ब्यूरो रिपोर्ट। उत्तराखंड के गठन से लेकर अबतक स्वास्थ्य सेवाएं सुधर नहीं पाई है जिसका बड़ा नुकसान उत्तराखंड की जनता को हुआ है. पहला नुकसान ये कि गंभीर बीमारी और दुर्घटना की स्थिति में तुरंत सही इलाज न मिलने से लोगों की जानें जाने का सिलसिला आज भी जारी है. इसके अलावा अच्छे इलाज और सुविधाओं की कमी की वजह से लोग गांव छोड़कर शहरों, कस्बों में आने को मजबूर हो गए हैं और सीमांत गांव घोस्ट विलेज बनते जा रहे हैं. ऐसे में स्वास्थ्य विभाग के सामने लोगों को अच्छे और सस्ते इलाज का भरोसा दिलाने की चुनौती तो है ही. इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड्स लागू होने से उत्तराखंड में तमाम सरकारी अस्पतालों को मर्ज कर दिया जाएगा. महिला और बेस अस्पतालों भी एक हो जाएंगे इसलिए ज़िलों में अब ज़िला अस्पताल और उप-ज़िला अस्पताल है होंगे.कुल मिलाकर राज्य में अब कुल 13 डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल, 21 सब डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल, 80 कम्युनिटी हेल्थ सेंटर (CHC), 52 प्राइमरी हेल्थ सेंटर (PHC) टाइप-बी, 526 प्राइमरी हेल्थ सेंटर (PHC) है हेल्थ सेक्टर में सुधार के लिए भारत सरकार तमाम योजनाएं चलाती है लेकिन कई बार उन योजनाओं का फायदा उसी सूरत में मिल पाता है जबकि राज्य में इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड्स लागू हों. IPHS के मुताबिक ही बजट आवंटित किया जाता है.उत्तराखंड में अब तक सरकारी अस्पताल इन मानकों के हिसाब से नहीं थे जिसकी वजह से कई बार उत्तराखंड को बजट नहीं मिल पाता था. इसी चिंता को देखते हुए कुछ वक्त पहले कैबिनेट ने IPHS मानक लागू करने को मंज़ूरी दी थी जिस पर शासनादेश जारी हो गया है. देश में दिन ब दिन सरकारी अस्पतालों की हालत खराब होती जा रही है। सरकार की तरफ से अस्पताल को लेकर एक रिपोर्ट सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक देश के 80% सरकारी अस्पतालों ऐसे हैं, जिनमें बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं। अस्पतालों, उप-जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और आयुष्मान आरोग्य मंदिर (तत्कालीन उप स्वास्थ्य केंद्रों) सहित दो लाख से अधिक सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं हैं, जो सरकार की एक प्रमुख योजना एनएचएम के अंतर्गत आती हैं। बता दें कि NHM के तहत आने वाले 2 लाख से ज्यादा अस्पतालों में से केवल 40,451 अस्पतालों ने ही सरकार को अपनी जानकारी दी है।अल्मोड़ा, बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिले में लोगों की दिल की धड़कन सुनने के लिए वहां के अस्पतालों में कोई हृदय रोग विशेषज्ञ नहीं है। कहीं पद ही सृजित नहीं है। कहीं पद सृजित है तो तैनाती नहीं है और कहीं इस पद को समाप्त कर भविष्य में तैनाती की उम्मीद भी खत्म कर दी गई है।अल्मोड़ा और बागेश्वर जिले में कहीं भी कार्डियोलॉजिस्ट नहीं हैं।अल्मोड़ा के मेडिकल कॉलेज और सरकारी अस्पतालों में एक भी हृदय रोग विशेषज्ञ की तैनाती नहीं हो सकी है। जिले में हृदय रोगियों को इलाज के लिए महानगरों की दौड़ लगानी पड़ रही है। अल्मोड़ा में सरकारी और निजी अस्पताल की ओपीडी में आने वाले 400 मरीजों में से 100 से 120 दिल के मरीज होते हैं।अल्मोड़ा के सीएमओ ने बताया कि जिले के अस्पतालों में कार्डियोलॉजिस्ट का पद सृजित ही नहीं है। पद सृजित कराने के लिए शासन को समय-समय पर प्रस्ताव भेजा जाता है। बागेश्वर जिला अस्पताल में हृदय रोग विशेषज्ञ का पद सृजित तो है लेकिन विशेषज्ञ चिकित्सक न होने से पद रिक्त है। लोगों को हृदय संबंधी बीमारियों का इलाज कराने के लिए हल्द्वानी, दिल्ली या दून की दौड़ लगानी पड़ती है।सीएमओ ने बताया कि हार्ट विशेषज्ञ के पद भरने के लिए एंजियोग्राफी लैब होनी जरूरी होती है। लैब नहीं होने के कारण पद रिक्त है। हृदय रोग के बारे में सामान्य जानकारी फिजिशियन ही जांच कर बता देते हैं जिसके बाद मरीजों को हृदय रोग विशेषज्ञ से जांच कराने की सलाह दी जाती है।उधर, पिथौरागढ़ में आईपीएचएस (इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड) के मानकों में बदलाव के चलते कार्डियोलॉजिस्ट का पद ही खत्म है कर दिया गया । इससे सीमांत जिले में दिल के डॉक्टर की तैनाती का रास्ता पूरी तरह बंद हो गया है। पिथौरागढ़ के सीएमओ के मुताबिक आईपीएचएस के मानकों के अनुसार पिथौरागढ़ जिला अस्पताल में कार्डियोलॉजिस्ट का पद समाप्त हुआ है। पद सृजित होने के बाद ही दिल के डॉक्टर की तैनाती संभव है। वहीं मेडिकल कॉलेज पिथौरागढ़ के प्राचार्य ने कहा कि बेस अस्पताल में कार्डियोलॉजिस्ट का पद सृजित नहीं है। ऐसे में यहां इनकी तैनाती नहीं हो सकती। पद सृजित होने पर यह संभव है। हृदय रोगियों को इलाज के लिए महानगरों की दौड़ लगानी पड़ रही है