देहरादून। सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज (एसडीसी) फाउंडेशन ने सोसाइटी फॉर कॉन्स्टिट्यूशनल लॉ एंड ह्यूमन राइट्स तथा यूपीईएस स्कूल ऑफ लॉ के सहयोग से “उत्तराखण्ड ऑन एज: उदय मॉनसून रिपोर्ट 2025” का विमोचन यूपीईएस, देहरादून में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान किया। उत्तराखंड डिज़ास्टर एंड एक्सीडेंट एनालिसिस इनिशिएटिव (उदय) के तहत तैयार इस रिपोर्ट में जुलाई, अगस्त और सितंबर 2025 की मॉनसून अवधि के दौरान राज्य में घटित 13 प्रमुख आपदा घटनाओं का दस्तावेजीकरण किया गया है। इन घटनाओं में 69 लोगों की मृत्यु, 105 व्यक्तियों के लापता होने तथा 115 लोगों के घायल होने की जानकारी शामिल है। वैज्ञानिक तथ्यों, नीतिगत अवलोकनों और ज़मीनी स्थितियों को समाहित करते हुए यह रिपोर्ट राज्य के हालिया वर्षों के सबसे उथल-पुथल भरे मॉनसून का विस्तृत चित्र प्रस्तुत करती है।
मॉनसून 2025 ने जलवायु परिवर्तन से प्रेरित कई झटके दिए। वैज्ञानिक आकलनों में उत्तराखंड में कुल 426 हिमनदीय झीलों की पहचान की गई, जिनमें से 25 को ‘खतरनाक’ श्रेणी में रखा गया है। इसके साथ तेज़ी से पीछे हटते ग्लेशियर और चरम वर्षा की बढ़ती घटनाओं को भी रेखांकित किया गया। जुलाई में ये चेतावनियां वास्तविकता में तब्दील हो गईं भारी बादलफट, जानलेवा भूस्खलन और यात्रा व तीर्थ मार्गों पर बढ़ती दरारों के रूप में। अगस्त में उत्तरकाशी के धाराली में आई विनाशकारी बाढ़ ने पूरे एक गांव को बहा दिया। इस घटना ने भागीरथी इको-सेंसिटिव ज़ोन में वनों की कटाई, अनियंत्रित निर्माण और असंवैधानिक ढलान कटान पर गंभीर चिंता फिर से जगाई। सितंबर तक आते-आते दून घाटी भीषण बाढ़ की चपेट में आ गई, जिसने शहर के नाजुक ड्रेनेज तंत्र, अनियोजित शहरीकरण और हिमालयी नगरों की बढ़ती जलवायु संवेदनशीलताओं को उजागर किया।
रिपोर्ट के विमोचन कार्यक्रम में एसडीसी फाउंडेशन, यूपीईएस स्कूल ऑफ लॉ, संकाय सदस्यों, क़ानून छात्रों तथा रिपोर्ट की संपादकीय व शोध टीम के सदस्यों ने भाग लिया। कार्यक्रम की शुरुआत गौतम कुमार ने रिपोर्ट के उद्देश्य और संरचना पर प्रकाश डालते हुए की। उन्होंने एक ऐसे राज्य में व्यवस्थित दस्तावेजीकरण की महत्ता बताई, जो तेज़ी से बढ़ते पर्यावरणीय और अवसंरचनात्मक दबावों से जूझ रहा है। उन्होंने बताया कि उदय वैज्ञानिक रुझानों के विश्लेषण, घटनाओं के ट्रैकिंग और शासन से संबंधित कमियों की पहचान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इसके बाद प्रेर्णा रतूड़ी ने एसडीसी फाउंडेशन की प्रतिवर्ष जलवायु और आपदा घटनाओं के दस्तावेजीकरण की परंपरा पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि दीर्घकालिक दस्तावेजीकरण, साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण के लिए अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि उदय जनता की समझ को मज़बूत बनाता है और भविष्य की योजना के लिए एक तथ्यात्मक आधार प्रदान करता है।
शोध टीम की सदस्य मिसबह ने आपदा घटनाओं के कानूनी पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि प्रत्येक घटना गुमशुदा व्यक्तियों, क्षतिपूर्ति, पुनर्वास, पर्यावरणीय अनुपालन और भूमि अधिकार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों से जुड़ी होती है। उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि वे आपदा शासन को न्याय और जवाबदेही को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण विधिक क्षेत्र के रूप में देखें।
यूपीईएस स्कूल ऑफ लॉ की शिखा डिमरी ने छात्रों की सहभागिता की सराहना की और सामाजिक रूप से प्रासंगिक व क्षेत्राधारित अनुसंधान के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि अनुभवात्मक शिक्षण कानूनी शिक्षा को और मज़बूत बनाता है और भविष्य के पेशेवरों को पर्यावरणीय व जलवायु चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना करने के लिए तैयार करता है।
कार्यक्रम के समापन संबोधन में एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने 2022 से उदय की यात्रा पर चिंतन किया और एक नाज़ुक हिमालयी राज्य में सतत दस्तावेजीकरण की अनिवार्यता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि नीति विफलताओं और तैयारी की खामियों के पैटर्न केवल तथ्यों के व्यवस्थित विश्लेषण से ही स्पष्ट होते हैं। उन्होंने शैक्षणिक संस्थानों और सिविल सोसायटी के बीच मज़बूत सहयोग का आह्वान किया ताकि सार्थक सुधारों की दिशा में कदम बढ़ाए जा सकें।
रिपोर्ट राहत-केंद्रित प्रतिक्रियाओं से आगे बढ़कर लचीलापन आधारित शासन पर ध्यान देने की अपील करती है। प्रमुख सिफारिशों में प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को सुदृढ़ बनाना, हिमनदीय निगरानी का विस्तार, इको-सेंसिटिव नियमों का कड़ाई से पालन और द्रुत गति से बढ़ते शहरों विशेषकर देहरादून में शहरी जलवायु अनुकूलन उपायों को बढ़ावा देना शामिल है। यह आजीविका, सामुदायिक पुनर्वास और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने वाले जन-केंद्रित पुनर्प्राप्ति ढांचे की आवश्यकता पर ज़ोर देती है और पर्यावरणीय योजना, आपदा प्रबंधन और स्थानीय शासन को जोड़ने वाली एकीकृत हिमालयी रेज़िलिएंस नीति की मांग करती है।











