• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar
No Result
View All Result

पहाड़ की संवेदनाओं के कवि थे शेरदा ‘अनपढ़’

14/09/25
in उत्तराखंड, देहरादून, संस्कृति
Reading Time: 1min read
14
SHARES
17
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
शेरदा ‘अनपढ़ ने आमजन की आकांक्षाओं को बहुत सीमित साधनों में भी कितना उम्मीदों भरा बनाया है उसे उनकी सुप्रसिद्ध कविता-गीत- ‘ओ परूआ बौज्यू चप्पल कै ल्याछा यस/फटफटानी होनी चप्पल कै ल्याछा यस’ से समझा जा सकता है। अपनी बहुत छोटी जरूरतों के लिये संषर्घ करते समाज के संकटों को बहुत खूबसूरती और गहरी समझ के साथ रखने का हुनर उनमें है।13 अक्टूबर 1933 को अल्मोड़ा के माल गांव में हुआ था, शेरदा अनपढ़ थे लेकिन उसके बावजूद भी उनकी कविताओं में वह सब कुछ था जो एक कवि की कविताओं में होता है. उनकी कविताओं में पूरा पहाड़ समाया  और यहां का जीवन यहां कल दोपहर का दर्द यह सभी शेरदा अनपढ़ की कविताओं में आपको पढ़ने को मिलेगा ।शेर सिंह बिष्ट शेरदा ‘अनपढ़’ के प्रारंभिक जीवन में ही इनके पिता बच्चे सिंह का देहांत हो गया था पिता की बीमारी के इलाज के लिए घर और जमीन भी बेचनी पड़ी थी जिससे इनकी पारिवारिक आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई, पति के गुजर जाने के बाद इनकी मां लछिमा देवी लोगों के खेतों में मजदूरी कर अपने बच्चों का लालन-पालन करती थी. तत्कालीन समय में पहाड़ों में पढ़ाई लिखाई को इतना महत्व नहीं दिया जाता था जिस कारण शेरदा स्कूल पढ़ने नहीं गए. शेरदा ने कभी स्कूल का मुंह तो नहीं देखा लेकिन एक शिक्षिका ऐसी थी जिनके घर उन्होंने 5 साल की उम्र में पहली नौकरी की और उसी शिक्षिका ने उन्हें प्राथमिक शिक्षा दी इसी तरह कुछ साल बीतने के बाद शेरदा फौज में भर्ती हुए।कुमाऊंनी कविताओं के मशहूर कवि  शेरदा अनपढ़ की आज पुण्यतिथि है । शेरदा अनपढ़ ने कुमाऊनी कविताओं को सबसे पहले पहचान दिलाई थी ।शेरदा अनपढ़ की आज पुण्यतिथि है उनका जन्म शेरदा ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा लेकिन 5 साल की उम्र में उन्होंने पहली नौकरी की और जिस शिक्षिका वहां वो नौकरी करते थे उन्होंने ही उन्हें प्राथमिक शिक्षा दी और कुछ इस तरह काम करके बाद में शेरदा फौज में भर्ती हो गए ।शेरदा जब फौज में भर्ती हुए तो उन्हें ड्राइवरी का काम मिला और फौज में जब उनका तबादला ग्वालियर हुआ तो वहां उन्हें टीवी बीमारी हो गई इसके इलाज के लिए उन्हें पुणे के मिलिट्री अस्पताल में भर्ती कराया गया और 2 साल तक वहां उपचार कराने के दौरान उन्होंने 1962 में चीन की लड़ाई में घायल हुए सिपाहियों से मिलने का मौका मिला और उन सिपाहियों की हालत और उनका दर्द देख पहली बार शेरदा ने उन हालातों को कविता में पिरोया, जिसके बाद बीमारी के कारण शेर दा अल्मोड़ा लौट आए, यहां चारू चंद्र पांडे और बृजेंद्र लाल शाह के सानिध्य में शेर दा को नया आयाम मिला, जिसके बाद लखनऊ, अल्मोड़ा, नजीबाबाद, रामपुर रेडियो स्टेशनों से शेरदा के गीत और कविताओं का प्रसारण होने लगा।शेरदा ने ये कहानी है नेफा और लद्दाख की ,दीदी-बैणी ,मेरी लटि -पटि .जाँठिक घुँडुर , हमार मैं-बाप,फचैक आदि कविताएं लिखी है ।उनका लिखा हुआ साहित्य खजाना हमेशा अमर रहेगा। 20 मई 2012 में उनकी मृत्यु हो गई थी। शेरदा की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन करता है।उत्तराखंड के अल्मोड़ा के माल गांव में 1933 को बच्चे सिंह बिष्ट के घर जन्मे कुमाऊनी कविताओं के धरोहर के रूप में विख्यात कुमाऊनी कवि शेर सिंह बिष्ट शेरदा ‘अनपढ़’ कुमाऊनी कविताओ के विकास में हमेशा याद रखे जाएंगे, भाषाई महत्वता को अनपढ़ होते हुए शेर दा ने जिस तरह अपनी कविताओं में पिरो कर रखा उसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगाकुमाउनी में अपना रचनाधर्म जारी रखा । आकाशवाणी ,कैसेट्स के जरिये उन्होंने हास्य व्यंग्य के माध्यम से समाज मे चेतना प्रसारित की । वह अस्सी के दशक में पर्वतीय समाज के अकेले चहते कुमाउनी व्यंगकार रहे जिन्हें शायद मंचों से लेकर रामलीला मेलों और अन्य सामाजिक कार्यक्रमो में आमंत्रित किया जाता था: शेरदा को जीवन की गजब दार्शनिक एवं व्यावहारिक समझ थी। यही उनकी कविताओं का प्राण है और यही कारण है कि उनकी कविताएँ कई कालजयी कविताओं के करीब लगती हैं या उनकी याद दिलाती हैं. उनकी ‘तू को छै’ कविता पंत की ‘मौन निमंत्रण’ के बहुत करीब लगती है तो कुछ दूसरी कविताएँ कबीर की रचनाओं की याद दिला देती हैं, जैसे–‘जा चेली जा सौरास’,‘जग–जातुरि’,‘एक स्वैंण देखनऊँ’, हँसू कि डाड़ मारूँ’ आदि। शेरदा मूलतः हास्य कवि नहीं हैं, हालाँकि हास्य और तीखा व्यंग भी उनकी रचनाओं में बहुत सहज और स्वाभाविक रूप में आता है। वे मूलतः दार्शनिक कवि हैं, जीवन के गूढ़ार्थों की व्याख्या वे अत्यंत सहजता से करते हैं। वे एक लाइन कहते थे और पाठक व श्रोता अर्थों में गहरे डूबने लगते थे। इसके बाद यह सिलसिला मंचीय प्रस्तुतियों गोष्ठियों परिचर्चाओं से लेकर दूरदर्शन और रेडियो तक पहुँचा ,जिसने ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले एक सरल इंसान को अपने एक कवि कथाकार के रूप में स्थापित किया। शेरदा अनपढ़ को दर्जन भर से अधिक पुरुस्कारों से नवाजा गया । जिसमें कुमाउँनी साहित्य सेवा सम्मान, हिंदी संस्थान से सम्मान, उमेश डोभाल स्मृति सम्मान,प्रमुख हैं। कुमायूँ विश्वविद्यालय में शेरदा की कविताएं पढ़ाई जाती है साथ ही उनकी कविताओं साहित्य पर कई शोध किये जा चुके हैं ।शेरदा ने बड़ा विकट जीवन जिया। घरेलू नौकर से लेकर फौज की नौकरी, फिर बीमारी का दौर और आर्थिक कष्ट, फिर गीत–टक प्रभाग की नौकरी। इस जीवन यात्रा के अनुभवों ने उन्हें संसार के प्रति कबीर जैसी दृष्टि दी तो कष्टों को काटने-सहने के लिए उन्होंने निपट हास्य का सहारा लिया. इसलिए उनका हास्य भी बनावटी नहीं है और बहुधा उसमें त्रासदियाँ छुपी हुई हैं। पहाड़ के रवींद्रनाथ टैगोर कहे जाने वाले शेरदा, अतुलनीय काव्य प्रतिभा के धनी थे, वो एक मार्मिक कवि थे। जो अपनी हास्य कविताओं द्वारा पहाड़ और वहाँ के जन मानस के मर्म उकेरता था। शेरदा की किताब ‘मेरि लटि पटि’ अपनी यूनिवर्सिटी में एमए की पाठ्यपुस्तक निर्धारित की, एकाएक पढ़े-लिखे सभ्य लोगों की दुनिया में मानो भूचाल आ गया. यह बात किसी की भी समझ में नहीं आई की एक अनपढ़ को पढ़े-लिखे लोगों की जमात का हिस्सा कैसे बनाया जा सकता है. पहले तो यही बात विश्वास करने लायक नहीं थी कि एमए में किसी कुमाऊनी कवि को पढ़ाया जाना चाहिए; भाषा या बोली का सैद्धांतिक विवेचन तक तो ठीक, ‘ये कुछ ज्यादा ही नहीं हो गया प्रोफ़ेसर जी?’ ऐसे सवाल मेरे सामने पेश किये जाने लगे. कुछ दिनों बाद, जब शेरदा के साहित्य पर पीएच.डी. और लघुशोध के लिए प्रबंध लिखे जाने लगे, जैसा कि होना ही था, विद्वानों के द्वारा दूसरी भोली जिज्ञासा प्रस्तुत की जाने लगी, ‘डॉ. साब, इतना तो आप खुद ही कर सकते हैं कि ये ‘अनपढ़’ उपनाम हटा दें… जो लेखक बच्चों को एमए, पीएच.डी. की डिग्री दे रहा है, उसे आप ‘अनपढ़’ कह रहे हैं, यह बात कैसे समझ में आ सकती है! अनपढ़ आदमी पढ़े-लिखों को कैसे पढ़ा सकता है? धीरे-धीरे लोगों की समझ में यह बात आ ही गई कि शेरदा का यह उपनाम मैंने नहीं, उन्होंने खुद ही रखा था. शायद इसके पीछे यह कारण रहा हो कि विश्वविद्यालय के युवा विद्यार्थियों के बीच उनके विद्वान प्रोफेसरों की उपस्थिति के बगैर चर्चाएँ होने लगीं, अनौपचारिक गोष्ठियां आयोजित की जाने लगीं और विद्यार्थी खुद ही ग्रामीणों के पास जाकर ग्रामीण-कुमाउनी शब्दावली का संकलन करने लगे. उच्च शिक्षा के इतिहास में शायद पहली बार ऐसा हो रहा था जब छात्र-छात्राओं को औपचारिक शिक्षक की जरूरत नहीं रह गई थी. लोगों की समझ में माज़रा नहीं आ रहा था, फिर भी वे भौंचक एक-दूसरे की ओर ताक रहे थे. इतना तो शोध की गंभीर दुनिया के अन्दर कैद जेआर ऐफों, एसआर ऐफों को भी महसूस होने लगा था कि यार, शेरदा के कोर्स में आने के बाद हमारा संपर्क अपनी भूली-बिसरी भाषा और संस्कृति के साथ हो गया है. पढ़ाने का असली मज़ा तो अब ही आ रहा है!.. कई बार लगता है, हमारा विद्यार्थी प्रोफ़ेसर बन गया है और हम उसके छात्र.इसके बाद जीवन के अंतिम वर्षों में वह अपने परिवार के साथ हल्द्वानी में रहने लगे। और आज से 12 वर्ष पूर्व आज ही के दिन उन्होंने अंतिम सांस ली। शेरदा की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन करता है। *लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।*

Share6SendTweet4
https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/10/yuva_UK-1.mp4
Previous Post

हिंदी भारत और भारत बोध को जानने की खिड़की: प्राचार्य

Next Post

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्म दिवस 17 सितंबर से 02 अक्टूबर तक सेवा पखवाड़ा के तहत विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे

Related Posts

उत्तराखंड

आयुर्वेद कोर्सों में इस बार सीटें भरने की चुनौती

October 21, 2025
35
उत्तराखंड

मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने पुलिस स्मृति दिवस परेड के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में किया प्रतिभाग किया

October 21, 2025
10
उत्तराखंड

नारायणबगड़ के पंती कस्बे से चोरी की गई 77 सेटरिंग प्लेटों के मामले में थराली थाना पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार किया

October 21, 2025
6
उत्तराखंड

वर्दी का गौरव, शहादत की प्रेरणा, पौड़ी पुलिस ने शहीदों को दी श्रद्धांजलि

October 21, 2025
5
उत्तराखंड

जिला प्रशासन ने मा. मुख्यमंत्री के निर्देशों पर आपदा प्रभावितों के साथ मनाई सैंजी में दीवाली

October 21, 2025
7
उत्तराखंड

राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से.नि.)मंगलवार को बदरीनाथ धाम पहुंचे

October 21, 2025
11

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    67468 shares
    Share 26987 Tweet 16867
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    45755 shares
    Share 18302 Tweet 11439
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    38026 shares
    Share 15210 Tweet 9507
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    37422 shares
    Share 14969 Tweet 9356
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    37293 shares
    Share 14917 Tweet 9323

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

आयुर्वेद कोर्सों में इस बार सीटें भरने की चुनौती

October 21, 2025

मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने पुलिस स्मृति दिवस परेड के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में किया प्रतिभाग किया

October 21, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.