• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar
No Result
View All Result

रामलीला उत्तराखंड की एक समृद्ध परंपरा

24/09/25
in उत्तराखंड, देहरादून
Reading Time: 1min read
8
SHARES
10
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

 

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

जय राम रमा रमनं समनं, भवताप भयाकुल पाहि जनं।
अवधेशसुरेशरमेशविभो, शरनागतमांगतपाहिप्रभो।

सांस्कृतिक परम्परा की दृष्टि सेउत्तराखण्ड एक समृद्ध राज्य है। समय- समय पर यहां के कई इलाकों में अनेक पर्व और उत्सव मनाये जाते हैं। लोकऔर धर्म सेजुड़े इन उत्सवों की आस्था समाज के साथ बहुत गहराई से जुड़ी है। उत्तराखण्ड केकुमाऊं अंचल कीरामलीला और होली का इस सन्दर्भ में विशेष महत्व है।कुमाऊं अंचल मेंरामलीला नाटक केमंचन की परंपरा का इतिहास 160 साल से अधिक पुराना है।उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में साल 1860 से शुरू हुई कुमाऊंनी रामलीला का अपना विशेष महत्व है. रामचरित्र मानस पर आधारित रामलीला का मंचन यहां लगातार चलता आ रहा है. जिसमें शास्त्रीय रागों पर आधारित गीतों का गायन के साथ रामलीला के पात्र स्वयं अभिनय करते हैं. अल्मोड़ा के नंदा देवी के मंदिर में होने वाली रामलीला सबसे पुरानी रामलीला है.गायन एवं नाट्य शैली पर इस रामलीला का मंचन सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के बद्रेश्वर मंदिर से प्रारंभ हुआ. इस दौर में ना तो बिजली व संचार व्यवस्था थी ना ही पर्याप्त आवागमन के साधन थे. रामलीला का मंचन छिलकों (बिरोजा युक्त लकड़ी) की मशाल बनाकर किया जाता था. कुमाऊं में रामलीला नाटक के मंचन की सर्वप्रथम शुरुआत 1860 में अल्मोड़ा नगर के बीचों बीच बद्रेश्वर से हुई. जिसे तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर स्व. देवीदत्त जोशी ने करवाया. इस रामलीला का मंचन रामचरितमानस पर आधारित था. कई वर्षों तक इस रामलीला का मंचन इसी स्थान पर होता रहा. लेकिन जानकारों के अनुसार, वर्ष 1950 के बाद भूमि विवाद होने से इस रामलीला का मंचन नंदा देवी के पास स्थित त्यूनरा मोहल्ले में होने लगा. उसके बाद से इसका मंचन नंदा देवी के प्रांगण में लगातार होता आ रहा है. यह उत्तराखंड की सबसे पुरानी रामलीला है. नंदा देवी की रामलीला से जुड़े अनेक लोगों ने अपने-अपने मोहल्लों में इस रामलीला का मंचन प्रारंभ किया. आज यह रामलीला अल्मोड़ा नगर के आठ स्थानों पर होने के साथ-साथ कुमाऊं के अन्य कस्बों में भी की जाती है. महानगरों में रहने वाले कुमाऊं के लोग इस रामलीला का मंचन महानगरों में भी कराने लगे हैं. नगरीय क्षेत्रों की रामलीला को आकर्षक बनाने में नवीनतम तकनीक, साज सज्जा, रोशनी व आधुनिक ध्वनि विस्तारक यंत्रों का उपयोग किया जाने लगा है. कुमाऊंनी रामलीला से प्रभावित होकर अल्मोड़ा में साल 1940-41 के दौरान नृत्य सम्राट पं. उदयशंकर ने भी रामलीला का मंचन किया. उन्होंने अल्मोड़ा में इस रामलीला में छाया चित्रों का प्रयोग कर नवीनता लाने का प्रयास किया. हालांकि उनकी मंचन शैली कई मायनों में अलग रही, लेकिन उनके छाया चित्रों की छाप अल्मोड़ा नगर की रामलीला पर पड़ी. जिसके बाद रामलीला में छाया चित्रों का प्रयोग कर रामलीला को और मनमोहक बनाया जाने लगा. इस दौरान उदय शंकर ने पातालदेवी में अपनी नृत्य मंडली भी स्थापित की.  कुमाऊं की रामलीला की विशेषता है कि रामलीला के मंचन में नाटक मंडली के लोग ही नहीं, बल्कि स्थानीय आम लोग विभिन्न पात्रों का अभिनय करते हैं, जो तीन माह की प्रशिक्षण में दक्षता प्राप्त कर भगवान श्रीराम की लीला में अभिनय करते हैं. वहीं, मंच निर्माण से लेकर आर्थिक संसाधनों को जुटाने में भी रामलीला मंचन से जुड़े लोगों की मुख्य भूमिका रहती है. कुमाऊंनी रामलीला में नारद मोह, सीता स्वयंवर, परशुराम-लक्ष्मण संवाद, दशरथ कैकई संवाद, रावण मारीच संवाद, सीता हरण, शबरी प्रसंग, लक्ष्मण शक्ति, अंगद रावण संवाद, मंदोदरी-रावण संवाद व राम-रावण युद्ध के प्रसंग मुख्य आकर्षण होते हैं. इस दौरान रामलीला मैदानों में रामलीला को देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं. रामलीला मैदान में दर्शकों की भीड़ लगी रहती है. शारदीय नवरात्र में होने वाली 10 दिनों की रामलीला के मंचन में करीब 65 पात्रों की आवश्यकता पड़ती है. जो राम, लक्ष्मण, सीता, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान, दशरथ, कैकेयी, कौशल्या, सुमित्रा, परशुराम, सुमन्त, शूर्पणखा, जटायु, निषादराज, अंगद, शबरी, मन्थरा, मेघनाद, कुंभकर्ण, विभीषण के अभिनय के लिए होते हैं. अल्मोड़ा की रामलीला में पारंपरिक संगीत, नृत्य, और संवादों के माध्यम से रामायण की कथा को जीवित किया जाता है। साथ ही इसके मंचन का तरीका पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं को समेटे हुए है। वहीं इस मौके पर रंगकर्मी ने बताया कि अल्मोड़ा की रामलीला ऐतिहासिक है। उन्होंने ने कहा कि अल्मोड़ा में रामलीला को 1860 के दशक में शुरू किया गया था। बताया गया कि वर्षों से चली आ रही प्रथा को जिले में पारंपरिक,धार्मिक और सांस्कृतिक रूप में समेटा हुआ है।वहीं इस बार की रामलीला में जनपद की महिलाओं व युवतियों को प्रतिभाग के लिए प्रोत्साहित किया गया है।सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में रामलीला की छटा देखते ही बनती है। आज भी नंदादेवी, रधुनाथ मंदिर, धारानौला, मुरलीमोहन, ढूंगाधारा, कर्नाटकखोला, खोल्टा, पांडेखोला, नारायण तेवाड़ी देवाल और खत्याड़ी में रामलीलाओं का आयोजन बड़े उत्साह के साथ होता है। अल्मोड़ा शहर में लक्ष्मी भंडार (हुक्का क्लब) की रामलीला का आकर्षण शहर की अन्य रामलीलाओं से अलग होता है। दशहरे के दौरान शहर की विभिन्न कमेटियों द्वारा बनाए गए डेढ़ दर्जन से अधिक रावण परिवार के पुतलों को बड़े उत्साह के साथ बाजार में घुमाया जाता है। अल्मोड़ा का दशहरा अब एक सांस्कृतिक मेले का रूप ले चुका है। इन पुतलों को देखने के लिए शहर में लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है।स्वर्गीय पंडित रामदत्त जोशी, ज्योतिषाचार्य स्वर्गीय बद्रीदत्त जोशी, स्वर्गीय कुंदनलाल साह, स्वर्गीय नंदकिशोर जोशी, स्वर्गीय बांकेलाल साह, नृत्य सम्राट स्वर्गीय पंडित उदय शंकर और स्वर्गीय ब्रजेंद्रलाल साह सहित कई अन्य दिवंगत व्यक्तियों और कलाकारों ने कुमाऊँ क्षेत्र की रामलीला को बढ़ावा देने में अद्वितीय योगदान दिया है। 1970 और 80 के दशक में लखनऊ आकाशवाणी के उत्तरायण कार्यक्रम ने भी कुमाऊँ क्षेत्र की रामलीला को प्रसारित करके इसके प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वर्तमान में, कई रंगकर्मी पारंपरिक कुमाऊँनी रामलीला के संरक्षण और संवर्धन के कार्य में लगे हुए हैं।उत्तराखंड की पहाड़ियों में बसा कुमाऊँ क्षेत्र इसका एक उदाहरण है। दिलचस्प बात यह है कि कुमाऊँ की रामलीला 150 साल पुरानी है, जिसकी वजह से यूनेस्को ने इसे दुनिया का सबसे लंबे समय तक चलने वाला ओपेरा घोषित किया है। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*

Share3SendTweet2
https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/10/yuva_UK-1.mp4
Previous Post

पेपर लीक कांड क्या सिस्टम में है खोट?

Next Post

विधायक कोटद्वार ने वन विभाग, नगर निगम, यूथ फाउंडेशन व क्षेत्रवासियों के संग चलाया स्वच्छता अभियान

Related Posts

उत्तराखंड

एसडीआरएफ के जवान सागर सिंह ने जीता वुशु प्रतियोगिता में कांस्य पदक

October 23, 2025
5
उत्तराखंड

सवाल उठ रहा है कि क्या ये योजनाएं इस अवधि में पूरी हो पाएंगी?

October 23, 2025
5
उत्तराखंड

रसायन विज्ञान पर लिखी किताबों भेंट की

October 23, 2025
8
उत्तराखंड

कपाट बंद होने के मौके पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी श्री केदारनाथ धाम पहुंचे

October 23, 2025
4
उत्तराखंड

केंद्रीय ओबीसी की सूची मे शामिल होने की आस लगाए सीमांत पैनखंडा समुदाय के लोगों का अब सब्र का बाँध भी टूटने लगा है

October 23, 2025
14
उत्तराखंड

सुबह साढ़े आठ बजे बंद हुए बाबा केदारनाथ के कपाट

October 23, 2025
4

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    67469 shares
    Share 26988 Tweet 16867
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    45755 shares
    Share 18302 Tweet 11439
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    38026 shares
    Share 15210 Tweet 9507
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    37422 shares
    Share 14969 Tweet 9356
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    37293 shares
    Share 14917 Tweet 9323

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

एसडीआरएफ के जवान सागर सिंह ने जीता वुशु प्रतियोगिता में कांस्य पदक

October 23, 2025

सवाल उठ रहा है कि क्या ये योजनाएं इस अवधि में पूरी हो पाएंगी?

October 23, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.