प्रकाश कपरूवाण
जोशीमठ। जल विद्युत परियोजना निर्माण में लगी कपंनियों द्वारा प्रभावितों के साथ जो भी बर्ताव कर रही है, इसे तो होना ही था, परियोजनाओं का निर्माण शुरू करने से पूर्व विभिन्न स्थानों पर जन सुनवाई के दौरान जल, जंगल, जमीन, गौचर, पनघट, मरघट व प्रभावितों के जीवन की सुरक्षा की गारंटी की मांग को लेकर जब जनपक्षीय संगठन प्रमाणिकता के भविष्य के खतरे को देखते हुए विरोध दर्ज कराते थे, तो तब प्रभावित होने वाले क्षेत्रों के लोग ही इन संगठनों के विरोध में उतर जाते थे।
सीमावर्ती अति संवेदनशील भू भाग मे सदा नीरा नदियों को सुरंगों मे कैद कर बनाई जा रही परियोजनाओं से देश की ऊर्जा जरूरत तो पूरी होगी, लेकिन परियोजना प्रभावित क्षेत्रों की हालात तो बद से बदत्तर होती जा रही है। गत वर्ष ऋषि गंगा रैणी व तपोवन में हुए जल प्रलय के बाद रैणी से तपोवन तक छाई वीरानगी के बादल अभी भी नहीं छँटे हैं। हेलंग की घटना ने एक बार फिर सीमान्त क्षेत्र का माहौल गर्मा दिया है।
विद्युत परियोजनाओं के निर्माण मे हिमालय नष्ट हो जाय, हिमालय की नदियां सुरंगों में विलुप्त हो जाय, जल, जंगल, जमीन सब कुछ भले ही नष्ट हो जाय, लेकिन देश की ऊर्जा जरूरत हर हाल मे पूरी होगी।
ऐसा नहीं कि इन परियोजनाओं के निर्माण से पूर्व व निर्माण के दौरान कोई आंदोलन न हुआ हो। आंदोलन भी हुए, गिरफ्तारियां भी हुई और परियोजनाओं का निर्माण भी बदस्तूर जारी रहा। आज विभिन्न परियोजना प्रभावितों के सम्मुख जो चुनौतियां खड़ी है उसका विरोध तो परियोजना निर्माण से पूर्व जन सुनवाई के दौरान भी खूब हुआ, लेकिन तब भी प्रभावित क्षेत्रों के कुछ लोग संबंधित कंपनियों के साथ खड़े नजर आते थे और आज भी कमोवेश यही स्थिति है।
हेलंग की घटना हो या हाट गावँ की घटना दोनों मे परियोजना प्रभावितों पर ही गाज गिरी।हाट गाँव मे तो पुश्तैनी मकान व मंदिर तक को जेसीबी से ध्वस्त कर दिया गया और पीड़ित प्रभावितों ने अर्धनग्न होकर प्रदर्शन भी किया, नतीजा कुछ भी नहीं निकला और परियोजना निर्माण कार्य विना किसी रुकावट के बदस्तूर जारी रहा।
हेलंग की घटना ने प्रदेशभर मे आंदोलन की अलख जगा दी हैएविभिन्न संगठनों द्वारा रविवार 24 जुलाई को हेलंग मे विशाल प्रदर्शन भी होगा। इसके बाद भी क्या परियोजना प्रभावितों को न्याय मिल पायेगा, इस पर सबकी नजरें रहेंगी।