डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
पहाड़ी क्षेत्रों में हो रही मूसलाधार बारिश ने चारधाम यात्रा में आ रहे श्रद्धालुओं के लिए परेशानी खड़ी करने का काम किया है. बीते दो दिनों से हो रही तेज बारिश के चलते बदरीनाथ हाईवे पर सिरोबगड़ भूस्खलन प्रभावित जोन सक्रिय हो गया है. जिससे पहाड़ी से गिरता मलबा और बोल्डर राजमार्ग को बाधित कर रहा है. हालात ऐसे हो गए हैं कि पांच से छः किमी के सफर को तय करने के लिए घंटों का समय लग रहा है. ऐसे में तीर्थयात्रियों में गुस्सा और आक्रोश भी देखा जा रहा है.रुद्रप्रयाग जिले में बीते दो दिनों से बारिश हो रही है. मानसून सीजन आने से पहले ही बारिश के इस तरह होने से बदरीनाथ हाईवे पर भूस्खलन प्रभावित जोन भी सक्रिय हो गए हैं. पहले मानसून सीजन में इस प्रकार की स्थिति देखने को मिलती थी, मगर अब मानसून से पहले ही समस्या ने विकराल रूप धारण कर दिया है. जिस कारण चारधाम यात्रा में आ रहे श्रद्धालुओं के साथ ही रुद्रप्रयाग और चमोली की जनता भी खासी प्रभावित हो रही है.तीन दशक से रुद्रप्रयाग और चमोली जिले की जनता के साथ देश-विदेश से चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को बदरीनाथ हाईवे पर सिरोबगड़ भूस्खलन जोन की समस्या से जूझना पड़ रहा है. इसके समाधान को लेकर ऑल वेदर परियोजना के तहत पपड़ासू-खांखरा बाईपास निर्माण कार्य शुरू किया गया, लेकिन 7 साल होने के बावजूद भी बाईपास का निर्माण नहीं हो पाया है. डेढ़ सौ करोड़ की लागत से बनने वाले इस बाईपास का कार्य आज तक पूरा नहीं हो पाया है. निर्माण कार्य के नाम पर मात्र एक पुल ही बन पाया है, जबकि दो पुलों का आधा-अधूरा कार्य छोड़ा गया है.ग्राम प्रधान पपड़ासू ने कहा करोड़ों रूपए खर्च होने के बाद पपड़ासू-खांखरा बाईपास निर्माण कार्य अधर में लटका पड़ा है. यदि यह कार्य आज पूरा हो जाता तो चारधाम यात्रा में आने वाले श्रद्धालुओं के साथ रुद्रप्रयाग-चमोली जिले की जनता को मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ता. सिरोबगड़ में राजमार्ग संकरा होने के साथ ही बारिश होने पर पहाड़ी से भूस्खलन हो रहा है. जिस कारण घंटों जाम लग रहा है. इस समस्या का जल्द समाधान होना जरूरी है, वरना लोग परेशान होते रहेंगे. उत्तराखंड में लगातार हो रही भारी बारिश के चलते कई स्थानों पर भूस्खलन की घटनाएं सामने आई हैं. इससे मुख्य राजमार्गों पर मलबा जमा हो गया है, जिससे वाहनों की आवाजाही बाधित हो रही है. खासकर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए यह एक बड़ी समस्या बन गई है क्योंकि इस समय उत्तराखंड में चारधाम यात्रा का सीजन अपने चरम पर है. इस राष्ट्रीय राजमार्ग पर बदरीनाथ से सिरोबगड़ के बीच नागरिक दृष्टिकोण से उन्होंने 20 ऐसे प्रमुख भूस्खलन जोन देखे, जो इस राजमार्ग पर यात्रा करने वालों के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं। चारधाम यात्रा के साथ ही सामरिक दृष्टि से बेहद अहम बदरीनाथ राजमार्ग भूस्खलन की गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है। विभिन्न सरकारी एजेंसियों के सर्वे में इस बात की पुष्टि की जा चुकी है। अब सोशल डेवलपमेंट फार कम्युनिटीज (एसडीसी) फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष ने ‘मैपिंग लैंडस्लाइड एंड वल्नरेबिलिटी जोन्स आन द चार धाम यात्रा रूट’ नाम से रिपोर्ट जारी की है।यह रिपोर्ट उनकी हालिया यात्रा पर आधारित है। जिसमें बताया गया है कि बदरीनाथ से सिरोबगड़ के बीच के 165 किलोमीटर के भाग पर 20 बेहद खतरनाक भूस्खलन जोन विद्यमान है।एडीसीसी फाउंडेशन की रिपोर्ट में प्रत्येक भूस्खलन जोन की लंबाई और उसकी स्थिति भी बयां की गई है। फाउंडेशन की फील्ड रिपोर्ट के अनुसार बदरीनाथ से 32 किलोमीटर पहले तक ही 06 बड़े भूस्खलन जोन हैं। जिसमें मंदिर से 05 किमी के दायरे में ही 80 से 100 किमी लंबे तीन जोन शामिल हैं।इसके बाद जोशीमठ से सिरोबगड़ तक के 126 किमी दायरे में 14 बड़े भूस्खलन जोन हैं। जोशीमठ से करीब 58 किलोमीटर की दूरी पर 150 से 200 मीटर लंबा एक ऐसा जोन भी है, जहां पूरी पहाड़ी नीचे खिसकती दिख रही है। इसके अलावा भी कई जोन ऐसे हैं, जहां पर सड़क बेहद संकरी है। साथ ही कुछ जगह सड़क का पूरा भाग दरकता दिख रहा है।बदरीनाथ-केदारनाथ रूट पर पिछले कई सालों से सिरोबगड़ और चमधार सिरदर्द बने हुए हैं। इस वजह से कई बार यात्रा बाधित होती है और यात्रियों को घंटों जाम में फंसा रहना पड़ता है। करोड़ों रूपए खर्च होने के बावजूद आज भी भूस्खलन जोन नासूर बने हुए हैं और इस बार भी यात्रियों की दोनों ही स्थानों पर टेंशन बढ़ सकती है।हाईवे पर पड़े गड्ढों को पार करते समय दोपहिया वाहन चालक चोटिल हो रहे हैं. कुछ समय पहले ही एनएच विभाग ने यहां पर डामरीकरण भी किया था. लेकिन डामर उखड़ चुका है. सम्राट होटल के निकट पहाड़ी से लगातार बोल्डर गिर रहे हैं. यहां पर पहाड़ी के कमजोर होने के कारण बार-बार बोल्डर गिरते रहते हैं, पल-पल बदलता मौसम और कठिन रास्ते श्रद्धालुओं की परीक्षा लेते हैं. जिससे राहगीरों को भारी दिक्कतें होती हैं. *लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*