देहरादून। घरों में आग लग जाए, बाढ़ का पानी भर जाए, कोई आपदा आ जाए या फिर घर में सांप घुस जाए। पीड़ित को अपेक्षा रहती है कि रेस्क्यू टीम जल्दी आकर उसे राहत पहुंचाए। लेकिन हमारे राज्य की रेस्क्यू व्यवस्था देहरादून राजधानी से चंद किमी दूर गांव में सास ने बहू से कहा, बहू ने कुत्ते से कहा और कुत्ते ने दुम हिला दी जैसी है।
आज सुबह मेरे घर में सांप घुस आया था। सांप रसोई घर के अंदर तक पहुंच गया। पत्नी चाय बनाने के लिए रसोई में गई थी, सांप देखकर चिल्लाते हुए बाहर निकल आई। सांप को घर से बाहर करने की एक घंटे से अधिक की हमारी मशक्कत बेकार रही तो सोच रेस्क्यू टीम को क्यों न इत्तिला दी जाए। 100 नंबर डायल किया, उन्होंने 102 पर बात करने को कहा। 102 में बात हुई, उन्होंने लच्छीवाला रेंजर से बात करने को कहा। उन्होंने निकटवर्ती वन चैकी का नंबर दिया। वहां किसी बच्चे ने फोन उठाया और कहा कि पापा दाड़ी बना रहे हैं, बाद में बात करना। फिर पिछले नंबर पर बात की, उन्होंने दूधली वन चैकी बात करने को कहा। दूधली चैकी से बताया गया कि यह उनका क्षेत्र नहीं है, रेंजर लच्छीवाला से बात करें। रेंजर से बात हुई, उन्होंने कहा कि रेस्क्यू टीम भेज रहे हैं।
इसी बातचीत में सांप को शायद हम पर दया आ गई, वह खुद ही जिस रास्ते से घर के अंदर आया था, घर के बाहर चला गया। हमने रेस्क्यू टीम को फोन कर अब न आने को कहा। सांप के खुद ही बाहर चले जाने पर उन्होंने अपनी जान छुड़ाई और आह भरते हुए हमारा धन्यवाद किया। लेकिन हमारी स्वतंत्रता दिवस और रक्षाबंधन की सुबह सांप की भेंट चढ़ गई।
इस पूरी प्रक्रिया में सवाल मन में उठा, यदि राजधानी के निकट, मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में आपातकालीन व्यवस्था सास ने बहू से कहा, बहू ने कुत्ते से कहा, कुत्ते ने दुम हिला दी, जैसी कहावत को चरितार्थ करने वाली है, तो दूर दराज के क्षेत्र में क्या हालात होते होंगे। वहां तो आपात व्यवस्था जैसी कोई व्यवस्था ही नहीं होती होगी। आपात अवस्था में जब ग्रामीण मरीज को 18-20 किमी कंधों में उठाकर सड़क पर लाते़ हैं, उनके क्या हालात होते होंगे।