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रोमांस भरी रहती है गरपक नाग मंदिर की यात्रा

16/10/22
in उत्तराखंड, चमोली
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उरगम घाटी। लक्ष्मण सिंह नेगी, वैसे तो हिमालय रहस्यों से भरा पड़ा है। हिमालय को महाकवि कालिदास ने अपने पुस्तकों में हिमालय द नगा दी राजा हिमालय पर्वतों का राजा माना है। गीता में भी भगवान कृष्ण स्वयं कहते हैं कि नदियों में स्वयं गंगा और पर्वतों में हिमालय राजा हैं।

आज आपको इसी तरह की एक पर्वत श्रृंखला की कहानी वहां के लोगों की मुह जुवानी से रूबरू कराते हैं। जोशीमठ के नीति वैली के तरफ जोशीमठ से जब यात्रा शुरू होती है। लगभग 40 किलोमीटर मोटर और जीप कार से यात्रा करने के बाद एक भोटिया जनजाति गांव आता है जुम्मा। कहते हैं यह क्षेत्र सीमांत राष्ट्रीय राजमार्ग नीति के अंतर्गत आता है। जुम्मा से मुख्य रास्ता गरपक, द्रोणागिरी, कागा गांव के लिए रास्ते जाते हैं। जुम्मा से रविंग तक मोटर रोड़ का रास्ता कट रहा है। 3 किलोमीटर कच्ची कटिंग हो रखी है। यहां से 3 किलोमीटर के बाद दूणागिरी के रास्ते से गरपक का रास्ता कट जाता है। और पैदल 5 किलोमीटर दूरी तय करनी पड़ती है।

गरपक गांव एकदम अलग ही है। टापू पर स्थित है। गांव से पहले एक जगह चट्टान पर गरपक नाग का मंदिर है। यहां पर नाग और लोंहार देवता की पूजा होती है। मान्यता है कि जब नाग यहां पर आया था, तो किसी महिला ने यहां के क्षेत्रपाल को बताया था कि यहां तुम्हारे भंडार में कोई घुस गया है। क्षेत्रपाल ने अपनी तलवार से वार करके नाक को काट दिया था। आज भी पूरी चट्टान पर नाग के कटे हुए के निशान बने हुए हैं। ऐसे लोगों की आस्था है उस समय लोहार देवता भी भूमियाल देवता के साथ में थे। यहां पर शैव और वैष्णो रूप में दोनों की पूजा होती है। वर्ष भर में श्रावण मास में यहां पूजा करते हैं। नाग पंचमी के दिन विशेष नाग को दूध घी का भोग लगाया जाता है। कई वर्षों के अंतराल में महायज्ञ का आयोजन भी किया जाता है।

गरपक गांव नाग की हर दूसरे वर्ष में विशेष पूजा अर्चना की जाती है। पूरी पहाड़ की तलहटी पर एक छोटा सा मंदिर गरपक नाग के नाम से जाना जाता है। प्रकृति का यह सुंदर गांव चारों ओर पर्वत श्रृंखला से भरा पड़ा है। बीच में यह मंदिर स्थित है। गरपक गांव में 25 परिवार निवास करते हैं। सभी अनुसूचित जनजाति के लोग हैं। यहां पर मटर की खेती फाफर राजमा, ओगल मुख्य रूप से होती है। यहां यह लोग अप्रैल के माह में आते हैं और अक्टूबर के माह में यहां से चले जाते हैं। यहां पर भूमियाल देवता, नंदा देवी, दाणू देवता के मंदिर हैं। यहां पर दूर.दूर से लोग पूजा के लिए आते हैं। नंदा अष्टमी के समय में भी यहां पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है। यहां यात्रा के लिए अप्रैल मई.जून के अलावा अगस्त सितंबर का माह अत्यधिक रोंचक भरा रहता है। प्रकृति का अत्यधिक सुंदर स्थान यहां से एक ट्रैक मार्ग 8 किलोमीटर के लगभग जंगलों के रास्ते होते हुए द्रोणागिरी पहुंचा जाता है। गांव में रुकने के लिए पंचायत भवन की व्यवस्था है। यहां पर जैविक सब्जी का उत्पादन बहुत ही अच्छे ढंग से होता है। किंतु यातायात सुविधा नहीं होने कारण खेतों में ही सड़ जाती है।

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