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पेपर लीक कांड क्या सिस्टम में है खोट?

24/09/25
in उत्तराखंड, देहरादून
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https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/11/Video-60-sec-UKRajat-jayanti.mp4

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड साल 2000 में गठन से पहले उत्तर प्रदेश का एक हिस्सा था। उत्तराखंड को साल 2000 से 2006 तक उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। इसके बाद स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए जनवरी 2007 में राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तरखंड किया गया था। इस राज्य की सीमाएं उत्तर में तिब्बत, पूर्व में नेपाल, पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश से लगती है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि कई प्राचीन धार्मिक स्थलों के साथ ही यह राज्य हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र मानी जाने वाली देश की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना का उद्गम स्थल है। 2021 में नकल प्रकरण ने आयोग से लेकर सरकार को कटघरे में खड़ा किया। ये कर्मचारी कोई 10वीं तो कोई 12वीं पास है। इन्हें केवल बायोमेट्रिक व जैमर लगाने का प्रशिक्षण दिया गया, जबकि तकनीकी जानकारी नहीं दी गई। परीक्षा केंद्रों में लगाए गए कई जैमरों में प्लग भी नहीं थे और जैमर के तार ऐसे ही लगाए हुए थे, जोकि हवा के झोंके से हिलकर बाहर आ सकते थे। अब जांच शुरू हुई तो यह बात भी सामने आ रही है कि कई केंद्रों में जैमर ही नहीं लगाए गए। नकल माफिया हाकम सिंह सहित करीब 82 आरोपितों को जेल भेजा। इसके बाद सरकार ने प्रदेश में सख्त नकल कानून बनाया, लेकिन बड़ी परीक्षाओं के दौरान संसाधन उपलब्ध कराने की जहमत नहीं उठाई।हालत यह हैं कि 21 सितंबर को हुई यूकेएसएसएससी की स्नातक स्तरीय (समूह ग) की परीक्षा को संपन्न कराने के लिए बायोमेट्रिक और जैमर लगाने वाले कर्मचारी 400 से 500 रुपये की दिहाड़ी पर लाए गए थे।बताया जा रहा है कि ये कर्मचारी कोई 10वीं तो कोई 12वीं पास है। इन्हें केवल बायोमेट्रिक व जैमर लगाने का प्रशिक्षण दिया गया, जबकि तकनीकी जानकारी नहीं दी गई। परीक्षा केंद्रों में लगाए गए कई जैमरों में प्लग भी नहीं थे और जैमर के तार ऐसे ही लगाए हुए थे, जोकि हवा के झोंके से हिलकर बाहर आ सकते थे। अब जांच शुरू हुई तो यह बात भी सामने आ रही है कि कई केंद्रों में जैमर ही नहीं लगाए गए।अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है, जब नकल विरोधी कानून को और सख्त बनाकर उत्तराखंड सरकार ने देशभर में खूब वाहवाही लूटी थी। इस कानून की अन्य राज्यों में अक्सर चर्चा भी होती है।इसमें कोई संदेह नहीं कि संशोधित कानून के ऐसे कई प्रविधान हैं, जो नकल माफिया पर नकेल डालने की दृष्टि से काफी कारगर प्रतीत होते हैं।करीब ढाई साल पहले अमल में आए इस कानून का असर भी दिखा और राज्य में इस दौरान कई सरकारी नौकरियों में भर्तियां नकल माफिया के चंगुल से बाहर रहीं। अब ऐसा प्रतीत होता है कि इस सख्त कानून को मानो किसी की नजर लग गई है।उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की तीन दिन पूर्व संपन्न हुई प्रतियोगी परीक्षा में जिस तरह एक केंद्र से पर्चे का कुछ अंश लीक होने की सनसनीखेज सूचना फैली, उससे पूरी व्यवस्था सन्न रह गई। तमाम इंतजाम और सावधानियां धरी की धरी की रह गईं, जबकि नकल करने वाले या फिर सरकार के दावे के मुताबिक बदनाम करने वाले अपने मंसूबों में एक बार कामयाब होते दिखाई दिए।यह आश्वस्तिजनक है कि पर्चा लीक का यह मामला फिलहाल एक केंद्र से जुड़ा दिखाई दे रहा है और सिर्फ एक परीक्षार्थी और उससे जुड़े लोग ही आरोपों के घेरे में हैं।मामले की सघन जांच चल रही है और अभी परतें उधड़ने की आशंकाएं पूरी तरह कायम हैं। अभी यह ठीक-ठीक नहीं कहा सकता कि सिर्फ अकेले एक खालिद ने ही सिस्टम में सेंध लगाई है या फिर ऐसे कई खालिद, सुमन, साबिया और हिना जैसे किरदार परदे के पीछे छिपे हैं। क्योंकि आरोपित परीक्षार्थी खालिद ने जिस केंद्र पर परीक्षा दी है, वहां उस कक्ष के अलावा दो अन्य कक्ष हैं, जहां जैमर नहीं लगने की बात सामने आ रही है।मुख्य को दबोच लिया गया है। एक दिन पहले उसकी एक बहन भी गिरफ्तार हो चुकी है। उसकी एक अन्य बहन हिना के अलावा सहायक प्रोफेसर सुमन पर शिकंजा कसना अभी बाकी है। पुलिस जिस तेजी से इस प्रकरण में हाथ-पांव मार रही है, उससे तो ऐसा ही लगता है कि बाकी दोनों आरोपित भी शीघ्र ही कानून की गिरफ्त में होंगे।फिर भी यह प्रश्न अपनी जगह पर यथावत है कि क्या यह कारनामा इन चारों आरोपितों का ही है या फिर इसके तार कहीं लंबे हैं। बहरहाल, सभी को इस बात का भरोसा है कि पूरे प्रकरण की नीर-क्षीर पड़ताल और विवेचना अवश्य की जाएगी।प्रदेश सरकार की मजबूत साख को कायम रखने के लिए भी ऐसा करना अनिवार्य भी है। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि सख्त कानून बनाना और उसे उतनी ही सख्ती से लागू करना दो अलग-अलग बातें हैं।सख्त नकल विरोधी कानून अमल में आने के बाद संभवतः यह पहली सेंधमारी है। ऐसे में प्रश्न है कि क्या उत्तराखंड समेत पूरा देश यह देखेगा कि यहां नकल माफिया के लिए अब वाकई कोई जमीन नहीं बची है।पर्चा लीक प्रकरण से ठीक एक दिन पहले कुख्यात नकल माफिया हाकम सिंह और उसके एक सहयोगी को पुलिस ने जिस अंदाज में रंगेहाथ दबोच लिया था, उससे तो एक बार के लिए यही संदेश गया कि सरकार प्रतियोगी परीक्षाओं को लेकर न सिर्फ पूरी तरह गंभीर है, बल्कि परिंदा भी पर नहीं मार पाए के अंदाज में पूरी तैयारी में भी है।इसे दुखद संयोग ही कहा जाएगा कि हाकम पर शिकंजा कसने के बावजूद अगले ही दिन पर्चा लीक जैसा कांड हो गया। मुख्यमंत्री का यह ऐलान कि इस कांड के किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा, निश्चित रूप से भरोसा जगाता है।यह भरोसा मजबूत तब होगा, जब प्रदेश के एक लाख से ज्यादा अभ्यर्थियों के सपनों पर कुठाराघात करने वाले खालिद जैसे तमाम खलपात्रों को उसकी असली जगह बताई जाएगी।नकल विरोधी कानून बनने के बाद प्रदेश सरकार के लिए संभवतः यह पहला सुअवसर भी है, जब वह देश-दुनिया को खम ठोंककर यह दिखा सकती है कि हम सिर्फ कानून ही नहीं बनाते, बल्कि उस पर सख्ती से अमल भी करते हैं। राजनीति में अक्सर करेंगे से ज्यादा करते हुए दिखाई देने का महत्व अधिक होता है। उत्तराखंड में सरकारी नौकरी पाने के लिए कड़ी मेहनत करने वाले बेरोजगार युवाओं के सपने नकल माफिया चकना-चूर करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. पिछले कुछ सालों में लगातार ऐसे मामले सामने आ चुके हैं और लगातार भर्ती परीक्षा सवालों के कटघरे खड़ी रही है. ऐसा ही 21 सितंबर को आयोजित हुई उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की पेपर को लेकर हुआ है सरकार के सख्त नकल विरोधी कानून आने के बाद भी नकल माफियाओं के हौसले इतने बुलंद है. तो प्रदेश में नव युवाओं का भविष्य कैसे सुरक्षित रह सकता है.. *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*

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