उत्तराखंड भाषा संस्थान का विवाद डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला के बाद एक परते खुलती जा रही है। अर्थात एक और कारनामे पर सवाल उठने लग गए।
मामला इसी दौरान का है। एक साहित्यकार को तीसरी बार इस साहित्य सम्मान से नवाजा गया है। इस तरह उत्तराखंड भाषा संस्थान की पोल की ढोल एक एक कर के खुलने लग गई है।
ज्ञात हो कि तीसरी बार पुरस्कार झटकने वाल शख्स इतना महत्वाकांक्षी है कि होली मिलन कार्यक्रम के बहाने खुद का नागरिक अभिनंदन करवाने में पीछे नहीं रहा, इसलिए कि उन्हें तीसरी बार साहित्य सम्मान मिला है। कुछ नामी साहित्यकारों को आमंत्रित करके और उन्हीं से अपना नागरिक अभिनंदन करवा दिया। फिर क्या, रातभर उस रेस्टोरेंट में जश्न मनाया गया।
आम तौर पर यदि देखा जाए तो कोई भी साहित्यकार इतना हलका नहीं होता कि बार बार एक ही पुरस्कार के लिए फार्म भरे। यह बात इसलिए कही जा रही है कि सरकारी कार्य कागजी रूप से पारदर्शी होते है। चूंकि साहित्य का यह पुरस्कार सरकारी है।
उल्लेखनीय यह है कि जो छिछेलीदारी उत्तराखंड भाषा संस्थान की इस वर्ष के साहित्य सम्मेलन से हुई, शायद कभी हुई होगी। बार बार यही सवाल उठाया जा रहा है कि कुछ साहित्यकार इस पुरस्कार लेने के हकदार नहीं थे। यहां तक कि जिस शख्स को तीसरी बार यह पुरस्कार मिला है वह भी नहीं था। लिहाजा वह व्यक्ति उत्तराखंड सिनेमा में मामूली नृत्य व अभिनय करने वाला व्यक्ति है। कुछ लोगों ने तो यहां तक कह दिया कि तीसरी बार पुरस्कार पाने वाला व्यक्ति साहित्यकार है ही नहीं, उनके पास जो भी साहित्य से संबंधित दस्तावेज है वह मौलिक नहीं है, बल्कि वे सभी संग्रहित सामग्रियां है। जिसे कोई भी सामान्य नागरिक एकत्रित कर सकता है।
उत्तराखंड भाषा संस्थान पर कुछ लोग सूचना का अधिकार अधिनियम के माध्यम से अब जानकारी चाहने वाले है कि इस पूरे इवेंट में कितना खर्चा आया है। यदि इस सम्मान देने में सभी समुदायों को साधा गया तो अनुसूचित जाति के समुदाय को क्यों वंचित रखा गया। एक ही व्यक्ति को तीसरी बार क्यों यह सम्मान दिया गया, उस शख्स ने ऐसा क्या विशेष किया है। चयन समिति का गठन कैसे और किस आधार पर हुआ है।
कुलमिलाकर विवादों से घिरा उत्तराखंड भाषा संस्थान के सामने भविष्य में बड़ी समस्या उत्पन्न होने वाली है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि एक व्यक्ति को तीसरी बार इस सम्मान के लिए क्यों चुना गया है। इसके अलावा कुछ और साहित्यकार हैं जिनकी रचनाएं अभी फिलहाल बाल्यावस्था में है उन्हें भी इस साल के पुरस्कार से नवाजा गया है। पर जो साहित्यकार आंचलिक और अन्य साहित्य में खप गए हैं उन्हें इस श्रेणी में क्यों नहीं लाया गया। जबकि उन्होंने इस पुरस्कार के लिए आवेदन भी किया था। यही बड़ा गड़मड़झाला सामने आ रहा है?लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।।