*नए दौर का गांधी आश्रम!*
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया खादी आंदोलन सिर्फ कपड़ों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह आत्मनिर्भरता और स्वदेशी की पहचान बन गया. देश भर में 1920 के दशक से स्थापित गांधी आश्रम आज भी इस विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन नए दौर में उनका अंदाज़ काफी बदल गया है. उत्तराखंड के नैनीताल के बड़ा बाजार में स्थित गांधी आश्रम इसका जीवंत उदाहरण है. यहां आज खादी केवल सफेद कुर्ते या धोती तक सीमित नहीं रही, बल्कि फैशनेबल साड़ियां, डिजाइनर कुर्ते और स्टाइलिश परिधान भी मिल रहे हैं. आश्रम के व्यवस्थापक बताते हैं कि नैनीताल में गांधी आश्रम की शुरुआत आजादी के बाद 1960 में हुई थी. पहले यहां तीन शाखाएं थीं, लेकिन अब केवल एक ही शाखा सक्रिय है.गांधी आश्रम में आने वाले ग्राहकों को अब खादी के साथ ही मुनस्यारी का शॉल, थुलमा, चुटका, स्वेटर, पश्मीना, डिजाइनर सूती और रेशमी साड़ियां, गुजरात-बंगाल की पारंपरिक साड़ियां, बालुचुरी और पटोला जैसी खास साड़ियां भी मिल जाती हैं. युवाओं को आकर्षित करने के लिए खादी में आधुनिक डिजाइन और ट्रेंडी टच जोड़ा गया है. यही वजह है कि अब खादी केवल परंपरा नहीं, बल्कि फैशन का हिस्सा भी बन गई है.108 दिनों तक तगड़ा डिस्काउंट गांधी जयंती के अवसर पर आश्रम में खास ऑफर भी दिए जा रहे हैं. बताते हैं कि इस समय यहां मिलने वाले उत्पादों पर 25 प्रतिशत का डिस्काउंट चल रहा है, जो गांधी जयंती से शुरू होकर पूरे 108 कार्य दिवसों तक जारी रहेगा. सिर्फ परिधान ही नहीं, बल्कि हर्बल उत्पाद भी गांधी आश्रम की नई पहचान बनते जा रहे हैं. यहां प्राकृतिक साबुन, शैंपू, तेल, स्किन केयर और अन्य हर्बल उत्पादों की बड़ी रेंज उपलब्ध है. पूरी तरह से ऑर्गेनिक और नेचुरल होने के कारण ये उत्पाद न केवल सेहत के लिए सुरक्षित हैं बल्कि पर्यावरण के लिए भी अनुकूल हैं. समय के साथ गांधी आश्रम ने खुद को नए रंग-रूप में ढाल लिया है. यहां खादी अब सिर्फ परंपरा की निशानी नहीं, बल्कि फैशन, स्वास्थ्य और आत्मनिर्भरता का संगम बन चुकी है. यही वजह है कि युवा पीढ़ी भी अब खादी और हर्बल उत्पादों की ओर आकर्षित हो रही है. आजादी की लड़ाई के दाैरान राष्टपिता महात्मा गांधी नैनीताल पहुंचे थे. जहां उन्हाेंने देश की आजादी के लिए कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्रों के लोगाें में स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर जोश भरा था. महात्मा गांधी के नैनीताल दौरे के बाद उनके विचारों का यहां के लोगों में गहरा प्रभाव पड़ा था. साल 1929 और 1931 में महात्मा गांधी कुमाऊं की यात्रा पर आए और गांधी जी ने नैनीताल से लेकर बागेश्वर तक यात्रा कर पहाड़ के लोगों को आजादी की लड़ाई के लिये प्रेरित किया. वरिष्ठ पत्रकार बताते है कि आजादी की लड़ाई के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को जब भी शारीरिक और मानसिक अस्वस्थता ने घेरा, उन्होंने कुमाऊं की शांत वादियों का रूख किया. पहली बार कुमाऊं की धरती पर गांधी जी के कदम 14 जून को पड़े थे और 15 जून को नैनीताल को उनके इस्तकबाल का सौभाग्य मिला था. 11 जून 1929 को महात्मा गांधी अहमदाबाद से हल्द्वानी को रवाना हुए. 14 जून को हल्द्वानी पहुंचने के बाद उसी दिन महात्मा गांधी काठगोदाम-नैनीताल मार्ग पर स्थित ताकुला गांव पहुंचे. महात्मा गांधी को ताकुला गांव बेहद पसंद आया और उन्होंने यहां एक गांधी आश्रम की नींव रखी. 15 जून को महात्मा गांधी नैनीताल पहुंचे और यहां उन्होंने लोगों को आजादी की लड़ाई के लिये प्ररित किया. यह सिलसिला भवाली, रानीखेत, अल्मोड़ा और बागेश्वर तक जारी रहा. दूसरी बार महात्मा गांधी 1931 में पुनः कुमाऊं के दौरे पर पहुंचे और ताकुला स्थित गांधी आश्रम में कुछ दिन तक रहे. गांधी की कुमाऊं यात्रा ने यहां के लोगों को आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए नई चेतना दी. महात्मा गांधी की कुमाऊं यात्रा के बाद यहां के लोग आजादी की लड़ाई में बढ-चढ़ कर भाग लेने लगे. इतिहासकार बताते हैं कि साल 1929 में ताकुला का गांधी मंदिर की बुनियाद खुद महात्मा गांधी ने रखी थी. इतना ही नहीं महात्मा गांधी ने इसके बनने के बाद प्रवास भी किया था. यह गांधी जी का अपनी तरह का देश का इकलौता ऐसा स्थल है जहां गांधी मंदिर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ऐसी यादें हैं, जिनसे युवा पीढ़ी प्रेरणा ले सकती है. दूसरी बार गांधी जी 1931 में दोबारा कुमाऊं के दौरे पर पहुंचे और ताकुला स्थित गांधी आश्रम में कुछ दिन तक रहे. गांधी जी की कुमाऊं यात्रा ने यहां के लोगों को आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए जान फूंकी थी *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*












