डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला:
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर, 1889 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। इनके माता जी का नाम स्वरूपरानी नेहरु और पिताजी का नाम मोतीलाल नेहरु था। पंडित मोतीलाल पेशे से बैरिस्टर थे। वहीं, पंडित नेहरू की धर्मपत्नी का नाम कमला नेहरु था। बच्चों के चाचा नेहरू और देश के पहले प्रधानमंत्री को अल्मोड़ा जिला कभी नहीं भूल सकता है। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत से संघर्ष करते 317 दिन अल्मोड़ा जेल में बिताए।
यहां रहकर उन्होंने अपनी चर्चित पुस्तक भारत एक खोज के महत्वपूर्ण अंश लिखे। आज भी अल्मोड़ा जेल के उस कमरे में प. नेहरू की यादें बसी हुई हैं।स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री प. जवाहर लाल नेहरू ने गोरी हुकूमत से लड़ाई करते हुए अपने जीवन के महत्वपूर्ण 3259 महत्वपूर्ण दिन अंग्रेजों की हिरासत में भारतीय जेलों में गुजारे। वह कुल मिलाकर लगभग नौ साल देश के विभिन्न जेलों में रहे। अल्मोड़ा भी इसी जेल यात्रा का एक पड़ाव था। सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद पूरे देश में गोरों के खिलाफ बिगुल फूंका। उसी के बाद नेहरू को भी कारावास झेलना पड़ा। उन्हें पहली बार बीमारी के बाद बरेली जेल से अल्मोड़ा जेल में शिफ्ट किया गया।
28 अक्टूबर 1934 को नेहरू अल्मोड़ा जेल पहुंचे। यहां वह 311 दिन रहे। उन्हें तीन सितंबर 1935 को रिहा किया गया। इसके बाद 10 जून 1945 से 15 जून 1945 तक वह अल्मोड़ा जेल में रहे। उन्होंने यहा अपनी चर्चित पुस्तक ‘भारत एक खोज’ के महत्वपूर्ण अंश भी लिखे। जिसे बाद में दूरदर्शन में सीरियल के रूप में दिखाया गया और काफी सराहना मिली। गांधी स्मारक निधि, सदस्य संचालक मंडल ने बताया कि ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित किया जाना चाहिए।
लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं। अगर मूल्य, विरासत नहीं बचे तो उस समाज का नैतिक पतन तय है।ऐतिहासिक जेल को संरक्षित स्मारक बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिल चुकी है। अब तक जेल को शिफ्ट नहीं किया गया है। नई जेल का निर्माण दशकों से ठंडे बस्ते में हैं। जिससे यह अमूल्य धरोहर लोगों की पहुंच से दूर ही है। 1930 से 1945 के दौरान देश के कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी यहां कैदी के रुप में रहे।
जिनमें खान अब्दुल गफ्फार खान, पंडित गोङ्क्षवद बल्लभ पंत, आचार्य नरेंद्र देव, कामरेड पूरन चंद्र जोशी, सरला बहन, बद्री दत्त पांडे आदि प्रमुख थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती के मौके पर हर साल 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। बच्चों की अहमियत को रेखांकित करते हुए एक बार नेहरूजी ने कहा था कि बच्चे देश का भविष्य हैं, और हम जिस प्रकार से इन्हें बड़ा करते हैं उससे देश के भविष्य की दिशा तय होती है। उनका मानना था कि बच्चे समाज और मानवता में अपना योगदान देने की असीम क्षमता रखते हैं। बच्चों के लिए इसी प्रकार के अनूठे प्रेम कारण वे चाचा नेहरू के नाम से भी जाने जाते थे।
नेहरू 15 साल की उम्र में इंग्लैंड चले गए और हैरो में दो साल रहने के बाद उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया, जहां से उन्होंने प्राकृतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की. 1912 में भारत लौटने के बाद वे सीधे राजनीति से जुड़ गए.1912 में उन्होंने एक प्रतिनिधि के रूप में बांकीपुर सम्मेलन में हिस्सा लिया और 1919 में इलाहाबाद के होम रूल लीग के सचिव बने. 1916 में वे महात्मा गांधी से पहली बार मिले, जिनसे वे काफी प्रेरित हुए थे.
देश की आजादी के बाद उन्हें सर्वसम्मति से देश का प्रधानमंत्री चुना गया। उन्होंने लंबे समय तक देश की सेवा की। विश्व पटल पर भी नेहरू जी को प्रखर नेता कहा जाता था। देश की आजादी की लड़ाई के दौरान ब्रिटिश काल में पंडित जवाहरलाल नेहरू को देहरादून स्थित पुरानी जेल में कई बार कैद किया गया था. सबसे पहले साल 1932 में पंडित नेहरू को इस जेल में भेजा गया था. वो करीब 14 माह तक जेल में रहे थे. इसके बाद 1934, 1940 और 1941 में भी जेल भेजे गए थे.
कुल मिलाकर देश की आजादी की खातिर वह देहरादून की इस जेल में चार बार कैद रहे थे. पुरानी जेल की कोठरी में वर्ष 1932 से 1941 के बीच वह 878 दिन कैद रहे हालांकि, नेहरू वार्ड की बात करें तो यहां शयन कक्ष के भीतर बिस्तर और कुर्सी-टेबल मौजूद हैं. इसके साथ ही नेहरू वार्ड में स्नान घर, शौचालय, भंडार गृह और पाठशाला भी मौजूद है. वार्ड की दीवारों पर पंडित जवाहरलाल नेहरू की कुछ यादों को भी संजोया गया है.
देहरादून स्थित इस राष्ट्रीय धरोहर की देखरेख संस्कृति विभाग कर रहा है लेकिन नेहरू वार्ड के भीतर पहले जो फूलों की क्यारियां थीं वो लगभग खत्म हो गई हैं. यहां तक कि पहले वहां गुलाब के फूल के कई पेड़ मौजूद थे जो अब कहीं दिखाी नहीं देते. जबकि गुलाब के फूल हमेशा नेहरू के पास रहता था.नेहरू वार्ड इसलिए भी इतिहास में महत्वपूर्ण है, क्योंकि नेहरू को अपनी विख्यात पुस्तक ‘भारत एक खोज’ लिखने की प्रेरणा यहीं से मिली थी.
उस पुस्तक के अधिकांश हिस्से इसी वार्ड में लिखे गए थे. नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित और करीबी रिश्तेदार बीके नेहरू ने देहरादून के राजपुर रोड स्थित अपने घरों पर जीवन की अंतिम सांसें ली थी देहरादून का सर्किट हाउस (वर्तमान में राजभवन) काफी पसंद था. जब भी वह देहरादून आते थे, यहीं रुकते थे. 160 एकड़ भूभाग में फैले सर्किट हाउस की सुंदरता का उल्लेख उन्होंने विजिटर बुक में भी किया है यहां पंडित जवाहरलाल नेहरू की मूर्ति लगाई गई .
नेहरू ने अपनी वसीयत में लिखा कि मुझे भारत के लोगों से इतना प्यार और स्नेह मिला है कि मैं इसका एक छोटा सा अंश भी उन्हें लौटा नहीं सकता और वास्तव में स्नेह जैसी मूल्यवान चीज के बदले में कुछ लौटाया भी नहीं जा सकता. इस देश में कई लोगों की प्रशंसा की गई है, कुछ को श्रद्धेय समझा गया है, लेकिन मुझे भारत के सभी वर्गों के लोगों का स्नेह इतनी प्रचुर मात्रा में मिला है कि मैं इससे अभिभूत हूं.
मैं केवल आशा ही कर सकता हूं कि जब तक मैं जीवित हूं, मैं अपने लोगों और उनके स्नेह से वंचित न रहूं. अपने असंख्य साथियों और सहकर्मियों के प्रति मेरे मन में गहरा कृतज्ञता भाव है. हम कई महान कार्यों में सहभागी रहे हैं और हमने एक साथ सफलता का सुख और असफलता का दु:ख साझा किया है. मैं चाहता हूं कि जब मेरी मृत्यु हो तो मेरे शरीर का दाह संस्कार कर दिया जाए.
यदि मेरी मृत्यु विदेश में होती है, तो मेरा दाह संस्कार वहीं कर दिया जाए और मेरी राख को इलाहाबाद भेज दिया जाए. इसमें से मुट्ठीभर राख प्रयाग के संगम में बहा दी जाए जो हिन्दुस्तान के दामन को चूमते हुए समंदर में जा मिले.” 27 मई 1964 को चाचा नेहरू पंचतत्व में विलीन हो गए। उनके जन्मदिन पर हर साल बाल दिवस मनाया जाता है।