डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
सेमल, वैज्ञानिक नाम बॉम्बैक्स सेइबा, इस जीन्स के अन्य पादपों की तरह सामान्यतः कॉटन ट्री कहा जाता है। इस उष्णकटिबंधीय वृक्ष का तना सीधा, उर्ध्वाधर होता है। इसकी पत्तियां डेशिडुअस होतीं हैं। इसके लाल पुष्प की पाँच पंखुड़ियाँ होतीं हैं। ये वसंत ऋतु के पहले ही आ जातीं हैं। इसका फल एक कैप्सूल जैसा होता है। ये फल पकने पर श्वेत रंग के रेशे, कुछ कुछ कपास की तरह के निकलते हैं। इसके तने पर एक इंच तक के मजबूत कांटे भरे होते हैं। इसकी लकड़ी इमारती काम के उपयुक्त नहीं होती है। सेमल को संस्कृत में शिम्बल और शाल्मलि कहते हैं। यह पत्ते झाड़नेवाला एक बहुत बड़ा पेड़ होता है, जिसमें बड़े आकार और मोटे दलों के लाल फूल लगते हैं और जिसके फलों या डोडों में केवल रूई होती है, गूदा नहीं होता। इस पेड़ के धड़ और डालों में दूर दूर पर काँटे होते हैं। पत्ते लंबे और नुकीले होते हैं तथा एक एक डाँड़ी में पंजे की तरह पाँच.पाँच, छह.छह लगे होते हैं। फूल मोटे दल के बड़े.बड़े और गहरे लाल रंग के होते हैं। फूलों में पाँच दल होते हैं और उनका घेरा बहुत बड़ा होता है। फाल्गुन में जब इस पेड़ की पत्तियाँ बिल्कुल झड़ जाती हैं और यह ठूँठा ही रह जाता है, तब यह इन्हीं लाल फूलों से गुछा हुआ दिखाई पड़ता है। दलों के झड़ जाने पर डोडा या फल रह जाता है, जिसमें बहुत मुलायम और चमकीली रूई या घूए के भीतर बिनौले से बीज बंद रहते हैं। सेमल के डोड या फलों की निस्सारता भारतीय कवि परंपरा में बहुत काल से प्रसिद्ध है और यह अनेक अन्योक्तियों का विषय रहा है। श्सेमर सेइ सुवा पछ्तानेश् यह एक कहावत सी हो गई है। सेमल की रूई रेशम सी मुलायम और चमकीली होती है और गद्दों तथा तकियों में भरने के काम में आती है, क्योंकि काती नहीं जा सकती। इसकी लकड़ी पानी में खूब ठहरती है और नाव बनाने के काम में आती है। आयुर्वेद में सेमल बहुत उपकारी ओषधि मानी गई है। यह मधुर, कसैला, शीतल, हलका, स्निग्ध, पिच्छिल तथा शुक्र और कफ को बढ़ाने वाला कहा गया है।
सेमल की छाल कसैली और कफनाशक, फूल शीतल, कड़वा, भारी, कसैला, वातकारक, मलरोधक, रूखा तथा कफ, पित्त और रक्तविकार को शांत करने वाला कहा गया है। फल के गुण फूल ही के समान हैं। सेमल के नए पौधे की जड़ को सेमल का मूसला कहते हैं, जो बहुत पुष्टिकारक, कामोद्दीपक और नपुंसकता को दूर करनेवाला माना जाता है। सेमल का गोंद मोचरस कहलाता है। यह अतिसार को दूर करनेवाला और बलकारक कहा गया है। इसके बीज स्निग्धताकारक और मदकारी होते है और काँटों में फोड़े, फुंसी, घाव, छीप आदि दूर करने का गुण होता है। फूलों के रंग के भेद से सेमल तीन प्रकार का माना गया है एक तो साधारण लाल फूलोंवाला, दूसरा सफेद फूलों का और तीसरा पीले फूलों का। इनमें से पीले फूलों का सेमल कहीं देखने में नहीं आता। सेमल भारतवर्ष के गरम जंगलों में तथा बरमा, श्री लंका और मलाया में अधिकता से होता है।
प्रकृति में मनुष्य के उपयोग की अनेकों चीजें हैं इनका उपयोग वह सदियों से करता आ रहा है। सेमल भी उन पेड़.पौधों मे से एक हैएलेकिन इसके लाभ अनेक है। जंगलों व गांवों के आस.पास कुदरती रूप से उगने वाले सेमल लोगों की आय का जरिया भी बनने लगा है।सेमल पांच सौ मीटर की ऊंचाई से लेकर पन्द्रह सौ मीटर की ऊंचाई तक होता है। इसका पेड़ काफी बड़ा होता है। अप्रैल माह में इस पर फूल निकलते है। इनका उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। फूल निकलने के बाद जो इस पर जो फल लगता है वह केले के आकार का होता है इसका उपयोग कच्चा व सूखाकर सब्जी के रूप में किया जाता है। इसके फूलों की बाजार में भारी मांग है। फल के पकने पर जो बीज निकलते हैं उन बीजों से रूई निकलती है जो मुलायम व सफेद होती है। इस रू ई का प्रयोग कई कामों में किया जाता है। खास बात यह है कि सेमल का उपयोग लोग पहले तो करते थे लेकिन उस समय इसे व्यावसायिक रूप में प्रयोग नहीं किया जाता था। सेमल से कुछ समय के लिए लोगों को रोजगार भी मिल जाता है। इसके फूल बाजार में 15 से 20 रूपये किलों तक बिक जाते है। इसके अलावा फल भी 10 से 15 रुपये किलों बिकते है। बीज तो 50 से 70 रुपये किलों तक बिकते है। नागणी के काश्तकार रतन सिंह और कोटी के दिनेश लाल तो सेमल से एक सीजन में तीस से चालीस हजार रूपया तक कमा लेते है। उनका कहना है कि सेमल केवल सब्जी तक सीमित नही है उसका औषधीय उपयोग भी है, जिस कारण इसकी बड़े बाजारों में भारी मांग है। सेमल को लेकर उद्यान निरीक्षक डीएस नेगी का कहना है कि वह बहुत उपयोगी है, जिस पर लोगों केा कोई मेहनत नही करनी पड़ती और मुनाफा भी शुद्ध है। इसका फल एक कैपसूल जैसा होता है। ये फल पकने पर श्वेत रंग के रेशे, कुछ कुछ कपास की तरह के निकालते हैं। इसके तने पर एक इंच तक के मजबूत कांटे भरे होते हैं। इसकी लकड़ी इमारती काम के उपयुक्त नहीं होती है। फल के पकने पर जो बीज निकलते हैं, उन बीजों से रूई निकलती है, जो मुलायम व सफ़ेद होती है। इस रूई का प्रयोग कई कामों में किया जाता है।
दिलचस्प तथ्य यह है कि सेमल का उपयोग लोग पहले तो करते थे, लेकिन उस समय इसे व्यावसायिक रूप में प्रयोग नहीं किया जाता था। सेमल से कुछ समय के लिए लोगों को रोजगार भी मिल जाता है। इसके फूल बाज़ार में 15 से 20 रुपये किण्ग्राण् तक बिकते हैं। इसके अतिरिक्त फल भी 10 से 15 रुपये और बीज तो 50 से 70 रुपये किण्ग्राण्तक आसानी से बेचे जा सकते हैं। सेमल वृक्ष से व्यवसाय करने वाले लोग एक सीजन में तीस से चालीस हज़ार रुपया तक कमा लेते हैं। सेमल केवल सब्जी तक सीमित नहीं है, उसका औषधीय उपयोग भी है, जिस कारण इसकी बड़े बाज़ारों में भारी माँग है। सेमल के डोड या फलों की निस्सारता भारतीय कविपरंपरा में बहुत काल से प्रसिद्ध है और यह अनेक अन्योक्तियों का विषय रहा है । सेमर सेइ सुवा पछ्ताने यह एक कहावत सी हो गई है ।
वन विभाग ने विभिन्न नर्सरियों में सेमल के एक हजार से अधिक पौधे तैयार किए हैं। विशालकाय होने से जहां यह गर्मियों में छाया की सुखद अनुभूति देते हैं। वहीं इन पर लगने वाले लाल व सफेद फूल भी आकर्षित बनाते हैं। इनकी छाल, पत्ते, फूल व बीज का उपयोग किडनी गनोरिया सहित कई रोगों के निदान के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इन्हें आंगन में लगाने पर सांप आदि विषैले जीव जंतु घर में नहीं आते। विभिन्न रोगों में सहायक सेमल वृक्ष के फल, फूल, पत्तियाँ और छाल आदि का विभिन्न प्रकार के रोगों का निदान करने में प्रयोग किया जाता है। जैसे. सेमल के फलों को घी और सेंधा नमक के साथ साग के रूप में बनाकर खाने से स्त्रियों का प्रदर रोग ठीक हो जाता है। इस वृक्ष की छाल को पीस कर लेप करने से जख्म जल्दी भर जाता है। रक्तपित्त, सेमल के एक से दो ग्राम फूलों का चूर्ण शहद के साथ दिन में दो बार रोगी को देने से रक्तपित्त का रोग ठीक हो जाता है। अतिसार सेमल वृक्ष के पत्तों के डंठल का ठंडा काढ़ा दिन में तीन बार 50 से 100 मिलीलीटर की मात्रा में रोगी को देने से अतिसार दस्त बंद हो जाते हैं।आग से जलने पर इस वृक्ष की रूई को जला कर उसकी राख को शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से आराम मिलता है। नपुंसकता दस ग्राम सेमल के फल का चूर्णए दस ग्राम चीनी और 100 मिलीलीटर पानी के साथ घोट कर सुबह.शाम लेने से बाजीकरण होता है और नपुंसकता भी दूर हो जाती है। पेचिश आदि की शिकायत हो तो सेमल के फूल का ऊपरी बक्कल रात में पानी में भिगों दें। सुबह उस पानी में मिश्री मिलाकर पीने से पेचिश का रोग दूर हो जाता है। सेमल के फूलों की सब्जी देशी घी में भूनकर सेवन करने से प्रदर रोग में लाभ मिलता है। गिल्टी या ट्यूमर सेमल के पत्तों को पीसकर लगाने या बाँधने से गाँठों की सूजन कम हो जाती है। रक्तप्रदर इस वृक्ष की गोंद एक से तीन ग्राम की मात्रा में सुबह.शाम सेवन करने से रक्तप्रदर में बहुत अधिक लाभ मिलता है। सेमल के फूल उबालकर रंग बनाए और सुखाएं। गुलाबी रंग चुकंदर के रस को अरारोट में मिलाकर बनाएं और धूप में सूखने के लिए रख दें। पलाश का वैज्ञानिक नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा है। पलाश प्राकृतिक होने के कारण आंखों की रोशनी बढ़ाता है। इसलिए इसका रंग हानिकारक नहीं होता। पलाश के फूल लाल सफेद और पीले रंग के होते हैं। सफेद और पीला पलाश दुर्लभ है। उत्तराखंड में इसका इस्तेमाल न तो दवा के तौर पर भी किया जाता है। ऐसी वनस्पतियों को यदि रोजगार से जोड़े तो शायद इसमें मेहनत भी कम हो सकती है क्योंकि यह स्वतः ही पैदा हो जाने वाली जंगली वनस्पति है। दिल्ली सरकार ने उत्तराखंड की कुमाऊनीए गढ़वाली और जौनसारी भाषाओं के प्रचार.प्रसार के लिए एक अकादमी की स्थापना की हैण् दिल्ली सरकार ने लोकप्रिय गायक व कलाकार हीरा सिंह राणा को इस अकादमी का वाइस.चेयरमैन नियुक्त किया पहाड़ से हो रहे पलायन को रोकने, किसानों की आय बढ़ाने और बेरोजगारों के लिए रोजगार देने के लिए लाभकारी साबित होगी। जंगली वनस्पति ऐसी वनस्पतियों को यदि रोजगार से जोड़े तो शायद इसमें मेहनत भी कम हो सकती है क्योंकि यह स्वतः ही पैदा हो जाने वाली जंगली वनस्पति भी पलायन के अब पलायन के कारण गांव खाली हो गये हैं। सेमल भी पलायन के कारण सूने के भी की कहानी भी ही इनके पलायन से तो उत्तराखंड जैसा हरा भरा राज्य भी एक साहित्यिक .बौद्धिक मरुस्थल में परिवर्तित हो जायेगा।