डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता है। यह लोगों की भगवान के प्रति अटूट आस्था ही है कि हर छोटा-बड़ा कार्य बिना भगवान की अनुमति के नहीं होता है। यहां तक कि कई जगहों पर लोग आज भी न्याय के लिए भवान की चौखट पर पहुंचते हैं।सनातन धर्म और शाक्त संप्रदाय में शक्ति की उपासना का गहरा महत्व है। ब्रह्मांड को संचालित करने वाली आदि शक्ति की अवधारणा भारतीय संस्कृति में सदियों से पूजनीय रही है। इसका प्रमुख पर्व शारदीय नवरात्रि है, जो आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होता है। यह नौ दिवसीय उत्सव देवी दुर्गा के नौ दिव्य स्वरूपों – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री – की आराधना के लिए समर्पित है।नवरात्रि केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि आस्था, विज्ञान और संस्कृति का संगम है। यह पर्व मानसिक और शारीरिक शुद्धि का संदेश देता है। शुभारंभ घट स्थापना या कलश स्थापना से होता है। कलश सुख, समृद्धि और शुभता का प्रतीक है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कलश में ब्रह्मांड की शक्ति तत्वों का आवाहन किया जाता है, जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मिट्टी का कलश पंचतत्वों का प्रतिनिधित्व करता है और इसमें गंगाजल, मौली, सुपारी, पंचरत्न, आम के पत्ते, सिक्के और नारियल रखे जाते हैं।कलश स्थापना के बाद माता की चौकी स्थापित की जाती है और अखंड ज्योत जलती रहती है। इस दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ और नौ दिनों का व्रत विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। नवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व भी है। यह पर्व ऋतु परिवर्तन के समय आता है, जब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। व्रत और पूजा-पाठ शरीर और विचारों की शुद्धि का वैज्ञानिक तरीका हैं। हल्का और सात्विक भोजन पाचन तंत्र को आराम देता है और विषैले पदार्थों से मुक्त करता है।हवन और यज्ञ से वातावरण शुद्ध होता है। इसमें डाली जाने वाली जौ, तिल, घी और औषधीय जड़ी-बूटियाँ जलकर हवा में हानिकारक बैक्टीरिया नष्ट करती हैं। मंदिरों के परिसर में नीम और समी के पेड़ वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा लाते हैं। भारत में शक्ति की उपासना के कई ऐतिहासिक केंद्र हैंभारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में मुंडेश्वरी मंदिर (बिहार), कैलाश मंदिर (एलोरा), बादामी गुफा मंदिर (कर्नाटक), बृहदेश्वर मंदिर (तमिलनाडु), शोर मंदिर (महाबलीपुरम) आदि शामिल हैं। इनके अलावा सोमनाथ, लिंगराज, कोणार्क सूर्य मंदिर और ब्रह्मा मंदिर जैसे अनेक मंदिर भारतीय स्थापत्य कला के अद्भुत उदाहरण हैं। शक्ति पीठ वे स्थल हैं जहाँ देवी सती के अंग गिरे थे।इनमें कामाख्या (असम), ज्वालामुखी (हिमाचल प्रदेश), वैष्णो देवी (जम्मू और कश्मीर), अंबा जी (गुजरात), मंगल गौरी (बिहार) प्रमुख हैं। भारत के अलावा पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी शक्ति पीठ स्थित हैं। अन्य महत्वपूर्ण शक्ति केंद्रों में दक्षिणेस्वर काली मंदिर (कोलकाता), चामुंडेश्वरी मंदिर (मैसूर), मीनाक्षी अम्मन मंदिर (मदुरै) शामिल हैं। ये मंदिर ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्ति के रूप में देवी की पूजा और भारतीय सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक हैं।सती तपस्वी भगवान शिव की पत्नी एवं पौराणिक राजा दक्ष की पुत्री थी। दक्ष को अपनी पुत्री के पति के रूप में शिव को स्वीकार करना पसंद नहीं था। राजा दक्ष द्वारा सभी राजाओं के लिए आयोजित वैदिक यज्ञ में भगवान शिव के लिए की गई अपमान जनक टिप्पणी को सुनकर सती ने अपने आप को यज्ञ की ज्वाला में फेंक दिया। भगवान शिव को जब पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला तो वो अत्यंत दुखी और नाराज हो गए और सती माता के पार्थिव शरीर को कंधे पर रख हिमालय की और निकल गए। भगवान शिव के गुस्से को एवं दुःख को समाप्त करने के लिए एवं सृष्टी को भगवान शिव के तांडव से बचाने के लिए विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र को सती के नश्वर शरीर को धीरे धीरे काटने को भेजा। सती के शरीर के 51 भाग जहां जहां गिरे वहां पवित्र शक्ति पीठ की स्थापना हुयी और जिस स्थान पर माता सती का सिर गिरा वह सिरकंडा कहलाया जो बाद में सुरकंडा नाम से प्रसिद्ध हो गया।नवरात्रि में माता के दर्शनों को श्रद्धालुओं में खासा उत्साह नजर आता हेैं। देवभूमि उत्तराखंड में भी माता के शक्तिपीठ हैं। इनमें से एक है सुरकंडा देवी मंदिर। टिहरी जिले के जौनुपर के सुरकुट पर्वत पर सुरकंडा देवा का मंदिर है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है जो कि नौ देवी के रूपों में से एक है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठ में से है। इस मंदिर में देवी काली की प्रतिमा स्थापित है। केदारखंड व स्कंद पुराण के अनुसार राजा इंद्र ने यहां मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था।मान्यता है कि सती तपस्वी भगवान शिव की पत्नी एवं पौराणिक राजा दक्ष की पुत्री थी। दक्ष को अपनी पुत्री के पति के रूप में शिव को स्वीकार करना पसंद नहीं था। राजा दक्ष द्वारा सभी राजाओं के लिए आयोजित वैदिक यज्ञ में भगवान शिव के लिए की गई अपमान जनक टिप्पणी को सुनकर सती ने अपने आप को यज्ञ की ज्वाला में फेंक दिया। भगवान शिव को जब पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला तो वो अत्यंत दुखी और नाराज हो गए और सती माता के पार्थिव शरीर को कंधे पर रख हिमालय की और निकल गए। भगवान शिव के गुस्से को एवं दुःख को समाप्त करने के लिए एवं सृष्टी को भगवान शिव के तांडव से बचाने के लिए विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र को सती के नश्वर शरीर को धीरे धीरे काटने को भेजा। सती के शरीर के 51 भाग जहां जहां गिरे वहां पवित्र शक्ति पीठ की स्थापना हुयी और जिस स्थान पर माता सती का सिर गिरा वह सिरकंडा कहलाया जो बाद में सुरकंडा नाम से प्रसिद्ध हो गया।मान्यता है कि सती तपस्वी भगवान शिव की पत्नी एवं पौराणिक राजा दक्ष की पुत्री थी। दक्ष को अपनी पुत्री के पति के रूप में शिव को स्वीकार करना पसंद नहीं था। राजा दक्ष द्वारा सभी राजाओं के लिए आयोजित वैदिक यज्ञ में भगवान शिव के लिए की गई अपमान जनक टिप्पणी को सुनकर सती ने अपने आप को यज्ञ की ज्वाला में फेंक दिया। भगवान शिव को जब पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला तो वो अत्यंत दुखी और नाराज हो गए और सती माता के पार्थिव शरीर को कंधे पर रख हिमालय की और निकल गए। भगवान शिव के गुस्से को एवं दुःख को समाप्त करने के लिए एवं सृष्टी को भगवान शिव के तांडव से बचाने के लिए विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र को सती के नश्वर शरीर को धीरे धीरे काटने को भेजा। सती के शरीर के 51 भाग जहां जहां गिरे वहां पवित्र शक्ति पीठ की स्थापना हुयी और जिस स्थान पर माता सती का सिर गिरा वह सिरकंडा कहलाया जो बाद में सुरकंडा नाम से प्रसिद्ध हो गया।पनी जन्मभूमि को मातृभूमि मानते हैं तो इसके लिए हमें अपनी मातृभूमि के धूलिकणों को माथे से लगाकर यह अनुभूति भी करनी होगी कि इस माटी में आज कितनी सुगन्ध बची है? हमें इस ओर भी जागरूक होना होगा कि जहां हमारे पूर्वज रहते थे और जिस देवभूमि को उन्होंने वेदमन्त्रों के उच्चारण और यज्ञानुष्ठान से पवित्र किया था,उस मातृभूमि के कितने भाग को हम आज जान पाए हैं?और कितने स्थानों को अब तक हमने वहां प्लास्टिक का कचरा बिखेर कर प्रदूषित कर दिया है? उत्तराखंड बनने के बाद इसके इतिहास लिखने और उसके पुरातात्त्विक अवशेषों को सहेजने की चिंता के प्रति सरकार और जनमानस उदासीन ही रहा है. *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*












