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Uttarakhand Samachar

आने वाली पीढ़ी के लिए बचानी है धरती

23/04/25
in उत्तराखंड, देहरादून
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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
5 जून 1972 को पहला पर्यावरण सम्मेलन मनाया गया जिसमें 119 देशों ने भाग लिया। पहला विश्व पर्यावरण सम्मेलन स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में मनाया गया था। इसी दिन यहां पर दुनिया का पहला पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन किया गया था। जिसमें भारत की ओर से तात्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भाग लिया था। इस सम्मेलन के दौरान ही संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की भी नींव पड़ी थी। जिसके चलते हर साल विश्व पर्यावरण दिवस आयोजन का संकल्प लिया गया। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र द्वारा नागरिकों को पर्यावरण प्रदूषण से अवगत कराने तथा पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाने के लिए 19 नवंबर 1986 पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू किया गया। 5 जून 1972 से लेकर 5 जून 2024 तक इस दिवस को 51 वर्ष हो गए हैं और उम्मीद है आगे भी यह दिवस ऐसे ही मनाया जाएगा। क्योंकि पर्यावरण में पेड़ पौधे, जीव जंतु आदि मुख्य भूमिका निभाते हैं इसलिए इस दिन नागरिकों के द्वारा पूरे विश्व में पेड़ पौधे लगाए जाते हैं तथा पेड़ पौधों को सुरक्षित रखने का आवाहन किया जाता है। कई बड़े-बड़े एनजीओ भी इसमें भागीदारी लेते हैं। वर्ष 1974 में पहली बार “केवल एक पृथ्वी” के नारे के साथ विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था। पर्यावरण प्रदूषण, तापमान में वृद्धि, ग्लोबल वार्मिंग, वनों की कटाई आदि को दूर करने या रोक लगाने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।विकास की तेज रफ़्तार का सबसे अधिक असर यदि किसी पर हुआ है तो वह हैं पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधन। गगनचुम्बी इमारतों और कल कारखानों ने प्रदूषण बढ़ाने के साथ ही पृथ्वी की असली शान हरियाली को भी छीन लिया है। निर्माण कार्यों के दौरान वृक्षों को बेरहमी के साथ काटा तो जाता है लेकिन उनके स्थान पर वृक्षारोपण करना लोग भूल जाते हैं। इसके चलते आज विश्व को ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के चलते धरती पर रहने वाले हर किसी को आने वाले समय में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। तापमान में जिस तरह से वृद्धि देखी जा रही है, वह कोई शुभ संकेत नहीं हैं। इस बारे में जागरूकता लाने और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए ही हर साल 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। इस साल यह दिवस “हमारी शक्ति, हमारा ग्रह” थीम पर मनाया जा रहा है।धरती का तापमान निरंतर बढ़ने से कई गंभीर बीमारियां लोगों को असमय घेरती जा रहीं हैं। जलवायु वैज्ञानिकों का तो यहाँ तक मानना है कि ग्रीन हॉउस गैसों का उत्सर्जन इसी तरह जारी रहा तो 21वीं सदी में तापमान तीन से आठ डिग्री तक बढ़ सकता है। इससे ग्लेशियर पिघल सकते हैं और समुद्र का जलस्तर कई फुट ऊपर तक जा सकता है। जलवायु परिवर्तन से निपटने का इंतजाम हम अपनी आदतों में बदलाव लाते हुए और जरूरी हिदायतों का पालन करते हुए जरूर कर सकते हैं। हम जिस ग्रह पृथ्वी पर रहते हैं उसका वास्तविक गहना हरी-भरी वनस्पतियाँ ही हैं, जिसे पाकर वह अपने को प्रसन्नचित्त महसूस करती है, लेकिन विकास के क्रम में कई बार उनको काटना पड़ जाता है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि धरती का तापमान बढ़ रहा है। इसके साथ ही डीजल-पेट्रोल गाड़ियों की बढ़ती तादाद और एयर कंडीशनर, कारखानों आदि से पैदा होता प्रदूषण भी जलवायु परिवर्तन के लिए बहुत कुछ जिम्मेदार है। ऐसे में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने की जरूरत है, इससे कार्बन उत्सर्जन की संख्या में काफी कमी आएगी और साथ ही प्रदूषण के स्तर में भी कमी आएगी। समय रहते इन पर नियन्त्रण लगाना बहुत जरूरी है।पृथ्वी की हरियाली के साथ ही शुद्ध जल और वायु के लिए समाज के हर किसी को कुछ जरूरी कदम उठाने की आज आवश्यकता है। घर व आस-पास पौधे जरूर लगायें और उनकी समुचित देखभाल करें। इसके साथ ही आज के दिन संकल्प लेने की जरूरत है कि परिवार में बच्चे के जन्म पर, वर्षगाँठ या अन्य शुभ कार्यों और माता-पिता के नाम पर निश्चित रूप से पौधा लगाएंगे। इसके साथ ही जिस तरह से हम अपनों की देखभाल करते हैं उसी तरह से उस पौधे की देखभाल करेंगे और उस पौधे को वृक्ष बनते देख आनन्दित महसूस करेंगे। समारोहों में अतिथियों का स्वागत पौधा भेंटकर ही किया जाए। उपहार में भी पौधे ही दिए जाएँ और लोगों से उसकी उपयोगिता पर भी चर्चा की जाए। यह न केवल हम सभी के लिए फायदेमंद साबित होगा बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी सुरक्षित वातावरण प्रदान करने में सहायक बनेगा। पर्यावरण संरक्षण के लिए अधिक से अधिक वृक्षारोपण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। औद्योगीकरण को विशिष्ट दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए। पौधों और प्रजातियों की रक्षा के लिए उद्योगों को हरित क्षेत्रों में नहीं बनाया जाना चाहिए। यदि वृक्ष काटे जाते हैं तो उनके बदले पौधे रोपे जाने चाहिए और उनकी पूरी देखभाल की जानी चाहिए। सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग जितना जल्दी हो सके बंद कर देना चाहिए क्योंकि यह प्रदूषण को बढ़ावा देने देने के साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी जोखिम भरा है। कूड़े-कचरे का निस्तारण भलीभांति ही किया जाना चाहिए। अंत में इस साल की पृथ्वी दिवस की थीम “हमारी शक्ति, हमारा ग्रह” भी यही सन्देश देती है कि हमारी असली ताकत पृथ्वी ही है, इसलिए उसको हरा-भरा रखना हम सभी का नैतिक दायित्व भी है। जैव विविधता को बेहद हानि पहुंचती है। परमाणु या रासायनिक हथियारों का उपयोग पृथ्वी के जैवमंडल को दीर्घकालिक नुकसान पहुंचा सकता है। अगर आर्थिक रुप से देखें तो युद्ध से बुनियादी ढांचे नष्ट हो जाते हैं और समाज दशकों पीछे चला जाता है। युद्ध एक तरफ वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को तो प्रभावित करता ही है, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव भी पड़ता है।पृथ्वी के वायुमंडल पर कई तरह के प्रभाव पड़ रहे हैं। वायुमंडलीय दबाव में बदलाव के कारण मौसम और ऋतुओं में परिवर्तन होता है, जो वायुमंडल के दबाव को प्रभावित करता है। वायुमंडल का तापमान सूर्य की ऊर्जा से निर्धारित होता है, और इसमें बदलाव के कारण वायुमंडल की परतों में परिवर्तन होता है। वायुमंडलीय आर्द्रता में बदलाव के कारण बादल, कोहरा, पाला, वर्षा, ओस, हिम, ओला, हिमपात आदि होते हैं। ओजोन परत का क्षरण एक बड़ा खतरा है, जो पृथ्वी और उस पर रहने वाले जीवों के लिए हानिकारक है। ओजोन परत सूर्य से आने वाली उच्च आवृत्ति की पराबैंगनी प्रकाश को अवशोषित कर लेती है। वायुमंडल को पांच विभिन्न परतों में विभाजित किया गया है, जिनमें क्षोभमंडल, समतापमंडल, मध्यमंडल, तापमंडल और बाह्यमंडल शामिल हैं। इन परतों में बदलाव के कारण वायुमंडल की संरचना और कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। वायुमंडल की संरचना और कार्यप्रणाली को बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि हम वायुमंडल पर पड़नेवाले प्रभावों को समझें और उनकी रोकथाम के लिए काम करें।पृथ्वी पर रहने वाले पशुओं पर भी कई तरह के प्रभाव पड़ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण पशुओं के आवास नष्ट हो रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण पशुओं के भोजन की उपलब्धता कम हो रही है। पशुओं को अपने आवास से प्रवास करना पड़ रहा है। मानव गतिविधियों के कारण पशुओं के आवास नष्ट हो रहे हैं। पशुओं का शिकार हो रहा है। मानव गतिविधियों के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है, जो पशुओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। पशुओं में बीमारियों का प्रसार बढ़ रहा है। पशुओं की कई प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। पशुओं की संख्या में कमी के कारण पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ रहा है।हमें पर्यावरण पर पड़नेवाले असर को भी देखना चाहिए। हम देख रहे हैं कि पर्यावरण पर कई प्रतिकूल असर पड़ रहे हैं। वायु, जल और भूमि प्रदूषण के कारण पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है। कारखानों द्वारा धुएं का उत्सर्जन और मानव गतिविधियों के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि हो रही है, जिससे चरम मौसमी घटनाएं जैसे सूखा और अतिवृष्टि हो रही हैं। नगरीकरण और औद्योगीकरण के कारण प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। पर्यावरण के जैविक और अजैविक घटकों के बीच असंतुलन के कारण पारिस्थितिकी तंत्र अच्छा-खासा प्रभावित हो रहा है। अधिक दोहन के कारण भूमि की उर्वरता कम हो रही है और यह बंजर हो रही है।दरअसल, पृथ्वी दिवस हमें पृथ्वी की रक्षा और संरक्षण के लिए अपनी जिम्मेदारी का भी एहसास कराता है। यह दिवस हमें बताता है कि हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करना चाहिए, संसाधनों का संचयन करना चाहिए और अंतिम तौर पर जैव विविधता का संरक्षण करना चाहिए। अगर ये तीनों काम हम लोग कर लेते हैं, तो पृथ्वी दिवस की प्रासंगिकता सार्थक हो जायेगी। *विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*

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