डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
अंग्रेजी शासन काल 1860 से देहरादून के आर्केडिया और हरबंसवाला ईस्टेट में चाय उत्पादन किया जाता रहा है। यहां लगभग 11 से 50 एकड़ भूमि में चाय की खेती होती थी, लेकिन समयानुसार रखरखाव की कमी होने के कारण आज मात्र 400 एकड़ पर ही चाय का उत्पादन होता हैं। ऐसे में एक फिर इस चाय बागान को उत्पादन के बड़े भंडार के रूप में विकसित करने के मकसद बड़ी संख्या में पश्चिम बंगाल, सिलीगुड़ी से 15 हजार हर्बल प्रजाति के पौधे लाकर प्लांटेशन कार्य इन दिनों जोर शोरों से किया जा रहा है। दून के चाय बागानों को दोबारा पहचान दिलाने के प्रयासों के क्रम में आगामी अप्रैल से यहां आसाम की चाय महकेगी। दून टी कंपनी की ओर से आसाम और पश्चिम बंगाल की चाय दून में उगाने की योजना बनाई गई है। इसे सीजन के अनुसार अक्टूबर में ट्रायल के तौर लगा भी दिया गया है, लेकिन अभी यह कम मात्रा में है। इसके बाद अप्रैल में शुरू होने वाले चाय की खेती के नए सीजन में यहां हजारों की संख्या में नई पौध लगाई जाएगी।
देहरादून में आरकेडिया और हरबंशवाला स्थित चाय बागान देश ही नहीं विदेशों में भी लोकप्रिय रही है, लेकिन धीरे.धीरे घटते हुए यह अपनी साख भी खोने लगे। दून की भूमि एक समय चाय उत्पादन के लिए देश.विदेश में प्रख्यात थी, लेकिन बढ़ते शहरीकरण के बीच यहां चाय बागान सिकुड़ने लगे। अब चाय बागान की नौ हजार हेक्टेयर भूमि में से महज 1100 हेक्टेयर में ही खेती हो रही है। बीते 20 साल में शेष 7900 हेक्टेयर भूमि को भी चाय बागानों के रूप में विकसित करने की दिशा में पहल होती तो आज सात लाख किलो से अधिक चाय का उत्पादन मिलता। अब दून टी कंपनी ने इसपर जोर.शोर से काम शुरू कर दिया है। सिलीगुड़ी से 15000 असम प्रजाति के चाय के पौधे मंगाए हैं। इनका शीघ्र ही बागानों में रोपण किया जाएगा। इसके अतिरिक्त टी बोर्ड ऑफ इंडिया से एक लाख चाय के पौधों की पूर्ति के लिए संवाद साधा जा रहा है। कंपनी ने अपनी चाय नर्सरी में भी लगभग 30 हजार पौधे विकसित किए हैं।
अब अगले अप्रैल से यहां चाय का उत्पादन बड़े स्तर पर शुरू हो जाएगा। उत्तराखंड के देहरादून में स्थित आरकेडिया और हरबंशवाला चाय बागानों का विस्तार करने जा रही है जिसके लिए असम प्रजाति के चाय की पौध मंगाई है। इससे भविष्य में चाय के उत्पादन में तेजी आएगी। कंपनी के इस प्रयास से देहरादून में चाय और हरियाली का विकास भी होगा। असम की चाय के चर्चे देश.विदेश में मशहूर हैं। भारत में चाय का सबसे अधिक उत्पादन असम में ही होता है। और विश्वभर में सबसे अधिक चाय का उत्पादन चाइना में होता है। कभी दहरादून भी चाय के उत्पादन में देश.विदेश में मशहूर था। देहरादून के आरकेडिया क्षेत्र में ही चायपत्ती बनाने की फैक्ट्री लगी हुई थी, लेकिन फैक्ट्री बंद होने के बाद चाय के बागान धीरे.धीरे खत्म होने लग गए थे। अब दहरादून में चाय की खुशबू फिर से महकेगी, वह भी असम की मशहूर चाय की खुशबू से। डीटीसी इंडिया लिमिटेड ने दहरादून के हरबंशवाला और आरकेडिया के चाय बागानों को फिर से हरा.भरा करने की तैयारी कर ली है। जानकारी के मुताबिक, सन 1860 ब्रिटिश शासन काल के समय में देहरादून शहर विश्वप्रसिद्ध चाय के उत्पादन के लिए अपनी अलग पहचान रखता था। मगर समय के साथ ही देहरादून के बदलते कंक्रीट के स्वरूप के कारण इसमें बदलाव आने शुरू हुए। हालात ये हैं कि आज देहरादून में ना के बराबर चाय का उत्पादन होता है। जानकारी के मुताबिक ओएनजीसी के नजदीक सिरमौर पार्क हरिद्वार रोड से लगता मथुरावालाए बंजारावालाए निरंजनपुर और मोहकमपुर सहित आर्केडिया और हरबंसवाला इलाके में काफी चाय की खेती का कारोबार हुआ करता थाण् आजकल मात्र आर्केडिया और हरबंशवाला ग्रांट क्षेत्र में ही चाय बागान उत्पादन के अस्तित्व को बचाने के लिए जद्दोजहद चल रही है। वहीं, ब्रिटिश काल से ही चाय का उत्पादन करने वाली कंपनी के जनरल मैनेजर डीके सिंह ने बताया कि कभी देश.विदेश में देहरादून में होने वाली चाय का बड़ा नाम था। चाय के अच्छे खासे उत्पादन के कारण देहरादून का नाम विशेष तौर पर जाना जाता थाण् आज के समय में यहां के सभी टी गार्डन खत्म हो चुके हैंण् ऐसे में अब एक बार फिर से आर्केडिया और हरबंसवाला चाय बागानों को विकसित करने का काम किया जा रहा हैविश्व प्रसिद्ध जैविक चाय उत्पादन के अस्तित्व को बचाने के लिए इन दिनों आर्केडिया व हरबंसवाला स्थित चाय बागान को एक बार बड़े पैमाने विकसित किया जा रहा हैण् जिसके लिए यहां लाखों की तादाद में चाय प्लांटेशन करने की कवायद में तेज कर दी गई है।












