• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar

जनअपेक्षाओं से दूर होते राजनीतिक दल: डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

05/11/24
in उत्तराखंड, देहरादून, राजनीति
Reading Time: 1min read
0
SHARES
73
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

दक्ष और संवेदनशील प्रशासन का विकल्प नहीं होता। गत दिनों प्रधानमंत्री ने युवा लोकसेवकों के साथ शासन व्यवस्था को बेहतर बनाने पर चर्चा की। उन्होंने मजबूत फीडबैक और लोक शिकायत निस्तारण की पद्धति में सुधार की आवश्यकता बताई। उन्होंने युवा लोकसेवकों से आम जनों के जीवन को सुगम बनाने का आग्रह किया।भारत में शासन चलाने के लिए अधिकारियों का बड़ा वर्ग है। सरकार संचालन के लिए व्यावसायिक रूप से दक्ष प्रशासनिक तंत्र की आवश्यकता होती है। संविधान निर्माता निष्पक्ष अधिकारियों का तंत्र चाहते थे। संविधान के अनुच्छेद 311 में प्रशासनिक तंत्र के अधिकार और सुरक्षा कवच वर्णित हैं।विश्व के किसी भी लोकतांत्रिक देश में सरकारी अधिकारियों को भारत जैसा कानूनी संरक्षण नहीं है। बावजूद इसके प्रशासनिक तंत्र जन अपेक्षाओं से दूर है। आम जनों में प्रशासनिक तंत्र के प्रति अच्छी धारणा नहीं है। तत्काल हो जाने वाला छोटा-सा काम भी वे समय पर नहीं करते। अधिकारी जन अपेक्षाओं की उपेक्षा करते हैं। प्रशासनिक तंत्र का रवैया चिंताजनक है।दरअसल भारत की प्रशासनिक व्यवस्था ब्रिटिश शासन की उधारी है। मारिस जांस ने लिखा था, ‘सत्ता हस्तांतरण के साथ अंग्रेज चले गए, लेकिन प्रशासन तंत्र का आकार, कार्य के ढंग सब ज्यों के त्यों रहे।’ संविधान सभा में ब्रिटिश संस्कारों वाले प्रशासनिक तंत्र की आलोचना हुई। हालांकि सरदार पटेल ने सभा में प्रशासन की प्रशंसा की। कहा कि ‘मैंने इस कठिन समय में उनके साथ काम किया है। इन्हें हटा लिया गया तो अराजकता बढ़ेगी।’अंग्रेजी राज प्रशासन की इकाई जिला थी। तब के जिलाधिकारी श्रेष्ठ ग्रंथि के शिकार थे। वे राजा थे और भारत के लोग प्रजा। स्वतंत्रता के बाद लोक कल्याण और विधि के शासन की स्थापना पर देश आगे बढ़ा, लेकिन अफसरों की आम जनों से दूरी और बढ़ती गई। माना जाता है कि सिविल सेवाओं में प्रतिभाशाली लोग आते हैं। तमाम अधिकारी नतीजे देने की कोशिश करते हैं, लेकिन गरीबों, वंचितों और पीड़ितों के प्रति उनमें संवेदनशीलता दुर्लभ है।प्रशासनिक तंत्र के लिए काम पूरा न होने के कारण बताना आसान है। इसलिए प्रशासनिक सुधार की प्रक्रिया प्रत्येक समय अनिवार्य रहती है। ब्रिटिश सत्ता में भी प्रशासनिक सुधारों के लिए आयोग बनाए गए थे। 1918 में मांटेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट आई थी। 1948 में कस्तूर भाई लाल भाई के नेतृत्व में मितव्ययिता समिति बनी थी और 1949 में अयंगर समिति। 1951 में गोरेवाला समिति ने कई विषयों पर अपनी रिपोर्ट दी। अमेरिकी लोक प्रशासन विशेषज्ञ एप्पलेबी ने भी 1953 में भारत के लोक प्रशासन सर्वेक्षण पर रिपोर्ट पेश की थी।भ्रष्टाचार पुराना रोग है। देश में 1948 में जीप खरीद घोटाला चर्चा का विषय था। 1957 के मूंदणा घोटाले में केंद्रीय मंत्री भी शामिल पाए गए। तत्कालीन गृहमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने संपूर्ण तंत्र की समीक्षा और सुझाव के लिए के. संथानम की अध्यक्षता में समिति का गठन किया। 1964 में सतर्कता आयोग का गठन हुआ। 1966 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में प्रशासनिक सुधार आयोग बना। इसी बीच वह मंत्री बन गए। फिर के. हनुमंतैया को अध्यक्ष बनाया गया। आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट 1966 तथा दूसरी 1970 में दी। 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग बना। उनकी रिपोर्ट भी बेनतीजा रही।संविधान की प्रस्तावना और नीति निदेशक तत्व सरकार और प्रशासन तंत्र के मार्गदर्शक हैं। प्रशासनिक तंत्र से उच्च स्तर की व्यावसायिक योग्यता की अपेक्षा है। संविधान में कार्यपालिका नीति नियंता है। सरकार विधायिका के प्रति जवाबदेह है। प्रशासनिक तंत्र की सीधी जवाबदेही नहीं है। उसका दबदबा चिंताजनक है। निर्वाचित जनप्रतिनिधि और अधिकारियों के बीच तनाव रहता है। केंद्र ने विधायकों-सांसदों को सम्मान देने एवं पत्रोत्तर देने का शासनादेश पिछली सदी के सातवें दशक में जारी किया था।राज्य सरकारों द्वारा भी यह विषय बार-बार दोहराया जाता है, लेकिन प्रशासनिक तंत्र इसे महत्व नहीं देता। कुछ अधिकारी कहते हैं कि वे स्थायी कार्यपालिका हैं। विधायिका और सरकार का कार्यकाल पांच वर्ष का है। बेशक अधिकारियों का एक वर्ग कर्तव्य पालक है, लेकिन पुलिस का व्यवहार अच्छा नहीं है। वे साधारण बातचीत में भी ठीक व्यवहार नहीं करते। प्रशासनिक अधिकारियों को अपने आचार और व्यवहार को जनअपेक्षा के अनुरूप ढालना चाहिए।भारत दुनिया की प्राचीनतम सभ्यता और संस्कृति का धारक है। ऋग्वेद के रचनाकाल के समय भी यहां सुंदर प्रशासनिक व्यवस्था थी। राजनीतिक व्यवस्था की इकाई परिवार थी। अनेक परिवारों को मिलाकर ग्राम बनता था। ग्राम के अधिकारी को ग्रामणी कहा जाता था। ग्रामों को मिलाकर बने समूह को विश कहते थे। विश के अधिकारी को विशपति कहते थे। कई विश मिलकर जन बनते थे। जन के प्रधान अधिकारी को गोप कहा गया। यहां सभा और समितियां भी थीं। सिंधु घाटी सभ्यता में भी प्रशासनिक इकाइयां थीं और उत्तर वैदिक काल में भी। अनेक शक्तिशाली राजा भी थे। उत्तर वैदिक काल में एक केंद्र में अनेक प्रशासनिक अधिकारी थे। वे कठिनाइयां दूर करने के लिए काम करते थेमहाकाव्य काल में यहां बड़े साम्राज्यों की स्थापना हुई। अनेक गणतंत्र भी थे। बौद्ध काल का शासन स्मरणीय है। चंद्रगुप्त मौर्य प्रशासन महत्वपूर्ण था। कौटिल्य का अर्थशास्त्र, मेगास्थनीज की इंडिका, अशोक के शिलालेख एवं अनेक प्राचीन पुस्तकों में मौर्य शासन (320 ईसा पूर्व) की जानकारी मिलती है। चीनी यात्री फाह्यान ने भी भारतीय प्रशासन की प्रशंसा की। गुप्त प्रशासन के कार्य इतिहास का सत्य हैं। सीबीआइ ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम वापकोस यानी वाटर एंड पावर कंसल्टेंसी सर्विसेज लिमिटेड के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के विभिन्न परिसरों पर छापेमारी के दौरान जिस तरह लगभग 38 करोड़ रुपये की नकदी जब्त की, उससे यही पता चलता है कि भ्रष्टाचार किस तरह अपनी जड़ें जमाए हुए है। प्रबंध निदेशक के एक दर्जन से अधिक ठिकानों से केवल 38 करोड़ रुपये नकद ही नहीं मिले, आभूषण संग संपत्तियों के अनेक दस्तावेज भी मिले।सार्वजनिक क्षेत्र के किसी उपक्रम के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के यहां से इतनी अधिक संपत्ति मिलना सामान्य बात नहीं। यह केवल आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक कमाई का मामला नहीं। यह बेलगाम भ्रष्टाचार का भयावह मामला है। यह ठीक है कि आखिरकार सीबीआइ वापकोस के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक तक पहुंच गई, लेकिन प्रश्न यह है कि आखिर उन्होंने इतनी अकूत संपत्ति कैसे जुटा ली? निःसंदेह यह नहीं माना जा सकता कि यह संपत्ति उन्होंने 2019 में सेवानिवृत्त होने के बाद कंसल्टेंसी के अपने कथित व्यवसाय से अर्जित की होगी।यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि यह संपदा सेवा में रहते समय अपने पद और प्रभाव का अनुचित इस्तेमाल करते हुए जुटाई गई होगी। क्या यह कहा जा सकता है कि वह ऐसा करने वाले एकलौते अधिकारी होंगे? वास्तव में ऐसे अधिकारियों की गिनती करना कठिन है और इसका प्रमाण सीबीआइ की ओर से समय-समय पर सरकारी अधिकारियों के यहां की जाने वाली छापेमारी से चलता है। इस छापेमारी के दौरान अनेक अधिकारियों के पास से आय के ज्ञात स्रोतों से कहीं अधिक और कई बार तो बेहिसाब संपदा मिलती है।इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि सीबीआइ भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करती रहती है, क्योंकि यह कठिनाई से ही सुनने को मिलता है कि किसी भ्रष्ट अधिकारी को उसके किए की सजा मिली। चूंकि भ्रष्ट अधिकारियों को मुश्किल से ही सजा मिलती है, इसलिए सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। इस आम धारणा को गलत नहीं कहा जा सकता कि जो भी सरकारी विभाग निर्माण कार्य कराते हैं या फिर उनके लिए ठेके देते हैं, उनके अफसर करोड़ों के वारे-न्यारे करते हैं।यह सीबीआइ ही बता सकती है कि वापकोस के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक ने इतनी अधिक संपदा कैसे जुटा ली, लेकिन इतना तो समझा ही जा सकता है कि भ्रष्ट अधिकारियों की वैसी निगरानी नहीं की जा पा रही, जैसी आवश्यक है। इस नतीजे पर पहुंचने के अलावा भी कोई उपाय नहीं कि सरकारी तंत्र के तौर-तरीके ऐसे हैं, जिनमें भ्रष्ट अधिकारी दोनों हाथों से अवैध कमाई करने में सक्षम हैं। उनकी यह सक्षमता न केवल शर्मनाक है, बल्कि चिंताजनक भी। सरकार कुछ भी दावा करे, लगता यही है कि भ्रष्ट अधिकारी उसकी आंखों में धूल झोंकने में सफल हैं अब घूसखोर अफसर और कर्मचारियों को पकड़ना और आसान हो जाएगा। जो लोग पैसा फंसने के डर से विजिलेंस को शिकायत नहीं करते थे, वह अब कार्रवाई करवा सकेंगे। इसके लिए विजिलेंस का दो करोड़ का रिवॉल्विंग फंड बना था, जिसके उपयोग संबंधी नियमावली को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। जब कोई व्यक्ति किसी अधिकारी को ट्रैप कराएगा और उसे अपने पैसों की जल्दी जरूरत है तो उसे इस रिवॉल्विंग फंड से रुपये दिए जा सकेंगे। इसके बाद एक अनुबंध न्यायालय में दिखाना होगा। इसके बाद ट्रैप मनी को न्यायालय के आदेश पर इस रिवॉल्विंग फंड में जमा कराया जा सकता है। कोई व्यक्ति पैसा न होने पर भी इस फंड की मदद से ट्रैप भी करा सकेगा। पूर्व अधिकारी को इस सहायक अभियंता ने खूब चूरन पुड़िया पकड़ाई हैं। जिससे साहब इस पर और इसकी कारगुजारियों पर खासा मेहरबां थे। साहब का हजमा भी ठीक रहा ,सहायक अभियंता ने जो दिया- लिया वह सब हजम कर गए । साहब ! आपकों इस सहायक अभियंता से अब सावधान रहना होगा क्योंकि इस सहायक अभियंता की कारगुजारियों से हर शहरी वाकिफ हैं । इसके विषय में कहावत हैं कि ऐसा कोई सगा नहीं , जिसको इसने ठगा नहीं। इसलिए लोगों के जेहन में सवाल हैं कि कहीं पूर्व की भांति अंधेर नगरी चौपट राजा वाली कहानी न हो जाए हैं और सहायक अभियंता अपने मकसद में फिर से कामयाब हो जाए। इतना ही नहीं पूर्व अधिकारी का खास बन कई कारगुजारियां कर चुका यह अधिकारी ने विदाई के अंतिम क्षणों में भी बड़े साहब को जाते-जाते भी भारी गिफ्ट की गठरी देकर विदा किया , जिसके लिए कर्मचारियों की मार्फत पूरे शहर से लाल और हरे गांधी  बटोरने की जानकारी सूत्रों ने दी हैं। लोगों का मानना हैं कि इसलिए साहब को समयपूर्व ऐसे भ्रष्ट अधिकारी से सावधानी बरतनी जरूरी हैं। सरकार की ओर से सेवा विस्तार के नियम का दुरुपयोग किया जा रहा है । उपनेता विपक्ष ने कहा कि सरकार को जिन अधिकारियों के खिलाफ जांच चल रही है भ्रष्टाचार के आरोप भी है ऐसे अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर नहीं बिठाना चाहिए सरकार निरंतर अपने कारनामों से भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का काम कर रही है। विभागों में काबिल अधिकारी होने के बावजूद भी प्रभारी अधिकारियों से महत्वपूर्ण विभागों का संचालन कराया जा रहा है जिससे कि सरकार के चाहते अफसर को महत्वपूर्ण पदों पर भ्रष्टाचार करने का अवसर दिया जा रहा है सरकार निरंतर ऐसे कार्य कर कर प्रदेश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का काम कर रही है।। उत्तराखंड सरकार इन दिनों राज्य स्थापना दिवस की तैयारी में जुटी हुई है. आगामी 9 नवंबर यानि करीब 4 दिन बाद राज्य स्थापना दिवस के मौके पर सरकार बड़े आयोजन को करने जा रही है. प्रदेश के लिए यह दिन अलग राज्य के रूप में अब तक हुए कार्यों का आकलन करने वाला होता है. एक तरफ सरकार इस दिन प्रदेश में हुए विकास कार्यों को आमजन के सामने रखने जा रही है तो वहीं राज्य स्थापना दिवस से ठीक पहले भाजपा के ही विधायक ने कुछ ऐसा बयान दे दिया है, जिसका जवाब सरकार को देना कुछ मुश्किल होगा.भाजपा विधायक ने राज्य स्थापना दिवस पर पूछे गए सवाल को लेकर जवाब देते हुए कहा कि राज्य में 24 साल बाद भी लोग राज्य को लेकर कई सवाल पूछ रहे हैं. इसकी वजह यह है कि आज भी भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो पाया है और राजनीतिक लोग प्रदेश को प्राथमिकता देने की बजाय अपने घर को भरने में लगे हुए हैं. हमेशा से ही बेबाक बयानों को लेकर चर्चाओं में रहे हैं और राज्य आंदोलन में भी शामिल रहे हैं. विधायक की छवि सीधा और सपाट बयान देने वाले नेताओं में रही है. ऐसे में उन्होंने राज्य स्थापना दिवस से पहले एक बार फिर राजनीतिक दलों के नेताओं की कार्य संस्कृति पर सवाल खड़े करते हुए भ्रष्टाचार पर अपना बयान देकर सरकारों की कार्य प्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं. दूसरी बार विधायक धर्मपुर विधानसभा से विधायक चुनकर आए हैं. इससे पहले वह देहरादून नगर निगम में मेयर के तौर पर भी काम कर चुके हैं. विनोद चमोली राज्य आंदोलन के दौरान सक्रिय आंदोलनकारी की भूमिका में रहे हैं और राज्य हित से जुड़े मुद्दों पर आक्रामक रूप से बोलने को लेकर चर्चाओं में भी रहे हैं. विधायक के इस बयान ने जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली सरकारों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं. हालांकि ने राज्य स्थापना के बाद 24 सालों में दोनों ही सरकारों को कटघरे में खड़ा किया है.लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

ShareSendTweet
Previous Post

राज्य स्थापना के कार्यक्रम सादगी से मनाये जायेंगे

Next Post

गैस उपभोक्ताओं के दो दिवसीय केवाईसी शिविर के पहले दिन 130 उपभोक्ताओं का सत्यापन

Related Posts

उत्तराखंड

अब न ‘गुल’ है न ‘बुलबुल’, जब-जब गोली चले कश्मीर में रुकी फिल्मों की शूटिंग

June 28, 2025
10
उत्तराखंड

केदारनाथ यात्रा के लिए नासूर बना स्लाइडिंग जोन

June 28, 2025
15
उत्तराखंड

बैंग्वाड़ी की कविता नौडियाल ग्रामीण महिलाओं को बना रही आत्मनिर्भर

June 28, 2025
17
उत्तराखंड

मुख्यमंत्री ने एक पेड़ मां के नाम अभियान के अन्तर्गत अपनी माताजी के साथ किया पौधारोपण

June 28, 2025
8
उत्तराखंड

मत्स्य पालन को स्वरोजगार का मजबूत साधन बनाया मोहन सिंह बिष्ट ने

June 27, 2025
16
उत्तराखंड

देहरादून के खाराखेत का नमक सत्याग्रह पुस्तिका पर चर्चा

June 27, 2025
21

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    0 shares
    Share 0 Tweet 0

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

अब न ‘गुल’ है न ‘बुलबुल’, जब-जब गोली चले कश्मीर में रुकी फिल्मों की शूटिंग

June 28, 2025

केदारनाथ यात्रा के लिए नासूर बना स्लाइडिंग जोन

June 28, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.