देहरादून। श्रीदेव सुमन का जन्म 25 मई 1916 को टिहरी के जौल गांव में हुआ था. ब्रिटिश हुकूमत और टिहरी की अलोकतांत्रिक राजशाही के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे श्रीदेव सुमन को दिसंबर 1943 को टिहरी की जेल में डाल दिया गया था. जिसके बाद उन्होंने भूख हड़ताल करने का फैसला किया. 209 दिनों तक जेल में रहने और 84 दिनों के भूख हड़ताल के बाद श्रीदेव सुमन का 25 जुलाई 1944 को निधन हो गया। श्रीदेव सुमन का मूल नाम श्रीदत्त बडोनी था. उनके पिता का नाम हरिराम बडोनी और माता का नाम तारा देवी था. उन्होंने मार्च 1936 गढदेश सेवा संघ की स्थापना की थी. जबकि, जून 1937 में ‘सुमन सौरभ’ कविता संग्रह प्रकाशित किया. वहीं, जनवरी 1939 में देहरादून में प्रजामंडल के संस्थापक सचिव चुने गए. मई 1940 में टिहरी रियासत ने उनके भाषण पर प्रतिबंध लगा दिया.वहीं, श्रीदेव सुमन को मई 1941 में रियासत से निष्कासित कर दिया गया. उन्हें जुलाई 1941 में टिहरी में पहली बार गिरफ्तार किया गया. जबकि, उनकी अगस्त 1942 में टिहरी में ही दूसरी बार गिरफ्तारी हुई. नवंबर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान आगरा सेंट्रल जेल में बंद रहे. उन्हें नवंबर 1943 में आगरा सेंट्रल जेल से रिहा किया गया. वहीं, दिसंबर 1943 में श्रीदेव सुमन को टिहरी में तीसरी बार गिरफ्तार किया गया. फरवरी 1944 में टिहरी जेल में सजा सुनाई गई. 3 मई 1944 से टिहरी जेल में अनशन शुरू किया. जहां 84 दिन की ऐतिहासिक अनशन के बाद 25 जुलाई 1944 में 29 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए. इस दौरान उनकी रोटियों में कांच कूटकर डाला गया और उन्हें वो कांच की रोटियां खाने को मजबूर किया गया.श्रीदेव सुमन पर कई प्रकार से अत्याचार होते रहे, झूठे गवाहों के आधार पर उन पर मुकदमा दायर किया गया. हालांकि, टिहरी रियासत को अंग्रेज कभी भी अपना गुलाम नहीं बना पाए थे. जेल में रहकर श्रीदेव सुमन कमजोर नहीं पड़े. जनक्रांति के नायक अमर शहीद श्रीदेव सुमन महान क्रांतिकारी श्रीदेव सुमन के परिजनों ने आज भी उनकी जुड़ी वस्तुओं को संजोकर रखा है. राजशाही की पुलिस का डंडा श्रीदेव सुमन के परिजनों ने अभी तक संजोकर रखा है. बता दें कि श्रीदेव सुमन सबसे बड़े आंदोलनकारी रहे हैं. टिहरी राजशाही के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले श्रीदेव सुमन के घर पर उनका सामान आज भी सुरक्षित है.श्रीदेव सुमन को देखते ही पुलिस के एक जवान ने उनके ऊपर जोर से डंडा फेंका था. श्रीदेव सुमन तो भाग गए, लेकिन डंडा एक झाड़ी में उलझ गया. जो डंडा झाड़ी में अटक गया था, उसे श्रीदेव सुमन की मां ने अपने पास छुपा दिया था. राजशाही की पुलिस ने सुमन की मां से डंडा वापस मांगा और धमकी भी दी, लेकिन श्रीदेव सुमन की मां ने डंडा वापस नहीं दिया.इसके बाद राजशाही की पुलिस टिहरी वापस चली गई. वहीं, श्रीदेव सुमन के भाई के बेटे मस्तराम बडोनी की मानें तो श्रीदेव सुमन से जुड़ी यादें पलंग, डेस्क और पुलिस का डंडा आज भी उनके पास सुरक्षित है. जिन्हें वे अपने पितरों की निशानी समझते हैं. जिन्हें वे अपने पितरों की निशानी समझते हैं. उन्होंने कहा कि यहां पर श्रीदेव सुमन की जयंती और बलिदान दिवस पर कई नेता मुख्यमंत्री आए और इन वस्तुओं को संजोकर रखने के वादे किए. आज तक किसी ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया. वहीं झूठे आश्ववासनों से परिजन आजिज आ चुके हैं और उनमें रोष भी है. वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय नेता थे। उन्होंने न केवल अंग्रेजों का विरोध किया बल्कि टिहरी रियासत के गढ़वाल राजा का भी विरोध किया। उनकी पूरी राजनीति महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्य के सिद्धांत से प्रभावित थी।भारतीय देशी राज्य परिषद का अधिवेशन पंडित जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में लुधियाना में सम्पन्न हुआ। श्रीदेव सुमन ने टिहरी राज्य प्रजामण्डल के प्रतिनिधि के रूप में इस अधिवेशन में बढ़.चढ़कर भाग लिया। अप्रैल 1940 में श्रीदेव सुमन रामगढ़ कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के पश्चात देहरादून पहुंचे। इसके बाद टिहरी रियासत में प्रवेश किया और पुनः रियायत की जनविरोधी नीतियों के विरोध में जनता को जागृत किया। उन्होंने टिहरी के राजा बोलंदा बद्रीनाथ से पूरी आजादी की मांग की थी। जिससे नाराज होकर राजा ने उन्हें विद्रोही घोषित कर दिया तथा पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 11 नवम्बर 1943 को आगरा जेल से रिहा होने के बाद वे अपनी कार्यस्थली टिहरी जाने लगे। कई लोगों ने उन्हें टिहरी रियासत में प्रवेश न करने की सलाह दी। क्योंकि वहां से वे किसी भी समय पकडे़ जा सकते थे। सुमन ने कहा, मेरा कार्य क्षेत्र टिहरी है और जनता के अधिकारों के लिये टिहरी के सामन्तवाद के विरोध में लड़ना मेरा पुनीत कर्तव्य है। टिहरी नरेश ने इस बीच सूमन जी को कई प्रलोभन दिये, लेकिन वे राजा के समक्ष नहीं झुके और टिहरी रियासत की जन विरोधी राज.सत्ता को उखाड़ने के लिये उन्होंने अपना आन्दोलन और तेज कर दिया।आन्दोलन भरे जीवन के मध्यान्त में उन्हें 30 दिसम्बर 1943 को चम्बा में पकड़ कर टिहरी जेल भेज दिया गया। रियासत की जेल में दर्दनाक यातनायें दी गई। उन पर राजद्रोह का झूठा मुकदमा चलाया गया। सुमन जी ने अपने मुकदमे की खुद पैरवी की और कहा. मेरे विरूद्ध जो गवाह पेश किये गये वे कतई बनावटी और बदले की भावना से प्रेरित हैं। मैं इस बात को स्वीकारता हूं कि मैं जहां अपने देश की पूर्ण स्वाधीनता के घेरे में विश्वास करता हूं। वहीं टिहरी रियासत में मेरा प्रजामण्डल का उददेश्य वैध व शान्तिपूर्ण तरीके से महाराज की छत्रछाया में उत्तरदाई शासन प्राप्त करना है। सेवा के माध्यम से राज्य की सामाजिक, आर्थिक और सब तरह की उन्नति करना है। मैं प्राण रहते हुये इस राज्य के सार्वजनिक जाीवन का अन्त नहीं होने दूंगा। जहां पर उन्हें काफी प्रताड़ना दी गई। उन्हें इस तरह का खाना दिया जाता था जो खाने लायक नहीं होता था। जिससे तंग आकर उन्होंने अनशन शुरू कर दिया। इन्होंने 84 दिन तक लगातार अनशन किया जिसके बाद 25 जुलाई 1944 को उनकी मौत हो गई। इनकी धर्म पत्नी विनय लक्ष्मी सुमन टिहरी गढ़वाल से उत्तर प्रदेश में विधायक रही। महान क्रांतिकारी श्रीदेव सुमन के परिजनों ने आज भी उनकी याद में उनसे जुड़ी वस्तुओं को संजोकर रखा है। टिहरी राजशाही के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले श्रीदेव सुमन के घर पर उनका सामान आज भी सुरक्षित है। वहीं श्रीदेव सुमन के भाई के पुत्र मस्तराम बड़ोनी ने बताया कि श्रीदेव सुमन से जुड़ी यादें पलंग, डेस्क और पुलिस का डंडा आज भी उनके पास सुरक्षित है। जिन्हें वे अपने पितरों की निशानी समझते हैं। उन्होंने कहा कि यहां पर श्रीदेव सुमन की जयंती और बलिदान दिवस पर कई नेता मुख्यमंत्री आए और इन वस्तुओं को संजोकर रखने के वादे किए। आज तक किसी ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। अमर शहीद श्रीदेव सुमन जैसे क्रान्तिकारी बहुत कम हुए, जिन्होंने एक ओर विदेशी शासन से भारत मां को मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष किया और दूसरी ओर सामन्तशाही व राजशाही के अत्याचारों से पीड़ित और शोषित प्रजा को सामन्तवाद से छुटकारा दिलाने के लिए अपना जीवन दांव पर लगा दिया। समाज के अधिकारों की रक्षा और मानवता की अस्मिता बचाने के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिया। आपने हिंदी पत्र बोध का बाल्यावस्था में ही लेखन कर दिया ।उसके बाद साहित्य में “विशारद “और “साहित्य रत्न” की डिग्रियां प्राप्त की। 1937 में आपका पहला काव्य संग्रह “सुमन सौरभ “प्रकाशित हुआ और इसी वर्ष शिमला में राष्ट्रीय साहित्य सम्मेलन में श्री देव सुमन ने भागीदारी की ।लेकिन इस साहित्यकार के भीतर जन संघर्षों का नायक भी छिपा था । वह जून 1930 दिल्ली में गढ- देश सेवा संघ की स्थापना कर चुके थै जो बाद में राष्ट्रीय स्तर पर हिमालयी राज्यों का मंच “हिमालय सेवा संघ” में तब्दील हुआ, एक व्यापक दृष्टि के नायक के रूप में आपने लुधियाना में ‘ देसी राज्यो की लोक परिषद ” के राष्ट्रीय सम्मेलन में भागीदारी की और कार्यकारिणी में विशेष आमंत्रित सदस्य हुए , यहां से आप जवाहरलाल नेहरू के संपर्क में आए ।श्री देव सुमन ने मई 1938 में श्रीनगर में आयोजित राजनीतिक सम्मेलन में प्रतिभाग कर टिहरी राज्य की दुर्दशा और दमनकारी कर व्यवस्था के विषय में जवाहरलाल नेहरू को अवगत कराया ।अब एक साहित्यकार पीछे छूट रहा था , एक जन नायक का जन्म हो रहा था । कुशल संगठन कर्ता के रूप में जनवरी 1939 में ” टिहरी राज्य प्रजामंडल ” की स्थापना सुमन द्वारा की गई । श्री देव सुमन इसके मंत्री निर्वाचित हुए , श्रीनगर, देवप्रयाग, मुनी की रेती ऋषिकेश आदि स्थानों पर श्री देव सुमन ने रियासत के कुशासन के विरुद्ध व्यापक आवाज उठाई, इनकी गतिविधियों से रियासत में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया । मई 1940 में टिहरी रियासत में प्रवेश को “रजिस्ट्रेशन ऑफ एसोसिएशन एक्ट ” के तहत प्रतिबंधित कर गिरफ्तार कर लिया गया ,वह टिहरी जेल में रहनाचाहते थे ।लेकिन असंतोष के भय से इन्हें पुलिस के सुपुर्द कर दिया गया , श्री देव सुमन रिहा हुए तो कर्मभूमि समाचार पत्र के माध्यम से टिहरी रियासत की दुर्दशा और क्रूर व्यवस्था को कर्मभूमि अखबार के माध्यम से समाज में प्रचारित प्रसारित कर जनमत तैयार किया ।टिहरी रियासत में गांव-गांव पर्चे वितरित किए , राजा ने श्री देव सुमन को ग्राम सुधार अधिकारी के सरकारी पद पर नियुक्ति का प्रलोभन दिया ,श्री देव सुमन ने इसे ठुकरा दिया ।अमर शहीद श्रीदेव सुमन जैसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व क्रान्तिकारी को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से कुछ शिक्षा ग्रहण करें और उन्हें अपने देष के अन्य स्वतंत्रता स्रंगाम सेनानियों एवं शहीदों में उचित स्थान दिलायें।, अपनी जन्मभूमि के प्रति ऐसी अपार श्रद्धा तथा बलिदान की भावना रखने वाले उत्तराखंड के इस महान् स्वतंत्रता सेनानी,अमर शहीद श्री देव सुमन जी का जीवन दर्शन और उनके क्रांतिकारी विचार वर्त्तमान संदर्भ में भी आज बहुत प्रासंगिक हो गए हैं.उत्तराखंड के इस महान् क्रांतिकारी के देशभक्तिपूर्ण जीवन मूल्यों को कभी नहीं भुलाया जा सकता.कहने को तो आज हमारा देश अंग्रेजों की राजनैतिक गुलामी से आजाद हो चुका है किंतु अवसरवादी सत्तालोलुप राजनेताओं की वजह से यहां की अधिकांश जनता और खासकर उत्तराखंड की जनता आजादी मिलने के बाद भी अपनी आजीविका, स्वास्थ्य, शिक्षा, आदि मौलिक अधिकारों से वंचित होने के कारण आज या तो बदहाली का जीवन बिता रही है अथवा पलायन के लिए विवश है. मानवाधिकारों के संकट से जूझ रहे उत्तराखंडवासियों के लिए अमर शहीद स्वंत्रता सेनानी श्री देव सुमन जी का जीवन दर्शन आज पहले से भी ज्यादा अनुकरणीय हो गया है.।लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।