डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
भारत में सबसे ज्यादा 77 प्रतिशत दलहन उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्यो में मध्य प्रदेश 24 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश 16 प्रतिशत, महाराष्ट्र 14 प्रतिशत, राजस्थान 6 प्रतिशत, आन्ध्र प्रदेश 10 प्रतिशत और कर्नाटक 7 प्रतिशत राज्य है । शेष 23 प्रतिशत उत्पादन में गुजरात, छत्तीसगढ़, बिहार, उड़ीसा और झारखण्ड राज्यो की हिस्सेदारी है। उरद या उड़द एक दलहन होता है। उरद को संस्कृत में माष या बलाढ्य बँगला में माष या कलाई गुजराती में अड़द मराठी में उड़ीद पंजाबी में माँह, अंग्रेज़ी, स्पेनिश और इटालियन में विगना मुंगों जर्मन में उर्डबोहने फ्रेंच में हरीकोट उर्ड पोलिश में फासोला मुंगों पुर्तगाली में फेजों द.इण्डिया तथा लैटिन में फ़ेसिओलस रेडिएटस, कहते हैं। इसका द्विदल पौधा लगभग एक हाथ ऊँचा है और भारतवर्ष में सर्वत्र ज्वार, बाजरा और रुई के खेतों में तथा अकेला भी बोया जाता है।
विभिन्न प्रकार के दाल दलहन वनस्पति जगत में प्रोटीन का मुख्य स्रोत हैं। मटर, चना, मसूर, मूँग इत्यादि से दाल प्राप्त होती हैं। इससे मिलनेवाली दाल भोजन और औषधि, दोनों रूपों में उपयोगी है। बीज की दो जातियाँ होती हैं। 1 काली और बड़ी, जो वर्षा के आरंभ में बोई जाती है और 2 हरी और छोटी, जिसकी बोआई दो महीने पश्चात् होती है। इसकी हरी फलियों की भाजी तथा बीजों से दाल, पापड़ा, बड़े इत्यादि भोज्य पदार्थ बनाए जाते हैं। आयुर्वेद के मतानुसार इसकी दाल स्निग्ध, पौष्टिक, बलकारक, शुक्र, दुग्ध, मांस और मेदवर्धक वात, श्वास और बवासीर के रोगों में हितकर तथा शौच को साफ करनेवाली है। रासायनिक विश्लेषणों से इसमें स्टार्च 56 प्रतिशत, अल्बुमिनाएड्स 23 प्रतिशत, तेल सवा दो प्रतिशत और फास्फोरस ऐसिड सहित राख साढ़े चार प्रतिशत पाई गई है। इसकी तासीर ठंडी होती है, उड़द दाल में फाइबर, 26ः प्रोटीन, विटामिन बी 1, बी 2, बी 6 और कुछ मात्रा में मिनरल्स होते हैं अतः इसका सेवन करते समय शुद्ध घी में हींग का बघार लगा लेना चाहिए। इसमें भी कार्बोहाइड्रेट, विटामिन्स, केल्शियम व प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं।
बवासीर, गठिया, दमा एवं लकवा के रोगियों को इसका सेवन कम करना चाहिए। दक्षिण भारतीय डिश को उड़द की दाल और उसने चावल से तैयार किया जाता है इडली उड़द की दाल के दाम दो महीने में दोगुना हो गए। अक्टूबर महीने में 80.85 रुपये किलो बिक रही उड़द की दाल रविवार को फुटकर बाजार में 160.165 रुपये किलो तक पहुंच गए। वहीं, ब्रांडेड आटा के दाम भी बढ़े हैं। आटे के 10 किलो के पैक पर 30.40 रुपये की बढ़ोतरी हुई है। खुला आटा 25 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। फुटकर बाजार में हरी उड़द की दाल 130 रुपये प्रतिकिलो तक उछल गए थे। लेकिन 15 दिन बाद हरि उड़द के दाल में और तेजी आई है। रविवार को इसका दाम 160.165 रुपये प्रतिकिलों पहुंच गया। आटा का जो पैक 310 रुपये का आ रहा था वह अब 350 रुपये दस किलो ह गया है। उत्तराखंड में विवाह पूर्व उड़द की दाल पीसना और पकोड़ी बनाना एक एहम रश्म है। गॉव की सभी महिलाएं इसमें हिस्सा लेती हैं।
उत्तराखंड में कृषि के क्षेत्र में काम कर रही संस्था हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर हार्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी महेंद्र सिंह कुंवर ने बताया कि पहाड़ में खेती उत्पादन कम हो रहा है। इसकी कई वजहें हैं। सरकार और यहां के स्थानीय लोगों को मिलकर इसके उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए काम करने की जरूरत है। मार्केट में इनकी मांग अधिक है, लेकिन उस अनुसार इनका उत्पादन काफी कम है। उन्होंने बताया कि संस्था द्वारा प्रदेश के चमोली, उत्तरकाशी, देहरादून, बागेश्वर आदि जिलों में पहाड़ी अनाजों की खेती और उत्पादों को बनाने का काम किया जा रहा है। संस्था के अंतर्गत 38 संगठन काम कर रहे हैं और करीब 45,000 लोग इस रोजगार जुड़े हुए हैं। रोजगार और बेहतर जिन्दगी की तलाश में उत्तराखंड से लोगों का लगातार पलायन हो रहा है।
राज्य में बनी सभी सरकारें इसे रोकने में नाकामयाब रही है। ऐसे में अब नई कृषि नीति के जरिए पहाड़ों से पलायन को रोकने की कोशिश की जा रही है। उत्तराखंड में भी मध्यप्रदेश की तर्ज पर अब दलहन की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे कृषि वाले जमीन का रकबा बढ़ेगा वहीं यहां पैदा होने वाले दालों की बिक्री के लिए उचित बाजार मुहैया कराया जाएगा। दलहन की पैदावार को बढ़ाने और पलायन को रोकने के लिए किसानों को 75 फीसदी सब्सिडी पर उन्नत किस्म के बीज मुहैया कराए जाएंगे। गौरतलब है कि ऊर्जा प्रदेश के बाद उत्तराखंड को दलहन प्रदेश बनाने की तैयारी शुरू कर दी गई है। इसके लिए यहां दालों की खेती के लिए क्षेत्राें को चुनने का काम शुरू कर दिया है। वहीं पहाड़ी जिलों में वैज्ञानिक तकनीक से पारंपरिक प्रजातियों की नई किस्में भी विकसित की जाएंगी। सबसे खास बात है तराई बीज विकास निगम की मदद से पहाड़ में ही उत्पादित उन्नत बीज यहां के किसानों को 75 फीसदी सब्सिडी पर मुहैया कराया जाएगा। अगर पर्वतीय कृषि नीति सफल रहती है तो उत्तराखंड दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर तो होगा ही साथ ही राज्य का आर्थिक विकास भी मुमकिन होगा। इसके अलावा कम होते कृषि क्षेत्र को बचाने और राज्य से होने वाले पलायन को रोकने में भी मदद मिलेगी।राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत दलहन उत्पादन बढ़ाने की योजना पर काम शुरू हो चुका है। पहले चरण में मसूर की खेती पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है। निश्चित तौर पर यह कदम पहाड़ में कृषि को बढ़ावा देकर किसानों को खेती से जोड़ने तथा आर्थिक लाभ पहुंचाने वाला साबित होगा।