• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar

खेत की मेड़ों पर बाढ़ के लिए लगाये जाने वाले रामबांस के व्यावसायिक प्रयोग

16/11/19
in उत्तराखंड, जॉब
Reading Time: 1min read
0
SHARES
1.1k
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
अमेरिकन मूल का पौधा सिसल जिसे भारत में खेतकी तथा रामबांस कहते है। आमतौर पर रामबांस को शुष्क क्षेत्रों में पशुओं और जंगली जानवरों से सुरक्षा हेतु खेत की मेड़ों पर लगाया जाता रहा है। अनेक स्थानों पर इसे शोभाकारी पौधे के रूप में भी लगाया जाता है। परन्तु अब यह एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक रेशा प्रदान करने वाली फसल के रूप में उभर रही है। इसकी पत्तियों से उच्च गुणवत्ता युक्त मजबूत और चमकीला प्राकृतिक रेशा प्राप्त होता है।
विश्व में रेशा प्रदान करने वाली प्रमुख फसलों में रामबांस का छठवाँ स्थान है और पौध रेशा उत्पादन में दो प्रतिशत की हिस्सेदारी है। वर्त्तमान में हमारे देश में लगभग 12000 टन रामबांस रेशे का उत्पादन होता है, जबकि 50000 टन रेशे की आवश्यकता है। भारत को प्रति वर्ष रामबांस के रेशे अन्य देशों जैसे तंज़ानिया, केनिया आदि से आयात करना पड़ता है। विश्व में सीसल उत्पादन करने वाले प्रमुख देश ब्राजील, चीन, तनजानियां, केनिया, मोजाम्बिक और मेडागास्कर हैं। भारत में इसकी खेती उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र्, बिहार और अन्य राज्यों में की जाती है। भारत में पत्तियों से रेशा प्राप्ति वाली फसलों में सीसल अर्थात खेतकी एक अत्यधिक महत्वपूर्ण फसल है। सीसल के पौधों को उगाकर मिट्टी के कटाव को भी रोका जा सकता है। खेत के चारों तरफ सीसल की बाड़ फेंसिंग लगाने से जानवरों से फसल की सुरक्षा की जा सकती है। इसका रेशा मजबूत सफ़ेद और चमकीला होता है। इसका उपयोग समुद्री जहाज के लंगर का रस्सा और औद्योगिक कल.कारखानों में भी होता है।
इसके अलावा गद्दी, चटाई, चारपाई बुनाई की रस्सी और घरेलू उपयोग में प्रयोग किया जाता है। सीसल का रेशा उत्कृष्ट किस्म के कागज बनाने में उपयोग किया जाता है। वर्तमान में इसका अनेक प्रकार की वस्तुएं बनाने में उपयोग किया जा रहा है। जैसे कि फिशिंग नेट, कुशन, ब्रश, स्ट्रेप चप्पल औरफैन्सी सामग्री के रूप में लेडीज बैंग, कालीन, बेल्ट, फ्लोर कवर, वाल कवर इत्यादि के अलावा घर को सजाने के लिए विभिनन प्रकार की सजावट की वस्तुएं बनायी जा रही हैं। सीसल के रेशे से बनायी गयी वस्तुएं अपेक्षाकृत मजबूत टिकाऊ और सस्ती होती है।
सीसल रेशा निकलने के बाद शेष कचरे में हेकोजेनीन पाया जाता है। जिसका कारटीजोन हार्मोन बनाने में उपयोग किया जाता है। इसके अलावा कचरे का उपयोग जैविक खाद के रूप में भी किया जाता है। सीसल का पौधा अपने पूरे जीवन काल अर्थात 7 से 8 वर्षो में लगभग 250 से 300 पत्तियों की उत्पत्ति करता है। एक पत्ती से सामान्यतः 20 से 30 ग्राम सूखा रेशा प्राप्त होता है। सामान्य तौर पर सीसल की पत्तियों में रेशे की मात्रा कुल हरे भाग का 4 प्रतिशत होती है। आमतौर पर सीसल की औसत उपज ढाई से चार टन प्रति हैक्टर प्रति वर्ष प्राप्त होती है। यह पौधों की संख्या, जलवायु, मिट्टी की उर्वरता तथा पौध प्रबंधन पर निर्भर करता है।
पत्तियों की कटाई के पश्चात् डिकोरटीकेटर मशीन द्वारा रेशा निकालते है। रेशा पत्तियों की कटाई के साथ.साथ या कटाई के 48 घंटेके अन्दर निकाल लेना चाहिए। अन्यथा रेशा अच्छे किस्म का नहीं होता है। कटाई के पश्चात् पत्तियों को ग्रीष्म ऋतु की प्रचण्ड गर्मी में सूर्य के प्रकाशमें नही रखना चाहिए अन्यथा रेशे की गुणवत्ता ख़राब हो सकती है। रेशा निकालने के पश्चात् इसे साफ पानी से अच्छी तरह धुलाई करके इन्हें निचोड़ने के तुरन्त बाद बांस के मचान पर रखकर सुखाया जाता है। जमीन या सड़कों पर रेशा सुखाने से रेशे गंदे हो जाते है। सूखे रेशे को खंभे सेपटककर अनुपयुक्त कोशिकाओ को अलग करना चाहिए। तत्पश्चात् रेशे को अच्छी तरह झाड.पोंछ और ब्रश करके एक या दो दिन सुखाते हैं। पूर्ण रूपसे सुखाने के बाद रेशे का बंडल बनाकर बेचने के लिए बाजार भेज देते हैं। रामबांस को हम मालवा वासी रामबाण कहते हैंएए वही कुछ लोग इसे खेतकी भी कहते हैं, एक समय था जब रामबांस के पत्तों से गेंहू के पुले बांधे जाते थे, पर कुछ वर्षों में ऐसी स्थिति बदली की रामबांस देखने को भी नही मिलता। पुराने समय मे पशुओं और जंगली जानवरों से सुरक्षा एवं भूमि के कटाव को रोकने हेतु खेत की मेड़ों पर रामबांस लगाया जाता था। सम्भवतः इसी कारण इसे खेतकी भी कहा गया है, अब उद्यानों में इसे शोभाकारी पौधे के रूप में भी लगाने लगे है। चाहे इसका उपयोग हमने आज बन्द कर दिया पर इसकी उपयोगिता अब भी महत्वपूर्ण हैं। रामबांस प्राकृतिक रेशा प्रदान करने वाली फसल के रूप में उभर रही है। इसकी पत्तियों से उच्च गुणवत्ता युक्त मजबूत और चमकीला प्राकृतिक रेशा प्राप्त होता है। विश्व में रेशा प्रदान करने वाली प्रमुख फसलों में सिसल का छटवाँ स्थान है और पौध रेशा उत्पादन में दो प्रतिशत की हिस्सेदारी है रामबांस से बने कुंडल, हार व मांग टीका।
फैशन के इस दौर में सब.कुछ बिकता है। बस! जरूरत है उसे आकर्षक कलेवर में जमाने के समक्ष पेश करने की। पौड़ी जिले में यमकेश्वर ब्लाक के ग्राम भैंसखाल किमसार की महिलाएं कुछ ऐसी ही सोच के साथ कांटेदार बांस को इस खूबसूरती से दुनिया के समक्ष पेश कर रही हैं। नतीजा, यह कांटेदार पौधा जहां लोगों के दिलों को जीत रहा है, वहीं ग्रामीणों की आर्थिकी संवारने में भी अहम भूमिका निभा रहा है। वर्तमान में रामबांस के रेशों से 30 महिलाएं प्रतिमाह पांच-पांच हजार रुपये कमा रही हैं। तमाम औषधीय गुणों से लबरेज होने के बावजूद रामबांस को पर्वतीय क्षेत्रों में घरों के आसपास उगाना शुभ नहीं माना जाता। लेकिन, यही रामबांस यदि जेब भारी करना शुरू कर दे तो शुभ-अशुभ जैसी बातों के कोई मायने नहीं रह जाते। यही वजह है कि किमसार में रामबांस का एक खूबसूरत जंगल ग्रामीणों ने स्वयं तैयार किया है। महिलाएं इस जंगल से रामबांस निकालती हैं और उसके रेशों से विभिन्न उत्पाद तैयार कर उन्हें बिक्री के लिए बाजार में भेज देती हैं। यह भी बता दें कि इन महिलाओं के पास रामबांस के उत्पादों की एडवांस बुकिंग होती है, जिसके आधार पर वह उत्पाद तैयार करती हैं। वर्तमान में छह स्वयं सहायता समूहों के साथ ही करीब 30 ग्रामीण महिलाएं व्यक्तिगत रूप से रामबांस के रेशे निकालकर उत्पाद तैयार कर रही हैं। पूर्व में वर्षभर उत्पाद तैयार किए जाते थे, लेकिन अब डिमांड पर ही तैयार होते हैं। संस्था ऑनलाइन शॉपिंग स्टोर अमेजन, फ्लिप कार्ट, शॉप क्लूज, से भी वार्ता कर रही है, ताकि उत्पाद ऑनलाइन बेचे जा सकें।
संदीप कंडवाल के अनुसार समूहों को जल्द शॉपिंग स्टोरों से जोड़ दिया जाएगा, ताकि भुगतान समूहों के ही खाते में आए। गौरस संस्था अब रामबांस को भैंसखाल से निकाल अन्य क्षेत्रों में ले जाने की तैयारी कर रही है। इसके लिए यमकेश्वर ब्लाक के आसौं दमराड़ा व धारकोट में बंजर भूमि पर रामबांस लगाया गया है। धारकोट में रामबांस से रेशा निकालने का कार्य भी शुरू हो चुका है। प्रयास है कि अन्य गांवों की महिलाओं को भी रामबांस के जरिये सीधे रोजगार से जोड़ा जा सके। भारत में प्लास्टिक का विकल्प खोजना बेहद जरूरी है, क्योंकि यहां रहने वाला ही नहीं खास आदमी भी प्लास्टिक का उपयोग करता है। सिसल इसलिए भी एक विकल्प के तौर पर देखा जाता है कि इसकी पत्तियों से रेशा मजबूत सफेद और चमकीला होता है। सिसल का उपयोग समुद्री जहाज के लंगर का रस्सा और औद्योगिक कल.कारखानों में भी होता है। इसके अलावा गद्दी, चटाई, चारपाई बुनाई की रस्सी और घरेलू उपयोग में भी प्रयोग किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि अप्रैल, 1942 में तत्कालीन जिला पंचायत, पौड़ी ने उनके कंडाली, रामबांस, पिरुल, भांग, भीमल आदि से कपड़ा बनाने की कार्ययोजना के लिए 8 हजार रुपये का अनुदान मंजूर किया। यह तय हुआ कि पौड़ी गढ़वाल की कंडारस्यूं पट्टी के चौलूसैंण में अमर सिंह जी के सभी प्रयोगों को व्यावसायिक रूप देने के लिए यह उद्यम लगाया जायेगा। पर वाह रे हम पहाड़ियों की बदकिस्मती। दिन-रात की भागदौड़ की वजह से रावत जी की तबियत बिगड गयी। कई दिनों तक बीमार रहने पर सतपुली के निकट बांघाट अस्पताल में 30 जुलाई 1942 को अमर सिंह जी का निधन हो गया। सारी योजनायें धरी की धरी रह गयी। उनके सपने उन्हीं के साथ सदा के लिए चुप हो गये। अमर सिंह रावत जी ने सन् 1926 से 1942 तक लगातार स्थानीय संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के लिए नवीन तकनीकी एवं उत्पादों का विकास किया। उनका घर नवाचारों की प्रयोगशाला थी। अपने आविष्कारों की व्यवहारिक सफलता के लिए उन्होंने घर की जमा पूंजी तक खर्च कर डाली थी। उन्होंने अपने आविष्कारों पर आधारित पुस्तक पर्वतीय क्षेत्रों का ओद्योगिक विकास को तैयार किया। जिसे उनकी मृत्यु के बाद भक्त दर्शन जी ने प्रकाशित किया था। इस किताब में अपनी मार्मिक व्यथा को व्यक्त करते हुए उन्होने लिखा है कि मैं जिन अवसरों को ढूंढ रहा था वे भगवान ने मुझे प्रदान किये। परन्तु मैं कैसे उनका उपयोग करूं, यह समस्या मेरे सामने है। मेरी खोंजों को व्यवहारिक रूप देने के लिए यथोचित संसाधन नहीं हैं। अब तक इस पागलपन में मैं अपनी संपूर्ण आर्थिक शक्ति को खत्म कर चुका हूं। मूल बात यह है कि पहाड़ी समाज अपनों की कद्र करना कब सीखेगा। उत्तराखण्ड सरकार पुनः इस दिशा में सक्रिय होती दिख रही है उनके अदभुत प्रयासों की याद सकारात्मक स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा प्रयास को स्व अमर सिंह जी अपने लिए न्याय मांगने क्यों आया है। सन् 1940 में बम्बई आज का मुम्बई, में रेशे से कपडा बनाने के कारोबार के लिए 1 लाख रुपये का प्रस्ताव ठुकरा कर अपने गढ़वाल में ही स्वरोजगार की अलख जगाना बेहतर समझा। परन्तु हमारे पहाड़ी समाज ने उनकी कदर न जानी।

ShareSendTweet
http://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/02/Video-National-Games-2025-1.mp4
Previous Post

ट्रक की चपेट में आने से बाइक सवार दो लोग घायल, एक की हालत गंभीर

Next Post

पंचायत चुनावों में भाजपा का अभिमान चकनाचूरः भंडारी

Related Posts

उत्तराखंड

द्रौपदीमाला की महक, इसे दो राज्‍यों ने घोषित किया अपना राज्यपुष्प

June 15, 2025
7
उत्तराखंड

श्री बदरीविशाल के क्षेत्र रक्षक श्री घंटाकर्ण महावीर माणा घन्याल मंदिर के कपाट खुले

June 15, 2025
7
उत्तराखंड

हेलीकाप्टर एवं विमान हादसे में दिवंगतों की आत्म शांति हेतु श्री बदरीनाथ – केदारनाथ मंदिर समिति कर्मचारी संघ ने शोक सभा आयोजित की

June 15, 2025
9
उत्तराखंड

ऑल्टो कार दुर्घटनाग्रस्त, दो व्यक्तियों की अकाल मौत

June 15, 2025
7
उत्तराखंड

क्राइम: नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने वाला अभियुक्त दिल्ली से गिरफ्तार

June 15, 2025
82
उत्तराखंड

रुद्रप्रयाग हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त के जांच के आदेश, लापरवाही बरतने वालों के खिलाफ होगी सख्त कार्रवाई

June 15, 2025
6

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    0 shares
    Share 0 Tweet 0

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

द्रौपदीमाला की महक, इसे दो राज्‍यों ने घोषित किया अपना राज्यपुष्प

June 15, 2025

श्री बदरीविशाल के क्षेत्र रक्षक श्री घंटाकर्ण महावीर माणा घन्याल मंदिर के कपाट खुले

June 15, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.