देहरादून
देहरादून स्थित थिंक टैंक एसडीसी फाउंडेशन ने जुलाई 2023 की उत्तराखंड डिजास्टर एंड एक्सीडेंट सिनोप्सिस (उदास) रिपोर्ट जारी की है। फाउंडेशन हर महीने इस तरह की रिपोर्ट जारी करता है। इस क्रम में एसडीसी ने अपनी अब तक की 10वीं और इस वर्ष की सातवीं, जुलाई 2023 की रिपोर्ट जारी की है।
फाउंडेशन के अध्यक्ष अनूप नौटियाल के अनुसार रिपोर्ट का उद्देश्य उत्तराखंड राज्य में पूरे महीने आने वाली प्रमुख आपदाओं और दुर्घटनाओं का एक स्थान पर डॉक्यूमेंटेशन है। रिपोर्ट मुख्य रूप से विश्वसनीय हिन्दी और अंग्रेजी अखबारों और न्यूज़ पोर्टल्स में छपी खबरों पर आधारित है।
*जोशीमठ का भूधंसाव*
जोशीमठ में ताजा दरारों से लोगों में दहशत है। सुनील वार्ड के निवासी विनोद सकलानी के अनुसार उन्हें अपने घर के पास खेत में एक गहरा गड्ढा दिखाई दिया है। सकलानी परिवार उन परिवारों में शामिल है, जिनके घरों पर सबसे पहले दरारें आई थी।
इस बीच पुनर्वास और अन्य 11 सूत्रीय मांगों को लेकर जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति का आंदोलन जारी है। समिति का आरोप है कि जोशीमठ में स्थितियां पहले से ज्यादा बिगड़ गई हैं, लेकिन सरकार गंभीर कदम नहीं उठा रही है।
इस बीच भूवैज्ञानिकों की एक अध्ययन रिपोर्ट करंट साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट बताती है कि जोशीमठ में यह स्थिति, जनसंख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी, अनियोजित बुनियादी ढांचा विकास, अपर्याप्त जल निकासी, सड़कों की खुदाई और मलबे के उचित निस्तारण की व्यवस्था न किये जाने के कारण पैदा हुई है। पिछले कुछ दशकों में हिमालयी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा विकास गतिविधियां देखी गई हैं। ये गतिविधियां पर्वतीय पारिस्थितिकी और इलाके की स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं।
*करंट से 16 लोग जले*
19 जुलाई, 2023 को उत्तराखंड के चमोली जिले में हृदयविदारक हादसा हुआ। नमामि गंगे प्रोजेक्ट के सीवर ट्रीटमेंट प्लांट में करंट फैलने से 16 लोगों की मौत हो गई। इस घटना में 11 लोग घायल हुए।
घटना की मजिस्ट्रियल जांच में पाया गया कि गलत अर्थिंग और विद्युत सुरक्षा मानकों की प्लांट में अनदेखी की जा रही थी। रिपोर्ट में ट्रीटमेंट प्लांट का संचालन कर रही दोनों कंपनियों को ब्लैक लिस्ट करने की सिफारिश की गई है। रिपोर्ट में जल संस्थान और यूपीसीएल के संबंधित अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की भी सिफारिश की गई है।
*गोपीनाथ मंदिर में झुकाव*
जून 2023 की उदास रिपोर्ट में बताया गया था गोपेश्वर स्थित गोपीनाथ मंदिर में झुकाव देखा गया है। ताजा घटनाक्रम में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की एक टीम को मंदिर के गर्भगृह में दुर्गंधयुक्त सीवेज मिला। इसे बड़ा खतरा माना जा रहा है।
नियमों के मुताबिक किसी भी पुरातात्विक महत्व के ढांचे के 100 मीटर के दायरे में किसी भी निर्माण की इजाजत नहीं दी जाती, लेकिन गोपेश्वर में मंदिर परिसर के चारों ओर निर्माण किये गये हैं। अनुमान है कि मंदिर के पास सीवर लाइनें क्षतिग्रस्त हो गईं, जिससे सीवेज गर्भगृह तक पहुंच गया।
*मनसा देवी में भूस्खलन*
हरिद्वार में मनसा देवी पहाड़ी पर भूस्खलन से 50,000 स्थानीय लोगों की सुरक्षा को खतरा है। मानसून के दौरान मनसा देवी पहाड़ी से बार-बार भूस्खलन और भूमि कटाव होता रहता है। इससे ब्रह्मपुरी, नई बस्ती, जोगिया मंडी और भीमगोड़ा जैसी आवासीय बस्तियां खतरे में हैं।
पिछले महीने भूस्खलन के कारण हरिद्वार-देहरादून रेलवे ट्रेक को भी बंद करना पड़ा था। जिला प्रशासन ने आपदा सचिव से तत्काल सुरक्षा संबंधी जांच का अनुरोध किया है।
*मस्ताड़ी गांव में भी दरारें*
जोशीमठ की तरह ही भूधसांव और घरों में दरारें उत्तरकाशी जिले के मस्ताड़ी गांव में भी देखी गई हैं। गांव वालों का कहना है कि ये दरारें लगातार बढ़ रही हैं और घरों के अंदर पानी रिस रहा है। 1991 के भूकंप के बाद से मस्ताड़ी गांव असुरक्षित है।
ग्राम प्रधान सत्यनारायण सेमवाल के अनुसार 30 घरों में रहने वाले परिवार गंभीर रूप से प्रभावित हैं। उनके अनुसार भू वैज्ञानिकों की एक टीम ने 1997 में गांव का सर्वेक्षण किया था और भूधंसाव की समस्या से निपटने के लिए तत्काल उपाय करने की सलाह दी थी, लेकिन इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया।
ताजा दरारों के बाद जिला प्रशासन के साथ भूगर्भ विभाग की टीम ने जुलाई 2023 के अंत में गांव का सर्वेक्षण किया। दरारों के कारणों का पता लगाने के लिए मिट्टी के नमूने लिये गये हैं। रिपोर्ट सरकार को सौंपने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
*उत्तराखंड और आपदा प्रबंधन*
अनूप नौटियाल ने कहा की उत्तराखंड को आपदा प्रबंधन के लिए ओडिशा मॉडल से सीख लेने की ज़रूरत है। भले ही ओडिशा एक तटीय राज्य है किन्तु उत्तराखंड में आपदा मैनेजमेंट तंत्र के विभिन्न पहलुओं को मजबूत करने के लिए ओडिशा मॉडल महत्वपूर्ण सबक देता है।
उन्होंने उम्मीद जताई कि उत्तराखंड उदास मंथली रिपोर्ट उत्तराखंड के राजनीतिज्ञों, नीति निर्माताओं, अधिकारियों, शोधार्थियों, सिविल सोसायटी आग्रेनाइजेशन और मीडिया के लोगों के लिए सहायक होगी। साथ ही दुर्घटना और आपदाओं से होने वाले नुकसान के न्यूनीकरण के लिए नीतियां बनाते समय भी इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा।