डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
आज के अखबार भले सीधे नहीं कह रहे हैं नवोदय टाइम्स की खबर में अन्य बातों के अलावा नागर विमानन मंत्री, का यह दावा भी है कि हालात तीन दिन में सामान्य होंगे। दूसरी ओर, इंडिगो के सीईओ ने सोशल मीडिया पर वीडियो जारी करके कहा है स्थिति 10 से 15 दिसंबर तक सामान्य हो पाएगी। उन्होंने यह भी कहा है कि यात्रियों को उड़ान रद्द होने की सूचना भेजी जा रही है और उनसे गया है कि यात्रा के लिए एयरपोर्ट न आएं। इससे भीड़ नहीं होगी, फोटो नहीं होगी, वीडियो नहीं होगा, खबर नहीं होगी पर समस्या बनी रहेगी। आपको लगेगा कि विमानन मंत्री ने जो कहा वह पूरा हुआ। और यही इस सरकार की कार्यशैली है। देश में यह मुद्दा बना ही नहीं कि सरकार ऐसे आदेश देती ही क्यों है? क्या सरकार को अपने ऐसे आदेशों से होने वाली परेशानियों की जानकारी नहीं है या परवाह ही नहीं है। जो भी हो, चिन्ताजनक है अमर उजाला में आज इंडिगो की खबर पहले पन्ने पर नहीं है। संभवतः आधा पन्ना विज्ञापन के कारण। स्थिति सामान्य होने के मामले में यहां इंडिगो का अनुमान बताया गया है और खबर के अनुसार, 10-15 तक स्थिति सामान्य होने की उम्मीद है। पेश है आज के अखबारों की खास बातेंदेशबन्धु – हवाई अड्डों पर उड़ानें रद्द होने से हाहाकार। खबर के अनुसार, उड़ानें रद्द होने से सरकार पर भी दबाव बढ़ा है। इसके बाद से केंद्र सरकार शुक्रवार को बैकफुट पर आ गई है। नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने एयरलाइंस खासकर इंडिगो को 10 फरवरी 2026 तक अस्थायी राहत दी है। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर है, इंडिगो की अस्त-व्यस्तता ने सरकार को सुरक्षा नियम स्थगित करने के लिए मजबूर किया। नए नियमों से कोशिश की गई थी कि पायलट के काम के समय कम किए जाएं पायलट के संगठन ने नियमों में ढील देने के डीजीसीए के फैसले के लिए डीजीसीए की आलोचना की है और इस बात पर गंभीर चिन्ता जताई है कि कृत्रिम संकट खड़ा किया गया था। लेकिन घुमा-फिर कर जो कह रहे हैं उससे साफ है कि इंडिगो संकट का सारा मामला नियमों में बदलाव के कारण है। इसके लिए क्रू की आवश्यकता बढ़नी थी। इंडिगो ने कहा है कि उसने इस संबंध में गलत अनुमान लगाया। नियम लागू होने से पहले क्रू की संख्या में वृद्धि की जरूरत थी तो इसे सुनिश्चित करना नए नियम बनाने और उन्हें लागू करने वालों का ही काम होगा। बेरोजगारों के इस देश में जब वर्षों से स्किल इंडिया चल रहा है तो इसकी जरूरत का एक अलग आयाम भी है। खबरों से लगता है कि उसकी भी अनदेखी की गई है। क्रू की व्यवस्था साधारण या आसान नहीं है और नियम लागू करने की तारीख की ही तरह इसकी भी तारीख तय होनी चाहिए थी और अब अकेले इसके लिए इंडिगो को दोषी ठहरा दिया जाए या बलि का बकरा बन भी जाए तो कुछ किया नहीं जा सकता है। सोचना होगा कि ईनडिगो मामले में अब लगता है कि सब कुछ संस्थानों के भरोसे छोड़ दिया गया था और इंडिगो चूक गया था। अब इंडिगो का जो भी किया जाए, नुकसान तो देश और जनता को हो चुका। अखबारों ने भले नहीं बताया – सरकार की पोल भी खुल गई है। देश की सबसे अधिक बाजार हिस्सेदारी वाली विमानन कंपनी इंडिगो को नई पायलट रोस्टर नीतियों के कारण बड़ी संख्या में उड़ानें रद्द करनी पड़ी हैं, जिसने मानव संसाधन प्रबंधन पर अवांछित रोशनी डाली है। मानव संसाधन प्रबंधन इस उद्योग में कुशल और सुरक्षित संचालन के केंद्र में है। हालांकि विमानन कंपनी ने देशव्यापी अव्यवस्था के लिए माफी मांगी है लेकिन योजना के स्पष्ट अभाव पर समुचित प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।देश की सभी विमानन कंपनियों के पास इन नियमों की तैयारी के लिए पूरा समय था। नागर विमानन महानिदेशालय यानी डीजीसीए ने जनवरी 2024 में इसकी अधिसूचना जारी करते हुए कहा था कि जून 2024 में इसे शुरू कर दिया जाएगा मगर विमानन कंपनियों ने तैयारी के लिए और समय मांगा, जिसके बाद इसे टाल दिया गया। इसके बाद डीजीसीए ने नियमों को दो चरणों में जुलाई और फिर नवंबर 2025 में लागू करने की इजाजत दी। इसका अर्थ यह है कि विमानन कंपनियों के पास नए रोस्टरिंग नियमों की तैयारी के लिए एक वर्ष का समय था।देश के विमानन उद्योग की तेज वृद्धि को देखते हुए ये नये नियम अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं और अंतरराष्ट्रीय नागर विमानन संगठन के श्रेष्ठ व्यवहारों के अनुरूप भी हैं। ये मुख्य तौर पर पायलटों की थकान से संबंधित हैं। ध्यान रहे कि दुनिया भर में होने वाली विमान दुर्घटनाओं में से 20 फीसदी पायलटों की थकान के कारण होती हैं। द फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (एफडीटीएल) में सप्ताह में 48 घंटे आराम की बात कही गई है। इसके मुताबिक रात में केवल दो विमानों के उतरने यानी लैंडिंग की इजाजत है और इनमें मध्य रात्रि से सुबह छह बजे (पहले पांच बजे) तक होने वाली लैंडिंग शामिल हैं। लगातार ड्यूटी की अवधि भी तय की गई है। इसके अलावा विमान चालकों को उड़ान के तय समय से एक घंटे से अधिक अवधि तक उड़ान भरने की इजाजत नहीं है। जो चालक बहुत लंबी दूरी की उड़ान भरते हैं उन्हें दो लगातार उड़ानों के बीच कम से कम 24 घंटे का आराम देने की बात भी इसमें शामिल है।आसानी से समझा जा सकता है कि इन आवश्यकताओं के लिए विमानन कंपनियों को अपने यहां पायलट और अन्य कर्मचारियों की भर्ती तेज करनी होगी। वास्तव में ऐसा केवल एफडीटीएल के मानक की वजह से ही नहीं करना होगा। इंडिगो 1,000 से अधिक नए विमान खरीदने वाली है और एयर इंडिया करीब 500 विमानों का ऑर्डर दे रही है। छोटी विमानन कंपनियां भी विस्तार कर रही हैं। ऐसे में निकट भविष्य में प्रशिक्षित पायलटों की मांग 20,000 को पार कर सकती है। वर्तमान में पायलटों की कमी मांग और आपूर्ति के असंतुलन की वजह से कम है और समय-समय पर विमानन कंपनियों द्वारा भर्तियां धीमी करने की वजह से ज्यादा है।विमानन क्षेत्र में मांग कुछ समय के लिए ही बढ़ती है, जिसकी वजह से इंडिगो जैसी बड़ी विमानन कंपनियां सभी विभागों में न्यूनतम कर्मचारियों के साथ काम करती हैं। फेडरेशन ऑफ इंडियन पायलट्स ने इस विमानन कंपनी पर भर्तियां रोकने का आरोप लगाया है और डीजीसीए से आग्रह किया है कि जब तक विमानन कंपनियों के पास सुरक्षित और भरोसेमंद परिचालन के लिए पर्याप्त कर्मचारी न हों तब तक उनके सीजनल उड़ान कार्यक्रमों को मंजूरी न दी जाए।दूसरी विमानन कंपनियों को इतने बड़े पैमाने पर दिक्कत नहीं हुई इसलिए यह दलील कुछ हद तक सही भी लगती है। मगर कंपनी कह सकती है कि प्रशिक्षण संस्थानों से निकले पायलटों की गुणवत्ता तेज भर्ती की राह में बाधा है। इस साल के आरंभ में डीजीसीए ने उड़ान प्रशिक्षण संस्थानों की रैंकिंग जारी की और बताया कि कोई भी शीर्ष श्रेणी (ए+ और ए) में नहीं पहुंच पाया और ज्यादातर बी तथा सी श्रेणी में रहे।इसका मतलब है कि विमानन कंपनियां नियमित भर्ती करना चाहें तो भी गुणवत्ता की वजह से वे ऐसा नहीं कर सकतीं। साथ ही नए पायलटों के प्रशिक्षण या महंगे विदेशी पायलटों की भर्ती का आर्थिक बोझ भी उनके लिए मुश्किल होता है। कुल मिलाकर यह संकट बताता है कि विमानन क्षेत्र में मानव संसाधन की जरूरतों, उनकी उपलब्धता और प्रशिक्षण पर व्यापक ध्यान देने की आवश्यकता है। कुल मिलाकर, हालत यह है कि देश नए नियमों की भूलभुलैया में फंसा हुआ है। इंडिगो संकट से लेकर श्रम-कानून, किसान-कानून और लॉकडाउन तक क्या यह शासन-शैली का पैटर्न है? भारत में पिछले एक दशक में जिस तरह नियम, कानून और सरकारी निर्देश आते-जाते रहे हैं, उससे एक मूलभूत प्रश्न बार-बार उभरता है—क्या यह केवल प्रशासनिक असावधानी है या शासन-शैली का एक स्थायी पैटर्न? मीडिया वाले बताएं या नहीं इंडिगो संकट भी इसी सवाल की कड़ी बनकर सामने आया है। नए एयरक्रू फटीग नियम लागू किए गए, एयरलाइन ने समय रहते तैयारी नहीं की, यात्रियों को भारी परेशानी हुई, और अंत में सरकार को नियमों को आंशिक रूप से “फ्रीज़” करना पड़ा। इससे संबंधित अखबारों की खबरों के बारे में ऊपर लिख चुका हूं। समस्या सिर्फ इंडिगो या उसके मामले में किए गए सरकारी फैसले से नहीं है। कानून जैसे बनाए जाते रहे हैं और बड़े फैसलों के क्रियान्वयन में असंगतता, इनकी गति और कभी-कभी मनमानेपन का यह सिलसिला कई क्षेत्रों में दिखता है। हाल में श्रम कानून उससे पहले किसान कानून, नोटबंदी, जीएसटी, आधार-संबंधित नीतियाँ, कोविड प्रबंधन, पीएम केयर्स, पेगासस और अब यह नया एयरक्रू फटीग नियम। पारदर्शिता की कमी और संवादहीनता की स्थिति अपनी जगह है। इंडिगो संकट भी ऐसा ही लगता है। समस्या नियमों से नहीं, सरकार –एयरलाइन – नियामक में तालमेल न होने या मनमानी या सरकार की कार्यशैली से है। पायलट और क्रू के लिए नए नियमों का उद्देश्य स्पष्ट था। उन्हें आराम के लिए पर्याप्त समय देना। इस तरह सुरक्षा बढ़ाना। लेकिन नियामक (डीजीसीए) ने जो समय दिया था, उसका उपयोग इंडिगो जैसे सबसे बड़े ऑपरेटर ने नहीं किया—न नई भर्ती, न पर्याप्त रोस्टर-योजना। बेशक यह अकारण नहीं होगा और पूरे संकट से उसका नुकसान हुआ ही है। फिर भी वही पुराना रास्ता अपनाया गया नियमों में त्वरित छूट। सवाल उठता है: जब नियम लागू करने की तैयारी नहीं थी, तो नियम बनाए क्यों? और अगर नियम सुरक्षा के लिए थे, तो एक एयरलाइन की अव्यवस्था के कारण नियम “फ्रीज़” क्यों हुए? यह एक ऐसी प्रशासनिक अस्पष्टता है जो इस सरकार में बार-बार देखने को मिलती है। कई घटनाएँ गवाह हैं। इंडिगो सकंट के चलते कई यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ा और ऐसे में इंडियो में बड़े पैमाने पर उड़ानों के कैंसिल होने और देरी की समस्या के पहले ही दिन कंपनी के निदेशक मंडल ने इमरजेंसी मीटिंग की था. इस बैठक में प्रबंधन की ओर से इंडिगो संकट की वजह और उसके प्रभाव पर पूरा लेखा-जोखा दिया गया था.बैठक के बाद केवल बोर्ड सदस्यों की एक अलग मीटिंग भी हुई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि स्थिति से तुरंत निपटने के लिए एक क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप का गठन किया जाए. यह ग्रुप लगातार बैठकें कर रहा है और प्रबंधन द्वारा उठाए जा रहे कदमों की नियमित जानकारी प्राप्त कर रहा है, ताकि जल्द से जल्द सामान्य संचालन शुरू किया जा सके. इसके अलावा, उन निदेशकों के साथ भी कई टेलीफोनिक चर्चाएं भी हुई हैं जो सीएमजी का हिस्सा नहीं हैं. बोर्ड की इन बैठकों का मुख्य उद्देश्य जल्द से जल्द यात्रियों और अन्य हितधारकों को हो रही परेशानियों को कम करना और एयरलाइन के नेटवर्क में परिचालन व्यवस्था को तेजी से सामान्य करना शामिल रहा. इंडिगो के प्रवक्ता के अनुसार, बोर्ड ग्राहकों को राहत प्रदान करने के लिए पूरी कोशिश कर रहा है, जिसमें उड़ान कैंसिल होने पर रिफंड, तथा कैंसिलेशन/री-शेड्यूलिंग पर शुल्क माफ करना भी है. इंटरग्लोब एविएशन लिमिटेड (इंडिगो) के निदेशक मंडल ने जिस दिन फ्लाइट रद्द होने और देरी की समस्या शुरू हुई, उसी पहले दिन बैठक की और निदेशकों को प्रबंधन द्वारा इंडिगो संकट की वजह और गंभीरता के बारे में विस्तृत ब्रीफिंग दी गई. इतना ही नहीं, यह ग्रुप नियमित रूप से बैठक कर रहा है ताकि स्थिति पर नजर रखी जा सके और प्रबंधन द्वारा उठाए जा रहे कदमों की लगातार जानकारी ली जा सके, जिससे जल्द से जल्द सामान्य परिचालन बहाल हो सके. इन सभी बैठकों और बातचीत का एक अहम उद्देश्य है कि हमारे ग्राहकों और अन्य हितधारकों को हो रही असुविधा को यथासंभव जल्दी दूर किया जाए तथा पूरे नेटवर्क में परिचालन की स्थिरता को जल्द से जल्द बहाल की जा सके देश में घरेलू उड़ानों में पिछले कुछ दिनों से जारी इंडिगो संकट के बीच केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने कैंपिंग लागू की है. इससे 0 से 500 किलोमीटर की फ्लाइट का किराया अब 7,500 रुपये से ज़्यादा नहीं होगा. 500 से 1,000 किलोमीटर के बीच की उड़ान का कैप 12,000 रुपये तय किया गया है. 1,000 से 1,500 किलोमीटर के लिए 15,000 रुपये और 1,500 किलोमीटर से लंबी उड़ान से लंबी उड़ानों के लिए 18,000 रुपये की अधिकतम सीमा रखी गई है. नागरिक उड्डयन मंत्रालय के मुताबिक, लगातार उड़ानें रद्द होने से न सिर्फ सीटों की कमी हुई, बल्कि टिकट की कीमतें भी अचानक आसमान छूने लगीं, ऐसे में सरकार ने ये फैसला लेकर यात्रियों को बड़ी राहत दी है. केंद्र सरकार की सख्ती के बाद हवाई किराए में स्थिरता देखने को मिली है.सरकार को ये सख्त कदम इसलिए भी उठाना पड़ा क्योंकि इंडिगो ने दिसंबर के पीक सीजन से ठीक पहले रोजाना सैकड़ों फ्लाइट्स कैंसल कर दीं, जिससे हवाई जहाजों की सप्लाई एकदम कम हो गई थी. ऐसे में अन्य एयरलाइन्स ने एयर फेयर बहुत ज्यादा बढ़ा दिया था. दिल्ली-मुंबई का टिकट 28 हजार रुपये से ऊपर बिक रहा था, जो नॉर्मल दिनों में 5-6 हजार का होता है. बेंगलुरु, मुंबई, दिल्ली जैसे बड़े एयरपोर्ट पर हजारों यात्री फंसे हुए थे, सामान लिए लाइन में खड़े रो रहे थे, गुस्सा कर रहे थे. हालत इतनी खराब हो गई थी कि सरकार को बीच में आना पड़ा और ये अहम फैसला लिया ताकि आम जनता को राहत मिल सके. *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*











