उत्तराखंड राज्य के जनपद चमोली की सीमांत क्षेत्र में सलूड डुगरा गांव है, जो लगभग 7000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से 240 किलोमीटर ऋषिकेश बदरीनाथ राजमार्ग पर सेलंग गांव से 10 किलोमीटर दूरी पर यह गांव स्थित है, जहां पर मेले का आयोजन होता है। पैनखंडा क्षेत्र जोशीमठ के अंतर्गत विश्व धरोहर की श्रेणी में यूनेस्को के द्वारा एक मेले को रखा गया है, अर्थात की विश्व की सांस्कृतिक विरासत जो मौखिक रूप से रामायण का गायन नृत्य शैली के माध्यम से किया जाता है।
पूरी दुनिया में जो सांस्कृतिक विरासत है, अति संकटग्रस्त हो या विलक्षण हो उसे शोध के बाद सांस्कृतिक धरोहर की सूची में सम्मिलित किया जाता है। वैसे पैनखंडा जोशीमठ में रम्माण डूंगरी वरोसी, सेंलग, ढाक के अलावा सलूड़ डुगरा में आयोजित की जाती है। यह मेला लगभग जोशीमठ क्षेत्र मैं बैसाखी अर्थात 14 अप्रैल के लगभग से यह मेला प्रारंभ हो जाता है। पहले गांव में 15 से 20 दिन तक गांव की जाख देवता भ्रमण यात्रा करते हैं साथ ही गांव के लोग विशेष पूजा लिखर की पंचायत चौक में आते हैं और सुबह शाम पूजा अर्चना की जाती है।
क्षेत्रपाल भूमियाल देवता किसी किसी गांव में क्षेत्र भ्रमण करते हैं वहां वहां लोग अपनी मांगों को लेकर देवता के पास जाते हैं ऐसी मान्यता है देवता लोगों की मन्नत पूरी करता है भूमिया देवता भूमि रक्षक माना जाता है इस तरह का कार्यक्रम सभी गांव में होता रहता है। अधिकांश गांव में रामाण का आयोजन हो चुका है सिर्फ सलूड डूंगरा गांव में 26.27 अप्रैल को आयोजित हो जा रहा है पंचायत चौक में पूरे रात्रि भर मुखोटे नृत्य का मंचन किया जाएगा उसके बाद राहता 27 अप्रैल को पूरे दिन भर मेले का आयोजन होगा मेले में मुख्य रूप से मोर मरीड गणेश बेदी वेदा फुर चेली, वणियाँ माल, गानी गन्ना, कुरू जोग्गी, नरसिंह पत्र राम लक्ष्मण सीता हनुमान आदि मुखौटा का मंचन किया जाता है। ढोल दमाऊ, भुकरा, की धुन के साथ शानदार प्रस्तुति दी जाती है।
इस मेले में जहां रामायण की प्रस्तुतीकरण होती है वही गोरखा आक्रमणों की समय में युद्ध कौशल का भी वर्णन किया जाता है सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए इस गांव में हर तरह के प्रयास जारी हैं इस को संरक्षित करने के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र नई दिल्ली एवं यूनेस्को को काफी अहम योगदान है रम्माण की प्रस्तुति गणतंत्र दिवस की परेड में भी हो चुकी है इस कला एवं सांस्कृतिक विरासत को संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों का भी अहम योगदान है आज भी लोग इस अपनी परंपरागत मेले के संरक्षण के लिए हर संभव सहयोग करते हैं मेले में जहां लोक नृत्य एवं लोक गीत का मंचन के साथ लकड़ी के बने हुए मुकुट ओं का नृत्य कौशल भी एक विधा के रूप में जीवित है। आने वाली पीढ़ी को स्थानांतरण के लिए समय.समय पर गांव में कार्यशाला का आयोजन भी किया जाता है पैन खंडा क्षेत्र में विखोति के पर्व पर दर्जनों अलग.अलग प्रकार के मेले का आयोजन किया जाता है।
लक्ष्मण सिंह नेगी की रिपोर्ट