डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
साध्वी ऋतंभरा का जन्म पंजाब के लुधियाना जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनका असली नाम निशा किशोरी था। 16 वर्ष की आयु में उन्होंने हरिद्वार के संत स्वामी परमानंद गिरी से दीक्षा लेकर साध्वी बनने का निर्णय लिया। इसके बाद, उन्होंने समाज सेवा और धार्मिक प्रचार में सक्रिय भूमिका निभाई। 1990 के दशक में, जब राम मंदिर आंदोलन ने जोर पकड़ा,साध्वी ऋतंभरा इसके प्रमुख चेहरों में से एक बन गईं। उनके जोशीले और ओजस्वी भाषणों ने लाखों लोगों को प्रेरित किया। उनकी आवाज़ ने न केवल पुरुषों को,बल्कि महिलाओं को भी इस आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उनके भाषणों के कैसेट्स बाजार में बिकते थे और मंदिरों में बजाए जाते थे। साध्वी ऋतंभरा के ओजस्वी भाषण के कई किस्से हैं। 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के दौरान साध्वी ऋतंभरा के भाषण वाला कैसेट गांव-गली तक गूंजता रहा। कई चुनावों में उन्होंने बीजेपी नेताओं के लिए प्रचार भी किया। अपने भाषण में एक ओर जहां वह राम मंदिर, राष्ट्रीयता और हिंदुत्व के समर्थन में तर्क रखती थीं, वहीं ‘ हम दो हमारे दो, बंग्लादेशी को आने दो’ जैसे नारों से विरोधियों पर सीधा हमला भी करती थीं। उनकी भाषण के कायल उनके राजनीतिक विरोधी भी थे। 1995 की घटना है, बिहार में लालू यादव और जनता दल का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा था। विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान साध्वी ऋतंभरा बीजेपी कैंडिडेट सुशील कुमार मोदी के पक्ष में जनसभा करने पटना सेंट्रल पहुंची। आयोजकों को चिंता थी कि जनता दल समर्थक सभा में हंगामा कर सकते हैं। सभा में विरोधियों की मौजूदगी से आयोजक चिंतित थे। साध्वी ऋतंभरा का आगमन हुआ तो विरोधियों ने व्यक्तिगत टीका-टिप्पणी शुरू कर दी। साध्वी ने अपने चिर परिचित अंदाज में बोलना शुरू किया। तुष्टिकरण के लिए कांग्रेस और जनता दल को खूब सुनाया। मगर यह ऋतंभरा की वाणी का जादू था कि सभा को व्यवधान करने आए विरोधी भी शांत होकर उनका भाषण सुनते रहे। सभा के समापन से पहले साध्वी ने जन समुदाय को ललकारते हुए कहा, अगर तुम्हारे राव के हाथ हैं या राम के हाथ हैं? अगर राम के हाथ है तो दोनों हाथ श्रीराम के लिए उठने चाहिए। इसके बाद वहां मौजूद जनसमुदाय ने जय श्री राम का जयघोष किया। हाथ उठाकर जयघोष करने वालों में विरोधी भी शामिल थे। सुशील कुमार मोदी दूसरी बार विधानसभा चुनाव बड़े अंतर से जीते साध्वी ऋतंभरा का जन्म लुधियाना के दोराहा में हुआ था। पहले उनका नाम निशा था। हरिद्वार के संत स्वामी परमानंद गिरी की शिष्या बनने के बाद उन्हें ऋतंभरा का नाम मिला। राम मंदिर आंदोलन में शामिल होने से साध्वी ऋतंभरा गंगा माता भारत माता यात्रा निकाल चुकी थीं। वह आरएसएस की महिला संगठन राष्ट्रीय सेविका समिति से जुड़ गईं। 1980 के दशक में उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रमों में शिरकत करना शुरू किया। राम मंदिर आंदोलन एक ऐसा पड़ाव था, जहां से वह हिंदू जागृति अभियान का कमान संभालने लगी। 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद ऋतंभरा को भी लिब्राहन आयोग ने 68 आरोपियों की लिस्ट में शामिल किया। आयोग ने कहा कि साध्वी ने तीखे भाषणों के जरिये मस्जिद विध्वंस के माहौल बनाया था। हालांकि इसके बाद से वह अनाथ बच्चों के लिए बनाए गए वात्सल्य ग्राम और कथाओं की ओर लौट गईं। 2020 में लखनऊ की विशेष अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया। जब 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो उन्होंने राम मंदिर बनाने के पक्ष में कई इंटरव्यू दिए। एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि ‘राम रहेंगे टाट में, भक्त रहेंगे ठाठ से’, ऐसा नहीं होना चाहिए। नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की सरकार में सरकार मंदिर नहीं बनेगा तो फिर कब बनेगा? उनकी प्रसिद्धि इतनी बढ़ी कि उन्हें ‘दीदी मां’ के नाम से भी देशभर में जाना जाने लगा। पद्म भूषण भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। यह सम्मान उन व्यक्तियों को दिया जाता है जिन्होंने कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा, खेल और सार्वजनिक जीवन में विशिष्ट योगदान दिया हो। साध्वी ऋतंभरा को यह सम्मान उनके सामाजिक कार्यों और राम मंदिर आंदोलन में उनके योगदान के लिए मिला है। राम मंदिर आंदोलन में अपने ओजस्वी भाषणों के जरिए पहचान बनाने वाली साध्वी ऋतंभरा को द्मभूषण पुरस्कार मिला। सामाजिक क्षेत्र में सेवा कार्यों के लिए उन्हें यह पद्म पुरस्कार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने दिया। बीते 25 जनवरी को उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार देने की घोषणा की गई थी। उन्होंने इस पुरस्कार को अपने गुरुदेव स्वामी परमानंद गिरि के चरणों में समर्पित किया। कहा कि इस सम्मान से गुरुदेव के सानिध्य और वात्सल्य की अवधारणा को सार्थक रूप मिला है। वृंदावन में वात्सल्य ग्राम की संस्थापक साध्वी ऋतंभरा ने पद्मभूषण मिलने के बाद कहा कि इस सम्मान से परमशक्ति पीठ और वात्सल्य ग्राम के वह सभी सहयोगी सम्मानित हुए हैं, जिन्होंने मानव सेवा के कार्यों में अपना सर्वस्व समर्पित किया। वात्सल्य ग्राम में अनाथ बच्चों की परवरिश की जाती है। ऐसे बच्चों को साध्वी ऋतंभरा ने न केवल परिवार दिया बल्कि उनकी पढ़ाई से लेकर शादी की जिम्मेदारी भी उठाई। उनके सेवा कार्यों का ही परिणाम है कि आज वात्सल्य ग्राम में रह रहे बच्चे अच्छे कालेजों में पढ़ाई कर रहे हैं। 1980 के दशक में उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रमों में शिरकत करना शुरू किया। राम मंदिर आंदोलन एक ऐसा पड़ाव था, जहां से वह हिंदू जागृति अभियान का कमान संभालने लगी। अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन में शामिल रहीं साध्वी ऋतंभरा मुंबई में घुसपैठियों के खिलाफ हुंकार भरी। साध्वी ऋतंभरा ने घुसपैठियों पर कार्रवाई की मांग करते हुए कहा अहिल्याबाई होल्कर और दुर्गावती की जन्मशताब्दी पर पूरे देश में कार्यक्रम हो रहे हैं। हमारी युवा बहनों को अतीत के स्वाभिमानी और भारत को समर्पित मातृशक्ति का बोध होना चाहिए।साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि आप अपनी जड़ से कटकर कभी हरे भरे नहीं हो सकते हो। अपनी संस्कृति, इतिहास और धर्म को समझना बहुत जरूरी है। देश में षड्यंत्रों को असफल सिद्ध करने के लिए आज दुर्गा और मातृशक्ति ने संकल्प लिया है। जितने भी घुसपैठिये हैं, उनको चुन-चुनकर देश से बाहर करना चाहिए। आप अगर इतिहास को देखोगे तो जिनको हम दया करके शरण देते हैं, वो ही फिर देश में अराजकता को पैदा करते हैं। 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद ऋतंभरा को भी लिब्राहन आयोग ने 68 आरोपियों की लिस्ट में शामिल किया। आयोग ने कहा कि साध्वी ने तीखे भाषणों के जरिये मस्जिद विध्वंस के माहौल बनाया था। हालांकि इसके बाद से वह अनाथ बच्चों के लिए बनाए गए वात्सल्य ग्राम और कथाओं की ओर लौट गईं। 2020 में लखनऊ की विशेष अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया। जब 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो उन्होंने राम मंदिर बनाने के पक्ष में कई इंटरव्यू दिए। एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि ‘राम रहेंगे टाट में, भक्त रहेंगे ठाठ से’, ऐसा नहीं होना चाहिए। नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की सरकार में सरकार मंदिर नहीं बनेगा तो फिर कब बनेगा? उस दौर में ही इंदौर की एक जनसभा में उन्होंने धर्म परिवर्तन कराने वाली ईसाई मिशिनरी पर विचार रखे। तब तत्कालीन सीएम दिग्विजय सिंह के आदेश पर पुलिस ने साध्वी को भड़काऊ भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। वह 11 दिनों तक जेल में रहीं। हाई कोर्ट से जमानत के बाद वह रिहा हुईं। 2022 में उनका नाम फिर चर्चा में आया, जब अमेरिका में न्यू जर्सी के चर्च ने उनकी यात्रा का विरोध किया। राम मंदिर आंदोलन के बाद ऋतंभरा ने वृंदावन में अनाथ बच्चों और बुजुर्गों के वात्सल्य ग्राम की स्थापना की। तीन दशक तक अनाथ बच्चों और बुजुर्गों को एक साथ लाकर परिवार के संकल्पना के साथ सेवा में जुटी रहीं। इस दौरान उन्होंने राजनीति बयानों और कार्यक्रम से दूरी बना ली। वात्सल्य ग्राम के बच्चे उन्हें दीदी मां के नाम से पुकारते हैं। वह रामकथा और श्रीमदभगवत को लेकर भी प्रवचन करती हैं। आज भी उनके लाखों अध्यात्मित फॉलोअर हैं। कुछ लोग जन्म से ही महान होते हैं जब कि कुछ लोग अपने सद्कर्माें से न केवल महान बन जाते हैं बल्कि इतिहास बना जाते है। ‘दीदी मां’ के नाम से मशहूर साध्वी ऋतंभरा अपने सेवाभावी कार्यो के कारण दूसरी श्रेणी में स्वतः आ गई है।साध्वी ऋतंभरा अपने अंदर आए सेवा के बीज के प्रस्फुटन का श्रेय अपने गुरू श्री परमानन्द महराज को देती हैं। जिस समय साध्वी ऋतंभरा का सन्यास हुआ उस समय भारत में स्ऋियों के सन्यास की प्रथा न थी लेकिन उनके गुरू ने साध्वी ऋतंभरा को सन्यास की दीक्षा देकर नारी को गौरव दिलाया था। बहुत कुरेदने पर वे बताती हैं कि कुछ अनाथ आश्रमों व महिला आश्रमों को देखने और वहां बच्चियों का ठीक से रखरखाव न होता देख उनके अन्दर वात्सल्य भाव जागृत हुआ। इसके बाद उन्होंने निश्चय किया कि किसी बच्चे या बच्ची को देवकी की कोख भले न दे पाएं पर उसे यदि यशोदा की तरह गोद पा जाय तो वह भी कान्हा की तरह प्रेम पा सकता है।एक प्रार्थना है “ वर दो भगवन हर मानव में तेरे दर्शन पाएं , मानवता अपनाएं। ” प्रार्थना की इन लाइनों को साध्वी ऋतंभरा ने न केवल अपने जीवन में आत्मसात किया बल्कि उसे व्यवहारिक रूप दिया इसीलिए वे साध्वी ़ऋतंभरा से ‘दीदी मां’ बन गई। उन्होंने समाज के ऐसे तबके के साथ सेवा का प्रकल्प शुरू किया जिसे कोई भी और यहां तक उस बच्ची की मां तक स्वीकार करने को तैयार नही होती।उन्होने समाज से परित्यक्त बच्चियों को न केवल स्वीकार किया बल्कि उन्हें प्यार दिया जिससे वे उनकी दीदी बन गईं और मां की तरह उनका पालन पोषण किया जिससे वे उनकी मां बन गईं।उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ा और समाज की परित्यक्त बच्चियों को घर का सा वातावरण देकर उन्हें शिक्षा दिलाया। दादी, मौसी और नानी इस परिवार की अभिन्न अंग बनी तो दीदी और मां वे स्वयं बनी। इसका असर यह हुआ कि बच्चियों को ऐसी संस्कारयुक्त शिक्षा मिली कि वे समाज के लिए वरदान बन गई। वर्तमान में वात्सल्य ग्राम में अन्य सेवा प्रकल्पों के शुरू होने से दादी, मौसी , मां और नानी की भूमिका अन्य एैसी महिलाएं कर रही हैं जिनकी शिक्षा वात्सल्य ग्राम में ही हुई है।इस विद्यालय में भाव के संबंध रक्त के संबंधों से अधिक प्रगाढ़ है।कहा जाता है कि हीरे या नीलम की पहचान उसका असली पारखी ही कर सकता है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री रामप्रकाश ने राम जन्मभूमि आंदोलन के समय साघ्वी ऋतंभरा के प्रभावी भाषणो को सुना तो उन्होंने अंदाजा लगा लिया कि इस साध्वी में समाज के लिए कुछ करने की लालसा है।इसलिए उन्होंने वात्सल्य ग्राम की वर्तमान भूमि साध्वी को सेवा प्रकल्पों को चलाने के लिए दिया । कांग्रेसियों ने इसका जबर्दस्त विरोध किया पर कहा जाता है कि जो ’’घट घट में भगवान देखता है ठाकुर उसी के साथ हो जाते हैं’’। यही कारण है कि साध्वी ऋतंभरा के सेवा कार्य में आनेवाले कांटे उनके लिए फूल बन गए तथा कांग्रेसियों को मुंह की खानी पड़ी ।आज वात्सल्य ग्राम सेवा का आदर्श बन चुका है। यहां पर न केवल अनाथ बच्चियों को अभिनव तरीके से शिक्षा दी जा रही है बल्कि समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों की बच्चियों को संस्कारयुक्त शिक्षा वात्सल्य ग्राम के दो अन्य स्कूलों में दी जा रही है।दीदी मां का कहना है कि यदि एक बच्ची संस्कारित बन जाती है तो एक परिवार के संस्कारित होने की नीव पड़ जाती है।दीदी मां ने वात्सल्य ग्राम में बच्चियों को आत्म निर्भर बनाने से लेकर आत्मरक्षार्थ जीवन बिताने की शिक्षा दी वहीं उनके अंदर देश प्रेम की भावना जागृत करने के लिए बच्चियों को सीमा पर ले जाकर जवानों के राखी बांधने का सराहनीय कार्य किया। देश सेवा के कार्य कों आगे बढ़ाते हुए लड़कियों के लिए सैनिक स्कूल खोलने का निश्चय किया तथा वात्सल्य ग्राम में देश के पहले बालिका सैनिक स्कूल की शुरूवात एक जनवरी से होने जा रही है शिक्षा के अनुठे प्रकल्प के साथ वात्सल्य ग्राम में एक आधुनिक चिकित्सालय एवं एक गोशाला भी है जो सेवा कार्य का नमूना बन चुके है।।आध्यात्मिक जगत की ऐसी सेवाभावी हस्ती दीदी मां से उनके शिष्यों का प्रभावित होना स्वाभाविक है। दीदी मां के जीवन में 60 वर्ष पूरे होने पर सभी शिष्य / शिष्याएं मिलकर वात्सल्य ग्राम में एक अनूठा कार्यक्रम दीदी मां का ’’षष्ठी महोत्सव’’ 30 दिसंबर से ,एक जनवरी तक आयोजित कर रही’’तुम जियेा हजारों साल साल के होवे वर्ष हजार ’ तथा ’’इतिहास बनानेवाले ही इतिहास बनाया करते हैं’’ क्योंकि मदर टेरेसा ने कुष्ठ रोगियों की सेवा का जो आदर्श प्रस्तुत किया उसी प्रकार का काम अनाथ बच्चियों के लिए करके साध्वी ऋतंभरा से वे ’’दीदी मां ’’ बन गई तथा नीचे लिखी लाइने संभवतः उन जैसी सेवाभावी महिला के लिए लिखी गई है।ः-लगी चहकने जहां पे बुलबुल, हुआ वहीं पर जमाल पैदा। कमी नहीं कद्रदां कि लेकिन करे तो कोई कमाल पैदा।। साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि हमारे यहां देवों की आराधना के दौरान खान-पान की पवित्रता सबसे जरुरी होती है। यदि व्यवस्था विधर्मियों के हाथ में चली जाएगी। तो कौन गारंटी देगा कि उसमें पवित्रता है। हमारे तीर्थ स्थलों पर केवल उन्हें ही जाना चाहिए जो कि भगवान को मानते हैं। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*