डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
नाशपाती एक लोकिप्रय फल है। नाशपाती सेब से जुड़ा एक उप.अम्लीय फल है। भारतवर्ष में पैदा होने वाले ठंढे जलवायु के फलों में नाशपाती का महत्व सेब से अधिक है। यह हर साल फल देती है। इसकी कुछ किस्में मैदानी जलवायु में भी पैदा की जाती है और उत्तम फल देती हैं। नाशपाती के फल खाने में कुरकुरे, रसदार और स्वदिष्ट होते हैं। ये सेब की अपेक्षा सस्ती बिकती हैं। भारत में नाशपाती यूरोप और ईरान से आई और धीरे.धीरे इसकी काश्त बढ़ती गई। अनुमान किया जाता है कि अब हमारे देश में लगभग 4,000 एकड़ में इसकी खेती होने लगी है। पंजाब को कुलू घाटी तथा कश्मीर में यूरोपीय किस्में पैदा की जाती हैं और इनके फलों की गणना संसार के उत्तम फलों में होती है।
नाशपाती के फल को पेड़ पर पूरा नहीं पकने देना चाहिए, क्योंकि यह रस से भर जाता है और उतारने में थोड़ी सी भी खुरच लगने से सड़ने लगता है। ज्योंही फल की सतह पीली होने लगे तथा उसपर के हरे हरेए छोटे छोटे, गोल निशान भूरे होने लगें, फलों काे सावधानी से उतारना चाहिए। इनको बक्सों में चार या पाँच दिन तक सुरक्षित रख देने से ऊपरी सतह पीली पीली हो जाती है और गूदा रसदार और मीठा हो जाता है। 4.5 डिग्री सें. ताप पर इसके फल 20.25 दिन तक रखे जा सकते हैं। चाइना नाशपाती के फल अधिकतर मुरब्बा बनाने तथा डिब्बाबंदी के कार्य में लाए जाते हैं। यूरोपीय और संकर किस्मों के फल ताजे ही खाने के काम में आते हैं।
नाशपाती में पर्याप्त मात्रा में विटामिन c, k, b2, b3, b6 होते है। इसके अलावा इससे कैल्शियम, पोटेशियम, कॉपर, मैग्नीशियम आदि खनिज प्राप्त होते हैं। इसमें नुकसान करने वाले सोडियम, फैट या कोलेस्ट्रॉल बिल्कुल नहीं होता। नाशपाती खाने से कैंसर जैसे रोग से बचाव हो सकता है। इसे छिलके सहित खाना चाहिए, क्योंकि छिलके में बहुत महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं। ये तत्व शरीर के लिए नुकसान देह फ्री रेडिकल्स से भी बचाते है। नाशपाती खाने के फायदे हरी.भरी नाशपाती खाने में जीतनी स्वादिष्ट होती है सेहत के लिहाज से उतनी ही हैल्दी है। इसमें खनिज, पोटेशियम, विटामिन.सी, विटामिन, फिनालिक कंपाउंड, फोलेट, आहार फाइबर, तांबा, मैंगनीज, मैग्नीशियम के साथ साथ बी.कॉम्प्लेक्स विटामिन भी भरपूर मात्रा होती है। जो हैल्दी रहने के लिए बहुत जरूरी होती है। कुछ लोग इसके छिलके उतारकर खाते है लेकिन इसके छिलकों में फीटोनुट्रिएंट्स पाया जाता है जो सेहत के लिए लाभदायक है।
इस फल के सेवन से और भी कई फायदे होते हैं। नाशपाती में आयरन की भरूपूर मात्रा होती है। इसको खाने से खून की मात्रा पूरी होती है खाने से खून की कमी पूरी होगी। फल लेना कई बीमारियों के खतरे को कम कर देता है और यह शरीर को मजबूत बनाते हैं। ऐसा ही एक लोकप्रिय और व्यापक रूप से खाया जाने वाला फल नाशपाती है। यह विभिन्न पोषक तत्वों से भरा हुआ है और यह स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद है। नाशपाती कैलोरी में अपेक्षाकृत कम होती है लेकिन कुछ पोषक तत्वों और फाइबर सामग्री से भरपूर भी होती है। नाशपाती मौसमी होती है और देर गर्मी से लेकर सर्दियों तक भारत में इसकी कटाई की जाती है, जैसा कि जॉन ड्राइडन ने अपनी कविताओं में लिखा है। जब उदार शरद ऋतु अपना सिर पीछे रखता है तो उसे पके हुए नाशपाती को लाना ही पड़ता है। नाशपाती की खेती भारत में ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र से लेकर घाटी, तराई और भावर क्षेत्र तक में की जाती है। नाशपाती के फल खाने में कुरकुरे, रसदार और स्वदिष्ट होते हैं। इसके फल में पौषक तत्व प्रचुर मात्रा में होते है। यह सयंमी क्षेत्रों का महत्वपूर्ण फल है। नाशपाती की खेती भारत में अधिकतर हिमाचल प्रदेश, जम्मू.कश्मीर, उत्तर प्रदेश और कम सर्दी वाली किस्मों की खेती उप.उष्ण क्षेत्र में की जा सकती है।
कृषकों को इसकी फसल से अधिकतम और गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त हो सकेण्नाशपाती की खेती से साधारणतया नाशपाती के एक वृक्ष से 1 से 2 क्विटंल तक फल प्राप्त हो जाते है, अतः प्रति हैक्टर क्षेत्र से 400 से 750 क्विंटल फल उत्पादित हो सकते है। गरमपानी नैनीताल। पहाड़ों में भी जलवायु परिवर्तन के लक्षण दिखने लगे हैं। इसी कारण जून में होने वाला नाशपाती दिसंबर में ही पेड़ों पर दिखने लगा है। खास बात यह है कि अक्तूबर में पेड़ों पर पतझड़ होता है, लेकिन पिछले इस समय नाशपाती के पेड़ों पर फल दिखाई देने लगे हैं। बेतालघाट ब्लॉक के ग्राम सिल्टोना, ढौन, दड़माड़ी, व्यासी गांव फल उत्पादक क्षेत्र हैं। इन गांवों में कई पेड़ों पर बेमौसमी नाशपाती के फल दिखाई देने लगे हैं। कई पेड़ों की टहनियों पर नई पत्तियां निकलने के साथ ही पेड़ों पर फल भी बड़े होने लगे हैं। काफी ठंड होने के बावजूद इन फलों की वृद्धि पर तापमान का भी कोई असर भी नहीं पड़ा जबकि अप्रैल से लगने वाली नाशपाती का फल जून.जुलाई में बाजार तक पहुंचाता है, जो किसान की आय का एक मुख्य साधन है।
ग्राम सिल्टोना निवासी कमलेश शास्त्री बताते हैं कि अक्तूबर से नाशपाती के पेड़ों पर पतझड़ होता हैए लेकिन पिछले कुछ समय से नाशपाती के पेड़ों पर फल दिखाई देने लगे हैं। पेड़ों पर बेमौसमी फल लगने से अप्रैल की मुख्य फलों की फसल के समय पैदावार कम होने का खतरा है। जाड़े में होने वाला फल ज्यादा बड़ा नहीं होता है जबकि गर्मी में अप्रैल तक पकने पर मीठा, रसीला होता है। हम अखरोट उत्पादन में पूरे देश में द्वितीय स्थान पर है।नाशपाती की मैक्स रैड व रैड बबूगोसा के फल बाजार में हिमाचल व काश्मीर के बिकते हैं फिर भी हम नाशपाती उत्पादन में देश में प्रथम स्थान पर है।यही स्थिति प्लम व आडू उत्पादन की है। कुछ क्षेत्रों नैनीताल जनपद के रामगढ़ टिहरी के नैनबाग क्षेत्र में कास्तकार अपने व्यक्तिगत प्रयासों से सेव के बाग हटा कर आड़ू के नये बाग बिकसित कर रहे है जिससे उन्हें अच्छा आर्थिक लाभ भी मिल रहा है। सेव में भी उत्पादन बहुत अधिक दर्शाया गया है सेव के पुराने बाग नष्ट हो चुके हैं नये बाग लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं किन्तु सफलता नहीं मिल पा रही है ।यदि जनपद वार फल उत्पादन की विस्तृत जानकारी की जाय तो टिहरी जनपद में 20942 हैक्टियर क्षेत्र फलौं के अन्तर्गत दर्शाया गया है तथा फलों का उत्पादन 28510 डज् दिखाया गया है जब कि वास्तविकता यह है कि चम्बा मसूरी फल पट्टी, काणाताल, धन्नोल्टी, मगरा, प्रताप नगर, मांजफ आदि क्षेत्रों में लगे पुराने सेव के बाग समाप्त हो चुके हैं यदि कहीं पर सेव के बाग दिखाई भी देते हैं। नये सेव के बाग लगाये गये किन्तु गलत नियोजन एवं गलत क्रियान्वयन के कारण सफलता नहीं मिली। पौडी जनपद में भी पौड़ी, खाण्यूसैण, खिर्सू, भरसार, थलीसैण, धूमाकोट आदि छेत्रों में लगे पुराने सेव के बाग समाप्त हो चुके हैं नये सेव के बाग विभिन्न योजनाओं में लगाये गये किन्तु वे विकसित नहीं हो पा रहे हैं नाशपाती, आडू, प्लम, खुवानी, अखरोट के बाग कम ही हैं या जिनमें उत्पादकता बहुत ही कम है फिर भी फल पौध के अंतर्गत 20781 हैक्टेयर तथा उत्पादन 33330 दर्शाया गया है। यही स्थिति फल उत्पादन मे अन्य पर्वतीय जनपदों की भी है । उत्तरकाशी जनपद व राज्य के हिमाचल से लगे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तथा पिथौरागढ़, चमोली जनपदों के बहुत अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र जो हिमालय के समीप है उन क्षेत्रों मैं सेब का अच्छा उत्पादन हो रहा है तथा सेव के कुछ नये बाग भी विकसित हुये है।नैनीताल जनपद के रामगढ़ क्षेत्र में कृषकों ने सेब के पेड़ हटा कर आड़ू प्लमए नाशपाती के अच्छे बाग विकसित किए हैं जिनसे इन्है अच्छा उत्पादन मिल रहा है। सेब में रायमर व जौनाथन का भी अच्छा उत्पादन हो रहा है।वर्तमान में इस क्षेत्र में कुछ छोटी प्रौसिसिगं यूनिट भी लगी है। बर्ष 2005 से शासन लगातार उद्यान विभाग को फल उत्पादन के वास्तविक आंकड़े सार्वजनिक करने के निर्देश दे रहा है जिसके अनुपालन में राज्य के सभी जनपदों में राजस्व विभाग से सहयोग ले कर फल उत्पादन के वास्तविक आंकड़े एकत्रित कर निदेशालय भेजे किन्तु 13 बर्षों से अधिक समय व्यतीत होने के बाद भी विभाग द्वारा फल उत्पादन के वास्तविक आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गये हैं।पलायन आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार पौड़ी जनपद में उद्यान विभाग द्वारा फल उद्यान के अन्तर्गत बर्ष 2015.16 में 20301 हैक्टियर क्षेत्रफल दर्शाया गया है। पलायन आयोग के बर्ष 2018.19 सर्वे में पाया गया मात्र 4042 हैक्टेयर क्षेत्र फल यही स्थिति सभी जनपदों में पाई जायेगी।रामगढ नैनीताल में 70 के दशक में एग्रो द्वारा फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई थी फ़ल उपलब्ध न होने के कारण बन्द करदी गयी। इसी प्रकार अल्मोड़ा जनपद के मटेला में 80 के दशक में करोंड़ों रुपए खर्च कर कोल्ड स्टोरेज बना जो आज फल उपलब्ध न होने के कारण बन्द पडाहै।
रानीखेत चौबटिया गार्डन की एपिल जूस प्रोसिसिग यूनिट बन्द पड़ी है।चमोली जनपद के कर्णप्रयाग में भी 80 के दशक में एग्रो द्वारा फूड प्रोसेसिंग यूनिट खुली और बन्द हुई।रुद्रप्रयाग जनपद के तिलवाड़ा में भी फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई वह भी अधिक तर बन्द ही रहती है।उत्तरकाशी व चमोली में भी कोल्ड स्टोरेज बने व बन्द पडे है।
कई स्वयंम सेवी संस्थाओं एवं परियोजनाओं के माध्यम से फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई किन्तु फल उपलब्ध न होने के कारण नहीं चल पाई। पर्वतीय क्षेत्रों में कहीं कहीं पर व्यक्तिगत यूनिट लगी है वे भी हरिद्वार आदि स्थानों से किन्नो संतरा का पल्प-जूस इक्ट्ठा कर माल्टा जूस के नाम पर बेच रहे हैं। किसी भी राज्य के सही नियोजन के लिए आवश्यक है कि उसके पास वास्तविक आंकड़े हों तभी भविष्य की रणनीति तय की जा सकती है। काल्पनिक फर्जी आंकड़ों के आधार पर यदि योजनाएं बनाई जाती है तो उससे आवंटित धन का दुरपयोग ही होगा। अपनी जिम्मेदारियों का समुचित निर्वहन कर नाशपाती की बागवानी से कमा रहे बेहतर मुनाफा योजनाएं बनाई जाती है तो पर्वतीय क्षेत्रों द्वारा फल उत्पादन को बढ़ावा मिल में की जा सकती है।
ऐसी को यदि बागवानी रोजगार से जोड़े तो अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती है।
लेखक द्वारा उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर का अनुभव प्राप्त हैं,