थराली से हरेंद्र बिष्ट।
एक बार फिर से बधाण की नंदा भगवती की उत्सव डोली को उसका मामाकोट देवराड़ा थराली में स्थित नंदा सिद्धपीठ में 6 माह के प्रवास पर बिठाने के तिथि को लेकर बधाण पट्टी के नंदा भगवती के उपासकों में भारी रोष व्याप्त है। इसके लिए नंदा भक्तों ने घाट विकासखंड के कुरूड़ के नंदा पुजारियों को आड़े हाथों लेते हुए पौराणिक परंपराओं से ना हटने की सलाह दी हैं। जबकि नंदा के पुजारियों ने परंपराओं से हटने के आरोपों का खंडन किया है।
बताया जाता है कि सदियों से परंपरा चली आ रही है कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन नंदा सिद्धपीठ कुरूड़ से बधाण एवं दशोली की नंदा की दोनों उत्सव डोलियां सिद्धपीठ से बालपाटा एवं वेदनी कुंड के लिए जात नंदा की विशेष पूजा अर्चना के लिए रवाना होती हैं। दशोली की डोली तो सप्तमी की जात के बाद वापस कुरूड़ सिद्वपीठ में विराजमान हो जाती हैं। जबकि बधाण की उत्सव डोली वेदनी में जात के बाद हर साल अलग.अलग रूटों से होते हुए 6 माह के प्रवास के लिए बधाण क्षेत्र के नंदा सिद्धपीठ देवराड़ा के लिए रवाना हो जाती हैं।और हिंदुओं के पर्वित्र एवं महत्वपूर्ण सोलह श्राद्ध पक्ष के शुरू होने से एक दिन पहले अर्थात अनन्त चतुनर्दशी के पर्व पर उत्तसव डोली के नंदा सिद्धपीठ देवराड़ा के गृभगृह में विराजमान होने की पंरपरा चली आ रही हैं।
किंतु इस डोली के गर्भगृह में विराजमान होने की तिथि को लेकर बधाण क्षेत्र के लोगों में कुरूड़ के पुजारियों के प्रति भारी रोष व्याप्त है।
देवराड़ा मंदिर समिति के अध्यक्ष भूवन चंद्र हटवाल, प्रताप गुसाईं, बग्तवार सिंह, प्रेम चंद्र पंत, बलवंत सिंह रावत आदि ने आदि का कहना हैं कि मान्यताओं के अनुसार इस वर्ष अनन्त चतुर्दशी का पर्व 19 सितंबर को था और 20 सितंबर को पितरों का पक्ष शुरू हो गया हैं और सोमवार को पित्र पक्ष की पूर्णिमासी शुरू हो गया हैं। नंदा की डोली को आज गृर्भगृह में बिराजमान किया जा रहा है। जोकि परंपराओं एवं मान्यताओं का खुला उल्लंघन है। उन्होंने भवष्य में इस तरह की गलतियों से पुजारियों को बांज आने की नसीहत दी है।
इधर कुरूड कमेटी के अध्यक्ष मंशा राम गौड़ का कहना हैं कि नंदा देवी की लोकजात यात्रा के पड़ाव क्षेय नहीं होते हैं। जबकि पंचांगों के तहत श्रादों की तिथियां क्षय हो सकती है। कहा कि एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव तक डोली को रूट के देवी भक्त ही पहुंचाते हैं। भक्तों की भावना के अनुरूप ही यात्रा शुरू की जाती है। यह परम्परा नोंवी सदी से जारी है। उन्होंने स्वीकारा कि नंदा की डोली अनन्त चतुर्दशी के दिन ही देवराड़ा में बैठती है। किंतु इस दफे 5 साल बाद डोली के बैनोली गांव जाना जरूरी था। इसलिए रविवार को डोली का पड़ाव बैनोली गांव बनाया गया। यूं भी पंचांगों के अनुसार अनन्त चतुर्दशी सोमवार दोपहर 11बजें तक हैं। उसके बाद पूर्णमासी शुरू हो रही हैं।