डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
सभी राज्यों के दवा नियंत्रकों, केन्द्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) व स्टेट ड्रग अथारिटी ने पहले ड्रग अलर्ट जारी किया. इसमें देशभर की 131 दवाओं के सैंपल गुणवत्ता पर खरे नहीं उतरे. इनमें पाकिस्तान में बनी ब्यूटी क्रीम व चीन में बनी लिपस्टिक का सैंपल भी शामिल है. अधिकतर सैंपल सर्दी, खांसी, जुकाम, गैस, एलर्जी व दर्द निवारण के लिए प्रयोग होने वाली दवाओं के फेल हुए हैं. इनमें से 32 दवाओं का उत्पादन हिमाचल के उद्योगों में हुआ है. हिमाचल के अलावा उत्तराखंड, गुजरात, पंजाब, बंगाल, उप्र, केरल, सिक्किम, मप्र, तेलंगाना, हरियाणा के उद्योगों में बनी दवाओं के सैंपल गुणवत्ता पर खरे नहीं उतरे हैं.प्रदेश में स्थित फार्मा कंपनियों के दावाओं के सैंपल लगातार फेल हो रहे हैं. जिसके चलते प्रदेश में मौजूद फार्मा कंपनियों में बन रही दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल खड़े होने लगे हैं. दरअसल, देश भर में फार्मा कंपनियों की ओर से बनाई जा रही दवाइयां की गुणवत्ता और मानकों को लेकर केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन लगातार सैंपल लेकर जांच कर रही है. इसी क्रम में जून महीने में केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन ने तमाम फार्मा कंपनियों की दावों का सैंपल लिया था. उत्तराखंड में एक बार फिर दवाइयों के सैंपल फेल हुए हैं. प्रदेश में बनीं 14 दवाइयां गुणवत्ता जांच में फेल पाई गई. केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) और उत्तराखंड ड्रग विभाग की संयुक्त सेंपलिंग के बाद रिपोर्ट सामने आई है. इसके बाद केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन ने उत्तराखंड ड्रग विभाग को अलर्ट करते हुए अभियान तेज करने के निर्देश दिए हैं. उत्तराखंड में बनाई जा रही 14 दवाइयां मानकों के विपरीत पाई गई है. यह दवाएं अलग-अलग इलाज के लिए बाजारों में उतारी गई थी, चिंता की बात यह है कि केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन यानी सीडीएसओ की ओर से कहा है कि ये दवाइयां उत्तराखंड के बाजारों में जहां-जहां भी भेजी गई है, उन्हें तत्काल वापस मंगवाया जाए. इसके साथ ही देहरादून और हरिद्वार में बनने वाली दवाइयों की तमाम कंपनियों को नोटिस जारी करने को कहा गया है. जिन दवाइयां को गुणवत्ता के विपरीत पाया गया है, उसमें बुखार शुगर, कमजोरी, मानसिक बीमारी और कई तरह की इलाज की दवा शामिल हैं. समय-समय पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा अभियान चलाया जाता है, जिसमें दवाइयों की गुणवत्ता को लेकर सैंपलिंग होती है. जिन दवाइयां के सैंपल फेल हुए हैं उनके सैंपल मई के महीने में लिए गए थे. देहरादून और हरिद्वार में जिन कंपनियों में दवाइयां बन रही हैं, उन कंपनियों में विभाग लगातार निरीक्षण करता है. हरिद्वार में ही बीते 3 महीने में 25 से ज्यादा बार कंपनियों का निरीक्षण किया गया और अब तक ड्रग विभाग की कार्रवाई में ड्रग माफियाओं के खिलाफ लगभग 50 मुकदमे भी दर्ज किए गए हैं. जिन कंपनियों के सैंपल फेल पाए गए हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है और लगातार फार्मा कंपनियों का निरीक्षण भी किया जा रहा है. इस बात का विशेष ध्यान रखा जा रहा है कि फैक्ट्री में बनने वाली दावाइयों में किसी भी तरह की अनियमित ना बरती जाए. बता दें कि उत्तराखंड में एक बड़ा बाजार फार्मा कंपनियों का है, लगभग 400 से अधिक ऐसी कंपनी हैं, जो दवाइयां या अन्य सामग्री बना रही है. जारी रिपोर्ट के अनुसार देश के तमाम राज्यों में निर्मित 31 दवाओं की गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतरी है. जिसके चलते दवा मानक नियंत्रण संगठन ने अलर्ट जारी किया है. साथ ही राज्यों के ड्रग्स कंट्रोलर को कार्रवाई के निर्देश दिए हैं. जिसको देखते हुए उत्तराखंड के ड्रग्स कंट्रोलर ताजबेर सिंह ने जिन फार्मा कंपनियों की दवाओं के सैंपल फेल हुए हैं, उस बैच की दवाओं को बाजार से वापिस मांगने के निर्देश दिए हैं. ये दवाइयां उत्तराखंड में स्थित कई फार्मा कंपनियों में बनाए गए हैं. जिन फार्मा कंपनियों के दवाइयों का सैंपल फेल हुए हैं वो फार्मा कंपनियां रुड़की, हरिद्वार और काशीपुर में स्थित हैं.उत्तराखंड की बात करें तो पिछले चार महीने से लगातार हर महीने उत्तराखंड राज्य में निर्मित दवाओं की गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतर रही हैं. दरअसल, मार्च महीने में उत्तराखंड में निर्मित 10 दवाओं के सैंपल फेल हुए थे. इसी तरह अप्रैल महीने में 10 फार्मा कंपनियों की 12 दवाई के सैंपल फेल हुए थे. मई महीने में उत्तराखंड में निर्मित 8 दवाओं के सैंपल फेल हुए थे. वहीं, जून महीने में उत्तराखंड में निर्मित 5 दवाओं के सैंपल फेल हुए हैं. यानी पिछले चार महीने में 35 दवाओं के सैंपल फेल हुए. नकली या जाली दवाइयों का उत्पादन कई कारणों से हो सकता है. इसमें अपराधिक संगठनों द्वारा लाभ कमाने की कोशिश, अपर्याप्त विनियमन और गुणवत्ता नियंत्रण की कमी शामिल है. ये नकली दवाइयां खतरनाक हो सकती हैं. क्योंकि उनमें गलत तत्व हो सकते हैं. गलत खुराक हो सकती है या पूरी तरह से खाली भी हो सकती हैं, जिससे अप्रभावी उपचार या नुकसान हो सकता है. मिलावट वाली दवा लेने से कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. इसके कारण गंभीर बीमारी भी हो सकती है. जिले के सिडकुल क्षेत्र की छह, रुड़की और भगवानपुर की दो-दो तथा हरिद्वार औद्योगिक क्षेत्र, बहादराबाद और बहादुरपुर सैनी की एक-एक कंपनी के सैंपल परीक्षण में फेल पाए गए हैं। केंद्र और राज्य लैब की जांच में हरिद्वार सिडकुल की एक नामी कंपनी की एलबेंडाजोल आईपी 400 एमजी टैबलेट का सैंपल भी फेल हो गया है।पेट, एंटीबायोटिक सहित 20 से अधिक दवा के सैंपल जांच में नॉट स्टैंडर्ड क्वालिटी पाए गए हैं। रिपोर्ट में सिडकुल स्थित एक प्रसिद्ध दवा कंपनी की ओर से निर्मित एलबेंडाजोल टैबलेट आईपी 400 एमजी को भी अमानक करार दिया गया है। इसके अलावा एमोक्सिसिलिन, पेरासिटामोल, डापाग्लिफ्लोज़िन, ओलांज़ापाइन, ओन्डेंसेट्रॉन, जिंक सल्फेट, डाइसाइक्लोमाइन आदि भी गुणवत्ता परीक्षण में असफल रही हैं।स्वास्थ्य सुरक्षा पर बड़ा सवालयह मामला न केवल मानक उल्लंघन का है, बल्कि लोगों की सेहत के साथ भी खिलवाड़ है। औषधि विभाग ने कंपनियों को फार्मा नियमन की गाइडलाइनों का कड़ाई से पालन करने की चेतावनी दी है।वहीं, जांच रिपोर्ट ने फार्मा उद्योग पर निगरानी की आवश्यकता को एक बार फिर उजागर कर दिया है, ताकि बाजार में केवल सुरक्षित, प्रभावी और मानकों के अनुरूप दवाएं ही पहुंच सकें।हरिद्वार की फार्मा इंडस्ट्री एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है। ड्रग विभाग का कहना है कि इन सभी दवाओं की गुणवत्ता निर्धारित मानकों पर खरी नहीं उतरती है, जिससे इनके इस्तेमाल से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। विभाग अब संबंधित फार्मा कंपनियों को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगेगा। यदि जवाब संतोषजनक नहीं पाया गया, तो इन कंपनियों पर लाइसेंस निलंबन और उत्पादन बंद कराने जैसी कार्रवाई भी की जा सकती है। उत्तराखंड में मौजूद फार्मा कंपनियों के दवाओं के फेल होने का सिलसिला जारी है. बावजूद इसके अभी तक किसी भी फार्मा कंपनी पर सरकार कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाई है. केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन पिछले कुछ महीने से लगातार देश भर में बन रही तमाम फार्मा कंपनियों के दवाओं का सैंपल लेकर जांच कर रहा है. हर महीने उत्तराखंड समेत तमाम राज्यों में बनी दवाओं के सैंपल मानकों पर खरे नहीं उतर रहे हैं. इसी क्रम में उत्तराखंड में बनी 55 दवाओं के सैंपल पिछले बार में फेल हो चुके हैं. इसके बाद भी राज्य सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है.। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*