पुस्तकालय और दीवार पत्रिका के माध्यम से पूरे कनालीछीना विकासखंड में पढ़ने लिखने की संस्कृति को फैलाने के उद्देश्य से एक सघन अभियान की शुरुआत हो गई है। इसके पहले चरण में शिक्षक शिक्षिकाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है । बी आर सी कनालीछीना के सभागार में चल रहे प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक प्रशिक्षण के दौरान खंड शिक्षा अधिकारी श्री हिमांशु नौगाई ने इस बात पर बल देते हुए कहा कि इस शिक्षा सत्र में विकासखंड के हर विद्यालय में अनिवार्य रूप से दीवार पत्रिका तैयार की जाएगी। साथ ही इसके साथ जोड़ते हुए पुस्तकालय को भी सक्रिय किया जाएगा। उन्होंने कहा कि पुस्तकालयों की जिम्मेदारी बच्चों को सौंपी जानी चाहिए। उपलब्ध संसाधनों से ही इस कार्य की शुरुआत की जाए। कोई जरूरी नहीं है कि इसके लिए अलग से कोई कक्ष हो। रीडिंग कार्नर या झोला पुस्तकालय के माध्यम से भी इसे आगे बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि स्कूल भ्रमण के दौरान वह इनका विशेष रूप से अवलोकन करेंगे।
उल्लेखनीय है कि पीदीवार पत्रिका और पुस्तकालय एक दूसरे के पूरक हैं। पढ़ने की संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए इन दोनों गतिविधियों का विद्यालय में सुचारू रूप से संचालन होना बहुत जरूरी है। बच्चों में मौलिक अभिव्यक्ति, रचनात्मकता और नेतृत्व के गुणों को विकसित करने के लिए ये प्रभावशाली औजार हैं। दीवार पत्रिका ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया को धरातल पर उतारने का एक शानदार टूल है।
दीवार पत्रिका के अंतिम रूप से अधिक महत्वपूर्ण है दीवार पत्रिका की निर्माण प्रक्रिया। इसलिए इसकी निर्धारित प्रक्रिया का अनुपालन करना जरूरी है। यह प्रक्रिया लेखन से शुरू होकर,संपादन और प्रबंधन से आगे बढ़ती हुई लोकार्पण और समीक्षा तक जाती है। इसके लिए बच्चों की क्षमताओं पर विश्वास करते हुए उन्हें काम करने और निर्णय लेने की स्वायत्तता दी जानी चाहिए और बच्चों से निरंतर संवाद स्थापित किया जाना चाहिए। उन्हें अपनी गलतियों से सीखते हुए आगे बढ़ने के मौके देने चाहिए। शिक्षक को इसमें मात्र एक प्रेरक की भूमिका में रहना चाहिए। पुस्तकालय अभियान से जुड़े अपने अनुभवों के आधार पर उन्होंने कहा कि बच्चों में पढ़ने की आदतों का विकास करने के लिए समय समय पर बच्चों के सामने नई नई किताबों की चर्चा करने और पुस्तकालय को एक गतिविधि केंद्र के रूप में विकसित करने की जरूरत है।
“दीवार पत्रिका :एक अभियान” हिमांशु नौगाई जी की इस पहल का स्वागत करता है। इस पहल से निश्चित रूप से विद्यालयों में सीखने सिखाने का एक आनंददाई वातावरण बनेगा। बच्चों को सूक्ष्म अवलोकन, कल्पना,चिंतन और मौलिक अभिव्यक्ति के नए अवसर मिलेंगे।बच्चों में पढ़ने की आदत का विकास होगा।