डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
भारतवर्ष में औषधीय एवं सुगंध पौधों का इतिहास काफी पुराना रहा है, क्योंकि चिकित्सा एवं सुगंध हेतु इन पौधों का उपयोग होता रहा है। इनके व्यापक एवं व्यावसायिक कृषिकरण की तरफ जन सामान्य में जितनी रुचि वर्तमान में जाग्रत हुई है, उतनी संभवतः पहले कभी नहीं हुई थी। वर्तमान में जहाँ कृषक परंपरागत फसलों को छोड़कर औषधीय एवं सुगंध पौधों की खेती की ओर आकर्षित होने लगे हैं, वहीं उच्च शिक्षा प्राप्त ऐसे युवक भी जो अभी तक खेती.किसानी के कार्य को केवल कम पढ़े.लिखे लोगों का व्यवसाय मानते थे, औषधीय एवं सुगंध पौधों की खेती अपनाकर गौरवान्वित महसूस करने लगे हैं। औषधीय एवं सुगंध पौधों की खेती कर किसान आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो सकते हैं, क्योंकि भारत में औषधीय एवं सुगंध पौधों की खेती करने के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं। औषधीय पौधों का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में किया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 80 प्रतिशत जनसंख्या परंपरागत औषधियों से जुड़ी हुई है।
वर्तमान समय में औषधीय एवं सुगंध पौधों की खेती करने की संभावनाएँ अधिक हैं क्योंकि भारत की जलवायु में इन पौधों का उत्पादन आसानी से लिया जा सकता है। किसानों को औषधीय एवं सुगंध पौधों की खेती के बारे में संपूर्ण जानकारी का अभाव होता है, जिसके चलते किसान परंपरागत खेती करने को मजबूर हैं। परंपरागत खेती की अपेक्षा औषधीय एवं सुगंध पौधों की खेती अधिक लाभकारी एवं टिकाऊ है, क्योंकि इन फसलों को परंपरागत फसलों की अपेक्षा कम खाद.पानी और कम देखरेख की आवश्यकता पड़ती है। औषधीय एवं सुगंध फसलों में कीटों व बीमारियों का प्रकोप अन्य फसलों की अपेक्षा कम होता है। औषधीय एवं सुगंध पौधों की खेती उपजाऊ मृदाओं के अलावा बंजर भूमि में भी की जा सकती है। चूँकि इनकी खेती के लिए अधिक संसाधनों की आवश्यकता नहीं पड़ती है, इसलिए खेती में लगने वाली लागत कम हो जाती है और मुनाफा ज़्यादा होता है। सुगंध पौधों से प्राप्त होने वाले इसेंशियल ऑइल की देशी बाज़ार के साथ.साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी माँग बढ़ रही है। वहीं भारतीय औषधीय पौधों की भी विश्व बाज़ार में बहुत माँग है।
सुगंध पौधों से प्राप्त होने वाले इसेंशियल ऑइल का उपयोग आधुनिक सुगंध एवं सौंदर्य प्रसाधन उद्योग में व्यापक रूप में हो रहा है। सुगंध पौधों का तेल मुख्यतः इत्र, साबुन, धुलाई का साबुन, घरेलू शोधित्र, तकनीकी उत्पादों तथा कीटनाशक के रूप में होता है। साथ ही सुगंध तेल का उपयोग चबाने वाले तंबाकू, मादक द्रवों, पेय पदार्थों, सिगरेट तथा अन्य विभिन्न खाद्य उत्पादों के बनाने में भी किया जाता है। सुगंध पौधे, जैसे कि पुदीना के तेल का उपयोग च्यूइंगम, दंतमंजन, कन्फेक्शनरी और भोजन पदार्थों में होता है। खस जैसी सुगंध फसल से सुगन्धित द्रव तथा सुगन्ध स्थिरक व फिक्सेटीव के रूप में प्रयोग होता है। सेन्ना, अश्वगंधा, तुलसी, कालमेघ, पिप्पली, आंवला, सफेद मूसली, घृतकुमारी, आर्टीमीसिया, स्टीविया, जावा घास या सिट्रोनेला, लेमन ग्रास, रोशा घास या पामारोजा, खस या वेटीवर, नींबू.सुगंधित गम, जेरेनियम, मेन्थॉल मिंट, पुदीना, जंगली गेंदा, रोजमेरी, पचौली और पत्थरचूर आदि आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण औषधीय एवं सुगंध फसलें हैं जिनकी व्यावसायिक खेती भारत के आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, आसाम, पश्चिम बंगाल, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश आदि विभिन्न राज्यों में मुख्य रूप से की जा रही है।
उत्तराखण्ड आदि काल से ही महत्वपूर्ण उपयोगी परिस्थितियों के भण्डार के रूप में विख्यात है। इस क्षेत्र में पाये जाने वाले पहाड़ों की श्रृंखलायें, जलवायु विविधता एवं सूक्ष्म वातावरणीय परिस्थितियों के कारण प्राचीन काल से ही अति महत्वपूर्ण वनौषधियों की सुसम्पन्न सवंधिनी के रूप में जानी जाती हैं।कुदरत ने उत्तराखंड को कुछ ऐसे अनमोल तोहफे दिए हैं, जिनमें अद्भुत गुणों की भरमार है। सरकार किसानों को बंजर भूमि व्यावसायिक खेती कर अच्छा मुनाफा कमाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। दरअसल उत्तराखंड सरकार इस बात पर जोर दे रही कि यदि बंजर भूमि पर किसानों को व्यावसायिक खेती के लिए औषधीय खेती कराई जाए तो उन्हें आमदनी मिलेगी। जिससे उनका स्तर बढ़ सकेगा। जाहिर है कि वर्तमान में औषधीय खेती के लिए कंपनियां भी किसानों को बाजार उपलब्ध करा रही है। इस दौरान राज्य के करीब चालीस हजार किसानों ने औषधीय खेती के जरिए राज्य में एक सौ बीस करोड़ का बाजार स्थापित कर दिया है। जिसको देखते हुए राज्य सरकार ने हर्बल खेती के लिये संभावनाओं को देखते हुए अधिक फोकस किया है।
इस बीच सरकार एमएसएमई के अंतर्गत एरोमा इंडस्ट्री को बढ़ावा देना शुरु किया है। जिसके फलस्वरूप औषधीय खेती करने वाले किसानों को अपने उत्पाद को बेचने के लिए अच्छा बाजार मिल सकेगा। उत्तराखंड के देहरादून, नैनीताल और हरिद्वार जिलों के विभिन्न स्थानों पर क्लस्टर के तहत खेती पर जोर दिया जा रहा है। इस बीच सर्पगंधा, शतावर, इलायची, डेमस्क गुलाब, कैमोमिल, जापानी मिंट के साथ.साथ तेजपात आदि की खेती करायी जा रही है। राज्य के कृषि एवं उद्यान मंत्री सुबोध उनियाल की माने तो राज्य में किसानों को हर्बल खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। क्योंकि इसमें छुट्टा जानवरों से फसल को नुकसान होने की आशंका कम है। फिलहाल सरकार जड़ी बूटी, औषधीय और सगंध खेती के लिए बाजार को और अधिक वयवस्थित करने की योजना पर कार्य कर रही है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय आयुष मिशन एनएएम योजना के अधीन भारत सरकार ने किसानों को सब्सिडी दी है ताकि जड़ी.बूटियों और औषधीय पौधों की खेती को प्रोत्साहित किया जा सके। इस योजना के तहत किसान औषधीय खेती करके अपनी आमदनी बढ़ा सकें, इसके लिए एनएएम योजना के खाद्य प्रसंस्करण विभाग यहां औषधीय खेती को बढ़ावा देने के लिए काम किया जा रहा है। इसमें औषधीय खेती के लिए किसानों को अनुदान दिया जा रहा है।
योजना के दिशा.निर्देशों के मुताबिक उत्तर पूर्वी और पहाड़ी राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू और कश्मीर को वित्तीय सहायता 90ः10 के अनुपात में प्रदान की जाएगी वहीं अन्य राज्यों में यह 60ः40 के अनुपात में दी जायेगी पूरा विश्व इस समय संकट के बहुत बड़े गंभीर दौर से गुजर रहा है। आम तौर पर कभी जब कोई प्राकृतिक संकट आता है तो वो कुछ देशों या राज्यों तक ही सीमित रहता है। लेकिन इस बार ये संकट ऐसा है, जिसने विश्व भर में पूरी मानवजाति को संकट में डाल दिया है। औषधीय एवं सुगंध फसलें औषधीय गुणों में एक है जिसका सेवन करने से हमारा इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत होता है। इम्यूनिटी सिस्टम बढ़ाने के साथ.साथ यह हमारे शरीर को कई रोगों से भी छुटकारा दिलाने में मदद करता है।












