुकी है। हरनोट जी के साहित्य पर अभी तक 22 एम फिल और 8 पीएचडी पूर्ण हो चुकी है और 12 पीएचडी शोध देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में जारी है। देश के लगभग 15 विश्वविद्यालयों में उनके उपन्यास और कहानियां बीए और एमए के पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जा रही है। इसके अतिरिक्त उनकी कृतियां देश और विदेश की तकरीबन साठ से ज्यादा विश्वविद्यालयों में किए जा रहे शोधों में शामिल की गई है। हरनोट जी हिमालय साहित्य संस्कृति एवं पर्यावरण मंच, हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष भी हैं जिसके बैनर में वे प्रतिवर्ष अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण और लोक संगीत के आयोजन करते हैं। वे हिमाचल अकादमी के सम्माननीय सदस्य भी हैं।हरनोट जी की तीन कहानियों पर लघु फिल्में बनी है। सात कहानियों का नाट्य मंचन हुआ है। उनकी कहानियों का जर्मन,पंजाबी,अंग्रेजी, मराठी, मलयालम, उर्दू, गुजराती, पहाड़ी, उड़िया, रूसी के साथ कई अन्य भाषाओं में अनुवाद हुए हैं। ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी एस आर हरनोट को यह सम्मान देते हुए हम बेहद प्रसन्न हैं उत्तराखंड आंदोलन के दौरान उन्हें जन कवि गिरीश तिवाड़ी गिर्दा से सुनने का मौका मिला। तब वह उत्तरकाशी में कार्यरत थे। जनकवि बल्ली सिंह चीमा, गिर्दा, अतुल शर्मा के गीत गलियों में गूंजा करते थे। तब उन्होंने भी जनगीत लिखे। पहली बार 1999 में पौड़ी आडिटोरियम गिर्दा के साथ उनकी जुगलबंदी हुई। फिर नैनीताल, दिल्ली व न्यूयार्क तक साथ में कार्यक्रम किए। उत्तराखंड आंदोलन के दौरान उन्हें जन कवि गिरीश तिवाड़ी गिर्दा से सुनने का मौका मिला। तब वह उत्तरकाशी में कार्यरत थे। जनकवि बल्ली सिंह चीमा, गिर्दा, अतुल शर्मा के गीत गलियों में गूंजा करते थे। तब उन्होंने भी जनगीत लिखे। पहली बार 1999 में पौड़ी आडिटोरियम गिर्दा के साथ उनकी जुगलबंदी हुई। फिर नैनीताल, दिल्ली व न्यूयार्क तक साथ में कार्यक्रम किए। पर्वतीय जीवन का शायद ही कोई ऐसा पक्ष हो जिस पर नरेंद्र सिंह नेगी की नजर न पड़ी हो और जिस पर उन्होंने गीत की रचना कर उसे अपना मधुर कंठ न दिया हो। उत्तराखंड के खेतों-खलिहानों, जंगलों में घास-लकड़ी लेने अथवा मवेशियों के साथ गई घसेरियों और ग्वैरों, पानी के स्रोत धारा-मंगरों, शादी-विवाह अथवा धार्मिक कार्यक्रमों, घरों और देवालयों अर्थात यत्र-तत्र सर्वत्र यदि कोई एक चीज मौजूद है तो वह है नरेंद्र सिंह नेगी की आवाज। नरेंद्र सिंह नेगी का रचना संसार वास्तविकता के धरातल पर बना है। यही वजह है कि उनके गीतों में भावनाओं का ज्वार होता है। सबसे खास बात यह है कि आज के दौर में भी उनके नए गीतों को पूरी शिद्दत से पसंद किया जाता है। उन्होंने मुख्यत: खुद ही गीतों का सृजन किया, संगीत और स्वर दिया। लेकिन कुछ गीत उन्होंने अन्य कवियों के भी गाए। अनेक लोकगीतों को उन्होंने नया रूप देकर श्रोताओं के सामने रखा। शुरूआती दौर में नेगी ने गढ़वाली गीत माला के नाम से एकल गीतों के एलबम निकाले। गढ़वाली गीतमाला के 10 भाग निकले। बाद में उन्होंने अपने एलबम को अलग-अलग नाम देना शुरू किया और अन्य गायक-गायिकाओं के साथ गाने लगे। नाम वाला उनका पहला एलबम बुरांश था। नरेंद्र सिंह नेगी अनेक गढ़वाली फिल्मों में भी गीत, संगीत और अपनी आवाज दी है। इन फिल्मों में चक्रचाल, घरजवैं, मेरी गंगा होली मैं मा आली, कौथिग, बंटवारू, छम घुंघरू, जय धारी देवी, सुबेरौ घाम आदि शामिल हैं। यही नहीं आज के दौर में भी उत्तराखंड की संस्कृति को लोगों तक पहुंचाने की सतत साधना में जुटे हुए हैं। पांच दशक लंबे इस सफर में उनका स्वर सम्मोहन जस का तस बना हुआ है। वह आज यू-ट्यूब चैनल पर भी उतने ही लोकप्रिय हैं, जितने रेडियो, कैसेट्स और सीडी के दौर में थे।नेगी जी की रचनाओं की तीन पुस्तकें खुचकण्डि, मुट बौटिक रख और गाण्यूं की गंगा स्याण्यूं का समोदर भी प्रकाशित हो चुकी है। उनके बहुचर्चित गीत नौछमी नारैणा पर गाथा एक गीत की नामक पुस्तक भी प्रकाशित हुई है। सैकड़ों उदाहरण हैं जो उनकी रचनाओं एवं गीतों के जरिए उत्तराखंडी समाज के लिए आईना बने। वह सिर्फ एक लोकगायक नहीं, एक ऐसे कलाकार, संगीतकार और चितेरे कवि हैं जो अपने पारंपरिक परिवेश की दशा-दिशा को लेकर काफी भावुक एवं संवेदनशील है। एचएनबी केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर द्वारा उन्हें लोककला और संगीत के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए डॉक्टर ऑफ लेटर्स की उपाधि प्रदान की गई है। नेगी जी के इस गीत ने पहाड़ के लोगों को पौधरोपण कि लिए प्रेरित किया. इसीलिए उत्तराखंड अपने वनों के लिए जाना जाता है. उत्तराखंड की वन संपदा राज्य के लिए धरोहर बन गई.
वनों के कटान के खिलाफ गीत: एक ओर जहां नरेंद्र सिंह नेगी ने पौधरोपण के लिए प्रेरित किया, वहीं उन्होंने लोगों को पेड़ नहीं काटने का संदेश भी दिया. पेड़ नहीं काटने का अनुरोध करता नरेंद्र सिंह नेगी का ये गीत हमेशा प्रेरणादायी रहेगा.
ना काटा तौं डाल्यूं
तौं डाल्यूं न काटा दिदौं, डाल्यूं न काटा
डालि कटेलि त माटि बगेली
न कूड़ि, न पुंगड़ी, न डोखरी बचली
घास-लखड़ा न खेति ही राली
भोल तेरी आस-औलाद क्य खाली
पेड़ काटने का दंश आज उत्तराखंड भुगत रहा है. राज्य भर में जहां-तहां भूस्खलन हो रहा है. अगर इस गीत के संदेश को अपना लिया जाए तो भूस्खलन की बहुत बड़ी समस्या ही हल जो जाएगी.
90 के दशक में जब उत्तराखंड राज्य आंदोलन चल रहा था तो एक तरफ गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ तो दूसरी तरफ नरेंद्र सिंह नेगी ने अपने गीतों से राज्य आंदोलनकारियों का जोश हाई रखा था.
राज्य आंदोलन के दौरान नरेंद्र सिंह नेगी का गाया ये गीत आज भी आंदोलनकारियों का टाइटल गीत होता है.
मथि पहाड़ बटि, निस गंगाड़ु बटि
इस्कुल-दफ्तर, गौं-बजारू बटि
मनख्यूंकि डार, धार-धारू बटि
हिटण लग्यां छन, बैठणा को लगा नी
बाटा भर्यां छन, सड़क्यूं मा जगा नी
बोला कख जाणा छा तुम लोग, उत्तराखंड आंदोलन मा
पलायन का दर्द गीतों से छलका: पलायन उत्तराखंड की बहुत बड़ी समस्या रहा है. उत्तराखंड में बड़ी संख्या में गांव पूरे खाली हो चुके हैं. इन गांवों को भूतिया गांव यानी घोस्ट विलेज कहा जाने लगा है. नरेंद्र सिंह नेगी पिछली सदी में ही पलायन रोकने के लिए गीत गा चुके थे. उनके इस गीत को सुनकर आज भी पहाड़ से मैदान की तरफ जा रहा व्यक्ति भावुक हो जाता है.
न दौड़-न दौड़ ते उंदारी का बाटा, उंदारी का बाटा
उंदारिकु सुख द्वी चार घड़ी कू
उकालिकु दुख सदानिकु सुख लाटा
पलायन पर उन्होंने एक और भावुक गीत लिखा, जो सोचने पर मजबूर कर देता है.
ये उंच्ची-उंच्ची डांडी कांठी
ये गैरि-गैरि रौंत्येलि घाटी
न जा, न जा, न जावा छोड़िकी
अपणि जल्म भूमि माटि
बोल्यूं माना, बोल्यूं माना, बोल्यूं माना
खाली पड़े घरों की व्यथा: पलायन के बाद खाली पड़े मकानों का दर्द भी नरेंद्र सिंह नेगी के गीतों में सुनाई देता है. शायद की किसी गायक ने पलायन से वीरान पड़े घरों-मकानों की दर्द बयां किया हो.
कख लगाणि छ्वीं, कैमा लगाणि छ्वीं
ये पहाड़ै की, कुमौं गढ़वाल की
रीता कूड़ों की, तीसा भांडों की
बगदा मनख्यूं की, रड़दा डांडों की
नरेंद्र सिंह नेगी एक ऐसे कलाकार, संगीतकार और चितेरे कवि हैं जो अपने पारंपरिक परिवेश की दशा-दिशा को लेकर काफी भावुक एवं संवेदनशील है। उत्तराखंड के खेतों-खलिहानों, जंगलों में घास-लकड़ी लेने अथवा मवेशियों के साथ गई घसेरियों, पानी के स्रोत धारा-मंगरों, शादी-विवाह अथवा धार्मिक कार्यक्रमों, घरों और देवालयों अर्थात यत्र-तत्र सर्वत्र यदि कोई एक चीज मौजूद है तो वह है नरेंद्र सिंह नेगी की आवाज। पर्वतीय जीवन का शायद ही कोई ऐसा पक्ष हो जिस पर नरेंद्र सिंह नेगी की नजर न पड़ी हो और जिस पर उन्होंने गीत की रचना कर उसे अपना मधुर कंठ न दिया हो। उनका रचना संसार वास्तविकता के धरातल पर बना है। यही वजह है कि उनके गीतों में भावनाओं का ज्वार होता है। सबसे खास बात यह है कि आज के दौर में भी उनके नए गीतों को पूरी शिद्दत से पसंद किया जाता है। उन्होंने मुख्यत: खुद ही गीतों का सृजन किया, संगीत और स्वर दिया। लेकिन कुछ गीत उन्होंने अन्य कवियों के भी गाए। अनेक लोकगीतों को उन्होंने नया रूप देकर श्रोताओं के सामने रखा। उन्होंने अनेक गढ़वाली फिल्मों में भी गीत, संगीत और स्वर दिया है। इन फिल्मों में चक्रचाल, घरजवैं, मेरी गंगा होली मैं मा आली, कौथिग, बंटवारू, छम घुंघरू, जय धारी देवी, सुबेरौ घाम आदि शामिल हैं। उनका जन्म 12 अगस्त 1949 को पौड़ी जनपद के मुख्यालय पौड़ी शहर के लगे पौड़ी गांव में हुआ। उन्हें प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी सम्मान भी मिल चुका है।नंदा देवी राजजात पर उनका गाया सुप्रसिद्ध मां भगवती का गीत ‘जै बोला जै भगोती नंदा, नंदा ऊंचा कैलाश की…’ उत्तराखंडी की थाती है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जो उनकी रचनाओं एवं गीतों के जरिए उत्तराखंडी समाज के लिए आईना बने। वह सिर्फ एक लोकगायक नहीं, एक ऐसे कलाकार, संगीतकार और चितेरे कवि हैं जो अपने पारंपरिक परिवेश की दशा-दिशा को लेकर काफी भावुक एवं संवेदनशील है। भू-कानून और मूल निवास की मांग के लिए उत्तराखंडियों को प्रोत्साहित करने के लिए नरेंद्र सिंह नेगी ने ‘उठा जागा उत्तराखंडियों’ गीत लिखा है।उत्तराखंड में मजबूत भू कानून और मूल निवासियों के हक हकूकों को लेकर 24 दिसंबर 2023 को देहरादून में एक महारैली का आयोजन किया गया था। नरेंद्र सिंह नेगी ने भी इस रैली को सफल बनाने की अपील की थी। जिसमें लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। नरेंद्र सिंह नेगी वो शख्सियत हैं, जो अपने गीतों से सत्ता परिवर्तन का माद्दा रखते हैं।उत्तराखंड रत्न नरेंद्र सिंह नेगी को 15 सितंबर 2021 को हिंदी दिवस के अवसर पर आवाज रत्न पुरस्कार 2021 से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा 9 अप्रैल 2022 को दिल्ली में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।आज गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी का 76वां जन्मदिन है आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। हम लोग भगवान से प्रार्थना करते हैं कि आप पर सदा बद्री-केदार का आशीर्वाद बना रहे और आप हमेशा स्वस्थ एवं दीर्घायु बने रहे। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*