• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar

हिमालय दिवस भारत के लिए क्या है इसका सांस्कृतिक व धार्मिक महत्व: डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

09/09/24
in उत्तराखंड
Reading Time: 1min read
0
SHARES
42
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

ब्यूरो रिपोर्ट। हिमालय पर्वत का निर्माण कब व कैसे हुआ हिमालय पर्वत का निर्माण एक अद्वितीय भूगोलीय रहस्य, हिमालय पर्वत, जिसे गिरिराज हिमालय भी कहा जाता है, विश्व के सबसे महत्वपूर्ण और ऊँचे पर्वतों में से एक है। हिमालय का निर्माण लाखों वर्षों के समय स्पष्ट रूप से हुआ है और इसकी उत्पत्ति में पृथ्वी के विभिन्न प्रक्रियाओं ने एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसका निर्माण पथशाला में ज्वारमुक्त, भूकम्प, और अन्य प्राकृतिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप हुआ है। हिमालय ने अपने ऊँचाई, सुंदरता, और ऐतिहासिक महत्व के साथ अपने प्रशंसकों को मोहित करने में सफलता प्राप्त की है, और इसका निर्माण भौतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से एक अद्वितीय सफलता कहा जा सकता है। हिमालय पर्वत बहुत ही पुराना है , इन पर्वतों पर अनेक ऋषि मुनियों ने तपस्या भी किया हुआ है। धार्मिक परम्पराओं के अनुसार इस पर्वत श्रृंखला में सबसे ऊँचा कैलाश पर्वत भी है, जहाँ शंकर भगवान भोलेनाथ का स्थान है। हिमालय पर्वत पर अनेकों प्रकार के पेड़ पौधें हैं जिनमे अनेकों जड़ी बूटियां प्राप्त होती है। यहाँ के पेड़ पौधे हमेशा हरे-भरे रहते हैं। हिमालय पर्वत, जिसे “हिम” और “आलय” का संयोजन करके मिलाकर “हिमालय” कहा जाता है, एक भूगोलीय रहस्य है जिसे बड़ी ही सुंदरता और भौतिकीय साहस से संबंधित किया जाता है। इस पर्वतमाला का निर्माण कैसे हुआ और इसकी उत्पत्ति का क्या कारण है, इसे समझना हमें एक यात्रा पर ले जाता है, जो सैकड़ों लाखों वर्षों से चल रही है। हिमालय पर्वत, भारतीय उपमहाद्वीप के सीमांतर भू-स्थल पर स्थित, विश्व का सबसे ऊचा और सबसे बड़ा पर्वतमाला है। इस पर्वतमाला का निर्माण विभिन्न युगों में हुआ है और इसकी उत्पत्ति और विकास में कई प्राकृतिक प्रक्रियाएं शामिल हैंहर साल हिमालय दिवस मनाया जाता है, जिसे हिमालय दिवस के नाम से भी जाना जाता है. यह हिमालय की पारिस्थितिकी और क्षेत्र के संरक्षण के लिए मनाया जाता है. हिमालय वन्यजीवों के संरक्षण और देश को खराब मौसम की स्थिति से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. हिमालय, जिसे अक्सर ‘धरती का स्वर्ग’ कहा जाता है, भारत की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत में बहुत महत्व रखता है. यह पर्वत श्रृंखला भूगोल के साथ-साथ जीव विज्ञान और संस्कृति में भी महत्व रखती है. हिमालय पर्वतमाला पश्चिम-उत्तरपश्चिम से पूर्व-दक्षिणपूर्व तक 2400 किलोमीटर तक फैली हुई है, जिसके पश्चिम में नंगा पर्वत और पूर्व में नमचा बरवा इसके आधार हैं. उत्तरी हिमालय कराकोरम और हिंदू कुश पर्वतों से घिरा हुआ है. सिंधु-त्सांगपो सिवनी एक सीमा के रूप में कार्य करती है, जो 50 से 60 किलोमीटर चौड़ी है, जो इसे उत्तरी दिशा में तिब्बती पठार से अलग करती है. हिमालय दक्षिण में इंडो-गंगा के मैदान के विपरीत स्थित है. हिमालय पश्चिम में 350 किलोमीटर चौड़ा और पूर्व में 150 किलोमीटर चौड़ा है. हिमालय न केवल भारत बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा के रूप में कार्य करता है. यह पर्वत श्रृंखला भारत की प्रमुख नदियों-गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र-का उद्गम स्थल है, जो लाखों लोगों के जीवन के लिए आवश्यक हैं. हिमालय में ग्लेशियर नदियों को पानी प्रदान करते हैं, जिससे उन्हें ‘जल संरक्षण का स्रोत’ उपनाम मिला है. अपने भौगोलिक महत्व से परे, हिमालय एक अद्वितीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्य रखता है. बद्रीनाथ, केदारनाथ, अमरनाथ और कैलाश मानसरोवर जैसे तीर्थस्थल हिंदू धर्म में पवित्र स्थलों के रूप में प्रतिष्ठित हैं. इसके अतिरिक्त, हिमालय पौधों और जानवरों की कई प्रजातियों का घर है, जिनमें से कई वैज्ञानिक और औषधीय महत्व के हैं. हिमालय सुंदर है, लेकिन जलवायु परिवर्तन, बर्फ पिघलने, अवैध खनन, पेड़ों की कटाई और बहुत अधिक शहरीकरण जैसी बड़ी समस्याओं का सामना कर रहा है. ये मुद्दे पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बर्फ के पैटर्न को बदल रहे हैं, ग्लेशियरों को कम कर रहे हैं, नदी के पानी को प्रभावित कर रहे हैं, बाढ़ और सूखे का कारण बन रहे हैं, वन्यजीवों को नुकसान पहुँचा रहे हैं और बहुत अधिक पर्यटन के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव डाल रहे हैं. इस दिन को मनाने का एक मुख्य उद्देश्य हिमालय के महत्व को पहचानना और उसे संरक्षित करने के लिए हर संभव प्रयास करना है. इस प्रयास में न केवल सरकार और गैर-सरकारी संगठन शामिल हैं, बल्कि हिमालय के संरक्षण में स्थानीय समुदाय भी शामिल हैं. हिमालय के संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों में पेड़ लगाना, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के प्रयास, टिकाऊ पर्यटन को बढ़ावा देना और स्थानीय समुदायों के साथ साझेदारी में रणनीति विकसित करना शामिल है. हिमालयी क्षेत्र के प्राकृतिक पर्यावरण को संरक्षित करने के लक्ष्य के साथ भारत सरकार द्वारा कई पहल भी लागू की जा रही हैं. पिथौरागढ़ स्थित विश्व विख्यात ओम पर्वत से जब जुलाई महीने के अंत में विशालकाय ’ओम’ की आकृति लुप्त होने लगी तो सनातन धर्मावलम्बियों का विचलित होना स्वाभाविक ही था। यह दिव्य आकृति अगस्त के मध्य तक पूरी तरह गायब हो गयी। धर्मावलम्बी इसे दैवी प्रकोप और अनिष्ट का संकेत मानने लगे। लेकिन पर्यावरणविदों की असली चिन्ता तो जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों को लेकर है जो ओम पर्वत पर साफ नजर आ रहे हैं। बाद में पुनः हिमपात से ‘ओम’ की आकृति फिर प्रकट हो गयी, लेकिन पुनः बर्फ का दिखाई देना चिन्ता मुक्त होने के लिये काफी नहीं है। क्योंकि प्रकृति द्वारा बर्फ से उकेरी गयी ‘ओम’ आकृति हिमाच्छादित रहने वाले पहाड़ों से बर्फ पिघलने और ग्लेशियरों के सिकुड़ने की गति बढ़ने का संकेत दे ही गयी। इस पर्वत की ऊंचाई समुद्रतल से 5,590 मीटर है और हिमालय पर 5 हजार मीटर से ऊपर का क्षेत्र क्रायोस्फीयर में शामिल है जो स्थाई रूप से हिमाच्छादित रहता है। ओम पर्वत के साथ ही विख्यात नन्दादेवी और पंचाचूली जैसी चोटियां भी मध्य अगस्त में सफेद की जगह काली नजर आने लगी थीं। बाद में पुनः हिमपात से ‘ओम’ की आकृति फिर प्रकट हो गयी, लेकिन पुनः बर्फ का दिखाई देना चिन्ता मुक्त होने के लिये काफी नहीं है। क्योंकि प्रकृति द्वारा बर्फ से उकेरी गयी ‘ओम’ आकृति हिमाच्छादित रहने वाले पहाड़ों से बर्फ पिघलने और ग्लेशियरों के सिकुड़ने की गति बढ़ने का संकेत दे ही गयी। इस पर्वत की ऊंचाई समुद्रतल से 5,590 मीटर है और हिमालय पर 5 हजार मीटर से ऊपर का क्षेत्र क्रायोस्फीयर में शामिल है जो स्थाई रूप से हिमाच्छादित रहता है। ओम पर्वत के साथ ही विख्यात नन्दादेवी और पंचाचूली जैसी चोटियां भी मध्य अगस्त में सफेद की जगह काली नजर आने लगी थीं। पद्मभूषण चण्डी प्रसाद भट्ट ग्लेशियरों के पीछे हटने के लिये ग्लोबल वार्मिंग से अधिक लोकल वार्मिंग को जिम्मेदार मानते हैं। भट्ट का कहना है कि आस्था के नाम पर हिमालयी मंदिरों में जो अपार भीड़ उमड़ रही है जिससे हिमालयी पारितंत्र प्रभावित हो रहा है। इस साल अब तक 4 लाख से अधिक वाहनऔर33 लाख से अधिक यात्री उत्तराखण्ड के चार धामों तक पहुंच गये हैं जबकि अभी 3 और महीने यात्रा बाकी है। कुछ सालों पहले तक कम यात्री और वाहन बदरीनाथ-केदारनाथ पहुंचते थे। लाखों वाहनों का सीधे सतोपंथ और गंगोत्री जैसे पीछे खिसक रहे ग्लेशियरों के पास पहुंचने से कई गुना अधिक लोकल वार्मिंग बढ़ रहा है।

भट्ट इस गंभीर समस्या के समाधान के लिये हिमालय से संबंधित भारत, नेपाल, चीन, पाकिस्तान और भूटान का एक साझा प्राधिकरण बनाने का सुझाव देते हुये कहते हैं कि हिमालय संबंधी मुद्दों को अकेले या बिखरे प्रयासों की नहीं बल्कि समग्र और साझा प्रयासों की जरूरत है। हिमालय दिवस सांस्कृतिक, धार्मिक और महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन के रूप में हिमालय के महत्व को उजागर करता है. यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए इन पहाड़ों को संरक्षित करने के लिए सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देता है. यह दिन हमें अपने पर्यावरण के प्रति सचेत रहने और अपने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करता है. यह न केवल पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वालों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के महत्व के बारे में एक वैश्विक संदेश भी देता है. प्राकृतिक स्रोतों और नदियों को बचाने के लिए जो क्षेत्र सूखे पड़े हैं, उन क्षेत्रों को जल संग्रहण में तब्दील कर देना चाहिए. क्योंकि जब पानी आएगा तो तमाम वनस्पतियां उगेंगी. जल संग्रहण करने से बाढ़ की स्थिति पर भी थोड़ा लगाम लग सकेगा. जब तक राज्य पूरी तरह से वनाच्छादित नहीं होगा, तब तक अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएंगे. लिहाजा, हिमालय दिवस पर इन्ही सब विषयों पर बातचीत की जाती है. वर्तमान समय में इकोनॉमी और इकोलॉजी पर बहस चल रही है. लेकिन स्थितियां हैं कि दोनों को एक साथ लेकर चलने की जरूरत है. उत्तराखंड राज्य हिमालय क्षेत्र है. ऐसे में ढांचागत विकास एक बड़ी चुनौती है. यही वजह है कि हिमालय दिवस 2024 को मनाने के लिए ‘हिमालय का विकास दशा और दिशा’ थीम रखी गई है. उत्तराखंड राज्य में विकास को मना नहीं किया जा सकता. लेकिन हमें किन चुनौतियों को समझते हुए आगे बढ़ाना है? वो सबसे महत्वपूर्ण है. ऐसे में विकास की शैली क्या होनी चाहिए? उस पर बात करने की जरूरत है.संरक्षण के साथ-साथ  उनके पारिस्थितिक तंत्र को भी संरक्षण दिया जाए। इन पंक्तियों के माध्यम से कहना प्रारम्भ कर दिया था–

‘‘हुआ देश की खातिर, जनम है हमारा

कि कवि हैं, तड़पना करम है हमारा

कि कमजोर पाकर मिटा दे न कोई

इसी से जगाना धरम है हमारा

कि मानें न मानें, हमें आप अपना

सितम से हैं नाते हमारे पुराने

नई रोशनी को मिले राह कैसे

नजर है नई तो, नजारे पुराने ।’’

हिमालय क्षेत्र मेंप्रतिवर्ष प्राकृतिक जल स्रोतों का जलस्तर घट रहा है, कई वन्य जीव–जंतु एवं वनस्पतियां विलुप्त हो रही हैं, भौगोलिक परिस्थितियों में बदलाव आ रहा है, भूस्खलन और बाढ़ जैसी घटनाओं का बढ़ना। यह सब संकेत है, हिमालय के संकट में होने का।हिमालय का संकट में होना मानव जीवन के लिए खतरे का संकेत है। हिमालय संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है। हिमालय हमारा भविष्य एवं विरासत दोनों है।

ShareSendTweet
Previous Post

राजधानी देहहरादून आबादी का और बोझ उठाने की स्थिति में नहीं है: डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

Next Post

बड़ी खबर: पहाड़ी से मलवा आने से यात्रियों की दबने की सूचना

Related Posts

उत्तराखंड

हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी-कटारमल, अल्मोड़ा में डॉ. आई.डी. भट्ट ने कार्यकारी निदेशक (प्रभारी) के रूप में पदभार ग्रहण किया

July 7, 2025
14
उत्तराखंड

देशभक्ति का जुनून ऐसा कि पीयू के पूरे पेपर में लिख आए थे जय भारत

July 7, 2025
3
उत्तराखंड

फूलों की घाटी’ का दरवाजा प्लास्टिक प्रतिबंधित

July 7, 2025
5
उत्तराखंड

आयुर्वेद विश्वविद्यालय में चार माह से अवरुद्ध वेतन जारी करने की मांग

July 7, 2025
15
उत्तराखंड

एयरपोर्ट टेंडर घोटाला: 7.50 करोड़ की राशि हड़पने पर हाईकोर्ट से स्टे, पीड़ित ने लगाए गंभीर आरोप

July 7, 2025
7
उत्तराखंड

मुख्यमंत्री ने केंद्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री से भेंट कर राज्य में कृषि से सम्बधित विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन में विशेष सहयोग का किया अनुरोध

July 7, 2025
6

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    0 shares
    Share 0 Tweet 0

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी-कटारमल, अल्मोड़ा में डॉ. आई.डी. भट्ट ने कार्यकारी निदेशक (प्रभारी) के रूप में पदभार ग्रहण किया

July 7, 2025

देशभक्ति का जुनून ऐसा कि पीयू के पूरे पेपर में लिख आए थे जय भारत

July 7, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.