डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड सरकार ने मैदानी व पहाड़ी जिलों में हो रहे जनसांख्यकीय परिवर्तन (डेमोग्राफिक चेंज) को
लेकर जिला प्रशासन को सतर्क रहने के निर्देश दिए हैं। जिला व पुलिस प्रशासन को जिला स्तरीय समितियों
के गठन, अन्य राज्यों से आकर बसे व्यक्तियों के सत्यापन व धोखा देकर रह रहे विदेशियों के खिलाफ
कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। चुनाव से ठीक पहले सरकार के इन निर्देशों को समाज व राजनीति के एक
वर्ग की ओर जिस तरह के प्रतिरोध की आशंका व्यक्त की जा रही थी, वैसा कुछ दिखने में नहीं आया। इसकी
दो वजह है।एक तो सरकार के इस कदम के पीछे ठोस कारणों की मौजूदगी व दूसरे विरोध करने पर
सियासी नुकसान की आशंका। कारण कुछ भी हो, लेकिन यह स्पष्ट है कि सीमांत राज्य उत्तराखंड में
नियोजित या अनियोजित ढंग से हो रहा जनसांख्यकीय परिवर्तन बड़े खतरे की आहट है। राज्य व देश हित
चाहने वाला कोई भी व्यक्ति इसे नकार नहीं सकता। राज्य गठन के बाद से कांग्रेस व भाजपा की सरकारें
आई व गईं, लेकिन इस आहट को सुनने में नाकाम रहीं या सियासी लाभ के लिए जानबूझ कर नकारती रही
हैं। अब जब स्थिति विकट होने के कगार पर है, तब भी सरकार जिला प्रशासन व पुलिस को सतर्क रहने तक
की ही हिदायत दे पाई है। देश में कहीं भी भूमि खरीदने के मूल अधिकार की रक्षा करना बेशक सरकार का
दायित्व है, लेकिन किसी मूल अधिकार के दुरुपयोग को रोकना भी तो सरकार का ही दायित्व होगा। इसका
बोध राज्य सरकार को अब हुआ है। सीमांत राज्य उत्तराखंड में जनसांख्यकीय परिवर्तन प्रदेश ही नहीं देश
के लिए भी घातक हो सकता है, यह सरकार को भले देर से ही सही, पर समझ में तो आया। अब भी अगर
ठोस निगरानी शुरू कर दी जाए तो स्थिति बदतर होने से बच सकती है।जनसांख्यकीय परिवर्तन कोई
यकायक होने वाली प्रक्रिया नहीं है। उत्तराखंड में इस परिवर्तन की नींव अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौरान
पड़ गई थी। उत्तराखंड राज्य गठन के बाद इस दिशा में तेजी आई है, लेकिन सरकारें जाने-अनजाने इसकी
अनदेखी करती रहीं। प्रदेश में यह परिवर्तन दो तरह का है। देहरादून, हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर जैसे जिलों
में बाहरी प्रदेशों से लोग विभिन्न कारणों से आ बसे हैं। यह प्रक्रिया सामान्य है, लेकिन एक समुदाय विशेष
के लोग इन जिलों के क्षेत्र विशेष में जमीन खरीद कर या अतिक्रमण कर भी भारी संख्या में बसे हैं। इस
कारण वहां पहले से बसे लोगों ने अपनी भूमि औने-पौने दामों पर बेच कर अन्यत्र बसना उचित समझा।
अब इन जिलों के कुछ क्षेत्रों में मिश्रित जनसंख्या के बजाय समुदाय विशेष की किलेबंदी जैसी दिखने लगी
है।पिछले कुछ वर्षो में यह प्रवृत्ति पहाड़ी जिलों में भी दिखाई दी है। जहां पहाड़ से लोगों का पलायन
रोकना सरकार के लिए चुनौती बना है, वहीं यह भी देखने में आया है कि पहाड़ के कस्बाई क्षेत्रों में समुदाय
विशेष के लोग बसने में विशेष रुचि ले रहे हैं। पौड़ी गढ़वाल, चमोली, नैनीताल, उत्तरकाशी में इस तस्वीर
को देखने के लिए कोई खोजबीन करने की जरूरत नहीं है। यह भी उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में बसने में
रुचि लेने वालों में विदेशी भी शुमार हैं।क्षेत्र विशेष में समुदाय विशेष की नियोजित बसावट को रोका जाना
क्यों जरूरी है, इसके तीन ठोस आधार हैं। सबसे पहले देवभूमि के मूल स्वरूप को बचाना आवश्यक है।
देवभूमि के मूल चरित्र के कारण जो कभी यहां आए भी नहीं, वे भी इस स्वरूप को संरक्षित रखना चाहते हैं।
वहीं, जो भौतिकवादी सोच के लोग हैं, वे भी राज्य की आर्थिकी के लिए इस स्वरूप को कायम रखना
चाहते हैं। सब जानते हैं कि उत्तराखंड के पर्यटन उद्योग की रीढ़ तीर्थाटन ही है।सरकार के इस कदम का एक
और ठोस आधार देश की सीमाओं की सुरक्षा भी है। नेपाल व चीन की सीमा से लगने वाले इस राज्य की
सीमाओं में मूल निवासियों के पलायन को रोकना जितना जरूरी है उतना ही तर्कसंगत बाहर से आकर
बसने वालों की स्क्रीनिंग करना भी है। इस राज्य के सीमांत जिलों के हर गांव-परिवार के स्वजन सीमाओं
पर सैनिक के रूप में तैनात है। जो गांवों में हैं वे बिना वर्दी के समर्पित सैनिक हैं। इनकी भूमिका को सेना
द्वारा सराहा जाता रहा है। इन क्षेत्रों में सुनियोजित बाहरी बसावट की ओर यूं ही आंख मूंद कर नहीं बैठा
जा सकता है। चंद वोटों की लालच में ऐसा होते रहने दिया गया तो सीमा पर संकट खड़ा हो जाएगा। आने
वाली पीढ़ियां वोटखोर नेताओं को कभी माफ नहीं करेंगी। राज्य की बीजेपी सरकार को अब इस बात की
चिंता सताने लगी है कि जल्दी ही कोई कानून नहीं बनाए गए तो राज्य का मूल देव स्वरूप कहीं बिगड़ न
जाए। सरकार ने भू कानून में सुधार के लिए एक समिति भी बनाई हुई है। जिसके द्वारा दिए गए सुझावों
पर सरकार को अमल करना है।उत्तराखंड राज्य को बने हुए 24 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन राज्य के गांवों से
पलायन एक बड़ी समस्या बना हुआ है. विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस राज्य में आज भी सैकड़ों
गांव वीरान होते जा रहे हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और बेहतर जीवन-स्तर की तलाश में लोग लगातार
पहाड़ों से मैदान की ओर जा रहे हैं. प्रदेश में जनसांख्यिकीय बदलाव को देखते हुए सरकार चिंतित नजर आ
रही है। मैदानी जनपदों के साथ ही जिस तेजी से पर्वतीय जनपदों में भी समुदाय विशेष की जनसंख्या बढ़ी
है, उसे लेकर सरकार वृहदस्तर पर सत्यापन अभियान चलाने की तैयारी कर रहीहै।राजधानी देहरादून
समेत प्रदेश के चार जिले हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और नैनीताल में समुदाय विशेष के लोगों ने पिछले 10-
11 वर्षों में न केवल ताबड़तोड़ जमीनें खरीदीं, बल्कि उनकी बसावट भी उतनी तेजी से बढ़ी है। सीमांत
क्षेत्रों में भी समुदाय विशेष की जनसंख्या में लगातार वृद्धि सामने आई है।.लेखक ने अपने निजी विचार
व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।