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देवीधुरा के हीरा बल्लभ जोशी बने रेलवे उपक्रम डेडिकेटेड फ्रेंट कॉरिडोर कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया के नए प्रबंध निदेशक

06/08/24
in उत्तराखंड, देहरादून
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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

देहरादून। उत्तराखंड सिविल सर्विस कैडर के आईएएस, आईपीएस और आईआरएस इत्यादि का देश की विविध महत्वपूर्ण परियोजनाओ तथा प्रशासनिक स्तर पर निष्ठापूर्ण कार्य कर, देश के चहुमुखी विकास मे सदा अतुल्य योगदान दिया जाता रहा है।  इस पद पर पहुंचने वाले उत्तराखंड के पहले व्यक्ति हैं। वे मूल रूप से देवीधूरा के समीप बारी गांव के हैं जोशी बारी गांव के पंडित स्व केशव जोशी व माता दुर्गा जोशी के सुपुत्र हैं उत्तराखंड की विभूति हीरा बल्लभ जोशी की प्रारंभिक शिक्षा देवीधूरा से हुई है। 1985 में डी. एस. बी. कालेज नैनीताल से स्नातक तथा जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय, नई दिल्ली से स्नातकोत्तर व एम. फिल की उपाधि प्राप्त करने वाले हीरा बल्लभ जोशी द्वारा ‘उत्तराखंड मूवमैंट-ए सोशियोलॉजिकल अनालिसिस’ नामक ग्रंथ की रचना की है। एक स्वतन्त्र पत्रकार के रूप में राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर ज्ञानवर्धक लेख लिखे हैं। सन 1992 में संघ लोक सेवा आयोग से सिविल सर्विस (आई आर ए एस) परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी के रूप में भोपाल, मुंबई आदि अनेक स्थानों में कार्य करने के बाद नई दिल्ली नगर पालिका परिषद में निदेशक (वित्त) पद पर पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में देश के रेल मंत्रालय में शीर्ष प्रशासनिक व वित्त अधिकारी हीरा वल्लभ जोशी (IRAS) को उनकी ईमानदार छवि, कार्यों के प्रति निष्ठा व अभूतपूर्व प्रतिभा के बल पर भारत सरकार के रेलवे मंत्रालय के उपक्रम डेडीकेटेड बीवी फ्रेट कॉरिडोर कारपोरेशन ऑफ इंडिया (DFCCIL) के प्रबंध निदेशक पद पर नियुक्त किया गया है।जिन्होंने 1992 में सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी के रूप में अपनी सेवा शुरू की। बाद में वह भारत सरकार के विभिन्न जिम्मेवार पदों पर रहते हुए उन्हें आज रेलवे मंत्रालय के महत्वपूर्ण उपक्रम मेें प्रबंध निदेशक की अतिरिक्त जिम्मेदारी मिली है। जोशी को रेलवे समेत विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए राष्ट्रपति तथा अन्य संस्थाओं द्वारा भी पुरुस्कृत किया जाता रहा है। एक उच्चकोटि के लेखक जोशी ने सनातन धर्म पर कई पुस्तकें लिखी हैं। जीवन में कठोर अनुशासन, ईमानदारी, लगन एवं कार्य की प्रति समर्पित जोशी को यह संस्कार माता-पिता से मिले हैं। भारत सरकार के रेलवे मंत्रालय के उपक्रम डेडीकेटेड फ्रेंट कॉरिडोर कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया के वित्त निदेशक जोशी ने आज बतौर प्रबंध निदेशक के पद पर कार्यभार ग्रहण कर लिया है। जोशी इस पद पर पहुंचने वाले उत्तराखंड के पहले व्यक्ति हैं। वे मूल रूप से देवीधूरा के समीप बारी गांव के हैं। उनके इस पद पर पहुंचने पर मुख्यमंत्री राज्यसेतू आयोग के उपाध्यक्ष,विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, बाराही मंदिर कमेटी के मुख्य संरक्षक मंदिर के ट्रस्टी, बाराही मंदिर कमेटी के अध्यक्ष समेत चार खाम सात थोको के लोगों ने जोशी को बधाई दी है।जोशी बाराही मंदिर ट्रस्ट के पहले अध्यक्ष भी हैं। मालूम हो कि डीएफसीसीआईएल भारत सरकार के रेल मंत्रालय का एक महत्वपूर्ण उपक्रम है जो डीएफसी परियोजना की योजना, विकास और क्रियान्वयन का जिम्मेदार होता है। डीएफसी भारत की सबसे बड़ी रेल अवसंरचना परियोजना है, जिसका उद्देश्य भारत में रेल परिवहन परियोजना प्रणाली की दक्षता और क्षमता को बढ़ाना तथा माल परिवहन लागत को कम करना है। जोशी को रेलवे समेत विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए राष्ट्रपति तथा अन्य संस्थाओं द्वारा भी पुरुस्कृत किया जाता रहा है। एक उच्चकोटि के लेखक जोशी ने सनातन धर्म पर कई पुस्तकें लिखी हैं। जीवन में कठोर अनुशासन, ईमानदारी, लगन एवं कार्य की प्रति समर्पित जोशी को यह संस्कार माता-पिता से मिले हैं। यही संस्कार लगातार उन्हें ऊंचे मुकाम तक पहुंचाते रहे हैं। जोशी के एमडी बनने पर बाराही धाम देवीधुरा में लोगों ने एक दूसरे का मुंह मीठा कर खुशी का इजहार किया। उत्तराखंड चंपावत जनपद के बारी गांव में जन्मे हीरा बल्लभ जोशी के पिता पंडित स्व. केशव जोशी व माता दुर्गा देवी द्वारा अति अभावग्रस्त जीवन जी कर बेटे की शिक्षा को प्राथमिकता देकर अपना जीवन यापन किया गया है। जीवन में कठोर अनुशासन, ईमानदारी, लगन एवं समर्पण के भाव तथा संस्कार हीरा बल्लभ जोशी को अपने संस्कारवान माता-पिता से मिले हैं। उक्त समर्पण और संस्कारों के बल ही उत्तराखंड की इस विभूति को जीवन में उच्च मुकाम तक पहुंचने में मदद मिली है।हीराबल्लभ जोशी बाल्यकाल से ही ऐतिहासिक वाराही मंदिर देवीधूरा के परम भक्त व समर्पित सेवादारों में रहे हैं। जीवन की हर कठिनाई और विपदा में मां वाराही देवी की कृपा इस भक्त पर बनी रही है। मां वाराही से मिले आशिर्वाद के बल ही आज समर्थ होने पर इस भक्त द्वारा अपना जीवन वाराही धाम को समर्पित किया हुआ है। उक्त मंदिर को देश के धार्मिक मानचित्र पर लाने हेतु प्रतिबद्ध होकर कार्य किया जा रहा है। विगत कई वर्ष पूर्व इस ऐतिहासिक वाराही मन्दिर ट्रस्ट का पहला अध्यक्ष बनने का भी सौभाग्य हीरा बल्लभ जोशी को प्राप्त हुआ है। मंदिर के उत्थान हेतु कई अन्य जिम्मेदारी भी मंदिर के इस परम भक्त को सौंपी गई हैं। अंचल की पारंपरिक लोक संस्कृति व लोककला के प्रति असीम लगाव रखने वाले हीरा बल्लभ जोशी द्वारा ‘प्राकृतिक सौंदर्य को निहारती, एक देवी’ “वाराही मन्दिर देवीधूरा” (रंगीली कुमाऊं की अद्भुत झलक) नामक शीर्षक से 2006 में शोध पुस्तक की रचना कर उक्त मन्दिर के ऐतिहासिक और धार्मिक पहलुओं के साथ-साथ अंचल के धार्मिक मेलों, त्योहारों रीति-रिवाजों, लोकगीतों तथा परंपराओं पर ज्ञान वर्धक प्रकाश डाला गया है। उच्च कोटि की सोच और लेखनी का परिचय देते हुए हीरा बल्लभ जोशी द्वारा रचित अन्य पुस्तकों में सनातन धर्म, भारतीय खेल व वित्त तथा मां वाराही आदि मुख्य रही हैं। गरुण पुराण पर संकलित पुस्तक ने काफी लोकप्रियता हासिल की है।उच्च प्रतिभा के धनी हीरा बल्लभ जोशी की कामना रही है, हिमालय की लम्बी श्रंखलाओं के विहंगम व रमणीक नजारों व शांति से ओतप्रोत रमणीक स्थल पर स्थापित ऐतिहासिक वाराही मन्दिर देवीधूरा अंचल व देश का एक अलौकिक धाम बने। पूर्वजों की विरासत इस मंदिर के पाषाण स्वरूप में किसी भी प्रकार की छेड़-छाड़ किए बिना उक्त मंदिर को उत्तर भारत का एक ऐसा मन्दिर बनाने की सोच पर हीरा बल्लभ जोशी द्वारा कार्य किया जा रहा है। कार्य योजना के मुताबिक़ मंदिर के शीर्ष में श्री बद्रीनाथ मन्दिर शैली के अनुसार पत्थर लगाने की योजना बनाई गई है। मंदिर में शिल्पकला का समावेश नागर, द्रुविड, पिरामिड गुंबद व शिखर शैली के अलावा, नेपाल के पशुपति नाथ मन्दिर की शिल्प शैली के संगम के आधार पर एक ऐसा भव्य और दिव्य अलौकिक मन्दिर बनाने की है जिसमें भगवान सूर्य नारायण की पहली किरण मां बाराही का अभिषेक करती नजर आएगी। जोशी के अनुभव व सूझ-बूझ भरे कार्यों का अवलोकन कर समझा जा सकता है, कई मायनों में उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल देवीधूरा का यह मन्दिर अपनी विशिष्टता की चमक से देश-विदेश के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता नजर आयेगा। उक्त मंदिर शताब्दियों पूर्व की परंपराओं का ध्वज वाहक बनेगा। भविष्य में उत्तर भारत के लोग ही नहीं अपितु बौद्ध धर्म के लोग भी पूजा अर्चना करने के लिए इस आलौकिक धाम में आते जाते रहेंगे। इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्तकिएहैं।)लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)।

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