उत्तराखंड। देश में लोकसभा चुनाव 2024 का प्रथम चरण समाप्त हो चुका है। देश के 21 राज्यों में 102 लोकसभा सीट पर मतदान हुआ है। जिसमें उत्तराखंड सहित 10 हिमालयी राज्य भी शामिल थे। उत्तराखंड लगभग 56% मतदान के साथ सबसे कम संख्या में मतदान वाला राज्य रहा। जो राज्य सरकार व चुनाव आयोग की उम्मीद और दावो पर खरा नहीं उतरा, कम मतदान को लेकर राजनीतिक विशेषज्ञों के विश्लेषण के आधार पर कई कारण सामने आए हैं।
जिसमें प्रमुख कारण रहा स्थानीय मुद्दे सरकार द्वारा जिनके अनदेखी के चलते हैं उत्तराखंड राज्य के कई जगहों पर बड़ी संख्या में चुनाव बहिष्कार किया गया। जहां चकराता विधानसभा के 12 गांव के ग्रामीणों ने तीन दशक से अधिक समय से पक्की सड़क की मांग को लेकर चुनाव बहिष्कार किया ऐसा ही एक मामला पुरोला विधानसभा क्षेत्र का सामने आया है जहां बड़कोट तहसील अंतर्गत कई ग्राम पंचायतों ने लगभग 10-15 वर्षों से सड़क की मांग पूरी न होने के चलते चुनाव बहिष्कार किया। तो वही और भी कई ऐसे मुद्दे हैं जिसके चलते बड़ी संख्या में उत्तराखंड में ग्रामीणों द्वारा चुनाव बहिष्कार किया गया। यह चुनाव बहिष्कार सरकारों के विकास के दावो की पोल खोल रहा है यह मांग कोई एक सप्ताह, एक महीना, एक वर्ष की नहीं बल्कि पिछले दो दशकों से हैं और इस दौरान केंद्र और राज्य में दोनों ही प्रमुख पार्टियों की सरकार रही है। जो चुनाव के दौरान जनता के बीच जाकर अपने-अपने विकास के दावे करती है। और ग्रामीणों द्वारा यह चुनाव बहिष्कार उनके विकास के दावों की पोल खोलते हुए उन्हें आईना दिखा रहा है। वही ग्राम पंचायत खांसी के अंतर्गत एक छोटा कस्बा दोनि गांव विगत कई वर्षों से राजस्व ग्राम की मांग कर रहा है जो की सरकार द्वारा संचालित की गई योजनाओं से वंचित है और मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है जिसके चलते ग्रामीणों ने पूर्ण रूप से लोकसभा चुनाव का बहिष्कार किया। लोकतंत्र में चुनाव बहिष्कार एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है क्योंकि चुनाव बहिष्कार का सीधा मतलब लोकतंत्र पर विश्वास कम हो जाना है। आखिर कब वो दिन आएगा जब देश में हर चुनाव जाति धर्म से ऊपर उठकर विकास के मुद्दों पर लड़ा जाएगा और जनता सरकारों के काम से खुश होकर 100% मतदान करेगी। वर्तमान स्थिति देखकर तो ऐसा नहीं लगता नहीं लगता लेकिन भविष्य की संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता क्योंकि उम्मीद पर तो दुनिया कायम है।